कैसी है मोदी विरोधी विपक्षी मोर्चाबंदी की तस्वीर 

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लोकसभा चुनाव नजदीक आने के पूर्व विपक्षी दलों द्वारा सत्तारूढ़ पार्टी के विरुद्ध एकजुट होने और सत्ता में पहुंचने की कवायद नई नहीं है। बावजूद इसमें देश के रुचि बनी रहती है। इस समय देश के दो मुख्यमंत्रियों बिहार के नीतीश कुमार तथा तेलंगाना के के• चंद्रशेखर राव नरेंद्र मोदी…

तंत्र में गण की संपूर्ण प्रतिष्ठापना का लक्ष्य बाकी है

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भारत इस मायने में अनूठा है जहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस अलग-अलग मनाए जाते हैं। 15 अगस्त, 1947 को हम अंग्रेजों की दासता से स्वतंत्र अवश्य हुए पर  26 जनवरी ,1950 को गणतंत्र यानी अपना तंत्र अपनाया। सामान्य शब्दों में गण का अर्थ आमजन तथा तंत्र का व्यवस्था है।…

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की छाया में गणतंत्र

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बदलाव की चेतना स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी देखने में आई थी। इसीलिए इसे भारतीय स्वाभिमान की जागृति का संग्राम भी कहा जाता है। राजनीतिक दमन और आर्थिक शोषण के विरुद्ध लोक-चेतना का यह प्रबुद्ध अभियान था। यह चेतना उत्तरोतर ऐसी विस्तृत हुई कि समूची दुनिया में उपनिवेशवाद के विरुद्ध मुक्ति का स्वर मुखर हो गया। परिणाम स्वरूप भारत की आजादी एशिया और अफ्रीका की भी आजादी लेकर आई।

लोकतांत्रिक चेहरों पर एकशाही की मासूमियत

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लोकतंत्र का शिखर तलहटी को थोड़ा-थोड़ी सरकाता रहता है। न बर्फ खिसके, न वोट बैंक। परिवार उठता चला जाए। साधारण सीं झोंपड़ी से निकलकर हजारों करोड़ की मिलकियत कैसे बन जाती है! पर चेहरे पर जनवाद लहलहाता है।   

लोकतंत्र, राजनीति और संघ

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भारतीय लोकतंत्र इस समय अत्यंत नाजुक दौर से गुजर रहा है। भारत को धार्मिक आधार पर विभाजन स्वीकार कर ही स्वतंत्रता लेनी पड़ी। सम्राट अशोक का साम्राज्य वर्तमान भारत से अधिक विस्तीर्ण था। लेकिन इसके बाद भारत में इतने विस्तीर्ण और एकीकृत भूप्रदेश पर राज करने वाली अन्य राजसत्ता नहीं आई।

गणतंत्र को चिरायु करनेवाली शक्ति

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26 जनवरी, 2013 को भारतीय गणतंत्र अपने 64 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है। 26 जनवरी 1950 से संविधान पर अमल किया जाने लग् और भारत एक लोकतांत्रिक देश बन गया। सन् 1947 के बाद जिन लोगों का जन्म हुआ है उन्हे जन्म से ही लोकतांत्रिक शासन प्राप्त है। लोकतंत्र के पहले का शासन कैसा था? इस शासन में जनता को क्या अधिकार प्राप्त थे?

जनतंत्र के पहरेदार

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देश के उज्ज्वल चरित्र पर गर्व करते हुए मैं बाहर आ गया और देश के विकास के प्रति आश्वस्त हो गया। इन वेद-शास्त्रों से भी जो आश्वस्त न हो, उसे क्या आप भारतीय कहेंगे?

स्वतंत्रता के साढ़े छह दशक कहां से कहां तक पहुँचे हम

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स्वतंत्रता शब्द सुनते ही एक अलग प्रकार का आनंद होता है, इस आनंद को अभिव्यक्त करने का सभी का अलग-अलग अंदाज हो सकता है।

म्यांमार में लोकतंत्र की आहट

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क्या सचमुच हमारे पड़ोसी देश म्यांमार में लोकतंत्र की स्थापना होने जा रही है। वहां के लोकतंत्र की योद्धा आंग सान सू ची तो घोषणा कर चुकी हैं कि ‘म्यांमार में एक नए युग की शुरुआत हो चुकी है।’ मगर उनकी इस घोषणा को वास्तविक माना जाए या नहीं, इसे लेकर पूरी दुनिया में संशय बना हुआ है।

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