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परिपक्वता

परिपक्वता

by हिंदी विवेक
in कहानी, फरवरी २०२३, विशेष
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‘झाड़ू करके निकलना महारानी, और शाम के खाने की तैयारी भी ..’- चारू भाभी की कर्कश आवाज घर के बाहर तक सुनाई पड़ती थी। भाभी दनदनाती हुई अपने कमरे से निकली, लाल-काली कॉकटेल साड़ी, चमकदार हील की सैंडल और नेल आर्ट वाली उंगलियों में लटकी माइकल कोर्स की थर्ड कॉपी वाली बैग, मजेदार मेकअप मुंह पे लिपटा था- ध्रुवी ने बड़ी  मुश्किल से अपनी हंसी रोकी।

चारू भाभी ध्रुवी की पक्की सहेली सुहानी की इकलौती भाभी थी- कहने को एक मगर थी दस के बराबर! मानो एकता कपूर के किसी सीरियल की वैम्प की तरह! उनका मेकअप, उनकी साड़ियों का टेस्ट, लटके-झटके व बरताव एकदम किसी शातिर किरदार की तरह होता था। ध्रुवी उनकी गैरहाजिरी में उनकी नकल उतारा करती थी।

‘और हां, पार्थ स्कूल के बाद अपने दोस्त की बर्थडे पार्टी में जाएगा सो वह साढ़े तीन की जगह साढ़े छः बजे तक आएगा। उसका जूस उसी हिसाब से तैयार रखना और अगर तुम्हारे भैया जल्दी आ जाएं तो खबरदार उन्हें बताया कि पार्थ पार्टी में गया था, कह देना एक्स्ट्रा क्लासेज थीं। जब मैं घर लौटूं तो घर बिखरा नहीं होना चाहिए  ..टाइम से आ जाना, सहेलियों संग तफरीह में ना रह जाना। ’- भाभी ध्रुवी की ओर देख मुंह बनाते हुए बोली।

तभी उनके मोबाइल की रिंग टोन बज उठी – कम ऑन! कम ऑन टर्न द रेडियो ऑन इट्स फ्राइडे नाईट ……- हां मंजू  बस यार निकल रही हूं …क्या करूं, घर के काम ही खतम नहीं होते मेरे तो … काहे की कलर थीम यार …जो साड़ी सामने आयी पहन ली मैंने तो, मेकअप का टाइम ही कहां था। ओह तू नीचे आ गयी..चल उतरती हूं …आ रही हूं बाबा।’

‘मुझे ही मरना पड़ता है इस घर के हर काम में’- भाभी बड़बड़ाती हुई लिफ्ट में चली गई।

‘हां बड़ा मरना पड़ता है’- ध्रुवी ने भाभी की आवाज में उनकी नकल उतारी।

‘एक नंबर की सैंपल पीस है ये तेरी चारू भाभी ….कितनी झूठी, पांच दिन पहले ही तो भैया से छुपाकर बुटीक से ये डिजाइनर काली-लाल साड़ी खरीद के लायी थी क्योंकि आज की किटी का कलर थीम था। बनती तो ऐसे है जैसे हम कल ही पैदा हुए हों, हमें कुछ पता ही नहीं। केशव दरजी की जान पर बैठ कर तो ये पीठ पे झरोखे लगा ब्लाउज सिलवाया, सब पता है मुझे ….’.ध्रुवी ने बहुत ही नाटकीय अंदाज में हाथ नचा-नचा कर कहा।

‘खुद तो ऐसे बंदरिया बन के किटी पार्टी में घूमती फिरती है, पूरा काम तुझसे करवाती है, शाम को भैया के सामने बड़ी गाय बनती है तेरी भाभी। सुहानी, तू कभी मुंह क्यों नहीं खोलती? मूक-बधिर की तरह हर काम क्यों करती है? ऐसे तो तू पढ़ाई में सबसे तेज है, हर बार टॉप करती है, यूनिवर्सिटी की हर प्रतियोगिता में तेरे सामने कोई खड़ा नहीं हो पाता, तू तो बड़े-बड़े धुरंधरों को चुप करवा दे। इनके सामने तेरी चूं भी नहीं निकलती।’ ध्रुवी की आंखें गुस्से में बड़ी हो चली थीं।

‘तेरे जैसी सुन्दर, होशियार …टॉपर लड़की इनके सामने क्यों भीगी बिल्ली बन जाती है, समझ नहीं आता मुझे ?’ ध्रुवी के चेहरे पर गुस्से के भाव थे।

सुहानी हंसते हुए बोली, ‘हहाह मेरी स्वीटी ..इधर बैठ तू ..और सांस ले …लम्बी सांस, दिमाग और दिल पर प्रेशर डालना बंद कर और यह चाय पी, फिर कॉलेज निकलना है देवी…..’- कहकर सुहानी सोफा ठीक करने लगी और अपनी चाय एक ही घूंट में खतम कर किचन की ओर चल पड़ी।

ध्रुवी से रहा नहीं गया, वह चाय का कप लिए उसके पीछे किचन में आ गयी -देखा तो सुहानी फटाफट किचन काउंटर साफ कर रही थी। सुहानी उसे हमेशा प्रभावित कर जाती थी, कभी उसने सुहानी को गुस्से में या आपा खोते नहीं देखा था, हमेशा झील में खिले कुमुद की तरह सुंदर व शांत …. इसी स्वभाव से सम्मोहित हुई थी ध्रुवी जब इस सेशन में उसने सुहानी के कॉलेज में दाखिला लिया था, दोनों कुछ ही दिनों में अच्छी सहेलियां बन गयी थीं। ध्रुवी को सुहानी हर एंगल से इम्प्रेसिव लगती। बस यहां आकर ध्रुवी को खीज मचती कि चारू भाभी सुहानी के साथ बहुत खराब सलूक करती पर सुहानी कभी मुंह नहीं खोलती थी। बस ऐसी बातों पर ही उसका खून खौलता ….!

सुहानी अब चाय-नाश्ते के बर्तन फटाफट धो कर रख रही थी ….कॉलेज का समय जो हो रहा था। चारू भाभी ने सिर्फ शाम की कामवाली रखी थी, भैया से झूठ कहती थी की सुबह भी कामवाली आती है। उसके नाम के पैसे चारू भाभी अपनी पर्स में डाल लेती, और काम सारा करवाती सुहानी से ….  बड़े ही खराब स्वभाव की थी भाभी।

भैया सुबह आठ बजे घर से ऑफिस को निकल जाते और शाम को करीब सात बजे ही लौटते, उन्हें घर के हिसाब-किताब का कुछ पता नहीं था। ध्रुवी का मन सुहानी के लिए बहुत द्रवित होता, पर वह करती भी क्या! घर की सुहानी और कॉलेज की सुहानी में जमीन आसमान का फर्क था …ध्रुवी यह देख हर बार अचम्भित होती, सुहानी पर गुस्सा भी करती पर सुहानी हमेशा हंस कर टाल देती।

आज ध्रुवी पर मानो भूत सवार था…क्योंकि दो दिन में फर्स्ट टर्म के एग्जाम्स स्टार्ट होने थे और यह पागल सी सुहानी….दिन भर काम और कॉलेज के बीच पढ़ाई कब करेगी ….. उसने बहस सी शुरू कर दी…।

सुहानी ने टॉवल से हाथ पोंछे और ध्रुवी को गौर से देखने लगी। ध्रुवी अब भी गुस्से में चारू भाभी की रामायण बांचे जा रही थी …और सुहानी के चेहरे पर अब भी मुस्कान थी…उसने प्यार से उसे धक्का देकर किचन से निकाला व सोफे पर बैठाया। ‘आ तुझे बताती हूं कि मैं क्यों चुप रह जाती हूं- बचपन में एक कहानी पढ़ी थी-एक बुजुर्ग बस में चढ़े, किस्मत से बैठने की जगह मिल गई। पर उनके साथ बैठा आदमी जानकर बार-बार उन्हें अपनी कोहनी मारता रहा। वहीं खड़ी एक महिला यह सब देख रही थी, पर उसने सोचा जब ये बुजुर्ग कुछ नहीं बोल रहे तो मैं क्यों बीच में पडूं। 1 मिनिट में ही उस आदमी का स्टॉप आ गया और वो उतर गया, वह महिला वहां बैठी।’

उसने पूछा- ‘मैं देख रही थी वह युवक आपको लगातार परेशान कर रहा था,आपने उसे दो थप्पड़ क्यों नहीं जड़े?’ उन भद्र पुरुष ने कहा, ‘मैंने उसे कहते सुन लिया था कि वह अगले ही स्टॉप पर उतरने वाला है। उसके अभद्र व्यवहार पर मैंने इसलिए गुस्सा नहीं किया क्योंकि वह तो 1 मिनट में ही उतरने वाला था, फालतू में ही हल्ला मचा कर होता क्या.. अगर मैं हल्ला मचाता तो बस रूकती… झगड़ा होता ..मैं बहुत जल्दी में हूं..मेरी बीमार पत्नी की दवाइयां लेकर जा रहा हूं ..और उस आदमी की बदसलूकी का क्या भरोसा…कुछ का कुछ हो सकता था … और यह सब करके मैं अपना बी.पी. नहीं बढ़ाना चाहता था।…।’ कह कर सुहानी रुक गई।

ध्रुवी को कुछ समझ नहीं आया कि …..???

सुहानी फिर बोली, ‘देख ध्रुवी मां-पापा तो दस साल पहले ही चल बसे थे, भैया ने ही पढ़ाई करवाई, मुझे पाल पोस के बड़ा किया। स्कूल कॉलेज की फीस भरी … अब भैया से रोज बैठ कर भाभी की कमियां गिनवाऊं या भाभी से हर बात पर उलझूं….मुझे कोई तुक नहीं दिखता… मैं क्यों उनमें और भाभी में दूरियां बढ़ाऊं, और तू तो जानती है कि मेरा तो कैंपस रेक्रुइट्मेंट भी हो गया है…. मैं तो 4 महीने बाद नौकरी लग जाउंगी। शहर बदल जाएगा, तो कुछ महीनों खातिर मैं क्यों अपना बी.पी बढ़ाऊं!’ सुहानी ने मुस्कुराते हुए आंख मारी।

– अनु बाफना 

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