आप की नजर 2029 पर

राज्यों में चाहे कुछ भी होता रहा हो लेकिन राष्ट्रीय फलक पर मुकाबला हमेशा भाजपा और कांग्रेस जैसी विचारधारा वाली पार्टियों के बीच रहा लेकिन आम आदमी पार्टी जैसी विचारधारा विहीन पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर उभर कर आना अच्छा नहीं है। भाजपा की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह देश की जनता को इन चीजों के प्रति सचेत करे।

चुनाव भारतीय लोकतंत्र का उत्सव है। गुजरात, हिमाचल और दिल्ली की जनता ने लोकतंत्र के इस उत्सव को बहुत खुबसूरती से मनाया है। गुजरात में जिस प्रकार से चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न हुई, इससे यह महसूस होता है कि यह चुनाव सत्ता के लिए नहीं, इतिहास बनाने के लिए था। इसी कारण गुजरात की जनता ने अविश्वसनीय रूप से 27 साल की भाजपा सरकार को कायम रखते हुए वोट दिया। इससे पहले जहां ऐसा हुआ है, वह एकमात्र राज्य पश्चिम बंगाल है। गुजरात हिंदुत्व और राष्ट्रीय विचारधारा के लिए एक प्रयोगशाला रहा है। भाजपा के सीटों की संख्या 156 के आंकड़ों की हो गई है। भाजपा की सातवीं बार प्रचंड बहुमत से जीत उसके प्रति जनता के भरोसे को रेखांकित करती है। साथ ही यह भी बताती है कि सुशासन के जरिये जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरकर सत्ता विरोधी रुझान को आसानी से मात दी जा सकती है।

गुजरात की जीत का सारा श्रेय अमित शाह को जाता है, जिन्होंने गुजरात की कमान सम्भाली और चुनाव का सूक्ष्म प्रबंधन किया। गुजरात में भाजपा ने, सितम्बर 2021 में भूपेंद्र पटेल ने जब सीएम पद की शपथ ली तो विजय रूपाणी सरकार का एक भी मंत्री या दिग्गज नई कैबिनेट में नहीं था। 27 साल से सत्ता में काबिज भाजपा ने एंटी इंकम्बेंसी की काट के लिए सभी चेहरे नए कर दिए थे। टिकट वितरण में 182 में भी 103 चेहरे नए थे। 5 मंत्रियों, पूर्व सीएम, डिप्टी सीएम और 38 सिटिंग विधायकों के टिकट काट दिए थे। हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर जैसे बीजेपी के कट्टर आलोचकों को भी कांग्रेस से तोड़कर अपने में समावेशित कर उन्हें भी प्रतिनिधित्व दिया। समाज के हर समुदाय, वर्ग, जाति को साथ लेकर चली। संगठन में शक्ति किसी एक-दो जाति के समीकरण या किसी व्यक्ति विशेष से नहीं आती, बल्कि यह विभिन्न समुदायों को समावेशित कर उन्हें नेतृत्व में भागीदारी देकर आती है। जो भाजपा ने गुजरात में किया है।

गुजरात के 60 साल के इतिहास में किसी भी पार्टी को सबसे ज्यादा 156 सीटें देने का रिकॉर्ड और भाजपा ने किसी भी राज्य में 86% सीटें हासिल करने का कीर्तिमान भी अपने नाम कर लिया। कुल मिलाकर गुजरात में जो प्रचंड जीत का सुपर सक्सेस फॉर्मूला बना है, उसे लेकर अब अन्य राज्यों में बेचैनी है। अगले साल 2023 के नवम्बर-दिसम्बर में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में चुनाव होने हैं। गुजरात की जीत का महत्व इस कारण भी है कि उसने माधव सिंह सोलंकी के दौर के कांग्रेस के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। इससे साबित होता है कि मतदाताओं पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत पकड़ है तथा भाजपा का संगठन बेहतर ढंग से सक्रिय है।

गुजरात के नतीजे आशा और अनुमान के अनुरूप तो हैं, लेकिन इसकी कल्पना नहीं की जाती थी कि पिछली बार 77 सीटें जीतने वाली कांग्रेस महज 17 सीटों पर सिमट जाएगी। अपनी इस दुर्गति के लिए कांग्रेस स्वयं के अलावा किसी अन्य को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती। यह एक पहेली ही है कि कांग्रेस ने पूरे दम से गुजरात चुनाव क्यों नहीं लड़ा और उसके सबसे प्रभावी नेता राहुल गांधी का गुजरात चुनाव से ज्यादा भारत जोड़ो यात्रा को प्राथमिकता देना कोई योग्य राजनीतिक रणनीति नहीं है।

ऐसे में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का जीतना कांग्रेस पार्टी के लिए महत्वपूर्ण संजीवनी है। हिमाचल में कांग्रेस की जीत प्रियंका और हाल ही में अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खड़गे की पहली राजनीतिक सफलता है। हिमाचल को लेकर यह सवाल था कि बारी-बारी से सत्ता परिवर्तन की प्रथा बदलेगी या नहीं? भाजपा ने इस प्रथा को बदलने के लिए पूरा जोर लगाया लेकिन वह नाकाम रही। भाजपा  और धूमल परिवार के बीच तकरार से कांग्रेस को मदद मिली। भाजपा नेतृत्व की धूमल की ओर अनदेखी और धूमल की यह चेतावनी गलत नहीं थी कि आलाकमान की पसंद से भाजपा को नुकसान होगा। नतीजतन 20 उम्मीदवार बागी हो गए। भाजपा इन चुनावों में बागियों को मनाने में नाकाम रही। मोदी फैक्टर की जगह स्थानीय मुद्दे चुनावों में हावी रहे। सम्भवत: कद्दावर कार्यकर्ताओं का बागी होना ही पार्टी को महंगा पड़ा है। भाजपा सरकार की ऐसी कोई विशेष उपलब्धियां जनता को नजर नहीं आईं, जिससे मतदाता प्रदेश में रिवाज बदलते। इन चुनावों में प्रदेश के जागरूक मतदाताओं ने फिर से अपनी समझ का प्रमाण दिया है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणामों से एक बात फिर स्पष्ट हो गयी है कि राजनीतिक दल, उसके क्षेत्रीय नेता, संसाधन, स्थानीय मुद्दे आदि बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। नरेंद्र मोदी  निरंतर कहते हैं कि, “जीत हमारे सिर पर ना चढ़ जाए। हम पराजय में भी आशा को खोजते रहते हैं। सामने वाले की रणनीति क्या थी? हमें गुमराह करने में वह कामयाब कैसे हुए? इन बातों पर हम गौर करते हैं। चुनाव में विजय या पराजय हो जाने पर, हर चुनाव से हम कुछ न कुछ सीखते हैं।”

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने देश की स्वतंत्रता में बड़ी भूमिका निभाई थी। अत: स्वतंत्रता के बाद कुछ वर्षों तक केंद्र के अलावा अधिकांश राज्यों में इसका ही शासन रहा। अब तक के राजनीतिक सफर में अनेक छोटे-बड़े दल अस्तित्व में आए और मिट गए। अब देश की राजनीति में मुख्यत: 2 ही बड़े दल भाजपा और कांग्रेस रह गए थे। इसी बीच 2012 को  अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) ने दिल्ली विधानसभा के चुनावों में विजय से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया और अब ‘आप’ एक तीसरा राष्ट्रीय राजनीतिक दल बन रहा है।

8 दिसम्बर की शाम को गुजरात के चुनाव नतीजे आए। उस वक्त गुजरात चुनाव में बीजेपी 182 से 156 सीटें जीत रही थी। चुनाव प्रचार के दौरान सरकार बनाने का दावा कर रही आम आदमी पार्टी महज 5 सीटों पर सिमटती दिख रही थी। निराशाजनक रिजल्ट के बीच अरविंद केजरीवाल कैमरे पर आए और खुशी का इजहार करने लगे…‘आपकी आम आदमी पार्टी आज राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी है। गुजरात के लोगों ने हमें राष्ट्रीय पार्टी बना दिया है।’ अरविंद केजरीवाल की आप राजनीति में अपनी शुरुआत के दस साल बाद आधिकारिक रूप से एक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर रही है। कांग्रेस द्वारा खाली की गयी जगह को आप भरने में कामयाब नजर आ रही है। गुजरात में कांग्रेस का गिरता वोट प्रतिशत और आप की बढ़त इस बात को प्रमाणित करती है। आप नेे दिल्ली निकाय चुनावों में भी जीत हासिल की है। कांग्रेस जहां भी अब चुनाव लड़ती है, अपने मतदाताओं के लिए तरसती दिखती है। आप का मुफ्त की वैक्सीन फार्मूला गुजरात, हिमाचल में बेअसर रहा है। लेकिन मुफ्तखोरी की रेवड़िया बेचने वाली कोई भी विचारधारा ना होने वाली आप पार्टी दिल्ली की स्थानीय सत्ता में विराजमान हुई है। गुजरात में 13 प्रतिशत वोट पाकर आम आदमी पार्टी भारतीय राजनीति का तीसरा मुख्य पक्ष हो रहा है।

राष्ट्रीय पार्टी बनने पर आम आदमी पार्टी के सपने ज्यादा बड़े हो जाएंगे। आने वाले भविष्य में बीजेपी की मुख्य लड़ाई आप पार्टी से ही होगी। ‘आम आदमी पार्टी’ ने दिल्ली नगर निगम के चुनावों में भाजपा का 15 वर्ष का शासन समाप्त कर विजय प्राप्त की है। दिल्ली में कहने को नगर निगम का चुनाव था, मगर वह भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच की लड़ाई बन चुकी थी कि पूरे देश की उसमें दिलचस्पी बनी हुई थी। मगर भाजपा का प्रदर्शन भी निराशाजनक नहीं कहा जा सकता। सौ से ऊपर सीटें आईं। जिन सीटों पर उसे हार मिली उन पर मतों का अंतर बहुत कम देखा गया। मगर गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली  के चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं थे। ये चुनाव एक तरह से भाजपा के लिए संकेत हैं कि यदि इन्हें भविष्य में भी कायम रहना है तो देशवासियों का बेरोजगारी, महंगाई, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्थानीय विषयों आदि से जुड़ी समस्याएं सुलझाने के लिए अभी से काम करना होगा। ऐसा न करने से इनका अपना ही नुकसान होगा।

गुजरात में आप को संतोषजनक मत प्रतिशत भी मिला है और 5 सीटें भी आयी हैं। जो मतदाता गुजरात में बदलाव के आकांक्षी थे वे कांग्रेस की ओर न देखकर आप की ओर देख रहे थे। आम आदमी पार्टी की छवि एक शहरी पार्टी की है, लेकिन इस चुनाव में उसने ग्रामीण क्षेत्रों, आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाया है। आप पार्टी का जो मत प्रतिशत बढ़ा है, वह भाजपा से टूट कर नहीं, बल्कि कांग्रेस से आया है। यह कांग्रेस के लिए बड़ी चिंता का विषय है।

कुल मिलाकर चुनावी नतीजे उम्मीदों के मुताबिक ही रहे। लेकिन कुछ सवाल अनुत्तरित ही हैं, जैसे क्या महंगाई, बेरोजगारी जैसे जीवन से जुड़े सवाल अब चुनावी परिदृश्य से गायब हो गए हैं? क्या भारत में धु्रवीकरण अब एक कड़वी सच्चाई है, जिससे मुंह फेरना आसान नहीं है? गुजरात और हिमाचल के चुनाव परिणामों को 2024 में हो रहे चुनावों की स्थिति के संदर्भ में भी देखना चाहिए। इससे पहले पांच राज्यों में चुनाव है।

आपस में विपक्षी दलों में भी टकराव है तथा अनेक राज्य ऐसे हैं, जहां एक से अधिक विपक्षी दल दौड़ में हैं। इस स्थिति में यह भी सम्भव नहीं प्रतीत होता है कि किसी एक नेता या पार्टी के नेतृत्व में समूचा विपक्ष एक बैनर के नीचे जमा होगा। अनुमान है कि ऐसी किसी साझेदारी में अरविंद केजरीवाल शामिल नहीं होंगे। गुजरात परिणाम के  लिए  कांग्रेस आम आदमी पार्टी को दोष दे रही है, यह ठीक नहीं है। लोकतंत्र में हर पार्टी को चुनाव लड़ने और अपने एजेंडे को जनता के सामने रखने का अधिकार है। कांग्रेस की स्थिति से स्पष्ट दिखता है कि वह जनता के समक्ष वैकल्पिक विचार रख नहीं पा रही है और लोगों को अपने साथ नहीं जोड़ पा रही है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अनेक राज्यों में आप के लिए भी आधार तैयार हो रहा है। भाजपा विचारधारा से जुड़ा राजनीतिक पक्ष है। कांग्रेस भी पहले विचारधारा और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ा हुआ पक्ष था। लेकिन आम आदमी पार्टी की कोई भी विचारधारा निश्चित नहीं है। ऐसे विचारहीन राजनीतिक दल अपनी मुफ्तखोरी की रेवड़ियां बांटकर राजनीति करने जनता में जा रहा है। देश की जनता ने उसे तीसरे नम्बर पर लाकर रखा हुआ है। ऐसे समय में भाजपा की जिम्मेदारी बढ़ रही है। आप की कोई विचारधारा नहीं है, भविष्य में आप लोकतंत्र के लिए किस प्रकार खतरनाक साबित होने वाला है, यह बात देश की जनता तक ले जाना अत्यंत आवश्यक है। आने वाले भविष्य में आम आदमी पार्टी के विरोध में भारतीय जनता पार्टी किस प्रकार प्रचार तंत्र का उपयोग करती है, इस बात पर आम आदमी पार्टी और भाजपा का भविष्य निर्धारित है।

गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली  के चुनाव परिणामों से एक बात फिर स्पष्ट हो गयी है कि कांग्रेस के साथ भारतीय जनता पार्टी पर भी आम आदमी पार्टी का दबाव बढ़ सकता है। केजरीवाल 2024 के चुनाव के लिए नहीं, 2029 के लिए तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में उनके पास समय भी है और स्थितियों के अनुसार रणनीति बनाने की गुंजाइश भी।

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