स्वतंत्रता के बाद की पत्रकारिता का परिवर्तनशीलता पर प्रभाव -अन्नासाहेब देसाई

कल्पना राणे, गोविंद येतयेकर, पंकज दलवी, सोनू श्रीवास्तव, महेश पवार, सुधीर हेगिष्टे का सम्मान। विश्वभरारी फाऊंडेशन-शोधावरी का प्रेस दिवस विशेष कार्यक्रम।

आज़ादी से पहले की पत्रकारिता आज़ादी के जुनूनी विचारों से प्रेरित थी, जबकि आज़ादी के बाद की पत्रकारिता परिवर्तनकारी रही है और जनता के मन पर इसका अधिक प्रभाव भी पड़ा है। साथ ही पत्रकारिता के बदले रूप को भी स्वीकार किया गया है, लेकिन यह हमेशा समाज के हित के लिए होना चाहिए, भारतीय पत्रकार संघ के अध्यक्ष और श्रमिक नेता अन्नासाहेब देसाई के विचार व्यक्त किए।

वे विश्वभरारी फाउंडेशन और शोधावरी के सहयोग से मुंबई विश्वविद्यालय के कलिना स्थित जेपी नाइक भवन में आयोजित विशेष प्रेस दिवस कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में बोल रहे थे। इस मौके पर पत्रकार डॉ. सुकृत खांडेकर, अनिल गलगली, प्रो. हुबनाथ पांडेय, मुंबई हिंदी पत्रकार संघ के अध्यक्ष आदित्य दुबे, विश्वभरारी फाऊंडेशन की संस्थापिका लता गुठे आदी मान्यवर उपस्थित थे। वरिष्ठ पत्रकार कल्पना राणे, गोविंद येतयेकर, पंकज दलवी, सोनू श्रीवास्तव, महेश पवार, जगदीश भुवड, सुधीर हेगिष्टे को सन्मानित किया गया। प्रशांत राऊत द्वारा लिखित एबीसीडी ऑफ आयएसओ अँड बिझनेस मॅनेजमेंट सिस्टिम्स इस पुस्तक का विमोचन किया गया।

आज के पत्रकारों के सामने विभिन्न माध्यमों से पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों को बनाए रखने की एक बहुत बड़ी चुनौती है, यह चिंता डॉ. सुकृत खांडेकर ने व्यक्त की वही आदित्य दुबे ने पत्रकारिता में गिरते मूल्यों पर खेद व्यक्त किया और कहा कि वर्तमान स्थिति को सकारात्मक रूप से देखना चाहिए। अनिल गलगली ने पत्रकारिता को हमेशा जनता के लिए सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत बताते हुए कहा कि आज भी पत्रकारों से सभी की उम्मीदें अपेक्षाकृत अधिक हैं। प्रो हुबनाथ पांडेय ने भी पत्रकारिता के बदले स्वरूप पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सामाजिक मूल्यों के क्षरण को देखते हुए केवल पत्रकार को दोष देना गलत होगा। कार्यक्रम का सूत्रसंचालन प्रकाश राणे ने किया। इस मौके पर विश्वभरारी फाऊंडेशन के विश्वस्त कृष्णा नाईक, अशोक शिंदे, प्रशांत राऊत, गुरूनाथ तेंडुलकर, एड आनंद काटे उपस्थित थे।

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