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चोरी करना भी एक मानसिक बीमारी

चोरी करना भी एक मानसिक बीमारी

by रचना प्रियदर्शिनी
in सामाजिक, स्वास्थ्य, हास्य विशेषांक-मई २०१८
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कुछ लोग जान-बूझ कर अपनी जरूरतों या अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए चोरी करते हैं, जो कि वास्तव में एक अपराध है। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं, जो संपन्न घरों से संबंध रखते हैं, जिन्हें चोरी करने की कोई जरूरत नहीं होती- इसके बावजूद वे चोरी करने से खुद को रोक नहीं पाते। ऐसे लोगों को सजा की नहीं, बल्कि उपचार की जरूरत होती है, क्योंकि वे क्लेपटोमेनिया नामक बीमारी से ग्रस्त होते हैं।

25 साल की बबिता बहुत निराश और परेशान रहती है। वह जब भी बाहर जाती है, तो लोगों के बीच में सहज महसूस नहीं कर पाती। तनाव और बैचेनी महसूस करती है। उस पल उसके मन में चोरी की तीव्र इच्छा जागृत होती है। गलत काम, पकड़े जाने का भय, शर्म इन सब का एहसास होते हुए भी वह खुद को ऐसा करने से रोक नहीं पाती। बहुत कोशिश की, पर वह अपनी इस आदत से लाचार है। सोसायटी में कोई भी उसे अपने घर बुलाना नहीं चाहता। इस वजह से वह बेहद अकेला महसूस करती है।

दिल्ली में एक रईस परिवार से ताल्लुक रखने वाला किशोर जब भी मॉल जाता था, नजर बचा कर कुछ न कुछ चुरा लाता। काफी दिनों तक ये सिलसिला चलता रहा, लेकिन एक दिन उसकी हरकत सीसीटीवी कैमरे में एक स्टोर के मालिक ने देख ली और उसे पकड़ लिया। काफी हंगामा हुआ, उस किशोर के माता-पिता को फोन किया गया। वे भी अपने बेटे की हरकत जान कर दंग रह गए। उनके पूछने पर किशोर ने बताया कि वह जान-बूझ कर चोरी नहीं करता, बल्कि मॉल या मार्केट जाने पर उसे अचानक ही कुछ देख कर उसे चुराने का मन करने लगता है। कई बार तो उसे वह चीज पसंद भी नहीं होती।

क्लेप्टोमेनिया दरअसल एक प्रकार का साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर है। जिसमें व्यक्ति का अपने आंतरिक संवेगों पर नियंत्रण नहीं रह पाता। यह समस्या किसी भी उम्र, लिंग तथा वर्ग के लोगों में देखने को मिल सकती है। फिर भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह डिसऑर्डर ज्यादा देखने को मिलता है। खास कर उन महिलाओं में जो एनेरॉक्सिआ नरवोसा (अधिक खाने की बीमारी), ब्लुमिआ नरवोसा (खाना न खाने की बीमारी) या डिप्रेशन से पीड़ित होती हैं।

आधिकारिक तौर पर क्लेप्टोमेनिया की पहचान सब से पहले 1838 में की गई थी। बाद में फ्रांस की पाठ्यपुस्तकों में इसके लक्षणों के बारे में बताया जाने लगा। हालांकि तब भी लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। फिर करीब डेढ़ सौ वर्ष बाद दिसम्बर 2001 में यूएस में हॉलीवुड एक्ट्रेस विनोना राइडर को चोरी के जुर्म में जब गिरफ्तार किया गया, तो पता चला कि वह इस बीमारी से पीड़ित है। जब पुलिस ने उनके घर की तलाशी ली, तो कई ऐसी चीजें मिलीं, जिन्हें विनोना ने न ही खरीदा था और न ही उन चीजों का उसके लिए कोई विशेष महत्व था।

आरंभिक युवावस्था में होती है शुरुआत

क्लेपटोमेनिया के आरंभिक लक्षण आमतौर पर आरंभिक युवावस्था (18-20 साल में) में परिलक्षित होना शुरू हो जाते हैं। हालांकि आजकल बच्चों में भी इसके लक्षण दिखाई देने लगे हैं। यह अन्य विकारों के साथ भी दिखाई देता है। जैसे कि- ओसीडी, डिप्रेशन, एनेरॉक्सिआ नर्वोसा, ब्लुमिआ नर्वोसा, सोशल एंक्जाइटी आदि।

इसकी वजह से तीव्र इच्छा के आवेग में व्यक्ति कहीं से कुछ भी सामान चुरा लेते हैं, चाहे वह सामान उसकी निजी जरूरत का हो या न हो। अक्सर उसकी कोई खास कीमत भी नहीं होती है। न ही चोरी का कारण कोई निजी दुश्मनी या गुस्सा होता है। सामान चुराने से पहले व्यक्ति बेहद तनावग्रस्त होता है और चोरी के बाद रिलैक्स महसूस करता है। वह अपनी विवशता से मजबूर होकर यह अपराध करता है, हालांकि उसे पकड़े जाने का भय भी रहता है और वह शर्म भी महसूस करता है, फिर भी अपनी इस हरकत पर काबू नहीं कर पाता।

शॉपलिफ्टिंग से है भिन्न

सामान्य चोरी या शॉपलिफ्टिंग जान-बूझ कर की जाती है। चुराया हुआ सामान अकसर जरूरत का या कीमती होता है। यह अपराध की श्रेणी में आता है, जबकि क्लेपटोमेनिया एक मानसिक बीमारी है। इससे ग्रसित व्यक्ति अपने आवेग से विवश होकर चोरी करता है। अक्सर ऐसे सामानों की न तो कोई विशेष कीमत होती है और न ही चुराने वाले व्यक्ति को उसकी कोई जरूरत होती है।

क्या है वजह?

साइकॉलोजिस्ट इस बीमारी को एडिक्टिव डिसॉर्डर और ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर की श्रेणी में रखते हैं। मनोवैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि ब्रेन में सेरोटिन नामक केमिकल के स्तर में बदलाव होने पर इस बीमारी के लक्षण पैदा होते हैं। हालांकि अभी तक इसके पीछे की ठोस वजह ढूंढी नहीं जा सकी है। अध्ययनों में यह भी देखने को मिला है कि परिवार में अगर किसी को क्लेप्टोमानिया है, तो इसका खतरा बढ़ जाता है। अधिकतर औरतें इसका शिकार होती हैं। अगर शुरुआती अवस्था में प्रभावित व्यक्ति को चोरी करने के लिए सजा नहीं मिलती है, तो उसको इस तरह की चोरी की आदत हो जाती है और फिर धीरे-धीरे वह इस बीमारी से ग्रस्त हो जाता है।

अभी तक क्लेपटोमेनिया के सही कारणों का पता नहीं चल पाया है। इस दिशा में लगातार रिसर्च जारी है। फिर भी इतना तो तय है कि सभी तरह की मानसिक बीमारियों के लिए कोई एक कारण जिम्मेवार नहीं होता, बल्कि किसी एक बीमारी की कई सारी वजहें हो सकती हैं।

जॉर्ज पंचम की रानी भी थीं क्लेप्टोमैनिक

ब्रिटेन के बादशाह जॉर्ज पंचम की रानी को भी यह रोग था। कहा जाता है कि रानी मैरी को जब भी किसी दुकान पर कोई अंगूठी या हार पसंद आता था तो वह चुपके से उठा कर उसे अपने बैग में रख लेती थीं। दुकानदार उनके रुतबे की वजह से देख कर भी उसे अनदेखा कर देते थे और रानी के सेवक चुपचाप उस ज्वैलरी की कीमत चुका देते थे। इसी से इस बीमारी को उसका नाम मिला। सब से पहले आधिकारिक रूप से वर्ष 1838 में क्लेपटोमेनिया के लक्षणों और निदान के विषय में फ्रेंच पाठ्य पुस्तकों में इस रोग की चर्चा की गई थी।

कैसे करें पहचान?

आप क्लेप्टोमेनिक हैं तो ध्यान दें:

– वैसे सामानों को भी चुराने की आदत पर, जिसकी जरूरत न हो।

– चुराने के पहले तनाव महसूस करना, जबकि चोरी करने पर खुशी का और संतुष्टि का अहसास होना।

– सामान चुराने के बाद उदास महसूस करना और कानूनी कार्रवाई का डर महसूस होना।

– बार-बार चोरी करने का मन करना।

संभव है उपचार

यह मानसिक समस्या कुल आबादी में 0.6 प्रतिशत लोगों में पाई जाती है। मनोचिकित्सकों के अनुसार इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है, लेकिन कानूनी कार्रवाई और शर्मिंदगी के डर से अक्सर पीड़ित व्यक्ति इसका इलाज कराने से कतराते हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस बीमारी से पीड़ित ज्यादातर लोगों के परिजनों को यह समझने में बहुत वक्त लग जाता है कि वह किसी बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी से ग्रसित लोग अपने परिजनों और दोस्तों के सामने शर्मसार होने से बचने के लिए अपनी सच्चाई को जितना संभव होता है, छिपाते रहते हैं।

क्या करें?

इसके इलाज में साइकोथैरपी और दवा दोनों का उपयोग किया जाता है। पीड़ित व्यक्ति की व्यक्तिगत या समूह में काउंसेलिंग होती है। थैरपी में पुरानी साइकोलॉज़िक्ल समस्या का ध्यान रखा जाता है। परिवार जनों को चाहिए कि मरीज को डांटने, गलत ठहराने या अपमानित करने के बजाय उसकी समस्या को समझने और उसे सुलझाने का प्रयास करें। जरूरत पड़ने पर मनोचिकित्सकों की मदद लें। साथ ही, जो लोग इस समस्या से पीड़ित हैं, उन्हें भी अपने परिवार से इस बारे में बात करनी चाहिए। उन्हें बताएं कि आप किस समस्या से जूझ रही हैं और क्यों परेशान हैं।

 

रचना प्रियदर्शिनी

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