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कृष्ण के जीवन से प्रेरक सीख

कृष्ण के जीवन से प्रेरक सीख

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, कहानी, विशेष
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हर परिस्थिति को समझने,बिना गुस्सा किए ,मन को शांत रख कर,उससे बाहर निकलने की क्षमता यदि किसी में दिखी तो वे हैं  हमारे प्रभु वासुदेव कृष्ण !

मथुरा की जेल में जन्म हुआ ,गोकुल में बड़े हुए। जन्म होते ही दुष्ट कंस ने अपने सबसे ख़तरनाक राक्षस इनके

पीछे लगा दिए , उनका नाश किया, आज जब हम साधारण जेबकतरे,छेड़खानी करने वालों से डर जाते हैं तब

मथुरा के पास के गांव ,गोकुल ,नंदगांव आदि में रहते हुए अपने साथी ग्वाल बाल के साथ,बिना किसी आधुनिक हथियार के इन राक्षसों से लड़्ना कितनी हिम्मत का काम रहा होगा !

इस संघर्ष ने श्री कृष्ण को वह समझ और शक्ति दी कि अपने बचपन में ही उन्होंने विश्व भर में आतंक बने मथुरा के राजा कंस को मार कर अपने नाना उग्रसेन जी को मथुरा का राजा बनाया !

श्री कृष्ण के जीवन का पहला संदेश यह है कि बच्चे कमजोर नहीं होते ! बस ज़रूरत है अपने मन को शांत रख कर समस्या पर विचार करना ,समस्या को हल करने खूब सारे तरीके सोचना और सबसे अच्छे लगने वाले तरीके को लागू करना !

श्री कृष्ण के जीवन की इन सत्य घटनाओं से सीखें कि आज जब हर व्यक्ति में उकसाने को तैयार है तो शांत रह कर अपना लक्ष्य कैसे प्राप्त करें ।

अभी हाल ही में जगन्नाथ पूरी की रथ यात्रा सम्पन्न हुई है । लाखों लोगों ने इसमें हिस्सा लिया, उत्तर में मथुरा और पश्चिम में द्वारका रहने वाले श्री कृष्ण जगन्नाथ पुरी में इतने प्रसिद्ध कैसे हुए ? आइए जाने ! किस तरह

पौंड्रक नामक घमंडी राजा की वजह से कृष्ण की कीर्ति पूर्वी भारत तक जा पहुँची !

 यह घटना उस समय की है जब कृष्ण  बलराम यदुवंश का नेतृत्व कर रहे थे, वे अपनी राजधानी गुजरात तट पर समुंदर के अंदर एक द्वीप पर बनी नगरी द्वारका में ले जा चुके थे । सारा विश्व उनका सम्मान करता था, पर अनेक लोग इसी कारण  श्री कृष्ण से जलते थे वैर करते थे ।

काशी में इसी काल में पौंड्रक नामक राजा राज करता था वैसे तो वह पुंड्रा नामक राज्य जो पूर्वी बंगाल में था  ( वर्तमान बांग्लादेश) के राजा का पुत्र था किंतु उसे उसके नाना काशी नरेश ने गोद ले लिया था तो वह भी काशी नरेश बन गया ।

वह इतना बलशाली और प्रसिद्ध था कि भगवान कृष्ण के  जीवन में  आए सबसे कठिन पांच शत्रुओं में उसे गिना जाता है। जैसा अकसर होता है कि बल और सफलता  साथ घमंड बढ़ने लगता है । आपके सहयोगी आपकी प्रशंसा करते हैं और आप उसे सच मान लेते हैं । यहीं से विनाश  का रास्ता शुरू होता है । हमें हमेशा  घमंड से बचना है ।

सफल और बलवान पौंड्रक अपने दरबारियों के कहने से ख़ुद को   सबसे शक्तिशाली मानने  लग गया ,यह भी चल जाता किंतु अब पौंड्रक ने स्वयं को ईश्वर मान वासुदेव कृष्ण कहना शुरू कर दिया ।अपने चाटुकार मंत्रियों के  दिन रात प्रशंसा के कारण अब वह इस पर विश्वास भी करता था ।अब  उसे यह भी अच्छा नहीं लगता कि लोग कृष्ण की प्रशंसा करें । इसके लिए ही वह कृष्ण को नीचा दिखाना चाहता था । इसके लिए वह अपना एक दूत द्वारका भेजता है और  कृष्ण को चुनौती देता है कि  या तो स्वयं को वासुदेव कृष्ण कहना बंद करें और अपने गदा चक्र और शंख दे दें या  उससे युद्ध करें !

कृष्ण का सेनापति  सात्यकी बिना कारण कृष्ण का यह अपमान सहन नहीं कर पाता और यह संदेश लेकर आए  हुए दूत का सिर काटना चाहता हैं किंतु कृष्ण  दूत के वध का विरोध करते हैं , क्योंकि वह बिचारा तो अपने स्वामी  का संदेश भर लाया है ! वे इस चुनौती को अकेले स्वीकार करते हैं ! बड़े भाई बलराम नाराज होते हैं  और सेना तैयार करते हैं  किंतु कृष्ण  बलराम को मना ही लेते हैं  कि सेना युद्ध नहीं करेगी !

उधर  पौंड्रक अपनी विशाल सेना लेकर आता है उसके मित्र राजा भी साथ देते हैं  अब आप सोचोगे कि कहाँ इतनी बड़ी सेना और कहाँ अकेले कृष्ण ? पर वासुदेव कृष्णतो अपनी बुद्धि के लिए ही जाने जाते हैं ।

इतनी बड़ी सेनाओं के बीच कृष्ण अपना रथ पौंड्रक के रथ के सामने लाते हैं और निवेदन करते हैं, “हाँ  हाँ जब  तुम ही असली वासुदेव कृष्ण हो तो  अब अपने अस्त्र शस्त्र भी संभालो ! इनका मेरे पास क्या काम है “।

चकित पोंड्रक ख़ुशी में झूम पाए  उससे पहले कृष्ण अपनी गदा  पूरे बल से पौंड्रक  की  ओर फेंकते हैं

गदा का प्रहार रथ पर होता है  तो इस चोट से पौंड्रक का रथ चकनाचूर हो जाता है  वह भूमि पर आ गिरता है ।

घायल पौंड्रक  अब समझ  तो रहा है कि कुछ तो  गड़बड़ हो रहा है किंतु  कृष्ण  उसे समझने का मौका बिना दिए आगे  कहते हैं   “गदा तो आपको  दे दी तो अब यह सुदर्शन  चक्र भी मेरे  किस काम का है ? यह भी तुम ही सम्भालो पौंड्रक”।

भूमि पर गिरा पौंड्रक न तो चक्र चलाना ही जानता  था, ना ही उसे सम्भालना ! कृष्ण का सबसे शक्तिशाली अस्त्र अपनी पूरी तेजी से आ रहा है ! तब परिणाम क्या होना था ?

पौंड्रक अभी सोच ही रहा है कि वह जीत रहा है या किसी मुसीबत में फंस रहा है ! तब तक सुदर्शन चक्र ने तो अपना काम कर दिया अगले  ही क्षण स्वयम को वासुदेव कहने वाले पौंड्रक का गला कट  गया था  और उसके  सिर और धड़ अलग अलग  दिशा में पड़े थे !

द्वारका की सेना कृष्ण की जय  जयकार कर रही थी और शत्रु सेना अपने राजा की मृत्यु के कारण बिना लड़े ही हार चुकी थी ।

युद्ध का यह वर्णन  हर परिस्थिति  को अपने अनुकूल बना लेने का अद्वितीय उदाहरण है ।

आप ही सोचो दोनों सेना आपस में लड़ती तो कितने अधिक लोग मरते कितनी हानि होती ?

आज   हमारी फ़िल्में तो हमें  गुस्सा और घृणा से बदला लेना सिखाती हैं । गाली भरे वाक्यों को ही वीरता का प्रतीक माना जाता  है । घृणा और क्रूरता वीरता नहीं होती है । वीरता तो साहस  तथा दंड देने की शक्ति।

होने के साथ साथ  शांत रह कर काम करने का नाम है ।जो हमारी सेना के चरित्र में दिखायी देती है । दुश्मन कितना भी उकसाए, वीर समय, स्थान, और तरीक़ा अपनी मर्ज़ी से चुनते हैं !

इस कथा में कृष्ण के व्यवहार  से हमें शिक्षा मिलती है कि गुस्से के क्षणों में भी  शांत रहें

लड़ाई कभी भी जल्दबाजी में नहीं करनी है !  पहले विचार करें ! सही रास्ता खोजें  और ऐसा काम करें कि सांप भी मर  जाए  और  हमारी लाठी भी न टूटे । हम समस्या का समाधान करें और विरोधी को अनुकूल बनाएँ हम लड़ाई  के लिए सदैव तैयार रहे !  डरें नहीं  किंतु लड़ाई सिर्फ़ अंतिम विकल्प हो ।

इसी कथा में हमें पौंड्रक के जीवन से यह शिक्षा मिलती है कि बिना बात घमंड न करें ! पौंड्रक शक्तिशाली था दो राज्यों का स्वामी था । इस युद्ध में जीतने पर सिर्फ़ उसके घमंड का लाभ था क्योंकि वह द्वारका को जीतना भी नहीं चाहता था ,सिर्फ़ कृष्ण को नीचा दिखाना चाहता था ! इतनी सी बात के लिए अपना और अपने मित्र राजाओं और उनके सैनिकों का जीवन खतरे में डालना मूर्खता ही तो है । याद रखें  सफलता के समय हमारा घमंड  बढ़ने लगता है ,उस पर काबू रखना बहुत  आवश्यक है । वरना हानि ही हानि है ।

आप सब बच्चे ही कल देश संभालोगे तब आज से ही सीखना होगा ,मजबूत बनना होगा ,उदार बनना होगा और सबसे महत्वपूर्ण है ,बुद्धिमान बनना होगा ।

– राकेश कुमार

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Tags: paundrakshri krishna

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