53 देशों में चीन के अवैध थाने

दुनिया भर के 53 देशों में सेफगार्ड डिफेंडर्स नाम की गैर सरकारी संस्था के नाम पर चीन की अवैध पुलिस चौकियां काम कर रही हैं जो उन देशों में अस्थिरता लाने का कार्य कर रही हैं। अभी तक भारत में ऐसे किसी स्टेशन की कोई सूचना नहीं मिली है परंतु इस विषय में सावधानी रखनेे की आवश्यकता है क्योंकि चीन के कुटिल इरादों से हम सभी परिचित है।

स्पेन स्थित ‘सेफगार्ड डिफेंडर्स’ नाम के एक गैर सरकारी मानवाधिकार संगठन ने खुलासा किया है कि चीन ने 53 देशों में जगह-जगह सेवा केंद्र के नाम पर अवैध पुलिस थाने स्थापित कर लिए हैं। दावा किया गया है कि अकेले इटली में ही 100 से अधिक अनौपचारिक चीनी पुलिस थाने हैं। आरोप है कि ये थाने विदेशों में जा बसे असंतुष्ट चीनी नागरिकों के दमन और सम्बंधित देशों में चुनावों को प्रभावित करने में भी भूमिका निभा रहे हैं।

ग्लोबल सुपरपावर के रूप में उभरने की चाह में चीनी सरकार ने कनाडा, जर्मनी, नीदरलैंड, पुर्तगाल, आयरलैंड और यहां तक कि अमेरिका जैसे विकसित देशों सहित दुनिया भर में कई अवैध पुलिस स्टेशन खोले हैं, जिससे मानवाधिकार एक्टिविस्ट चिंतित हैं। मानवाधिकार संगठन का आरोप है कि खासतौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करने वाले विदेशी चीनियों को इन पुलिस थानों के जरिए निशाना बनाया जाता है और उन्हें दोबारा चीन लौटने के लिए मजबूर किया जाता है।

आरोप है कि चीनी अधिकारियों ने अपराधबोध अभियान के हिस्से के रूप में संदिग्धों को धमकी दी कि वह उनके बच्चों को वापस चीन में शिक्षा के अधिकार से वंचित कर देंगे, परिवार के सदस्यों को डराएंगे, उत्पीड़न करेंगे, हिरासत में लेंगे या कारावास देंगे। इस तरह, उन्होंने धमकी देकर नागरिकों को अपनी मर्जी से वापस चीन लौटने की सलाह दी।

दि गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, मानवाधिकार संगठन का दावा है कि उसके पास डराने-धमकाने के साक्ष्य हैं। गबन के आरोपी एक फैक्ट्री कर्मचारी को प्रत्यर्पण के विधिक तरीकों की अनदेखी करके इटली से 13 साल बाद चीन लौटाया गया और फिर उसका कुछ अता पता नहीं चला।

रिपोर्ट के अनुसार इटली में ये कथित सेवा केंद्र 2016 से चल रहे हैं। इटली के गृह मंत्री ने ऐसे दो केंद्रों के साक्ष्य मिलने की बात मानी थी और संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि जासूसी एजेंसियां और पुलिस बल हाई अलर्ट पर हैं। कोई भी अवैध गतिविधि सिद्ध होते ही वह पाबंदियां लगाने के लिए कदम उठाने को तैयार हैं।

2015 में हुए एक समझौते के तहत चीन के अधिकारी इटली में खुलेआम काम करते रहे हैं। इस समझौते ने चीनी अधिकारियों को रोम, मिलान और नेपल्स आदि में इतालवी अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने की सुविधा मिली है। दूसरी ओर, चीन द्वारा नीदरलैंड में स्थापित इन अनौपचारिक पुलिस थानों को डच प्रवक्ता ने अवैध करार दिया है। जबकि चीनी दूतावास ने इस बारे में अनभिज्ञता जतायी है।

चीन की नागरिकता वाले लोगों को दूसरे देशों में भी दंड देने का इंतजाम उसने कर रखा है, यह राज सबसे पहले सऊदी अरब में उइगर मुसलमानों ने खोला था। अब अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां इस सूचना से हैरान हैं कि उनके ही देश में चीन ने ऐसे पुलिस थाना खोल रखे हैं। ‘सेफगार्ड डिफेंडर्स’ की रिपोर्ट में इसका खुलासा होने के बाद लोगों ने उस स्थान का चित्र भी सोशल मीडिया पर जारी कर दिया, जहां यह अवैध पुलिस थाना चलता है।

एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर व्रे ने अमेरिकी सीनेट कमेटी को बताया कि हमें इन थानों के बारे में जानकारी है। निजी तौर पर चीन का हमारे देश के भीतर और न्यूयॉर्क जैसी जगह पर थाने खोलना बेहद आपत्तिजनक है। बिना किसी सूचना के ऐसा करना तो बिल्कुल ही सही नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे न सिर्फ अमेरिकी सार्वभौमिकता का उल्लंघन हो रहा है बल्कि ये अमेरिकी न्यायिक व्यवस्था की भी अनदेखी है।

एक खोजी पत्रिका ने स्थानीय मीडिया के हवाले से दावा किया कि कनाडा में चीन के गैर-कानूनी थानों को पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो के तहत मान्यता मिली हुई है। कनाडा ने कम से कम तीन अवैध पुलिस स्टेशनों से जुड़ी रिपोर्टों की व्याख्या करने के लिए कई बार चीनी राजदूत कांग पेइवु को तलब भी किया। यही नहीं, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने चीन को लोकतंत्र के साथ आक्रामक खेल खेलने के खिलाफ चेतावनी दी थी, क्योंकि कनाडा के 2019 के संघीय चुनाव के दौरान विदेशी हस्तक्षेप के व्यापक अभियान की रिपोर्ट सामने आई थी।

‘ग्लोबल न्यूज’ की एक खोजी रिपोर्ट में पाया गया था कि चीन ने 2019 के संघीय चुनाव के दौरान कम से कम 11 उम्मीदवारों के एक गुप्त नेटवर्क को गुप्त रूप से वित्तपोषित किया था, जिसमें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) से जुड़े उम्मीदवारों को मध्यस्थों के माध्यम से भुगतान करना और नीति को प्रभावित करने के लिए सांसदों के कार्यालयों में एजेंट रखना शामिल था। चीन ने तब इसका खंडन किया था।

बोले तो, चीनी पुलिस स्टेशन के जर्मन सेट-अप में कोई जिम्मेदार अधिकारी तैनात नहीं हैं, लेकिन इसका प्रबंधन व्यक्तिगत रूप से चीनियों द्वारा किया जाता है। जर्मनी के इंटीरियर मंत्रालय का कहना है कि चीनी अधिकारियों को जर्मन राज्य पर कोई भी कार्यकारी अधिकार नहीं है। जर्मन इंटीरियर मंत्रालय के अनुसार, वे इन चीनी सेट-अप को लेकर जर्मनी स्थित चीनी दूतावास के साथ सम्पर्क में हैं।

जर्मन सांसद जोआना कोटर का कहना है कि सरकार को पहले इस बारे में जानकारी नहीं थी लेकिन जब मुद्दे उठते हैं तो सरकार उसे स्वीकार करती है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें कानून के दायरे में काम करना था तो इस तरह के सेट-अप कहां से आए। इस तरह के सेट-अप को तुरंत नष्ट कर दिया जाना चाहिए। जर्मनी में ऐसे कई चीनी नागरिक रह रहे हैं, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के घोर आलोचक माने जाते हैं। इसी तरह के दो पुलिस स्टेशन को प्रॉग में बंद कर दिया गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यूक्रेन, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, यूके, कंबोडिया, संयुक्त अरब अमीरात, फिलीपींस, थाईलैंड, म्यांमार, लाओस, मलेशिया, तुर्की और इंडोनेशिया आदि देशों में भी ऐसी ही चीनी पुलिस चौकियों को देखा गया है। इनमें से अधिकांश देशों के नेता सार्वजनिक मंचों पर चीन के बिगड़ते मानवाधिकार रिकॉर्ड पर सवाल उठाते रहे हैं। ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट ने चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी पर सुरक्षा के नाम पर देश भर में दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया है, जिसमें लोगों को नजरबंदी शिविरों में कैद करना, परिवारों को जबरन अलग करना और जबरन नसबंदी करना शामिल है।

वहीं, चीन इन आरोपों से इनकार करता है और कहता है कि यह चीन के विदेशी सर्विस स्टेशन हैं, जो अंतरराष्ट्रीय अपराध से निपटने और चीनी नागरिकों को नौकरशाही प्रक्रियाओं जैसे पासपोर्ट या ड्राइविंग लाइसेंस को नवीनीकृत करने में सहायता करने के लिए स्थापित किए गए हैं। चीन की सरकारी मीडिया के अनुसार, ये पुलिस थाने कथित तौर पर अपराधियों को चीन वापस भेजने के लिए मजबूर करने में भी शामिल रहे हैं। जबकि, ‘सेफगार्ड डिफेंडर्स’ का दावा है कि इन अनौपचारिक थानों के माध्यम से अप्रैल 2021 से जुलाई 2022 तक 2,30,000 से अधिक लोगों को चीन भेजा गया है।

चीन का वास्तविक उद्देश्य ऐसा करके पूरी दुनिया पर अपनी पकड़ स्थापित करना है, ताकि वह वैश्विक सुपरपावर के रूप में स्थापित हो सके।

भारत में दाल नहीं गलती…

कभी हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा देने वाले कपटी चीन की दाल 2014 के बाद से भारत में गलनी बंद हो गई है। फिर भी, गलवान का ट्रेलर देख लेने के बावजूद तवांग में घुसपैठ की हिमाकत की। भारत में चीनी पुलिस थाने की कोई खबर तो नहीं, लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिविधियां बढ़ाने, नए निर्माण करने से लेकर जासूसी के हर संभव हथकंडों से भी चीन बाज नहीं आता है। भारत और चीन 3,488 किलोमीटर लम्बी सीमा साझा करते हैं। भारत की चीन के साथ सीमा केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के साथ ही हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणालच प्रदेश से लगी है। ऐसे में, सीमा सुरक्षा बल और सुरक्षा एजेंसियों के हाथ चीनी जासूस भी यदाकदा लग ही जाते हैं।

पिछले साल 6 महीने में ऐसा तीन बार हुआ, जब चीन ने अपने जासूसी जहाज को हिंद महासागर में भेजा। नवम्बर 2022 में चीनी जासूसी जहाज की वजह से भारत को अग्नि-3 मिसाइल की लांचिंग टालनी पड़ी थी। ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, चीन का पोत पहले मलेेशिया की तरफ बढ़ रहा था, पर दिसम्बर में जैसे ही भारत की ओर से अग्नि-5 मिसाइल के 8वें परीक्षण के लिए नोटम (नोटिस-टू-एयरमैन) जारी हुआ, वह मुड़कर हिंद महासागर में पहुंच गया। मिसाइल परीक्षण से पहले सम्भावित अवरोध को रोकने के लिए नोटम जारी किया जाता है। भारत ने जो नोटम जारी किया, उसमें 5400 किमी की रेंज का जिक्र था, जिसकी जद में चीन भी आता है।

यही नहीं, चीनी सरकार द्वारा प्रायोजित हैकर्स ने पिछले साल ही लद्दाख में भारत की बिजली ग्रिड को निशाना बनाया था। कई और महत्त्वपूर्ण संस्थानों पर साइबर हमले किए। इसका खुलासा अमेरिकी साइबर सुरक्षा फर्म ‘रिकार्डेड फ्यूचर’ ने किया था। नीदरलैंड्स, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे कई देश और वोडाफोन एवं  माइक्रोसाफ्ट जैसी कारोबारी कम्पनियों ने चीन द्वारा व्यापारिक समेत तमाम संवेदनशील डेटा चुराने की करतूतों का भी खुलासा किया है। दरअसल, चीन वैश्विक स्तर पर सघन रूप से हैकिंग से जुड़ी गतिविधियों को अंजाम देता है। टेलीकाम नेटवर्क और फाइबर आप्टिक संचार से जुड़े बुनियादी साजो-सामान मुहैया कराने वाली चीनी कम्पनियां उसकी इस मुहिम का अहम हिस्सा हैं।

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