बचपन से ही अदिति को रंगोली बनाने का बहुत शौक था । कोई भी त्यौहार हो,रंगोली बनाते समय उसका उत्साह देखते ही बनता था। जहां बाकी के लोगों को पटाखों में आनंद आता या कोई नए कपड़े और मिठाई की ओर आकर्षित होता वहीं अदिति को सिर्फ और सिर्फ रंगोली के रंग आकर्षित करते । जैसे-जैसे अदिति बड़ी होती गयी,हर काम में दक्ष होती चली गयी । पढ़ाई हो या घर-बाहर का काम- सब कुछ बड़ी निपुणता से निपटाती थी । शायद छोटी उम्र में ही माँ का गुज़र जाना व अपने छोटे भाई-बहन की जिम्मेदारियों के एहसास ने नन्हीं अदिति को समय से पहले ही परिपक्व बना दिया था। तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी अदिति,बहुत ही सुन्दर व मृदु -भाषी भी थी,शायद इसीलिए पूरे मोहल्ले में सब उसे जानते थे व प्यार भी करते थे। साधारण सा घर-परिवार था व आस-पड़ोस के परिवार भी उन्हीं के समान थे। पापा की कपड़ों की दुकान थी जिस से ठीक-ठाक आमदनी हो जाया करती थी।
अदिति की वह सोलहवीं दिवाली थी ,जब प्रणव व परिवार उसी के पड़ोस में रहने के लिए आये। उसकी सुंदरता व शालीन व्यवहार से प्रणव भी अछूता नहीं रह पाया । कुछ उम्र ही ऐसी थी कि प्रेम के कोंपल फूटने लगे थे । अदिति, प्रणव के परिवार की भी चहेती बन गयी थी । संयोगवश प्रणव व अदिति एक ही कॉलेज में जाते थे । प्रणव तो उसको अपनी आँखों से ओझिल ही नहीं होने देता था और सब कुछ तो उसी के अनुरूप था । पडोसी भी थे और एक ही कॉलेज में पढ़ाई -प्रणव की और कोई चाह ही नहीं थी । जिसको वह दिलोजान से चाहता था वह हर समय उसी के आस-पास ही तो होती थी ।
अदिति के मन में क्या था यह प्रणव नहीं जानता था-मगर उसको पूरा यक़ीन था कि कहीं न कहीं अदिति भी उसे चाहती है । उन्हें यहां रहते हुए पांच वर्ष बीत चुके थे । हर दिवाली अदिति विभिन्न तरह की रंगोलियां बनाती पर एक विशेष डिज़ाइन वह हर वर्ष बनाती जिसमें एक स्त्री दोनों हाथों में दीये लिए खड़ी होती थी- दोनों दीयों की लौ सुन्दर से लाल-नारंगी-पीले रंगों का मिश्रण होती थी। और प्रणव हर साल उसी के साथ ज़बरदस्ती लग कर उसकी आकृतियों में रंग भरता । शुरू-शुरू में अदिति को किसी और का अपनी रंगोली में रंग भरना नहीं सुहाता था पर जैसे-जैसे प्रणव से मित्रता होती गयी तब उसे प्रणव की मदद अच्छी लगने लगी ।दोनों की आपस में खूब हंसी-ठिठोली होती। प्रणव की माँ के कहने पर अदिति हर वर्ष उनके घर के सामने भी रंगोली बनाती ।
अदिति और प्रणव दोनों ही पढ़ाई में खूब अव्वल थे , प्रणव दो वर्ष से सीनियर था । अदिति हमेशा उस से कहती थी कि प्रणव का भविष्य बहुत ही उज्जवल होगा -जो भी कार्य करेगा उसमें बहुत सफल होगा।
प्रणव ने मन ही मन अदिति को ही अपना जीवनसाथी मान लिया था पर उस से कभी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । वह कभी कुछ कह पाता उसके पहले ही अदिति के पापा ने अपने ही एक मित्र के बेटे से उसकी शादी पक्की कर दी और प्रणव की आँखों के सामने कुछ ही महीनों में उसकी अदिति किसी और के घर की रौनक बन गयी । प्रणव पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, मगर मन की पीड़ा कहता भी किस से ?
अगले ही महीने अदिति अपने पति संग मायके आयी -दिवाली के दो दिन पहले । उसके पति भी स्वभाव से उसी के जैसे शालीन व हंसमुख थे । प्रणव ठीक से आँख उठा कर देख भी नहीं पा रहा था । अदिति ने गुलाबी बाँधनी पहन रखी थी जिस पर ज़री के फूलदार बूँटे थे ,सुन्दर सी बिंदिया ,गहने पहने वह पहले से भी ज़्यादा सुन्दर लग रही थी । प्रणव नज़र चुराकर उसे देखता रहा -जैसे ही नज़र सिन्दूर पर पड़ी फिर से दिल पर आघात हुआ । ‘नहीं – नहीं अब उसे अदिति के बारे में नहीं सोचना चाहिए ,अब वह किसी और की पत्नी है ‘-प्रणव के मन ने उसे चेताया । अब सिर्फ दोस्ती का ही रिश्ता रहना चाहिए – या बेहतर होगा कि वह बस एक पडोसी की नज़र से उसे देखे ।
वह नज़रें झुकाये यही सब सोच रहा था तभी अदिति की आवाज़ से चौंका -‘अरे तुम क्यों यों गुमसुम बैठे हो ,चलो मुझे रंगोली बनाने में मदद करो’।
प्रणव हड़बड़ा सा गया । ‘हाँ तुम शुरू करो मैं आता हूँ ‘-कह कर वह अपने घर चला आया और अपने कमरे में जा कर बैठ गया ।
प्रणव शुरू से ही थोड़े शर्मीले स्वभाव का था सो मित्र भी कोई ख़ास थे नहीं -माँ -बाप की इकलौती संतान होने के नाते सिर्फ उन्ही के सान्निध्य में बड़ा हुआ था। दिल की बात दिल में ही दफ़न करके रख ली ।अपनी बेबसी पर आँखों से आंसू बह निकले -खुद को कोसने लगा -‘कि हाँ अब बड़ा देवदास बन रहा है , जब मौका था तब तो हिम्मत जुटा नहीं पाया -मुँह से बोल फूटे नहीं ,अब रोने से क्या फायदा?’
‘अब इस सत्य को स्वीकार लेना ही ठीक होगा कि अब मेरी अदिति किसी और की पत्नी है ,और कितनी खुश और सुन्दर लग रही थी -पति भी स्वभाव से कितने ख़ुशमिज़ाज लग रहे थे ।‘- अब बेहतरी इसी में होगी कि वह अदिति को भूला दे और ज़िन्दगी की सुध ले ।’ खैर जो भी इक तरफ़ा प्यार के रास्ते चला है वह जानता है कि यह राह कितनी अकेली होती है ।
प्रणव अपने ही ख्यालों में था जब अचानक अदिति उसके कमरे में आ गयी,वह चौंक गया -‘अरे बस मैं आ ही रहा था … वो..मैं.. ‘- प्रणव को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे ।
‘प्रणव तुम्हें क्या हुआ है ?’-अदिति की बड़ी बड़ी आँखें और बड़ी हो चलीं थीं । ‘पिछले कुछ महीनों से तुम्हारा व्यवहार कुछ अजीब सा लग रहा था,मैं शादी की तैयारियों में व्यस्त सोचती रह गयी कि तुमसे बात करुँगी पर हो ही नहीं पाया’-तुम ठीक हो ?’
‘हाँ ठी..ठी ठीक हूँ …..’ -प्रणव हकलाता सा बोला।
‘प्रणव मुझसे कुछ ग़लती हुई है क्या ? तुमने मुझसे ठीक से बात तक नहीं की है-न ही मेरी शादी पर मुझे मुबारकबाद दी,एकदम कटे-कटे से रहते हो । कई बार तो मैंने गौर भी किया कि तुमने मुझे आता देख अपना रास्ता भी बदल लिया था ‘-अदिति रुआँसी सी हो चली थी ।
‘देखो अगर कुछ मन में है तो बोल दो …. मेरे पति की तरक्की हुई है ,हम अगले ही महीने दुबई चले जाएंगे … कब-कब और कैसे आना होगा पता नहीं है । और आंटी ने अभी बताया कि तुम्हारा मास्टर्स खत्म होते ही तुम्हे नौकरी मिल चुकी है और तुम तो पांच दिनों में ही यह शहर छोड़ दोगे …. बहुत बधाई तुम्हें दोस्त …खूब तरक्की करो ,खूब आगे बढ़ो पर सच कहूँ प्रणव थोड़ी तकलीफ़ भी हुई कि तुमने मुझे अपने अच्छे परीक्षा परिणाम या नौकरी के बारे में कुछ नहीं बताया। अचानक ऐसा क्या हुआ कि तुमने मुझे इतना पराया कर दिया…..?’ -अब अदिति की आँखों से अश्रुधारा बह निकली थी ।
‘अरे अदिति तुम रो मत …अरे कोई आ जाएगा तो क्या सोचेगा …’-प्रणव घबरा सा गया था और अदिति को रोता देख उसकी भी रुलाई फूट पड़ी थी । पर वह अपनी सीमा में रहा,न तो उसने आगे बढ़ कर उसका हाथ थामा या गले लगाया न ही आंसू पोंछने की कोशिश की … बस उसे देख-देख रोता रहा । शायद महीनों से जमा हुआ दर्द आज पिघलने लगा था, मगर आज भी प्रणव अपनी मर्यादा में रहा और कहीं न कहीं यही सोच कर चुप ही रह गया कि अब तो अदिति का सुन्दर संसार बसने लगा है…अब दिल की बात बोलकर क्या फायदा? उलटे रही-सही दोस्ती भी कहीं खत्म नहीं हो जाए…बस यही सोचकर वह उस दिन भी चुप रह गया ।
अदिति कभी समझ ही नहीं पायी कि क्या हुआ था ।उस दिन अदिति का दिल रखने के लिए प्रणव ने आखिरी बार उसकी रंगोली में रंग भरे -उसे लग रहा था कि वह ख़ुद के टूटे दिल का लाल रंग ही भर रहा हो।
प्रणव की नौकरी दूसरे शहर में लगी थी ,नियत समय पर वह चला गया ।
बस उस दिन के बाद वह अदिति से कभी नहीं मिला।
हाँ, माँ से अदिति की खबर कभी-कभी मिल जाया करती थी । पिछली बार माँ ने बताया था कि अदिति भी मास्टर्स कर रही है और दुबई में ही कार्यरत है । सुनकर उसे बहुत ख़ुशी हुई -अदिति हमेशा आगे पढ़ने की बात करती थी,सो दिल को तसल्ली सी हुई ।
साल भर के भीतर प्रणव ने अपने माँ-पापा को अपने पास ही बुला लिया था । पापा नरम स्वास्थ्य की वजह से जल्दी रिटायर हो गए थे सो शहर बदलने में किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई। वह मोहल्ला छूट गया था और प्रणव ने किसी से कोई ख़ास संपर्क नहीं रखा था।
जैसे-जैसे प्रणव उन्नति करता गया उसने अपने माँ -पापा का भी पूरा ध्यान रखा था।सब साथ ही रहते थे मगर होनी को शायद कुछ और ही मंज़ूर था । तीन वर्षों बाद दोनों तीर्थयात्रा पर निकले थे मगर भूस्खलन हुआ और दोनों वहीं मलबे में समाहित हो गए। प्रणव ने कभी शादी नहीं की क्योंकि दिल रज़ामंद ही नहीं हुआ -वह बस अपने काम को ही समर्पित रहा । नौकरी में तरक्की पाता गया और मानो अदिति की ही दुआओं का असर था आज पंद्रह वर्षों बाद प्रणव अपनी कंपनी में बहुत ही उच्च पोस्ट पर था । अब अकेलेपन की जैसे आदत हो गयी थी । हर दिवाली वह टूटी फूटी रंगोली की आकृतियां बनाता और रंग भरते हुए हर बार आंखें नम हो जातीं -क्या वाकई पहला प्यार ऐसा होता है ?
बस दिवाली से महीने भर पहले -ऑफिस में कुछ नयी पोस्ट्स के लिए प्रणव इंटरव्यू ले रहा था -एक परिचित सा चेहरा सामने आया और वर्षों से सहेज कर रखी हुई यादों का पिटारा मानो अचानक से खुल गया ।
सामने अदिति बैठी थी ,आज भी वही सजीली आँखें कि जो एक बार देख ले -सम्मोहित सा रह जाए,नीले रंग की साड़ी में कितना खिल रही थी, मगर चेहरे की मुस्कान गायब सी थी। पर दोनों एक-दूसरे को देख खिलखिला उठे। बातों बातों में पता चला कि अदिति के पति ने विवाह के तीन वर्षों बाद ही किसी और स्त्री के लिए उसे तलाक दे दिया था। अदिति कभी घर नहीं लौटी क्योंकि वह जानती थी कि समाज उसे ही दोषी ठहराएगा और वह पापा पर बोझ नहीं बनना चाहती थी,छोटी बहन की भी शादी होने वाली थी -सो उसने यह बात घरवालों को बाद में बतायी,पापा इस सदमे से उबर नहीं पाए और गुज़र गए । उसने दूकान बेची- दूसरे शहर में नयी शुरुआत की व भाई की पढ़ाई का इंतज़ाम किया। जब भाई की भी नौकरी लग गयी ,विवाह भी हो गया तब अदिति ने अलग घर ले लिया पर कभी किसी पर आश्रित नहीं हुई।
प्रणव का सर फ़क़्र से उठ गया -उसने उस कच्ची उम्र की अदिति में भी हमेशा यह गुण देखा था कि वह किसी पर जल्दी से आश्रित नहीं होती थी ,बहुत ही स्वाभिमानी थी । आज वही सब गुण उसकी पर्सनालिटी को और निखार रहे थे ।
पर साथ ही उसके संघर्षों और उसकी तकलीफों के बारे में सोच कर मन द्रवित हो उठा । खुद पर क्रोध भी आया कि क्यों उसने सारे संपर्क तोड़ लिए थे ,पहले पता होता तो वह क्या नहीं करता अपनी अदिति के लिए …. ख़ैर आज फिर मौका मिला है ।उसे लगा आज उसे चुप नहीं रहना चाहिए । भाग्य ने उसे इतने सुन्दर मोड़ पर ला कर खड़ा किया है ।
‘मुझे तुम पर हमेशा से ही गर्व रहा है अदिति -आज मैं अपना मौन तोड़ता हूँ …. याद है तुम रंगोली बनाती थीं और मैं रंग भरता था -तुम्हारे बिना बेरंग है मेरी ज़िन्दगी अदिति…तुमसे कभी कह नहीं पाया …आज तक शादी नहीं की क्योंकि तुम्हारे रंगों में ऐसा रंगा कि कोई और रंग चढ़ा ही नहीं …… बेहद प्यार करता आया हूँ तुमसे और ज़िंदगीभर सिर्फ तुम्हारा ही हूँ …क्या तुम …क्या तुम मुझसे विवाह करोगी अदिति ?’-कहते कहते प्रणव रो पड़ा …. ।
अदिति हतप्रभ सी प्रणव के इस नए रूप को देखती रही उसे खुद पर गुस्सा भी आया कि कैसे उसे प्रणव की आँखों में अपने प्रति प्रेम नहीं दिखा ….और अंततः उसने भी भरी आँखों से मुस्कुरा कर अपनी स्वीकृति दे दी।
दोनों ने कोर्ट मैरिज की अर्ज़ी दी व महीने भर में शादी कर ली -यह थी प्रणव के जीवन की सबसे चमचमाती-झिलमिलाती दिवाली -आज फिर उसके घर आँगन में अदिति रंगोली बना रही थी और वह नटखट बच्चों की तरह उनमें रंग भर रहा था -पूरा घर प्रणव-अदिति की हंसी ठिठोली से गूँज रहा था…लग रहा था मानो एक नया इंद्रधनुष सा छा गया हो – आज की रंगोली के रंग ही इतने सुन्दर थे ।
अनु बाफना