भारत सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत योजना’ को अत्यधिक बढ़ावा देने के कारण देश की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की गति वैश्विक स्तर पर तीव्रतम हो गई है। साथ ही, जीएसटी के कारण निवेशकों को अन्य देशों की अपेक्षा भारत में कर की बचत हो रही है, जिस वजह से उनका कैशफ्लो भी बढ़ रहा है।
आज तेल के दामों में उतार चढ़ाव के बीच स्व का विकास, न्यूनतम विदेशी और अधिकतम स्वदेशी की चर्चा में उस बिंदु से बात शुरू करेंगे जिसे हम अनजाने में प्रतिदिन करते हैं, लेकिन यह अहसास ही नहीं होता है कि हम विदेशी वस्तु का इस्तेमाल कर रहे हैं और वह है पेट्रोलियम पदार्थ। दरअसल रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारणों में से एक तेल आयात का भुगतान होना है, जिससे देश में विदेशी मुद्रा की कमी हो जाती है और चालू खाते का घाटा बढ़ जाता है। अगर इससे लड़ना है तो सरकार और स्व के स्तर पर कुछ अनुशासन लाने पड़ेंगे। हमें न्यूनतम विदेशी और अधिकतम स्वदेशी के फार्मूले पर काम करना पड़ेगा। हमें अपने स्व के स्तर पर अपनी दिनचर्या और जीवन शैली ऐसी बनानी पड़ेगी कि हम विदेशी पेट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल कम से कम करें। इसके लिए हम छोटी छोटी युक्तियां बना सकते हैं। अब तो पेरिस ग्लॉसगो और इजिप्ट सम्मेलन के बाद भारत की प्रतिबद्धता पर्यावरण अनुकूल सौर ऊर्जा व इलेक्ट्रिक वाहन की तरफ बढ़ गई है अपने रुझान को उधर बढ़ाने जैसे तमाम छोटे-छोटे उपाय हैं। सरकार को भी स्वदेशी इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन पर आक्रामक रवैया अपनाना चाहिए। सरकारी वाहनों को तो क्रमबद्ध तरीके से डीजल और पेट्रोल से हटाकर आवश्यक रूप से स्वदेश निर्मित बिजली इलेक्ट्रिक व्हीकल के इस्तेमाल की नीति लानी चाहिए, इससे ही बड़े पैमाने पर तेल के खर्च को कम किया जा सकता है।
भारत की इस स्व आधारित व्यवस्था की वकालत इस बार मोहन भागवत ने भी की है। उनके अनुसार स्वभाषा, स्वभूषा, अपना भजन, भवन, भ्रमण, भोजन, हस्ताक्षर तक स्व आधारित है कि नहीं; यह सब देखना चाहिये। जहां विदेशी जरुरी है करें, लेकिन जहां टाल सकते हैं उसे टालें। कोरोना काल मे स्व के चिंतन के लिये अवसर भी बना है। कोरोना काल में हमें पता चला हम कितना फालतू खर्च करते हैं, अपनी इस सुधरी आदत को फिर से नहीं बिगाड़ना है, अपव्ययी नहीं मितव्ययी बनना है। विश्व प्रचलित इकॉनामी के कारण बहुत सी समस्याएं खड़ी हैं। उसका उत्तर उनके पास नहीं है और सभी देशों में अंतर्मुखी हो विचार चल रहा है कि तीसरा रास्ता क्या हो? वह रास्ता भारत दे सकता है। हमारा प्रदीर्घ जीवन है और हम दुनिया में सर्वाधिक समर्थ आर्थिक देश थे। इतने लम्बे आर्थिक अनुभव का जो शाश्वत तत्व है हमें उसमें कुछ समयानुकूल परिवर्तन अपनाना पड़ेगा। बाहर से भी जो उपयुक्त है उसे लेना पड़ेगा। स्वदेशी को काल सुसंगत बना, विदेशी को देश सुसंगत बना, अपने स्व पर आधारित एक नया आर्थिक प्रतिमान सम्पूर्ण विश्व को देना पड़ेगा।
विकसित देशों की निगाहें क्यों भारत की तरफ हैं? इसका कारण, भारत के पास क्रय शक्ति युक्त दुनिया का बड़ा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। 2014 से पहले मेक इन इंडिया की अन्तर्निहित शर्त नहीं होने के कारण कम्पनियां विदेशों में बनाकर भारत में बेचा करती थीं, लेकिन अब मेक इन इंडिया पालिसी और इस के तहत जो तमाम सुविधायें और इंसेंटिव दी गई तो कम्पनियां भारत में बेचने के लिये अब भारत में प्रोडक्ट बनाने लगीं। इससे केवल उन्हें भारत का ही बाजार नहीं मिला, विदेशों में भी वह बेचने लगीं। भारत निवेश का केंद्र बनने लगा। सस्ता कच्चा माल, सस्ता श्रम, जीएसटी, कम दर वाला आयकर डिजिटल और भौतिक इंफ्रा, इन सब ने मिलकर मेक इन इंडिया को सुगम बनाया है। अब विदेशी कम्पनियों के लिए भारत में बनाना सस्ता होने लगा।
भारत सरकार को यह लगने लगा था कि भारत अगर बाहर से माल खरीदता रहेगा तो ना तो भारत को प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता हासिल होगी और ना भारत आत्मनिर्भर बन पायेगा। इसीलिए भारत सरकार ने मेक इन इंडिया के साथ साथ आत्मनिर्भर भारत भी शुरू किया। भारत सरकार ने यह भी सोचा कि जब बिक्री उनकी कन्फर्म है तो क्यों ना उन्हें बोलें कि भारत में बनाकर भारत में ही बेचो। सरकार ने इसकी पहली शुरुआत डिफेंस से की और धीरे धीरे यह कई क्षेत्रों में होने लगा। जिसमें मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक का बढ़ता हुआ बाजार भी शामिल है। इससे भारत में उत्पादन भी बढ़ा, रोजगार भी बढ़ा, और लाभ पर कमाई भी भारत में मिली। जबकि यह सब फीचर मेड इन इंडिया में सीमित रूप में था। इसमें कोई अंतर्निहित शर्त नहीं थी की भारत में बेचना है तो भारत में बनाओ।
मेक इन इंडिया ने विदेशी भंडार को बढ़ाने और चालू खाते का घाटा कम करने में मदद किया क्योंकि इससे बड़ी मात्रा में आयात की मात्रा कम हो गई।
सरकार ने इसमें सहूलियत देने के लिए कुछ टैक्स और कानूनी सुधार भी किये ताकि मेक इन इंडिया सफल हो। जैसे कि सरकार ने भी कॉर्पोरेट टैक्स रेट घटाकर देश ही नहीं पूरी दुनिया को चौंका दिया है। कुछ चुनिंदा टैक्स आक्रामकता को लेकर जो भारत की छवि दुनिया में बनी हुई थी वो अब बीते कुछ समय से खत्म हो रही है। अब भारत टैक्स टेररिज्म वाला देश नहीं रहा, निवेशकों को भी लगने लगा है कि अब वह दौर गया जब पिछले तारीख से टैक्स के कानून बदल जाया करते थे और फ्रिंज बेनिफिट टैक्स जैसे गैर जरूरी टैक्स लाद दिए जाते थे, या कर अधिकारी के उत्साह और आक्रामकता की वजह से कॉर्पोरेट को अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते थे। पुरे देश में ॠडढ लगाने से भी टैक्स की परिभाषाओं को समझने की जो सहूलियतें मिली और फेसलेस स्क्रूटिनी की जो घोषणा हुई उसका सबने स्वागत किया। वित्त मंत्री की घोषणा के बाद अब घरेलू कम्पनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स की प्रभावी दर काफी कम हो गई है, और दुनिया के स्तर पर आकर्षक भी। भारत के इस कदम से विश्व में भारत की टैक्स साख खूब बढ़ी है और वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग ट्रेंड भारत की तरफ मुड़ने की सम्भावना है जो मेक इन इंडिया के लिए अच्छा होगा। कॉरपोरेट टैक्स की दर को घटाने का अमेरिकी कारोबारियों ने भी स्वागत किया है। उनका कहना है कि इससे देश और विश्व की भी आर्थिक सुस्ती दूर होगी और अमेरिकी कम्पनियों को भारत में मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधि बढ़ाने का एक नया अवसर मिलेगा। ज्ञातव्य हो कि अमेरिका भारत के सबसे बड़े एफडीआई निवेशकों में शामिल है।
जहां तक वित्तीय घाटा का प्रश्न है, इस टैक्स कटौती से राजस्व को होने वाले नुकसान से वित्तीय घाटा अधिक नहीं बढ़ेगा, क्योंकि एक तरफ तो यह कटौती होगी दूसरी तरफ ॠडढ एवं आयकर दोनों कर चुकाने वालों का आधार बढ़ जाएगा और इससे राजस्व की वसूली बढ़ेगी। इस कदम का जो सबसे पहला फायदा है वह यह है कि इससे भारतीय कम्पनियों में कैश फ्लो बढ़ेगा, जिसका इस्तेमाल कम्पनियां अपने कर्ज को सही करने में और नौकरियां बढ़ाने या उसे स्थिर रखने में कर सकती हैं।
वैश्विक स्तर पर अगर देखेंगे तो जो शीर्ष के 10 मैन्युफैक्चरिंग देश हैं उनके यहां भी निर्माण कारखानों पर जो कर की प्रभावी दर है, वह अब हमसे ज्यादा हो गई है। मतलब चीन, यूनाइटेड किंगडम, कोरिया, इटली, जापान फ्रांस आदि देशों के कॉर्पोरेट इनकम टैक्स अब भारत के नए प्रभावी कॉर्पोरेट इनकम टैक्स 17 फीसदी से ज्यादा हो गए हैं, यानी भारत की दर किफायती हो गई है। ऐसी दशा में जो वैश्विक निवेशक हैं उनके लिए भारत अब नए ट्रेंड के रूप में सामने आया है। इसलिए भारत के अप्रोच में ‘मेड इन इंडिया’ से ‘मेक इन इंडिया’ में जो बदलाव है, उससे भारत को स्वदेशी के रास्ते पर चलते हुये दीर्घकाल में लाभ होगा।
– पंकज गांधी