अराजकता से घिरा पाकिस्तान

पाकिस्तान की राजनीति में हिंसा हमेशा से ही बड़ा रोल निभाती रही है। प्रशासन के सभी अंगों के बीच की तनातनी के कारण वहां विकास की लहर कायदे से पहुंच ही नहीं पाई। वहां की आंतरिक उथल-पुथल उनके द्वारा पोषित आतंकवाद की छाया भी हम पर हमेशा पड़ती रही है, परंतु वर्तमान भारत सरकार ने पाकिस्तान को हर मोर्चे पर शिकस्त देने की तैयारी कर ली है।

अप्रैल के महीने में अपदस्थ हुए पाकिस्तान के पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान सत्ता में वापसी के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश में वे यह भी नहीं देख रहे हैं कि उनके आंदोलन के कारण देश की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई है। इसकी नवीनतम परिणति गत 3 नवम्बर को उनपर हुए एक घातक हमले के रूप में देखने को मिली। इस हमले के दो दिन बाद कैमरे के सामने आकर इमरान ने सरकार, सेना और अमेरिका के खिलाफ अपने पुराने आरोपों को दोहराया।

सेना की भूमिका

पाकिस्तानी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका सेना की है। सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा रिटायर हो रहे हैं और सम्भावना इस बात की है कि इन पंक्तियों के प्रकाशन तक देश में नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति हो चुकी होगी। इमरान पर हुए हमले के बाद लगा था कि देश में अराजकता फैल जाएगी, पर ऐसा भी नहीं हुआ। शायद वहां की जनता ने ऐसी घटनाओं को सामान्य मान लिया है। या शासन, प्रशासन, सेना और राजनीतिक दलों को लगने लगा है कि स्थितियां और बिगड़ीं, तो देश टूट जाएगा।

आईएसआई की भूमिका

पाकिस्तान की राजनीति में सेना आईएसआई के मार्फत हस्तक्षेप करती रही है। आईएसआई की स्थापना 1948 में हुई थी। कानूनन यह संगठन रक्षा मंत्रालय और प्रधान मंत्री के प्रति जवाबदेह है, पर व्यवहार में सेनाध्यक्ष के अधीन है। नागरिक सरकार के प्रति इसकी नाममात्र की जवाबदेही है।

देश में पहली संवैधानिक सरकार बनने के फौरन बाद सैनिक शासन लागू हो गया। 1958 में फील्ड मार्शल अयूब खान के कार्यकाल में आईएसआई की रिपोर्टिंग उनके पास आ गई। उन्होंने ही इस संस्था की राजनीतिक भूमिका तैयार की। आज आईएसआई का डायरेक्टरेट (सी) यही काम करता है, जिसके प्रमुख पर इमरान हत्या के प्रयास का आरोप लगा रहे हैं। आईएसआई में तीन-स्टार वाले लेफ्टिनेंट जनरल के अलावा दो-स्टार वाले छह मेजर जनरल होते हैं, जो आईएसआई की अलग-अलग शाखाओं का काम देखते हैं। संगठन के लिहाज से यह सेना की एक कोर से ज्यादा बड़ा संगठन है। पाकिस्तान में कोर कमांडरों की हैसियत बहुत बड़ी होती है।

दबाव में सेना

सेना भी दबाव में दिखाई पड़ रही है। इसके पहले किसी दूसरे प्रधान मंत्री ने इतना खुलकर उसकी आलोचना नहीं की थी। इमरान खान जोखिम मोल ले रहे हैं या उनके पीछे कोई ताकत है? पाकिस्तानी जनता तमाम सार्वजनिक स्थानों पर हिंसा करती रही है, पर सैनिक-प्रतिष्ठानों से दूर रहती है। इसबार विरोध प्रदर्शन हुए, हजारों की भीड़ ने पेशावर के कोर कमांडर के निवास को घेर लिया था। भीड़ नारा लगा रही थी-‘यह जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है!’

हिंसा की राजनीति

देश में राजनीतिक हिंसा नई बात नहीं है। पहले प्रधान मंत्री लियाकत अली की 1951 में हत्या हुई थी। उसके बाद जनरल जिया-उल-हक के कार्यकाल में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी हुई। फिर दिसंबर 2007 में उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो की एक चुनावी रैली के दौरान हत्या हुई। देश में कम से तीन बार बड़ी फौजी बगावतें हुईं। पिछले 75 सालों में से 33 साल देश ने प्रत्यक्ष रूप से फौजी शासन के अधीन और शेष वर्ष परोक्ष रूप में फौजी शासन के अधीन बिताए हैं।

जुनूनी समाज

पाकिस्तान की समस्या यह जुनूनी समाज भी है, जिसके सहारे यह देश बना है। कुछ देर के लिए यह जुनून शांत हो भी जाए, पाकिस्तानी सेना, समाज और राजनीति के तमाम जटिल प्रश्नों के जवाब मिलना आसान नहीं है।

पाकिस्तान में शासन के तीन अंगों के अलावा दो और महत्वपूर्ण अंग हैं- सेना और अमेरिका। सेना माने एस्टेब्लिशमेंट। क्या इस बात की जांच सम्भव है कि इमरान सत्ता में कैसे आए? पिछले 75 सालों में सेना बार-बार सत्ता पर कब्जा करती रही और सुप्रीम कोर्ट ने कभी इस काम को गैर-कानूनी नहीं ठहराया। क्या गारंटी कि वहां सेना का शासन फिर कभी नहीं होगा?  अमेरिका वाले पहलू पर भी ज्यादा रोशनी पड़ी नहीं है। इमरान इन दोनों रहस्यों को खोलने पर जोर दे रहे हैं। क्या उनके पास कोई ऐसी जानकारी है, जिससे वे बाजी पलट देंगे? भारत के लिए यह देश समस्या बना रहेगा, क्योंकि उसका जन्म ही भारत की अवधारणा के खिलाफ हुआ है।

भारत का पीओके अभियान

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर में हुए ‘शौर्य दिवस’ कार्यक्रम में कहा कि हमारी यात्रा उत्तर की दिशा में जारी है। भारतीय सेना 27 अक्तूबर 1947 को श्रीनगर पहुंचने की घटना की याद में हर साल ‘शौर्य दिवस’ मनाती है। रक्षामंत्री ने कहा, हम पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को भूले नहीं हैं, बल्कि एक दिन उसे वापस हासिल करके रहेंगे। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद से भारत सरकार कश्मीर में स्थितियों को सामान्य बनाने की दिशा में मुस्तैदी से काम कर रही है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सर्वांगीण विकास का लक्ष्य पीओके और गिलगित-बल्तिस्तान तक पहुंचने के बाद ही पूरा होगा। हमने जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विकास की अपनी यात्रा अभी शुरू की है। जब हम गिलगित और बल्तिस्तान तक पहुंच जाएंगे तो हमारा लक्ष्य पूरा हो जाएगा। गृहमंत्री अमित शाह ने नवम्बर 2019 में एक

सऊदी अरब-अमेरिका तनातनी

सऊदी अरब के नेतृत्व में ओपेक ने पेट्रोलियम के उत्पादन में कटौती की घोषणा करके अमेरिका के साथ रिश्ते बिगाड़ लिए हैं। इन रिश्तों की पृष्ठभूमि में सऊदी अरब और रूस के रिश्तों में आ रही गरमाहट भी है। अमेरिका ने सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री पर रोक लगाने की धमकी भी दी है। इन दिनों सऊदी अरब के शहजादे मोहम्मद बिन सलमान अमेरिकी निशाने पर हैं। पश्चिम एशिया में सऊदी अरब को अमेरिका का सबसे करीबी दोस्त माना जाता रहा है, पर अब स्थितियां बदल रही हैं।

ईरान में जनांदोलन

ईरान में हिजाब की अनिवार्यता के खिलाफ आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है। इसमें अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। आंदोलन की उग्रता को बढ़ता देख सरकार ने कई कड़े कदम उठाए हैं। देश की एक अदालत ने सरकार विरोधी एक प्रदर्शनकारी को मौत की सजा सुनाई है। दूसरी तरफ इस सिलसिले में वहां की संसद ने एक प्रस्ताव पास करके अदालत से अपील की है कि इस सिलसिले में गिरफ्तार 15,000 से ज्यादा लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए और उन्हें मौत की सजा दी जाए।

कार्यक्रम में कहा था कि पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के लिए हम जान भी दे सकते हैं और देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिनके मन में यही भावना है। साथ ही यह भी कहा कि इस सिलसिले में सरकार का जो भी ‘प्लान ऑफ एक्शन’ है, उसे टीवी डिबेट में घोषित नहीं किया जा सकता। इसके समय की बात मत पूछिए तो अच्छा है।

पाकिस्तान-विरोधी आंदोलन

उधर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान में पाकिस्तान-विरोधी आंदोलन भी चल रहे हैं। ये आंदोलन एक तो इस क्षेत्र को पाकिस्तान का अंग बनाने के लिए की जा रही सांविधानिक व्यवस्थाओं के विरोध में और दूसरे क्षेत्र की समस्याओं को लेकर खड़े हुए हैं। उन्होंने पाकिस्तान में शामिल होने के संविधान संशोधन के खिलाफ नारे लगाए और पाकिस्तान से आजादी की मांग की। जिस तरह जम्मू-कश्मीर में विकास हुआ है, वैसी स्थिति पीओके में नहीं है। इन बातों को देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में इस इलाके में बड़ा आंदोलन भी भड़क सकता है। पाकिस्तान में वैसे भी बलोचिस्तान, सिंध और खैबर-पख्तूनख्वा इलाकों में आंदोलन चल रहे हैं। इन परिस्थितियों को देखते हुए लगता है कि पाकिस्तान के अस्तित्व का संकट आसन्न है।

 

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