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बिखरा पाकिस्तान पीओके कैसे संभाले

बिखरा पाकिस्तान पीओके कैसे संभाले

by हिंदी विवेक
in जनवरी- २०२३, देश-विदेश, विशेष, सामाजिक
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पाकिस्तान में पंजाब के अलावा बाकी हिस्सों की हमेशा अनदेखी हुई है। साथ ही पीओके भी बदहाली का शिकार है। देश के लगभग हर हिस्से में अलगाव की आग जल रही है। भारत को इसका लाभ उठाकर अपने कश्मीर के बाकी बचे बदहाल हिस्से को वापस लाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। पीओके की वापसी अखंड भारत के यज्ञ की प्रथम समिधा साबित हो सकती है।

भारत भारत विभाजन के बाद कबीलों के रूप में पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया और ‘आजाद जम्मू-कश्मीर’ का नाम देकर दिखावटी लोकतांत्रिक ढांचा खड़ा कर दिया है, इसलिए पीओके के मुख्य मंत्री को प्रधान मंत्री कहा जाता है। पांच दिसम्बर 2022 को पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओके) के मीरपुर में मंगला बांध हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर प्लांट से सम्बंधित एक कार्यक्रम में पीओके के प्रधान मंत्री तनवीर इलियास की पाकिस्तान के प्रधान मंत्री शाहबाज शरीफ को कश्मीरियों के बलिदान का उल्लेख नहीं करने को लेकर बहस हो गयी। तनवीर इलियास ने कहा कि मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि शाहबाज शरीफ ने पाकिस्तान की प्रगति और समृद्धि के लिए उनके बलिदान का उल्लेख नहीं करके पूरे कश्मीरी राष्ट्र का मजाक उड़ाया है। मंगला बांध का निर्माण 1960 के दशक में अमेरिका के सहयोग से हुआ था, जिसकी क्षमता बढ़ाई गयी है, जिसके कारण कश्मीर का मुद्दा एक बार फिर दुनिया के सामने आ गया है। 1961 से 1964 के बीच पीओके के कश्मीरियों को अधिक संख्या में ब्रिटेन में वर्किंग वीजा देकर भेज दिया गया। वर्तमान में ब्रिटेन में रह रहे 70 प्रतिशत से अधिक कश्मीरी इसी मंगला बांध के कारण विस्थापित हुए है, परंतु वर्षों बीत जाने के बाद भी पीओके में बिजली, पानी, सड़क, अस्पताल नहीं हैं और लोग भुखमरी के शिकार हैं। ये लोग अब इस बात से नाराज हैं कि इनकी जमीन पर बांध बनाकर इनके योगदान के लिए याद भी नहीं किया गया, जबकि उर्वर भूमि पर बन रहे बांध से पाकिस्तान को तेरह सौ मेगावाट बिजली मिलनी है। अब वो पूरी तरह से पाकिस्तान से आजाद होने की बातें करने लगे हैं। इससे पहले जुलाई 2021 में पीओके में हुए चुनाव में धांधली के विरोध में पीओके की नीलम घाटी में उग्र प्रदर्शन हुए, पाकिस्तानी झंडा भी जलाया गया। ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’, ‘ये जो दहशतगर्दी है उसके पीछे वर्दी है’, ‘पीओके मांगे आजादी’ जैसे नारे लग चुके हैं। पाकिस्तान के कब्जे में जाने के बाद पीओके पिछड़ेपन का शिकार हो गया। विकास व तरक्की का झूठा ख्वाब दिखाकर पाकिस्तानी सेना व सरकार ने यहां के लोगों का दमन और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया है। इनकी तीन पीढ़ियां बिना पहचान के गुजर गयी, फिर भी भविष्य सुरक्षित नहीं है। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह द्वारा कश्मीर रियासत के भारत में विलय से यह भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया, जिस पर पकिस्तान का कब्जा है। जम्मू कश्मीर के भारत में अधिमिलन के बाद पाकिस्तानी आक्रमण के दौरान यह भाग उसके कब्जे में चला गया और युद्ध विराम के बाद उसके नियंत्रण में ही रह गया। वर्ष 1962 में चीन ने आक्रमण कर अक्साई चिन का 37,555 वर्ग किमी क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिया। वर्ष 1963 में पाकिस्तान ने चीन के इसी तर्क को आधार बनाकर शक्सगाम घाटी और उसके आस-पास के क्षेत्र एक समझौते के अंतर्गत चीन को सौंप दिया।

कुछ दिन पहले, उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि भारतीय सेना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर कार्रवाई को तैयार है, इसके लिए केवल सरकार के आदेश का इंतजार है।

पीओके के लोग निरंतर साम्प्रदायिक संघर्ष, सेना उत्पीड़न, हिंसा, आतंकवाद, आर्थिक कठिनाइयों व भेदभाव पूर्ण नीतियों के शिकार हैं और यहां तक की बुनियादी अधिकारों से भी वंचित किया गया है। भारत सरकार और भारतीय सेना की तरफ से कई बार जम्मू और कश्मीर के कब्जे वाले हिस्सों को वापस लेने सम्बंधी बयान सामने आते रहते हैं। कुछ दिन पहले, उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि भारतीय सेना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर कार्रवाई को तैयार है, इसके लिए केवल सरकार के आदेश का इंतजार है।

पीओके के अलावा भारत के विभाजन से पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा सहित चार प्रांत पाकिस्तान के रूप में 14 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आये। इसके साथ ही धार्मिक आधार पर अलग हुए पाकिस्तान ने पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान को भी अपने कब्जे में ले लिया और भारतीय सांस्कृतिक विरासत को भूलते हुए वर्ष 1956 में इस्लामी गणतंत्र तथा वर्ष 1973 में सभी कानून कुरान के अनुसार बनाए जाने की अनिवार्यता कर दी। अपने इस्लामिक राष्ट्र के पहचान को स्थायी बनाने के लिए उर्दू को अपनी भाषा के रूप में अपनाकर हजारों वर्षों की बलूचों, सिंधियों, पश्तूनों की भाषा व संस्कृतियों को नष्ट करना शुरू कर दिया, जो एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी अस्मिता के साथ रहना चाहते थे। इसी प्रकार पाकिस्तान ने बांग्लादेश के बंगालियों की भाषा व संस्कृति का दमन करना शुरू कर दिया था तथा बंगाली भाषा के स्थान पर उर्दू थोपने की कोशिश की थी, जिसका परिणाम हुआ कि वर्ष 1971 में भारत ने बंगाली अस्मिता की रक्षा करते हुए बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र स्थापित कर दिया, जो पाकिस्तान की अपेक्षा अधिक समृद्ध है। इसके विपरीत आर्थिक रूप से कंगाल हो चुके पाकिस्तान ने विकास के नाम पर सिर्फ आतंकवाद का ही विकास किया है। सरकार के ऊपर की सरकार वहां की पाकिस्तानी सेना है, जो आतंकवाद की जनक, पोषक व निर्यातक है। छद्म इस्लामिक राष्ट्रीयता के कारण आज पाकिस्तान में भाषाई, सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान का संकट गहरा हो चुका है, जिससे वह आर्थिक व भौगोलिक रूप से एक विघटित राज्य के रूप में दिखने लगा है।

बलूचों की अपनी विशिष्ट सभ्यता और संस्कृति है। उनकी अपनी बलूची भाषा है, जिसको मिटाने के लिये पाकिस्तान ने जबरन उर्दू को थोप दिया, जो संघर्ष का प्रमुख मुद्दा रहा है। भारत के विभाजन से पूर्व 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बना और अपनी भाषा व संस्कृति की रक्षा के लिए एक राष्ट्र के रूप में अगल अस्तित्व चाहते थे। लेकिन 27 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया और बलूचों की भाषा व संस्कृति को नष्ट करने लगे। इसी प्रकार मुहम्मद बिन कासिम के सिंध पर आक्रमण से लेकर भारत विभाजन तक की सर्वाधिक त्रासदी झेलने वाले सिंधियों ने कभी अपनी पहचान नहीं खोने दी। परंतु पाकिस्तानी सेना व सरकार द्वारा सिंधी बहू-बेटियों का अपहरण व जबरन मतांतरण किए जाने तथा भाषा के रूप में उर्दू को थोपे जाने से पहचान का संकट पैदा हो गया। ऐसे ही डूरंड रेखा अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पारम्परिक पश्तूनों को दो भागों में विभाजित करती है। इनकी भाषा पश्तो है। पश्तूनों की एक आदिवासी आचारसंहिता पश्तूनवाली है जिसकी मर्यादा में ये जीवन-यापन करते हैं। अफगानी लोक-मान्यताओं एवं 17 जनवरी 2010 को गार्जियन में प्रकाशित रोरी मैक कार्थी के लेख के अनुसार अश्शूरियों ने आज से लगभग 2,700 वर्ष पहले इजरायल को जीत लिया और 12 में से 10 जनजातियों को निर्वासित कर दिया था, जिनमें पश्तून भी एक हैं, जो मूलतः यहूदी हैं, ऐसा कुछ मानव विज्ञानी मानते हैं। टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) को खत्म करने के पीछे की मनसा पश्तूनों की भाषा व संस्कृति को नष्ट करने की रही है, जिसके लिए पाकिस्तानी सेना द्वारा हत्याओं का सिलसिला चलता रहा है।

मूलभूत सुविधाओं के नाम पर विकास सिर्फ पंजाब में हुआ है और बलूच, सिंधी व पश्तूनों के रक्तपात व उनके संसाधनों को लूट कर पंजाब व पंजाबी संस्कृति को चमकाया जा रहा है। अपनी भाषा व संस्कृति की रक्षा के लिए स्वतंत्र राष्ट्र का सपना संजोए सिंधी, बलूच और पश्तून आंदोलित हैं। वर्ष 1967 से सिंधु देश की मांग शुरू हुई और वर्ष 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्र होने से उत्साहित सिंधी नेता जी एम सैयद ने ‘जिए सिंध तहरीक’ संगठन बनाकर सिंधु की स्वतंत्रता की मांग शुरू की। 17 जनवरी 2021 को जीएम सैयद की 117वीं जयंती पर ‘जिये सिंध मुत्ताहिदा महाज’ नाम के संगठन ने ‘सिंध को पाकिस्तान से आजादी चाहिए’ नाम से एक विशाल रैली की तथा सिंधियों ने आजादी के नारे लगाए और कहा कि सिंध, सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक धर्म का घर है। पहले इस पर ब्रिटिश साम्राज्य ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया था और आजादी के समय पाकिस्तान के इस्लामी हाथों में दे दिया। इसी तरह हर एक बलूची का सपना बलूचिस्तान को स्वतंत्र करना है, जिसके लिए बलूचिस्तान मुक्ति आंदोलन को सफल बनाने के लिए बलूच राष्ट्रवादियों ने संघर्षों की एक शृंखला शुरू की जो वर्ष 1948, 1958, और 1962 में रही है। इसके कारण वर्ष 1970 के दशक से बलूच राष्ट्रवाद में सशक्त उभार के बाद आंदोलन की गतिशीलता बहुत बढ़ गयी है। वर्ष 2014 में मंजूर अहमद पश्तीन ने पश्तूनों की अस्मिता की रक्षा के लिए पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (पीटीएम) की शुरुआत की तथा डूरंड रेखा के दूसरी तरफ अफगानिस्तान में रहने वाले पश्तूनों के एकीकरण की बात की। इसके साथ ही सांस्कृतिक रूप से एक कहे जाने वाले व पाकिस्तान के लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्रफल पर रह रहे पश्तून और बलूच समुदाय को मिलाकर ‘ग्रेटर अफगानिस्तान’ की मांग कर पाकिस्तान के विघटन की एक आधारशिला रख दी।

गिलगित-बाल्टिस्तान व पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) हजारों वर्षों से अखंड भारत का हिस्सा रहा है। पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर में शारदा पीठ है, जहां पर माता सती का दाहिना हाथ गिरा था, जो 51 शक्तिपीठों में एक है। यह वैदिक काल में अध्ययन का एक प्रमुख केंद्र था। कनिष्क शासनकाल में भी इसका शैक्षिक महत्व रहा है। यहां स्थापित शारदा विश्वविद्यालय ने अपनी खुद की शारदा लिपि भी विकसित की थी। विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय होने के साथ ही पाणिनि और अन्य व्याकरणियों द्वारा लिखे गए ग्रंथ संग्रहित थे। 11वीं शताब्दी में कल्हण व अलबरूनी ने भी शारदा पीठ की महत्ता को बताया है। समय के साथ बदलती परिस्थितियों व आक्रांताओं से ज्ञान का यह केंद्र नष्ट होता रहा। सन 1845 में सिखों की हार के बाद वर्ष 1846 में कश्मीर का हिस्सा अंग्रेजों के हाथ में चला गया। जम्मू के राजा गुलाब सिंह द्वारा कश्मीर के हिस्से को अंग्रेजों से खरीद लेने के साथ ही गिलगित-बाल्टिस्तान का क्षेत्र भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा हो गया। अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह के कश्मीर रियासत के भारत में विलय से यह भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया। परंतु भारत की निकटता रूस से अधिक होने के कारण सोवियत संघ को जोड़ने वाला यह गलियारा बंद करने के लिए ब्रिटिश अधिकारी मेजर ब्राउन ने विश्वासघात करके महाराजा हरी सिंह के अधिकारी गवर्नर घंसार सिंह को गिरफ्तार कर गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तानी सेना को कब्जे में दे दिया। गिलगित-बाल्टिस्तान को खोते ही भारत का सीधा सम्पर्क अफगानिस्तान से टूट गया और साथ ही उसके रास्ते ईरान जाने की उम्मीद भी टूट गयी।

गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। गिलगित-बाल्टिस्तान के रास्ते मध्य एशिया, यूरोप, अफ्रीका सभी जगह सड़क मार्ग से जुड़ता है। गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां जिसका अधिकार होगा उसका पूरे एशिया पर वर्चस्व होगा जिस कारण चीन की बुरी नजर इस पर है। गिलगित-बाल्टिस्तान चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (सीपीईसी) का प्रवेश द्वार है, जो चीन को सीधे हिंद महासागर से जोड़ता है। परंतु जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होने के कारण पीओके व गिलगित-बाल्टिस्तान भी उसके हैं और इसका भारत में विलय का अधिकार भी कानूनी है। इस भय के कारण पाकिस्तान द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान के संवैधानिक दर्जे को बदलकर उसे अंतरिम पांचवा प्रांत चीन के इशारे पर वर्ष 2020 में किया गया। साथ ही लद्दाख में गलवान घाटी पर हमले के पीछे का कारण चीन सियाचिन ग्लेशियर पर अपना कब्जा जमाना चाहता है जिससे अक्साई चिन और गिलगित-बाल्टिस्तान के बीच भारतीय नियंत्रण भी समाप्त हो जाए। इसीलिए तीन हजार किलोमीटर लम्बे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की इस परियोजना में चीन ने 62 अरब डॉलर का निवेश की योजना बनायी है।

पाकिस्तान के बिखराव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और पीओके के भारत में विलय के साथ ही भारत के अखंड होने की राह भी दिखाई दे रही है।

                                                                                                                                                                                   डॉ. नवीन कुमार मिश्र 

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