दीपावली हर्ष और उल्लास का त्यौहार है। देश के हर कोने में यह पर्व अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। परंतु हर स्थान पर अमावस्या के दिन दीप जलाने तथा उससे पहले धन्वंतरि पूजन और नरक चतुर्दशी को अलग-अलग तरीके से मनाना सामान्य है। अब तो विदेशों में भी दीपावली का त्यौहार बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा है।
रत देश दुनिया का सबसे समृद्ध देश है, क्योंकि हमारे पास सबसे बड़ी दौलत है हमारी सांस्कृतिक विरासत! भौगोलिक दृष्टि से भारत विविधताओं का देश है, फिर भी सांस्कृतिक रूप से एक इकाई के रूप में इसका अस्तित्व प्राचीन काल से बना हुआ है। हमारा देश कई प्रांतों में बटा हुआ है। भाषा, वेशभूषा, खानपान, संस्कृति, परम्परा, धर्म, त्यौहार, लोक गीत, लोक गाथा, विवाह प्रणाली, कला, संगीत, नृत्य में भिन्नता होते हुए भी समानता है।
इंसान का जीवन आनंद और उल्लास के बिना फीका और नीरस होता है। हमारे त्यौहार हमारी जिंदगी को उत्साह से भरने का माध्यम हैं। त्यौहार हमारे आपसी रिश्तो को मजबूत करते हैं। हमारे त्यौहार देश में एकता, आपसी प्रेम, सद्भाव बनाए रखने में बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं।
दीपावली का त्यौहार पूरे भारत में मनाया जाता है, मगर इसके स्वरूप में कहीं-कहीं भिन्नता देखने को मिलती है। माना जाता है कि भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास पूरा कर जब अयोध्या वापस आए थे, तब उनके आगमन की खुशी में पूरा अयोध्या कार्तिक मास की काली अमावस की रात में मिट्टी के दीपों की रोशनी से जगमगा उठा था, तभी से दीपावली पर्व की परम्परा प्रारम्भ हुई।
दीपावली सिर्फ हिंदुओं का ही नहीं सिक्ख धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म का भी त्यौहार है। सिख धर्म में इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। दिल्ली पर जब मुगल सम्राट जहांगीर का शासन था उस समय जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह साहब को बंदी बनाकर ग्वालियर की जेल में रखा था। वहां पहले से ही 52 हिंदू राजा कैद थे। मगर हरगोविंद सिंह जी को कैद करते ही जहांगीर बुरी तरह से बीमार पड़ गए। काजी ने कहा, आपने किसी सच्चे गुरु को कैद कर लिया है, आपको उन्हें छोड़ना पड़ेगा तभी आप ठीक हो सकेंगे। जहांगीर ने तुरंत हरगोविंद सिंह जी को छोड़ने का आदेश जारी कर दिया, मगर उन्होंने 52 हिंदू राजाओं को भी छोड़ने की मांग की। तब जहांगीर ने कहा, वह उतने ही राजाओं को छोड़ेंगे जिन्होंने हरगोविंद साहब का कोई कपड़ा पकड़ा हो तब उन्होंने 52 कलियों का कुर्ता सिलवाया। उनके कुर्ते को पकड़ सभी राजा बाहर आ गए। इस तरह सभी राजाओं को मुक्त करना पड़ा। इसके बाद गुरुजी जब अमृतसर पहुंचे तब दिए और मोमबत्तियां जलाकर उनका स्वागत किया गया, उसी दिन से सिक्ख कार्तिक मास की अमावस्या को दाता बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं और 1577 में इसी दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था।
जैन धर्म
जैन धर्म में दीपावली भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस दिन उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। कार्तिक मास की अमावस्या में भाव दीपक बुझने से घोर अंधकार छा गया, तब देवताओं ने दिव्य दीपक प्रकट किए तभी से दीवाली मनाई जाने लगी। भगवान के निर्वाण के पश्चात उनके भाई नंदीवर्धन स्वयं को संभाल नहीं पा रहे थे। तब उनकी बहन ने उन्हें सांत्वना दी। तभी से भाई बीज का त्यौहार प्रचलित हुआ।
बौद्ध धर्म
बौद्ध दर्शन के अनुसार भगवान बुद्ध जब ज्ञान प्राप्त कर अपने अनुयायियों के साथ कपिलवस्तु वापस आए तब उनके आगमन की खुशी में लाखों दीप जलाए गए, तभी से बौद्ध धर्म में दीपावली का त्यौहार शुरू हुआ।
उत्तर भारत
उत्तर भारत में यह त्यौहार 5 दिनों का होता है। दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है, इसे धनत्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा होती है। इसी दिन समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे, तभी से इस दिन का नाम धनतेरस पड़ा और इस दिन बर्तन,धातु व आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई। दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और काली चौदस कहते हैं। इस दिन यम के सम्मान में घूरे पर दीप रखा जाता है। इसी दिन नरकासुर का वध कर भगवान कृष्ण ने 16,100 कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दियों की बारात सजाई जाती है, इस दिन सूर्योदय से पूर्व उबटन लगा कर स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही यह भी मान्यता है कि इस दिन उबटन करने से रूप व सौंदर्य में वृद्धि होती है।
तीसरे दिन को दीपावली कहते हैं। यही मुख्य पर्व होता है। यह पर्व विशेष रूप से मां लक्ष्मी के पूजन का होता है। मान्यता है कि राक्षस और देवताओं के द्वारा समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी दूध के समुद्र (क्षीर सागर) से कार्तिक महीने की अमावस्या को ब्रह्मांड में आई थी, इसलिए इस दिन को माता लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में मनाना शुरू किया था। इन्हें धन वैभव ऐश्वर्य और सुख समृद्धि की देवी माना जाता है। इसीलिए मां लक्ष्मी के स्वागत में दीप जलाए जाते हैं, ताकि दीपों की रोशनी अमावस्या की काली रात को अपने अंदर समाहित कर ले। इस दिन देवी लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश जी के पूजन का भी बहुत महत्व है। इस दिन झाड़ू भी खरीदी जाती है, जो लक्ष्मी के घर में प्रवेश की प्रतीक है। व्यापारियों द्वारा इस दिन को बड़ी शिद्दत से मनाया जाता है। फैक्ट्रियों और दुकानों की पूजा की जाती है। इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार घर में मिठाई अवश्य बनाई जाती है। एक दूसरे के घर मिठाई भेजने की भी परम्परा है।
चौथे दिन अन्नकूट और गोवर्धन की पूजा होती है। इसे पड़वा या प्रतिपदा भी कहते हैं। खासकर इस दिन गाय, बैल, बकरी आदि को स्नान करा कर उन्हें सजाया जाता है। फिर घर के आंगन में गोवर्धन बनाए जाते हैं। और पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में जब इंद्रदेव ने गोकुल वासियों से नाराज होकर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांव वासियों को गोवर्धन की छांव में सुरक्षित किया था। इसलिए गोवर्धन पूजन की परम्परा चली आ रही है
पांचवे दिन को भाई दूज और यम द्वितीया कहते हैं। भाई दूज का पर्व भाई बहनों के रिश्तों को प्रगाढ़ करता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक कर भोजन कराती हैं, और उनकी लम्बी उम्र की कामना करती हैं। इस दिन को लेकर मान्यता है कि यमराज अपनी बहन यमुना जी से मिलने उनके घर आए थे। यमुना जी ने उन्हें प्रेम पूर्वक भोजन कराया और यह वचन लिया कि इस दिन वह हर साल अपनी बहन के घर भोजन के लिए आएंगे। ऐसी मान्यता है कि जो भी बहन अपने भाई को अपने घर आमंत्रित कर तिलक और भोजन करवाएगी तो उसके भाई की उम्र लम्बी होगी।
हरियाणा
हरियाणा में गांव के लोग दीपावली कुछ अलग ढंग से मनाते हैं। घर की दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है, जिस पर घर के हर सदस्य का नाम लिखा जाता है। घरों को दीपकों बंदनवार, और रंगोली से सजाया जाता है। कुछ घरों में अस्त्र शस्त्रों की पूजा भी होती है।
वाराणसी
वाराणसी में वैसे तो दीपावली पारम्परिक तौर पर ही मनाई जाती है लेकिन इसके पंद्रह दिनों बाद देवताओं की दीवाली मनाई जाती है जिसे देव दीपावली के नाम से जाना जाता है। भक्तों का मानना है कि इस दौरान देवी देवता पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने धरती पर आते हैं। इस दौरान प्रार्थनाएं की जाती है और दीप जलाकर गंगा नदी में बहाए जाते हैं।
दक्षिण भारत में दीपावली का त्यौहार नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है, जो दीपावली से 1 दिन पहले होती है। नरक चतुर्दशी को काली चौदस या छोटी दीवाली के नाम से जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन राक्षस नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली ने किया था। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न माना जाता है। यह त्यौहार महाकाली और शक्ति की पूजा का प्रतीक है। यहां नरक चतुर्दशी दीपावली का मुख्य दिन है। 1 दिन पहले चूल्हा साफ करके इसे चूने द्वारा पोता जाता है फिर चूल्हे पर लोग धार्मिक प्रतीकों को बनाते हैं। इस दिन सुबह तेल स्नान किया जाता है, फिर पूजा स्थल की सजावट और नैवेद्य चढ़ाया जाता है। नए वस्त्र धारण किए जाते हैं। पटाखे चलाए जाते हैं और मिठाई खाई जाती है।
तमिलनाडु
तमिलनाडु में कुथु विलाकु (दीपक) जलाते हैं और लेहियम नामक एक दवा भी तैयार करते हैं, जिसे बाद में परिवार द्वारा लिया जाता है। पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए पितृतर्पण पूजा भी करते हैं।
आंध्र प्रदेश
यहां दीवाली में हरि कथा का संगीतमय बखान किया जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। इसीलिए सत्यभामा की विशेष मिट्टी की मूर्ति की पूजा की जाती है। जबकि अन्य सारे उत्सव दक्षिण राज्यों की तरह ही मनाए जाते हैं।
कर्नाटक
यहां पहला दिन कृष्ण चतुर्दशी का दिन होता है। इस दिन लोग तेल स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर को मारने के बाद अपने शरीर से रक्त के दागों को मिटाने के लिए तेल से स्नान किया था। दीवाली के दिन को बाल पदयमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन महिलाएं घरों में रंगोलियां बनाती हैं और गाय के गोबर से घरों को लीपती हैं। और राजा बलि से जुड़ी कहानियां सुनाई जाती हैं।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में दीपावली का त्यौहार 4 दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन वसुबारस को गाय और बछड़ों की आरती का प्रदर्शन करके मनाया जाता है यह मां और बच्चे के प्रेम का प्रतीक है। और अगले दिन धनतेरस और तीसरे दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है
घर के दरवाजे पर रंगोली सजाई जाती है लक्ष्मी के आगमन के प्रतीक के रूप में लक्ष्मी के पैर बनाए जाते हैं। पूरे घर में मिट्टी के दीपक जलाएं जाते हैं। कई तरह की मिठाईयां गुझिया, लड्डू, तीखे और मसालेदार व्यंजन जैसे चकली, सेव विशेष तैयारी के साथ बनाए जाते हैं। यह भोज फराल के नाम से जाना जाता है। चौथे दिन देवी लक्ष्मी भगवान गणेश और धन व आभूषणों की पूजा की जाती है। 5वें दिन भाऊबीज यानी भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है।
गोवा
गोवा में दीपावली भगवान श्रीकृष्ण के सम्मान में मनाई जाती है राक्षस नरकासुर ने यहां के निवासियों को आतंकित कर दिया था। लोगों ने मदद के लिए भगवान श्रीकृष्ण से गुहार लगाई थी। उन्होंने गोवा वासियों की रक्षा हेतु नरकासुर के साथ एक भीषण युद्ध लड़ा। युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से नरकासुर की जीभ काट दी जिससे नरकासुर मर गया। नरकासुर की मृत्यु के बाद गांव के लोगों ने अपने घरों में दीपक जला कर खुशियां मनाई थी। अतः नरक चतुर्दशी के दिन सूखी घास और पटाखों से भरे नरकासुर के कागज के पुतले बनाकर उसे जलाकर दीवाली मनाई जाती है। पुतलों को जलाने के बाद सुगंधित तेल से स्नान किया जाता है और एक कड़वी बेरी जिसे करीत कहा जाता है, उसे बुराई को मिटाने के प्रतीक के रूप में पैरों से कुचल दिया जाता है।
गुजरात
गुजरात में दीवाली नए साल के रूप में मनाई जाती है। कोई नया उद्योग स्थापित करना हो, या जमीन की खरीददारी या कोई शुभ कार्य के लिए इस दिन को शुभ माना जाता है। गुजरात को व्यापार का गढ़ माना जाता है। इस दिन बही खातों की पूजा की जाती है। महाराष्ट्र की तरह रंगोली सजाने और लक्ष्मी की पैर बनाने का भी रिवाज है। घी के दीपक की लौ को एकत्रित कर काजल बनाया जाता है जिसे महिलाएं अपनी आंखों में लगाती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से पूरे वर्ष धन व्यवसाय में वृद्धि होती है। हर घर में मोहनथाल बनाया जाता है। धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन होता है, लक्ष्मी मां को छप्पन भोग लगाते हैं और सब मिलकर लक्ष्मी मां की आराधना करते हैं।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में दीवाली के दिन काली मां की पूजा होती है। काली मां को फूलों से सजाया जाता है। मंदिर में पूजा की जाती है। यह पूजा आधी रात को होती है। दक्षिणेश्वर और कालीघाट मंदिर पूजा के लिए प्रसिद्ध हैं। भक्त मां काली को मिठाई, दाल, चावल और मछली चढ़ाते हैं।
उड़ीसा
उड़ीसा में दीवाली के अवसर पर लोग कोरिया काठी करते हैं यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें लोग स्वर्ग में अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं अपने पूर्वजों को बुलाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जूट की छड़े जलाते हैं। दीवाली के दिन यहां के लोग देवी लक्ष्मी भगवान गणेश और देवी काली की पूजा करते हैं
आसाम
आसाम में काली मां और लक्ष्मी देवी की पूजा होती है। इस दिन लोग दुकानों पर अपने कैशबैक को पूरी रात खुला रखते हैं ताकि अगले वर्ष की दीवाली तक घर धन-धान्य से भरपूर रहे। कई पीढ़ियों से यह रिवाज चला रहा है, घर के दरवाजों को भी रात भर खुला रखा जाता है।
दीपावली में एक समानता तो पूरे भारत में है- दीप जलाना, पारम्परिक व्यंजन बनाना, नए वस्त्र धारण करना, घरों में पुताइ और सफाई करना। उपहारों, मिठाइयों का आदान-प्रदान करना, रंगोली सजाना और मिट्टी के दीपक जलाकर घर को रोशन करना और पटाखे चलाना।
दीपावली हमारा राष्ट्रीय पर्व है। हमारे त्यौहारों में प्रकाश और उजाले करने की व्यवस्था है, आग लगाने की नहीं और आतिशबाजी तो हमारी संस्कृति का हिस्सा ही नहीं है। आतिशबाजी हमारा शब्द ही नहीं है, यह फारसी का शब्द है। आतिश का मतलब आग, और बाजी का मतलब खेल यानी आग का खेल। इसलिए इससे होने वाले नुकसान के प्रति हमें जागरूक होना बहुत जरूरी है। त्यौहार मनाने का हमारा उद्देश्य होता है। मैं अपने देश के नागरिकों को यह संदेश देना चाहूंगी दीपावली पर चीन का सामान खरीद कर उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत ना करें। दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाने की प्रथा चली आ रही है, उसे कायम रखें ताकि गरीबों की भी दीवाली खुशियों से भरपूर रहे। हमारे लिए दीपक बनाने वाले के घर भी दीपों की रोशनी से सराबोर रहें। दूसरों के जीवन में खुशियों के रंग भरना ही सच्ची दीवाली है।