भविष्य के स्थापत्य की आधारशिला

सैकड़ों वर्षों की प्रतीक्षा के पश्चात् भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण का सुदृढ़ कार्य निरंतर तेजी से जारी है। मंदिर की आधारशिला इस भांति रखी जा रही है कि अगले हजार वर्षों तक प्राकृतिक आपदाओं का उस पर कोई असर ना हो। इसके साथ ही नेपाल से लेकर श्रीलंका तक विशाल रामायण सर्किट के तौर पर विश्व का सबसे बड़ा पर्यटन क्षेत्र विकसित किया जाएगा।

गस्त 05, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा श्रीराम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण हेतु आधारशिला रखने के बाद सतत् व रात दिन निर्माण कार्य चलने के फलस्वरूप आज लगभग 40 प्रतिशत से अधिक काम पूरा हो गया है। राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास के अनुसार जो कार्य सितम्बर 2022 में होना था, वह अभी अगस्त माह में ही पूरा हो गया था और 23 दिसम्बर 2023 तक गर्भगृह का कार्य पूरा हो जायेगा। आशा है कि गर्भगृह निर्माण के बाद से दिसम्बर 2023 से भगवान राम के दर्शन का काम भी आरम्भ हो जायेगा। श्री रामलला 494 वर्ष बाद पुनः अपने भव्य मंदिर में आसीन हो विश्वभर के रामभक्तों में अपार उत्साह का संचार करेंगे। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा सम्वत 1631 अर्थात 1574 ईस्वी में रामचरितमानस की रचना किए जाने का यह 450वां वर्ष होगा।

नागर शैली का अनुपम व सुदृढ़ मंदिर: जन्मभूमि पर निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर उत्तर भारत की मंदिर वास्तु कला की नागरली में ऐसी सुदृढ़ता के साथ बनाया जा रहा है कि यह मंदिर 1000 वर्ष बाद भी सुरक्षित बना रहेगा। नागर शैली में मंदिर का निर्माण सामान्यतः एक ऊंचे धरातल या चबूतरे पर किया जाता है जिसे जगती कहा जाता है। इन मंदिरों की मुख्य भूमि आयताकार होती है जिसमें बीच में दोनों ओर क्रमिक विमान होते है इनका पूर्ण आकार तिकोना हो जाता है मंदिर के सबसे उपर शिखर होता है और सामान्यतः दो मुख्य भवन होते हैं – एक गर्भगृह और दूसरा सभा मंडप। गर्भगृह के चारों ओर ढका हुआ प्रदक्षिणा पथ होता है। गर्भगृह ऊंचा होता है व मंडप अपेक्षाकृत नीचा होता है। मंदिर के वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा के अनुसार मंदिर दो मंजिला रहेगा। इसमें पहले तल पर रामलला का मंदिर है और ऊपर की मंजिल पर राम दरबार रहेगा, जहां श्रीराम, लक्ष्मण जी और सीताजी की मूर्तियों के साथ रामभक्त हनुमान जी की मूर्ति लगेगी।

नागर शैली के मंदिरों में पत्थरों को जोड़ने में सीमेंट या चूने का उपयोग न कर तांबे की पट्टियों का उपयोग किया जाता है इसलिये श्रीराम मंदिर में भी पत्थरों को 18 इंच लम्बी, 30 मिलीमीटर चौड़ी और 3 मिलीमीटर मोटी तांबे की पट्टियों का उपयोग किया जा रहा है।

मूल प्ररचना व आकार में विस्तार: राम मंदिर की मूल प्ररचना अर्थात डिजाईन 1989 में ही तैयार कर ली गयी थी। सर्वोच्च न्यायालय का 2019 में निर्णय आने के बाद सम्पूर्ण भूमि की राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास को सुपुर्दगी के बाद अब प्रारम्भिक मूल प्ररचना में लगभग 50 प्रतिशत परिवर्तन किया गया है। तब मंदिर में तीन मंडप व तीन गुम्बद प्रस्तावित थे। अब पांच मंडप व उनके ऊपर पांच गुम्बद होंगे और एक शिखर होगा। मंदिर की ऊंचाई भी बढ़ाकर 161 फीट की गयी है। प्रारम्भिक प्ररचना में मूल गर्भगृह, कुडु मंडप व नृत्य मंडप ही प्रस्तावित थे। अब अगले हिस्से में दोनों तरफ दो अतिरिक्त मंडप क्रमशः कीर्तन मंडप व प्रार्थना मंडप भी होंगे। मंदिर की चौड़ाई भी बढ़ाई गयी है जिससे अब इसमें 212 के स्थान पर 360 कॉलम होंगे। रामलला के पास भरत जी, सीतामाता, हनुमान जी व गणेश जी के मंदिर रहेंगे मंदिर बनाने में 2 लाख 60 हजार घनफीट पत्थर लगेगा। इनमें 1 लाख 60 हजार घनफीट पत्थर 2019 से पहले ही तैयार हो चुका था। मंदिर की आधारशिला भी 9 नवम्बर 1989 को ही विश्व हिन्दू परिषद् के पदाधिकारियों व सन्त समाज द्वारा स्थापित कर दी गयी थी और एक सिंह द्वार भी तब ही बना दिया गया था। मंदिर में प्रवेश के लिए चार द्वार होंगे जिन पर भारतीय संस्कृति की झांकिया अंकित होगी। मंदिर में प्रदर्शनी, ध्यान कक्ष, अनुसंधान केंद्र व कार्मिकों के लिए आवास भी होंगे। भगवान राम पर अनुसंधान व संदर्भ साहित्य के लिए पुस्तकालय भी बनाया जायेगा। मंदिर परिसर में ही एक प्रार्थना कक्ष के अतिरिक्त एक रामकथा कुंज, एक वैदिक पाठशाला, एक संत निवास, एक यति निवास, छात्रावास, संग्रहालय व कैफेटेरिया सहित कई अन्य सुविधाएं भी होंगी।

विश्व का पांचवा सबसे बड़ा मंदिर: राम जन्मभूमि मंदिर पूर्ण होने के बाद यह परिसर विश्व का पांचवां और भारत का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होगा। वर्तमान में कम्बोडिया का बारहवीं सदी में 402 एकड़ में बना अंगकोरवाट का विष्णु मंदिर विश्व का सबसे बड़ा मंदिर हैं। यह मंदिर विश्व के सभी मत-पंथों के धर्मस्थलों में सर्वाधिक विशाल है। दूसरे स्थान पर अमेरिका में न्यू जर्सी में 163 एकड़ में बना स्वामीनारायण मंदिर है। तीसरे स्थान पर तमिलनाडु में श्रीरंगम में 155 एकड़ में फैला श्री रंगनाथ स्वामी का मंदिर है। ईसा पूर्व काल में बना यह मंदिर खिलजी के कू्रर सेनापति मलिक गफूर द्वारा तोड़ दिया गया था। लेकिन इसका तब चौदहवीं सदी में ही पुनर्निर्माण कर लिया गया था। राम मंदिर परिसर से थोड़ा बड़ा 69 एकड़ में फैला छतरपुर का मां कात्यायनी का मंदिर हैं जो विश्व के हिंदू मंदिरों में चौथे स्थान पर आता है। इन पांच मंदिरों में अंगकोरवाट व न्यू जर्सी के मंदिर भारत से बाहर हैं जबकि शेष तीन मंदिर देश में स्थित हैं। राम मंदिर परिसर 66 एकड़ का होगा इसमें प्रधान मंदिर की लम्बाई 268 फीट व चौड़ाई 140 फीट होगी।

भव्य शुभारम्भ व व्यापक सहयोग: 05 अगस्त 2020 को भूमि उत्खनन के साथ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आधारशिला के रूप में 40 किलो चांदी की ईट स्थापना के साथ मंदिर निर्माण का भव्य शुभारम्भ हुआ था। उसके पहले, तीन दिवसीय वैदिक अनुष्ठान सम्पन्न किये गये थे। इस अनुष्ठानों में श्रीरामार्चन के साथ, सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया था। इस अवसर पर देश के सभी धार्मिक स्थानों की पवित्र मिट्टी सभी तीर्थों के पवित्र जल लाये गये थे। पाक अधिकृत कश्मीर स्थित शारदा पीठ की पवित्र मिट्टी भी इस अवसर पर लायी गयी थी। अमेरिका, कनाडा व केरिबियन द्वीपों सहित विदेशों में अनेक स्थानों पर तब भव्य आयोजन भी हुए थे और अमेरिका के टाइम्स स्क्वायर पर तो भगवान राम की छवि भी प्रदर्शित की गयी थी। अयोध्या में हनुमान गढ़ी के 7 कि.मी. परिक्षेत्र के 7 हजार मंदिरों पर अति भव्य दीपदान हुए थे।

विश्व स्तरीय प्रौद्योगिकी व विशेषज्ञों का सहयोग: मंदिर निर्माण में सभी प्रकार की आधुनिकतम मशीनों के उपयोग के साथ अनेक तकनीकी संस्थानों के विशेषज्ञों का मार्गदर्शन लिया जा रहा है। लार्सन एंड टूब्रो कम्पनी ने तो निर्माण की निःशुल्क देख-रेख, पर्यवेक्षण व तकनीकी डिजाईन तैयार करने का प्रस्ताव प्रारम्भ में ही दे दिया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मंदिर के नीचे से प्रवाहरत सरयू की एक धारा को भी चिन्हित कर लिया है। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान और मुंबई, गुवाहाटी व मद्रास के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा मिट्टी परीक्षण, कंक्रीट रचना और सिविल डिजाईन जैसे क्षेत्रों में तकनीकी सहायता दी जा रही है।

देश के अधिकांश मंदिर सुदृढ़ चट्टानी धरातल पर बने हैं। अयोध्या में मैदानी धरातल व मुलायम मिट्टी के आधार को देखते हुए वहां सीमेंट कंक्रीट से चट्टान जैसा सुदृढ़ कृत्रिम धरातल तैयार कर उसमें कॉलम की ड्रिलिंग कर पिलर खड़े किये गये हैं। सीमेंट कंक्रीट की एक-एक फीट की पूरी 56 सतहें बिछाकर सुदृढ़ धरातल तैयार किया गया है। इनमें प्रत्येक सतह एक फीट ऊंची कंक्रीट की है उसके उपर डेढ़ मीटर की प्री-स्ट्रेस्ड सीमेंट कंक्रीट की राफ्ट भी बनायी गयी है। यह सब करने के पूर्व उस पूरे क्षेत्र से 1 लाख 84 हजार घन मीटर मिट्टी भी हटाकर यह कंक्रीट की संरचना बनायी गयी है।

आधुनिकतम मशीनों का उपयोग: पत्थरों की सेटिंग के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग हो रहा है। वहां पर 300 टन तक भार उठाने की क्षमता वाली विशालकाय मशीनों का उपयोग, तराशे गये पत्थरों को जमाने के लिए किया जा रहा है। इससे इन तराशे गये पत्थरों को उठाते व रखते समय कोई दरार या टूट फूट होने का या खरोच तक आने का डर नहीं रहता है। बड़ी संख्या में पॉकलेन व जे.सी.बी. मशीनों के साथ कासा ग्रैंड जैसी अत्याधुनिक मशीनों का उपयोग भी किया गया है। सुदृढ़ता के लिए कासा ग्रैंड मशीन से 1200 पिलर इस प्रकार बनाये गये हैं, जैसे नदी में निर्माण के लिए कुंए की तरह होल ड्रिल किये जाते हैं। उसी प्रकार मंदिर के लिए विशेष प्रकार से बनाई कंक्रीट की कृत्रिम धरातल में 1200 स्थानों पर 35 मीटर अर्थात 200 फीट गहराई तक पाईलिंग की गयी है। यह कासा ग्रैंड मशीन खुदाई करने के साथ ही धरातल के नीचे अंदर ही अंदर पिलर डालते हुए बाहर आती है। ऐसा करने से धरातल की मजबूती बनाये रखते हुए उसमें पिलर खड़े किये गये हैं।

विश्व का विशालतम आध्यात्मिक पर्यटन केन्द्र: मंदिर के साथ ही सम्पूर्ण अयोध्या का एक अनुपम सांस्कृतिक व आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकास किया जा रहा है। अयोध्या के रेलवे स्टेशन को भी मंदिर के स्थापत्य के अनुरूप ही अभिमुखित कर भव्यता प्रदान की जा रही है। केंद्र व राज्य सरकार दोनों का लक्ष्य है कि अयोध्या 2030 तक विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक व सांस्कृतिक पर्यटन केंद्र बने। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने अवध का वर्णन करते हुए राम के शब्दों में ही लिखा है कि “जन्मभूमि मम पुरी सुहावनी, उत्तर दिसि बह सरजु पावनी”। अब सभी निर्माण पूरे होने पर अयोध्या वैसी ही सुहावनी बनने को है। तुलसीदास जी ने अपने स्वयं के ही शब्दों में भी लिखा है कि “सोई राजा राम अवध रजधानी”। अब अवधपुरी वैसी ही विश्व की सांस्कृतिक राजधानी बनने की दिशा में अग्रसर है जैसी त्रेतायुग में रही है। त्रेतायुग से द्वापर और आज वर्तमान तक चला आ रहा अवध का सांस्कृतिक वैभव सदियों तक समाज को कर्त्तव्यबोध व सत्संस्कारों की प्रेरणा देता रहेगा। विगत 495 वर्षों में लड़े 76 युद्ध व लाखों लोगों के बलिदान के बाद हो रहे इस पुनर्निर्माण में उन सभी हुतात्माओं का सुयश भी अमर हो जायेेगा, जिन्होंने इन विगत 5 सदियों में राम जन्मभूमि के लिए अपने प्राण त्यागे थे। नेपाल के जनकपुरी में सीता जी की जन्मस्थली है। वहां से अयोध्या, दंडकारण्य, रामेश्वरम, भव्य व विश्व दुर्लभ रामसेतु तक अनगिनत स्थान रामायण से जुड़े हैं। श्रीलंका में अशोक वाटिका सहित 50 से अधिक रामायण से सम्बंधित स्थल व पुरावशेष हैं। नेपाल से श्रीलंका तक के इन सभी स्थलों तक यह एक विश्व का विशालतम रामायण सर्किट पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित होगा। अमेरिका में होंडुरास व ग्वाटेमाला के वनों मे भी हनुमान जी व मकरध्वज की विशालकाय वानर मूर्तियां मिली हैं। इसे अहिरावण की राजधानी माना जा रहा है। इस प्रकार अयोध्या इस महा-विशाल रामायण परिपथ की सही अर्थों में विश्व की सांस्कृतिक राजधानी बनेगी।

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