जीत सदैव धर्म की ही होती है …
कौरव पक्ष में भी धर्म था उसका नाम विदुर था । पर धर्म को कौरव पक्ष ने सेवक बनाकर रखा ...
कौरव पक्ष में भी धर्म था उसका नाम विदुर था । पर धर्म को कौरव पक्ष ने सेवक बनाकर रखा ...
अपने संकीर्तन द्वारा पूर्वोत्तर में धर्म बचाने वाले निमाई (चैतन्य महाप्रभु) का जन्म विक्रमी सम्वत् 1542 की फागुन पूर्णिमा (27 ...
हर परिस्थिति को समझने,बिना गुस्सा किए ,मन को शांत रख कर,उससे बाहर निकलने की क्षमता यदि किसी में दिखी तो वे हैं हमारे प्रभु वासुदेव कृष्ण ! मथुरा की जेल में जन्म हुआ ,गोकुल में बड़े हुए। जन्म होते ही दुष्ट कंस ने अपने सबसे ख़तरनाक राक्षस इनके पीछे लगा दिए , उनका नाश किया, आज जब हम साधारण जेबकतरे,छेड़खानी करने वालों से डर जाते हैं तब मथुरा के पास के गांव ,गोकुल ,नंदगांव आदि में रहते हुए अपने साथी ग्वाल बाल के साथ,बिना किसी आधुनिक हथियार के इन राक्षसों से लड़्ना कितनी हिम्मत का काम रहा होगा ! इस संघर्ष ने श्री कृष्ण को वह समझ और शक्ति दी कि अपने बचपन में ही उन्होंने विश्व भर में आतंक बने मथुरा के राजा कंस को मार कर अपने नाना उग्रसेन जी को मथुरा का राजा बनाया ! श्री कृष्ण के जीवन का पहला संदेश यह है कि बच्चे कमजोर नहीं होते ! बस ज़रूरत है अपने मन को शांत रख कर समस्या पर विचार करना ,समस्या को हल करने खूब सारे तरीके सोचना और सबसे अच्छे लगने वाले तरीके को लागू करना ! श्री कृष्ण के जीवन की इन सत्य घटनाओं से सीखें कि आज जब हर व्यक्ति में उकसाने को तैयार है तो शांत रह कर अपना लक्ष्य कैसे प्राप्त करें । अभी हाल ही में जगन्नाथ पूरी की रथ यात्रा सम्पन्न हुई है । लाखों लोगों ने इसमें हिस्सा लिया, उत्तर में मथुरा और पश्चिम में द्वारका रहने वाले श्री कृष्ण जगन्नाथ पुरी में इतने प्रसिद्ध कैसे हुए ? आइए जाने ! किस तरह पौंड्रक नामक घमंडी राजा की वजह से कृष्ण की कीर्ति पूर्वी भारत तक जा पहुँची ! यह घटना उस समय की है जब कृष्ण बलराम यदुवंश का नेतृत्व कर रहे थे, वे अपनी राजधानी गुजरात तट पर समुंदर के अंदर एक द्वीप पर बनी नगरी द्वारका में ले जा चुके थे । सारा विश्व उनका सम्मान करता था, पर अनेक लोग इसी कारण श्री कृष्ण से जलते थे वैर करते थे । काशी में इसी काल में पौंड्रक नामक राजा राज करता था वैसे तो वह पुंड्रा नामक राज्य जो पूर्वी बंगाल में था ( वर्तमान बांग्लादेश) के राजा का पुत्र था किंतु उसे उसके नाना काशी नरेश ने गोद ले लिया था तो वह भी काशी नरेश बन गया । वह इतना बलशाली और प्रसिद्ध था कि भगवान कृष्ण के जीवन में आए सबसे कठिन पांच शत्रुओं में उसे गिना जाता है। जैसा अकसर होता है कि बल और सफलता साथ घमंड बढ़ने लगता है । आपके सहयोगी आपकी प्रशंसा करते हैं और आप उसे सच मान लेते हैं । यहीं से विनाश का रास्ता शुरू होता है । हमें हमेशा घमंड से बचना है । सफल और बलवान पौंड्रक अपने दरबारियों के कहने से ख़ुद को सबसे शक्तिशाली मानने लग गया ,यह भी चल जाता किंतु अब पौंड्रक ने स्वयं को ईश्वर मान वासुदेव कृष्ण कहना शुरू कर दिया ।अपने चाटुकार मंत्रियों के दिन रात प्रशंसा के कारण अब वह इस पर विश्वास भी करता था ।अब उसे यह भी अच्छा नहीं लगता कि लोग कृष्ण की प्रशंसा करें । इसके लिए ही वह कृष्ण को नीचा दिखाना चाहता था । इसके लिए वह अपना एक दूत द्वारका भेजता है और कृष्ण को चुनौती देता है कि या तो स्वयं को वासुदेव कृष्ण कहना बंद करें और अपने गदा चक्र और शंख दे दें या उससे युद्ध करें ! कृष्ण का सेनापति सात्यकी बिना कारण कृष्ण का यह अपमान सहन नहीं कर पाता और यह संदेश लेकर आए हुए दूत का सिर काटना चाहता हैं किंतु कृष्ण दूत के वध का विरोध करते हैं , क्योंकि वह बिचारा तो अपने स्वामी का संदेश भर लाया है ! वे इस चुनौती को अकेले स्वीकार करते हैं ! बड़े भाई बलराम नाराज होते हैं और सेना तैयार करते हैं किंतु कृष्ण बलराम को मना ही लेते हैं कि सेना युद्ध नहीं करेगी ! उधर पौंड्रक अपनी विशाल सेना लेकर आता है उसके मित्र राजा भी साथ देते हैं अब आप सोचोगे कि कहाँ इतनी बड़ी सेना और कहाँ अकेले कृष्ण ? पर वासुदेव कृष्णतो अपनी बुद्धि के लिए ही जाने जाते हैं । इतनी बड़ी सेनाओं के बीच कृष्ण अपना रथ पौंड्रक के रथ के सामने लाते हैं और निवेदन करते हैं, ...
कंस के वध का पता चलते ही मगध का सम्राट जरासंध आपे से बाहर हो गया। उसका स्वयं पर नियंत्रण ...
-लोकसभा के अंदर एक सवाल पूछा गया था कि क्या श्रीमद्भगवद्गीता को स्कूलों के पाठ्यक्रम में लागू किया जाएगा ? ...
ठोकर लगते ही उज्बेकिस्तान की शाख नोज उल्टे मुँह जमीन पर गिरते-गिरते बची, क्योंकि उसे उसकी सहपाठी याना, जो मास्को ...
गीता उस महाभारत का हिस्सा है जिसका युद्ध 18 दिनों तक चला था और इस युद्ध ने इतिहास रच दिया ...
मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः। भावसंश्रुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ।। भावार्थ : संतोष, सरलता, गम्भीरता, आत्म-संयम एवं जीवन की शुद्धि - ये मन ...
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः। द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै-र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत् ।। भावार्थ : जो झूठी प्रतिष्ठा, मोह तथा कुसंगति से मुक्त हैं, ...
हस्तिनापुर में पाण्डवों के राज्याभिषेक के बाद जब कृष्ण द्वारिका जाने लगे तो धर्मराज युद्धिष्ठर उनके रथ पर सवार हो ...
ग्रह पर हर व्यक्ति जीवन में समृद्ध होने के लिए जीवन प्रबंधन सिखना चाहता है, खुश रहना चाहता है, शांत ...
ब्रज में होली की मस्ती में धुलेंडी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक जगह- जगह चरकुला नृत्य, हल नृत्य, हुक्का ...
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