‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ के नाम से क्या है समस्या?

उच्च तकनीक और विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस वंदे भारत एक्सप्रेस पर पथराव किया जाना विपक्षी दलों के राजनेताओं की कुटिल, दोहरी और पिछड़ी मानसिकता का परिचायक है। राष्ट्र के विकास में बाधा डालने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि राष्ट्र विरोधी मानसिकता वाले अराजक तत्वों का दुस्साहस न बढ़े।

‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ का नाम सुनते ही हमारी आंखों के सामने आती है भारत के उज्ज्वल भविष्य की एक तस्वीर, जिसमें हम भी किसी से कम नहीं हैं, जहां हमारे देश के नागरिक विद्युत गति से अपने गंतव्य स्थान तक आसानी से और सर्व सुविधाओं सहित पंहुच सकते हैं। ऐसी वंदे भारत एक्सप्रेस देश के लिये एक सौगात है। लेकिन ऐसी उज्ज्वल भविष्य की तस्वीर को क्षतिग्रस्त करके किसी को क्या मिलेगा? बीते दिनों पश्चिम बंगाल और विशाखापट्टनम से वंदे भारत एक्सप्रेस पर पथराव की कई खबरें सामने आईं। वंदे भारत एक्सप्रेस को कई स्थानों पर कुछ समाज कंटकों ने क्षतिग्रस्त किया। और इस घटना से केवल एक ही प्रश्न सामने आया कि क्या यह घटनाएं किसी विशेष हेतु से हो रही है? या फिर ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’, इस नाम से समस्या है?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 दिसम्बर 2022 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बॅनर्जी की उपस्थिति में हावड़ा और न्यू जलपाईगुड़ी को जोड़ने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई। लेकिन इसके बाद शायद पश्चिम बंगाल की जनता को ‘वंदे मातरम’ शब्द से जो समस्या थी, वो उभर कर सामने आई। 1 जनवरी और 3 जनवरी 2023 को यानी कि केवल 2 दिनों के अंदर ही भारत के इस भविष्य के सपने को क्षतिग्रस्त करने के लिये ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ पर पथराव किया गया। इस पथराव में कोच सी3 और सी6 के शीशे क्षतिग्रस्त हो गए थे। दार्जिलिंग जिले के फांसीदेवा क्षेत्र के पास ट्रेन के न्यू जलपाईगुड़ी की ओर बढ़ने के दौरान खिड़कियां क्षतिग्रस्त पाई गईं थीं। इससे पहले उद्घाटन के दूसरे ही दिन वंदे भारत एक्सप्रेस पर पथराव की घटना सामने आई थी। यह घटना हावड़ा और न्यू जलपाईगुड़ी के बीच चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस पर मालदा के कुमारगंज स्टेशन के पास हुई थी। पत्थरबाजी में वंदे भारत एक्सप्रेस के कोच नंबर-13 की खिड़की के शीशे में दरार आ गई थी।

इन घटनाओं से प्रश्न यह उठता है, कि नागरिकों के लिये ही, हर प्रकार की सुविधा से लैस इस रेलगाड़ी से किसी को क्या समस्या हो सकती है? जब इस एक्सप्रेस का उद्घाटन किया गया था, तब यह किसी धर्म या जाति विशेष के लिये चलने वाली गाड़ी तो थी नहीं या फिर समुदाय विशेष के लिये इस गाड़ी को नहीं चलाया जा रहा है, तो ऐसे में सरकार द्वारा नागरिकों को दी गई इस भेंट से क्या तकलीफ हो सकती है?

इसका उत्तर इस एक्सप्रेस के नाम में ही मिलता है। हम सभी ने इससे पहले भी देखा है कि, पश्चिम बंगाल में ‘वंदे मातरम्’ ‘वंदे भारत’ जैसे नारों से, शब्दों से नागरिकों को समस्या रही है। ‘वंदे मातरम’ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे एक प्रतिष्ठित बंगाली कवि द्वारा ही लिखा गया है। लेकिन इसका सबसे ज्यादा विरोध बंगाल में ही हुआ है। और इसी के चलते अब ‘वंदे भारत’ शब्द से भी लोगों को समस्या होने लगी है। और इसी समस्या के चलते नागरिकों की सुविधा के लिये बनी सरकारी संपत्ति को आए दिन नष्ट किया जा रहा है।

लेकिन यह सिलसिला पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है।  विशाखापत्तनम के कांचरापलेम के पास वंदे भारत एक्सप्रेस के एक कोच का शीशा क्षतिग्रस्त हो गया। यह घटना हुई 11 जनवरी को हुई। और इसी प्रकार की कुछ घटनाएं छत्तीसगढ़ के आस-पास भी हुई हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि समाज को बांटने की यह एक मानसिकता बन गई है।

वंदे भारत एक्सप्रेस’ की क्या है विशेषताएं

जैसा कि मैंने कहा, वंदे भारत एक्सप्रेस देश के उज्ज्वल भविष्य का एक सपना है, जो धीरे-धीरे साकार होता दिखाई दे रहा है। अब तक 8 वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई जा चुकी है। और आने वाले समय में यह संख्या तेजी से बढ़ने वाली है। यह एक्सप्रेस हर अत्याधुनिक सुविधा से लैस है, और यूरो रेल और विदेशों की प्रख्यात रेल सेवाओं को टक्कर देने वाली एक गाड़ी के तौर पर यह सामने आ रही है। इसलिए इस गाड़ी की विशेषताओं पर एक नजर डालना आवश्यक है।

वंदे भारत एक्सप्रेस 160 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती है। अर्थात आप समय की बचत कर कम समय में अपने गंतव्य स्थान तक पंहुच सकते हैं।

यह ट्रेन हर प्रकार की अत्याधुनिक सुविधा से लैस है। जैसे कि इसमें ऑनबोर्ड इंफोटेंमेंट, सीसीटीवी कैमरे और स्लायडिंग दरवाजे हैं।

इस ट्रेन में बायो टॉयलेट और अत्याधुनिक हायएंड वॉशरूम व्यवस्था है। ये वैसे ही शौचालय हैं, जैसे हवाई जहाज में होते हैं।

पूरी तरह से ऑटोमेटिक दरवाजे और एसी कोच इस ट्रेन की महत्वपूर्ण विशेषता हैं। ट्रेन में 16 पूरी तरह से वातानुकूलित चेयर कारों के कोच हैं, जिनमें दो बैठने के विकल्प दिए गए हैं- इकॉनमी और एग्जीक्यूटिव क्लास। कमाल की विशेषता यह है कि एग्जीक्यूटिव क्लास में रिवॉल्विंग चेयर दी गई है जो 180 डिग्री तक मुड़ सकती है। वंदे भारत एक्सप्रेस में प्रदान की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण सुविधाओं में से एक यह है कि इसके दरवाजे मेट्रो की भांति ही आटोमैटिक खुलते हैं।

वंदे भारत एक्सप्रेस या ट्रेन 18 भारत की पहली इंजन रहित ट्रेन है। अब तक, भारत की ट्रेनों में एक अलग इंजन कोच होता है जबकि ट्रेन 18 में बुलेट या मेट्रो ट्रेन जैसे एकीकृत इंजन हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि भारतीय रेलवे ने अंतर-नगर यात्रा के लिए एक स्व-चालित ट्रेन शुरू की है और वो ट्रेन 18 ही तो है। इसके कारण यात्रा का समय कम हो जाएगा क्योंकि नई तकनीक के कारण तेज गति वृद्धि आसानी से हो सकेगी। कहा जाता है कि वंदे भारत एक्सप्रेस नई दिल्ली से वाराणसी तक की यात्रा को 8 घंटे में कवर करेगी, जो कि मौजूदा शताब्दी एक्सप्रेस 12 से 13 घंटे लेती है।

ट्रेन में अच्छे भोजन की व्यवस्था : सेमी-हाई स्पीड ट्रेन में भोजन टिकट की कीमत में ही शामिल किया गया है। यदि आप नई दिल्ली से वाराणसी की यात्रा कर रहे हैं तो आपको ट्रेन में नाश्ता और दोपहर का भोजन परोसा जाएगा और यदि आप वाराणसी से नई दिल्ली की यात्रा करेंगे तो आपको ट्रेन में चाय नाश्ते और रात के खाने के साथ भोजन परोसा जाएगा।

ऑनबोर्ड वायफाय की व्यवस्था : वंदे भारत एक्सप्रेस उपयोगकर्ताओं के लिए इंटरनेट की सेवाओं का उपयोग करने के लिए ऑनबोर्ड वाई-फाई की सुविधा प्रदान कर रही है। इसके अलावा, मोबाइल फोन या टैबलेट पर कुछ पढ़ने के लिए इंटरनेट का उपयोग कर पाएंगे।

जीपीएस आधारित उन्नत प्रणाली: ट्रेन में जीपीएस आधारित उन्नत यात्री सूचना प्रणाली भी है जो आपको आने वाले स्टेशनों और सूचनाओं के बारे में अपडेट करेगी।

दिव्यांगों के लिये विशेष व्यवस्था : वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन के कुछ डिब्बों में व्हीलचेयर पार्क करने के लिए स्थान होंगे, ताकि दिव्यांगों को किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े और इसे दिव्यांग-अनुकूल बनाया जा सके।

सम्पूर्ण स्वदेशी : इसे चेन्नई की इंट्रीग्रल कोच फैक्ट्री में निर्मित किया गया है और इसकी लागत 100 करोड़ रुपये आई है। ‘मेक इन इंडिया’ की ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस को चेन्नई में 18 महीने में ही निर्मित किया गया है। हलाकि ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अगली ट्रेन के निर्माण में इससे भी कम लागत आएगी। यह भी माना जा रहा है कि अभी तक भारत जो यूरोप से कोई भी ट्रेन का आयात करता था उसमें से 40% का ही खर्च इस ट्रेन को बनाने में आया है।

 

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