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कैसी है मोदी विरोधी विपक्षी मोर्चाबंदी की तस्वीर 

कैसी है मोदी विरोधी विपक्षी मोर्चाबंदी की तस्वीर 

by अवधेश कुमार
in ट्रेंडींग, राजनीति
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लोकसभा चुनाव नजदीक आने के पूर्व विपक्षी दलों द्वारा सत्तारूढ़ पार्टी के विरुद्ध एकजुट होने और सत्ता में पहुंचने की कवायद नई नहीं है। बावजूद इसमें देश के रुचि बनी रहती है। इस समय देश के दो मुख्यमंत्रियों बिहार के नीतीश कुमार तथा तेलंगाना के के• चंद्रशेखर राव नरेंद्र मोदी और भाजपा विरोधी मोर्चा के लिए सबसे ज्यादा कवायद करते देखे जा रहे हैं। नीतीश ने अपनी पार्टी की बैठक में साफ कहा कि हम एकजुट हो गए तो ये लोग सत्ता से चले जाएंगे। पिछले दिनों जद यू की बैठक में उनकी पार्टी के अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि हम बिहार की सभी 40 लोकसभा सीट जीतेंगे। बैठक में बाहर से दिखता पूरा माहौल नितीश को राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी विरोधी मोर्चे के नेतृत्व करने के उत्साही वातावरण से भरा था।

विपक्ष और सत्ता पक्ष की राजनीति का लंबा अनुभव रखने वाले जदयू के महासचिव केसी त्यागी ने उसी बैठक में कहा कि नीतीश कुमार को 6 महीना के लिए आप लोग दिल्ली भेज दो फिर देखो कैसे पूरा माहौल बदल जाता है। चंद्रशेखर राव ने नई दिल्ली में अपनी पार्टी कार्यालय की शुरुआत की जिसमें अखिलेश यादव शामिल हुए । अखिलेश यादव ने नीतीश कुमार का भी समर्थन किया। चंद्रशेखर राव अपनी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदलकर भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरआर कर चुके हैं और चुनाव आयोग ने उसे स्वीकार भी किया है। वे इसके पहले कई राज्यों की राजधानियों का दौरा कर नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। लोकसभा चुनाव में अब सवा साल से भी कम समय बचा है। प्रश्न है कि इन गतिविधियों के आधार पर नरेंद्र मोदी और भाजपा विरोधी राजनीति की क्या तस्वीर खींची जा सकती है?

नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होने की घोषणा के साथ ही इस दिशा में बयान आरंभ कर दिया था। वो बाद में दिल्ली आए और कई नेताओं से मिले। लालू प्रसाद यादव के साथ सोनिया गांधी से भी उनकी मुलाकात हुई। 2013 में भाजपा से अलग होने के बाद नीतीश ने इस तरह विपक्षी गोलबंदी की कोशिश नहीं की थी।  केवल बिहार में मोदी विरोधी आक्रामक अभियान चलाया था। 2014 के चुनाव में क्या हुआ यह सामने है। हालांकि तब उनके साथ राजद, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियां आदि नहीं थी। इस बार वे इन सब दलों के गठबंधन के नेता है। उस समय उनकी पार्टी के लोग बताते थे कि अगर हमने लोकसभा में 28 से 30 सीटें जीत लिया तो नीतीश प्रधानमंत्री के दावेदार होंगे। उन्हें यह भी लगता था कि भाजपा को बहुमत मिलेगा नहीं और पार्टी में भाजपा मोदी विरोधी उस स्थिति में नीतीश को नेता स्वीकार कर सकते हैं।

अगर गैर भाजपा सरकार की नौबत आई तो विपक्ष उन्हें स्वीकार करने से गुरेज नहीं करेगा क्योंकि उनकी छवि सुशासन बाबू की बन गई है। इस बार भी उनकी पार्टी के नेता यही कह रहे हैं कि अगर हमने बिहार से भाजपा की सीटें कम कर दी, इसका असर दूसरे राज्यों में  हुआ तो ये सत्ता से बाहर होंगे, विपक्ष की सरकार बनेगी और नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे। हालांकि सार्वजनिक तौर पर नीतीश कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं। यही नहीं वे बिहार में भी घोषित कर चुके हैं कि आगे तेजस्वी जी को ही नेतृत्व करना है। कई कार्यक्रम में उन्होंने यह घोषित किया और कहा कि 2025 का चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। जाहिर है, इसके द्वारा उन्होंने संदेश दिया कि वो केंद्रीय राजनीति में अभिरुचि रखते हैं तथा उनका लक्ष्य मोदी सरकार को सत्ता से हटाना है और राज्य का नेतृत्व तेजस्वी करें। इससे गठबंधन की एकता बनी रहेगी तथा दूसरी ओर उन्हें लगता है कि देश भर के विपक्ष का विश्वास उनकी ओर बढ़ेगा कि वो इस विषय को लेकर गंभीर हैं।

हालांकि अभी तक इसका ऐसा असर अन्य दलों पर नहीं देखा गया जिसकी उम्मीद शायद जनता दल यू में नीतीश कुमार और उनके समर्थक कर रहे होंगे। नीतीश कुमार की इस राजनीति का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि अभी तक विपक्ष के किसी बड़े नेता ने स्वयं आकर उनसे विपक्षी एकता पर बातचीत तक नहीं की है। उद्धव ठाकरे के सुपुत्र आदित्य ठाकरे अवश्य वहां गए थे लेकिन उन्होंने पहली मुलाकात तेजस्वी यादव से की और बाद में उनके साथ नीतीश से मिलने गए। के. चंद्रशेखर राव जब पटना पहुंचे तो बीच पत्रकार वार्ता में ही नीतीश खड़े हो गए और चंद्रशेखर राव बार-बार कहते रहे कि बैठिये,बैठिये। बड़ा अजीबोगरीब दृश्य था। स्वयं बिहार की राजनीति में भी इस समय कुछ दूसरे प्रकार के संकेत मिलने लगे हैं। पिछले वर्ष बोचहां विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की उम्मीदवार बुरी तरह पराजित हुई थी। यह  बिहार के सामाजिक समीकरण में कुछ जातियों का राजग के विरुद्ध विद्रोह था क्योंकि उन्हें लगता था कि लंबे समय से हम भाजपा को और उसके कारण नीतीश को समर्थन दे रहे हैं लेकिन राजनीति में उन्हें महत्त्व नहीं मिलता।

इसके आधार पर जदयू के नेताओं ने मान लिया कि राज्य में भाजपा विरोधी वातावरण है जबकि सच यह नहीं था। बाद में हुए तीन उपचुनावों परिणाम में से दो भाजपा जीत गई। हाल में कुढनी विधानसभा उपचुनाव का परिणाम सत्तारूढ़ जदयू राजद गठबंधन को चौंकाने वाला था। भाजपा अकेले इस गठबंधन के विरुद्ध चुनाव जीत सकती है इसकी उन्हें कल्पना ही नहीं थी जबकि मतदाताओं ने संदेश दे दिया है। इससे भाजपा का उत्साह बढ़ा है एवं वह सत्तारूढ़ गठबंधन के विरुद्ध आक्रामक है। जहरीली शराब से हुई मौत के मामले में उसका तेवर देखने लायक है। कम से कम इन उप चुनाव परिणामों के आधार पर यह मानना कठिन है कि लोकसभा चुनाव में जदयू राजद आदि की आकांक्षाएं उसी रूप में साकार होंगी जैसी हुए कल्पना कर रहे हैं।

हां, तेलंगाना के उपचुनाव में चंद्रशेखर राव की बीआरआर को अवश्य सफलता मिल रही है लेकिन भाजपा वहां मुख्य विपक्ष के रूप में उभर चुकी है। भाजपा अगले लोकसभा चुनाव में तेलांगना,बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब आदि राज्यों पर ज्यादा फोकस कर रही है। ठाकुर राजा सिंह की गिरफ्तारी और केंद्रीय भाजपा के उस पर चुप्पी से कार्यकर्ताओं में थोड़ी निराशा अवश्य है किंतु चंद्रशेखर राव के विरुद्ध उनका असंतोष खत्म नहीं होगा। दूसरे, नितेश अगर कांग्रेस को साथ लेकर चलना चाहते हैं तो चंद्रशेखर राव इसके विरुद्ध हैं। तीसरी ओर आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा बढी हैं और वह विपक्षी कावायदों से अपने को दूर रखता है। चंद्रशेखर राव द्वारा पंजाब और हरियाणा में अपनी पार्टी की ईकाई गठित करने के कारण भी आप का विरोध है। चन्द्रशेखर राव ने किसान आंदोलन के नेता गुरनाम सिंह चढुनी को हरियाणा किसान मंच का अध्यक्ष घोषित कर संदेश दिया कि वह बाहर के राज्यों में भी उन नेताओं को महत्व देने वाले हैं जो मोदी विरोधी अभियान में किसी न किसी तरह शामिल रहे हैं। किंतु अभी तक उनके ऑफर को स्वीकार करने वाला किसी पार्टी का कोई आसान नेता सामने नहीं आया जिसका जनाधार हो ।

कांग्रेस इन मामलों पर अभी खामोश है तथा राहुल गांधी की भारत यात्रा पर फोकस कर रही है। उसे लगता है कि राहुल गांधी की छवि निखारने के बाद वे भाजपा और नरेंद्र मोदी विरोध के सबसे बड़े चेहरा होंगे। राहुल गांधी अपनी यात्रा में कह भी रहे हैं कि हम सीधे भाजपा और मोदी सरकार से लोहा ले रहे हैं। अभी तक तमिलनाडु में डीएमके तथा महाराष्ट्र में उनके साथी राकांपा और उद्धव के शिवसेना को छोड़कर किसी दल ने भारत जोड़ो यात्रा में सक्रिय सहभागिता नहीं दिखाई है। राकांपा और उद्धव शिवसेना ने भी अभी तक लोकसभा चुनाव की दृष्टि से किसी के नेतृत्व मोर्चे के संदर्भ में कोई बात नहीं की है। शरद पवार ने कुछ महीने पूर्व अवश्य कहा था कि वे किसी मोर्चे का नेता नहीं बनेंगे। ममता बनर्जी की स्वयं महत्वाकांक्षायें हैं। हां, अब उनका पूर्व का आक्रामक तेवर गायब है। इसलिए उनकी भावी राजनीति का अनुमान लगाना थोड़ा कठिन हो गया है।

इस तरह देखा जाए तो नीतीश कुमार और चंद्रशेखर राव की अनवरत कोशिशों के बावजूद मोदी विरोधी विपक्षी एकता के राष्ट्रीय स्तर पर साकार प्रतिध्वनि हमें सुनाई नहीं पड़ रही।

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Tags: 2024 loksabha electionbharatiya janata partydemocracyelection commissionopposition partiespm narendra modiruling party

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