सड़क दुर्घटनाओं में भविष्य खोता भारत

 

भारत में हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। कुछ संस्थागत कमियां हो सकती हैं लेकिन अधिकतर मामलों में लोगों की स्वयं की गलतियां भी इस तरह की घटनाओं के प्रमुख कारणों में से एक बनती हैं। जब कोई बहुत बड़ी दुर्घटना होती है तो राष्ट्रीय स्तर पर हो-हल्ला मचता है, पर जल्दी ही हम इन्हें भूल जाते हैं।

आज हमारे देश में सड़क दुर्घटनाएं इतनी आम हो चुकी हैं कि आये दिन न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों में सड़क हादसों में लोगों के मरने व घायल होने की खबरें अब जन सामान्य को संवेदित नहीं करतीं। कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो देश के लोग ऐसे समाचार सुनने के आदी से हो चुके हैं। छोटी-मोटी सड़क दुर्घटनाएं, जिसमें एक-दो लोगों की जान चली गयी हो, उनसे आम लोगों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता। मानवीय दृष्टि से देखें तो पाएंगे कि इन सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की तो असमय जीवन डोर टूटती ही है, जो बच्चे अनाथ, महिलायें विधवा और बूढ़े मां-बाप बेसहारा हो जाते हैं, उनका जीवन भी बर्बाद हो जाता है। साथ ही इन हादसों में घायल होने वाले लोगों के शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व पारिवारिक कष्ट का अंदाजा लगाना भी कोई मुश्किल नहीं है। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इन सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मृत्यु युवाओं (18 से 45 आयुवर्ग) की होती है। यह स्थिति भारत जैसे युवा राष्ट्र के लिये वाकई अत्यंत चिंताजनक है।

चौंकाने वाले हैं सड़क दुर्घटना के आंकड़े

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा संसद में जारी हालिया रिपोर्ट के अनुसार कैलेंडर वर्ष 2021 में कुल 4,22,432 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें 1,73,972 लोगों की जान गयी जबकि 3,84,448 लोग घायल हुए। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में सड़क हादसों की चपेट में आने वालों में 18-45 साल के आयु वर्ग वाले युवा वयस्कों का हिस्सा 69 प्रतिशत था। जबकि 18-60 वर्ष के कामकाजी आयु वर्ग के लोगों की हिस्सेदारी कुल सड़क दुर्घटनाओं में 87.4 प्रतिशत थी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक अधिकांश दुर्घटनाएं शाम 6 बजे से रात 9 बजे के बीच होती हैं जिसमें दोपहिया वाहनों की मौत 44% से अधिक होती है। इनमें ओवरस्पीड के कारण 65 हजार, गलत दिशा में ड्राइविंग के कारण 53 हजार तथा शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण 32 हजार लोग हर साल हादसे का शिकार होते हैं।

सड़क हादसों के उपरोक्त चिंताजनक आंकड़ों पर देश के सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी वाकई काबिलेगौर है- ‘भारत में आज तक के युद्धों में जितने सैनिक शहीद नहीं हुए, उससे ज्यादा लोग सड़कों पर दुर्घटना में एक साल में मारे जाते हैं। पिछले एक दशक में ही भारत में लगभग 14 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए हैं। इन मौतों का दुष्प्रभाव तो मृतकों के परिवार पर पड़ना स्वाभाविक ही है, साथ ही देश की प्रगति भी इन हादसों से प्रभावित होती है।’

अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाते हैं सड़क दुर्घटनाएं गौरतलब है कि जो सड़कें देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देती हैं, उस पर होने वाले हादसे उसको नुकसान भी पहुंचाते हैं। इन हादसों में जान गंवाने वाले लोगों से न केवल अपनों को दुख पहुंचता है, बल्कि देश की जीडीपी को भी तगड़ा झटका लगता है। इसका अनुमान वर्ष 2020 में जारी वर्ल्ड बैंक की उस रिपोर्ट से लगाया जा सकता है जिसमें कहा गया था कि भारत में होने वाले सड़क हादसों की 5.96 लाख करोड़ रुपए लागत उसकी जीडीपी का 3.14 प्रतिशत हिस्सा थी। इसी तरह मोटर पार्ट्स बनाने वाली कंपनी ‘बॉश’ ने साल 2021 में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के चलते होने वाले कुल सामाजिक-आर्थिक नुकसान की राशि 15.71 से 38.81 अरब डॉलर तक की है।

दुर्घटना के कारण व निवारण

यह सच है कि खराब गड्ढायुक्त व अंधेरी सड़कें, सड़कों पर तमाम जगह पर खुले मेनहोल, बारिश के पानी की निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण जल भराव, शीत ऋतु का घना कोहरा तथा सड़कों पर खुलेआम घूमते छुट्टा मवेशी दुर्घटनाओं का बड़ा कारण होते हैं। अनेक लोग ट्रैफिक पुलिस की लापरवाही को भी दोष देते हैं। लेकिन, क्या कभी हमने ईमानदारी से सोचा है कि इन सड़क हादसों के लिए हम खुद कितने दोषी हैं? इस दिशा में हुए देश-दुनिया में हुए अध्ययन बताते हैं कि वाहन की तेज रफ्तार यानी ओवरस्पीड तथा ओवरटेकिंग सड़कों पर जान जाने की सबसे बड़ी वजह होती है। राजमार्गों तथा ‘एक्सप्रेस वे’ पर होने वाले हादसे इसी श्रेणी में गिने जा सकते हैं। कई बार वाहन चालक उन क्षेत्रों में निर्धारित गति सीमा पार कर जाते हैं, जहां ऐसा करना खतरनाक होता है। सड़क हादसों का दूसरा प्रमुख कारण शराब पीकर गाड़ी चलाना यानी ‘ड्रंक एंड ड्राइव’ होता है। दरअसल शराब पीने के बाद दिमाग ठीक से काम न कर पाने के कारण इंसान सही फैसला नहीं ले पाता। शराब का असर विजन पर भी पड़ता है। कई लोगों को सब धुंधला दिखने लगता है। ऐसे में शराब पीकर ड्राइव करना खतरे से खाली नहीं होता।

सड़क पर वाहन चलाते समय चालक की 100% एकाग्रता होनी चाहिए। वाहन चलाते समय मोबाइल फोन पर बात करना या ईयरफोन पर संगीत सुनना सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन सकता है। इसी तरह कई बार युवाओं का सड़क पर मोटर-साइकिल से हाईवे पर रेस, खड़े होकर बाइक चलाना, दो अलग दोपहिया वाहनों पर एक दूसरे का हाथ पकड़कर बराबर-बराबर चलना, ट्रक के पीछे हुक पकड़कर साइकिल दौड़ाना आदि खतरनाक स्टंट भी जानलेवा हादसों का सबब बन जाते हैं। इसी तरह सीट बेल्ट व हेलमेट न पहनना तथा ट्रैफिक रूल्स का पालन न करना भी दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बनता है। अधिकांश लोग जुगाड़ से ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लेते हैं। उन्हें ट्रैफिक संकेतकों का ज्ञान ही नहीं होता। सड़क पर नियमों और विनियमों से अनजान होना या जानबूझकर उनकी अनदेखी करना भी सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण है। देश में सड़क हादसों में ट्रैफिक पुलिस की गैर जिम्मेदारी की भी अहम भूमिका है। कई बार पैसे लेकर नो एंट्री में वाहन घुसा दिये जाते हैं जहां सीट बेल्ट और हेलमेट का नियम सख्ती से लागू नहीं होता। सड़कों पर डग्गामार वाहन आटो टैम्पो दौड़ते रहते हैं जिनमें उचित नम्बर प्लेट भी नहीं होती। इसके अलावा सड़कों पर तेजी से होता अतिक्रमण सड़क को संकरा बना देता है, जिसके चलते जाम की स्थिति तो बनती ही है, सड़क हादसों की संख्या भी बढ़ जाती है। वहीं दूसरी ओर सार्वजनिक परिवहन हादसों की अहम वजह परिवहन निगम में व्याप्त लापरवाही व भ्रष्टाचार बताया जाता है जिसके चलते बड़ी संख्या में जर्जर व डग्गामार बसें आये दिन हादसों को न्योता देती हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए परिवहन नियमों का सख्ती से अनुपालन कराना बेहद जरूरी है। केवल चालान काट कर अर्थदंड लगाना समस्या का समाधान नहीं है। जानकारी के मुताबिक देश में 30 प्रतिशत ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी हैं। खेद का विषय है कि जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं का सिलसिला कायम रहने के बाद भी राजमार्गों पर सीसीटीवी और पुलिस की प्रभावी उपस्थिति नहीं दिखती। ऐसे में देश भर में बसों के रख-रखाव, उनके परिचालन, ड्राइवरों की योग्यता के साथ सीसीटीवी और स्मार्ट पुलिसिंग के मानक कड़ाई से लागू करने की जरूरत है, ताकि हमारी यात्रा सुरक्षित हो सके। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय लोगों के सहयोग से वर्ष 2025 तक सड़क हादसों में 50 प्रतिशत की कमी लाना चाहता है, लेकिन यह काम तभी सम्भव है जब मार्ग दुर्घटनाओं के मूल कारणों का निवारण करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। इस दिशा में ग्रामीण एवं पिछड़े इलाकों में ड्राइवर ट्रेनिंग स्कूल खोलने की कवायद एक सही कदम माना जा सकता है। उलटी दिशा में वाहन चलाने, लेन की परवाह न करने और मनचाहे तरीके से ओवरटेक करने जैसी समस्याओं का समाधान सड़क जागरूकता अभियान चलाकर किया जा सकता है। इन समस्याओं का समाधान तभी होगा जब सुगम यातायात के लिए चौकसी बढ़ायी जाएगी और लापरवाही का परिचय देने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। भारत में सड़क सुरक्षा के उपायों में सुधार लाकर हर साल तीस हजार से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचायी जा सकती है।

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