वैश्विक स्तर पर भारत का बढ़ता कद विश्व शांति के लिए शुभ संकेत है। भारत के इस बढ़ते कदम से विश्व की शक्ति केंद्रित ध्रुवीकरण की राजनीति भी छिन्न-भिन्न हो रही है। वैश्विक उथल-पुथल के कारण भारत के लिए स्थितियां चुनौतीपूर्ण हैं परंतु हर देश को भरोसा है कि भारत की नीयत साफ है इसलिए भारत हर राष्ट्र के हित में फैसले लेगा।
‘शक्ति’ अंतरराष्ट्रीय राजनीति की केंद्रबिंदु है तथा शक्ति विस्तार देशों के राष्ट्रीय हित का अभिन्न अंग है। परंतु हालिया अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को देखते हुए यह साबित हुआ है कि शक्तिशाली देशों द्वारा विश्व शांति एवं नियम आधारित व्यवस्था को लगातार चुनौती मिल रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय संगठनों का विस्तार हुआ जिनपर वैश्विक शांति, नियम आधारित विश्व व्यवस्था सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गयी जिसपर प्रमुख रूप से पश्चिमी देशों का कब्जा रहा। परंतु 21वीं सदी के संकटों के आगे पश्चिमी मूल्यों पर आधारित विश्व-व्यवस्था विफल साबित हो रही है।
रूस-यूक्रेन का युद्ध, चीन-अमेरिका विवाद, मध्य एशियाई देशों में लम्बे समय से चले आ रहे संघर्ष, अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य एवं खाद्यान्न संकट, कोविड-19 वैश्विक महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार तथा प्रतिदिन बढ़ती वैश्विक महंगाई दर ने वर्तमान विश्व व्यवस्था में कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। इन चुनौतियों के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, मानव सुरक्षा तथा अंतरराष्ट्रीय शांति प्रभावित हुई है।
हाल के वर्षों में भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को वैश्विक चुनौतियों से निबटने के लिए नई राह दिखाई है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के शांति प्रयासों तथा कोविड-19 वैश्विक महामारी के खिलाफ 150 से ज्यादा देशों को वैक्सीन एवं चिकित्सकीय सहायता देना हो या ऊर्जा सुरक्षा के लिए 120 से अधिक देशों को साथ लाकर इंटरनेशनल सोलर एलायंस का विस्तार करना हो या भारतीय योग को वैश्विक स्वीकार्यता दिलानी हो एवं एक विश्व-एक स्वास्थ्य का मंत्र देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पारम्परिक चिकित्सा को पुनर्जाग्रत करना हो, भारतीय भूमिका का वैश्विक मंच पर लगातार विस्तार हो रहा है।
भारत को 2021 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता मिली इसी दौरान अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान में पुनः तालिबान ने कब्जा कर लिया, भारत ने अफगानिस्तान में हुए बदलाव के बीच आतंकवाद के उभार को नियंत्रित किया तथा मानवीय आधार पर अफगानिस्तान के नागरिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया। वर्ष 2022-23 में भारत को दो महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों (जी-20 तथा शंघाई सहयोग संगठन) की अध्यक्षता मिली है। वर्तमान परिस्थितियों में भारत को इन दो महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों की जिम्मेदारी मिलना एक चुनौतीपूर्ण परंतु सकारात्मक अवसर है जिसमें संघर्षरत देशों के बीच संवाद स्थापित कराना, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला तथा बाधा रहित अंतरराष्ट्रीय पारगमन को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करना प्राथमिकता होगी।
उल्लेखनीय है कि शीत युद्ध के बाद शंघाई सहयोग संगठन तथा जी-20 एक प्रमुख बहुपक्षीय संगठन के रूप में उभरा है। एक तरफ जहाँ डउज में एशिया तथा यूरोप के प्रमुख देश सदस्य हैं वहीं जी-20 म पी-5, जी-4, यूरोपियन यूनियन तथा ब्रिक्स जैसे संगठनों के सभी सदस्य शामिल हैं। यह दुनिया की 20 प्रमुख विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है, जिसकी वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में तकरीबन 85 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसके अलावा दुनिया के 75 प्रतिशत व्यापार और दो तिहाई आबादी के निवास स्थान की वजह से यह संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच आर्थिक सहयोग का सबसे महत्वपूर्ण मंच है। दोनों ही संगठनों में भारत अपनी अध्यक्षता के दौरान सभ्यतागत नेतृत्व तथा सांस्कृतिक कूटनीति के आधार पर पारस्परिक संवाद को बढ़ावा देने का प्रयास कर सकता है। जिससे महामारी के बाद की दुनिया में सामाजिक-आर्थिक बहाली के लिहाज से रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बल मिले और सभी सदस्य देश सॉफ्ट पावर के माध्यम से आपसी सहयोग को और मजबूत कर सकेंगे।
भारत की जी-20 अध्यक्षता 1 दिसम्बर को शुरू हुई। यह वसुधैव कुटुम्बकम (दुनिया एक परिवार है) की अंतर्निहित दृष्टि से संचालित होगी, जो एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के आदर्श वाक्य द्वारा सर्वोत्तम रूप से समझाया गया है। भारत की अध्यक्षता में जी-20 की प्राथमिकताएं मजबूत होने की प्रक्रिया में हैं, समावेशी, न्यायसंगत और सतत विकास पर आधारित भारत का दर्शन रहा है। भू-राजनीति और वैश्विक आर्थिक धाराओं के बीच अंतर्सम्बंध निर्विवाद है और जलवायु परिवर्तन का वैश्विक प्रभाव अकाट्य है। अपनी अध्यक्षता में भारत पर्यावरण के लिए जीवन शैली, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा से लेकर वाणिज्य, कौशल-मानचित्रण, संस्कृति और पर्यटन तक के क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना और तकनीक-सक्षम विकास, जलवायु वित्तपोषण, परिपत्र अर्थव्यवस्था, वैश्विक खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, ग्रीन हाइड्रोजन, आपदा जोखिम में कमी और लचीलापन, विकासात्मक सहयोग, आर्थिक अपराध के खिलाफ लड़ाई और बहुपक्षीय सुधार पर चर्चा तथा समाधान को केंद्रित रखेगा।
भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि हमारी जी-20 प्राथमिकताओं को ‘ग्लोबल साउथ’ में हमारे सभी सदस्य देशों के परामर्श से निर्धारित किया जाएगा, जिनकी आवाज अक्सर अनसुनी कर दी जाती है। हमारी प्राथमिकताएं हमारे एक पृथ्वी को ठीक करने, हमारे एक परिवार के भीतर सद्भाव पैदा करने और हमारे एक भविष्य की आशा देने पर केंद्रित होंगी। भारत की जी-20 अध्यक्षता एकता की इस सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने के लिए काम करेगी। प्रधान मंत्री ने अपने हालिया लेख में लिखा कि आज हमारे पास दुनिया के सभी लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन करने के साधन हैं। आज हमें अपने अस्तित्व के लिए लड़ने की आवश्यकता नहीं है – हमारे युग को युद्ध का युग नहीं होना चाहिए। वास्तव में, यह एक नहीं होना चाहिए! आज हम जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं – जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी – को आपस में लड़कर नहीं, बल्कि मिलकर काम करके ही सुलझाया जा सकता है।
भारत को आने वाली पीढ़ियों में आशा जगाने के लिए परस्पर संवाद तथा शक्तिशाली देशों के बीच एक ईमानदार बातचीत को प्रोत्साहित करना चाहिए, जैसा कि भारतीय परम्परा में है, जिनकी आवश्यकताएं सबसे ज्यादा होती हैं, उन्हें हमेशा प्राथमिकता मिलनी चाहिए। अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत की प्राथमिकताएं एक पृथ्वी को ठीक करने, हमारे एक परिवार के भीतर सद्भाव पैदा करने और एक भविष्य की आशा देने पर केंद्रित होंगी। अपने ग्रह को ठीक करने के लिए जो भारत की प्रकृति के प्रति ट्रस्टीशिप की परम्परा रही है उसी के आधार पर टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली को वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहित करना ही प्रमुख लक्ष्य होगा। मानव परिवार के भीतर सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए खाद्य, उर्वरक और चिकित्सा उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को अनवरत तथा सुनिश्चित रखना होगा ताकि भू-राजनीतिक तनाव मानवीय संकट का कारण न बनें।
व्यापक विनाश के हथियारों से उत्पन्न जोखिमों को कम करने और वैश्विक सुरक्षा को बढ़ाने पर भारत का जी-20 एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई उन्मुख और निर्णायक होना चाहिए। भारत एक ऐसी सभ्यता रही है जो विविधताओं को अंगीकार करते हुए उसका उत्सव मनाती है, जिसे कई इतिहासों द्वारा आकार दिया गया है और संस्कृतियों के एक समृद्ध बहुरूप दर्शक द्वारा सहस्राब्दियों से विकसित किया गया है। पिछले 75 वर्षों में भारत ने कई मतभेदों को समायोजित करने का उल्लेखनीय क्षमता का प्रदर्शन किया है। एक प्रसिद्ध कहावत है, विविधता में एकता। आज दुनिया को सबसे ज्यादा इसी चीज की आवश्यकता है। अगर बहुपक्षवाद को मजबूत करना है, तो जी-20 देशों को ऐसा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए, और दूसरों के साथ और भीतर बातचीत को मजबूत करना चाहिए। इसमें ‘इंडिया वे’ मदद करेगा। जैसा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नवंबर के ‘मन की बात’ मासिक रेडियो प्रसारण में याद दिलाया, भारत को वैश्विक भलाई और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करके जी-20 नेतृत्व के अवसर का उपयोग करना चाहिए।
वर्ष 2023 में भारत के पास दो महत्वपूर्ण संगठनों की अध्यक्षता से वैश्विक समस्याओं के समाधान की उम्मीद जगी है। इस अध्यक्षता को उपचार, सद्भाव और आशा की अध्यक्षता बनाने के लिए भारत को बहुस्तरीय अर्थात घरेलु तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास करने होंगे जो बाजार आधारित वैश्वीकरण ना होकर मानव-केंद्रित वैश्वीकरण के एक नए प्रतिमान को आकार देने में सफल होगा, तभी भारत सही मायने में विश्वगुरु कहलायेगा।
अभिषेक श्रीवास्तव