असम में बाल विवाह पर सरकारी कार्यवाही के बाद बवाल

आखिर Data क्या कहते हैं? आज दुनिया में कम से कम 650 मिलियन महिलाओं की बाल्यावस्था में ही शादी कर दी गई है। उनमें से लगभग एक तिहाई की शादी 15 साल की उम्र से पहले हो गई थी। भारत में, जहां सबसे अधिक संख्या में बाल वधुओं की संख्या होने का आंकड़ा है, वहीं संयुक्त राष्ट्र के अनुमान बताते हैं कि 1.5 मिलियन लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है। वर्तमान में 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियों की शादी हो चुकी है। इस दृष्टि से असम को देखने से पता चलता है की, 2011 की जनगणना के अनुसार, 44 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी गई थी।

वर्तमान में, असम कैबिनेट के फैसले के पीछे का कारण कुछ स्वास्थ्य संकेतकों में राज्य का प्रदर्शन यथार्थ नहीं था, जैसा कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 (NFHS-5) और सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS), और भारत के रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RGI) द्वारा स्टेटिस्टिकल रिपोर्ट के अनुसार, इसके पीछे बाल विवाह को प्रमुख कारण माना गया है। 2019 और 2020 के बीच किए गए NFHS-5 से पता चला है कि असम में 20 से 24 वर्ष की आयु की 31.8 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष की कानूनी उम्र से पहले हो गई है, जो राष्ट्रीय आंकड़े 23.3 प्रतिशत से अधिक है। अधिक चिंताजनक बात यह थी कि सर्वेक्षण की अवधि के दौरान 15 से 19 वर्ष की आयु की 11.7 प्रतिशत विवाहित महिलाएं पहले से ही मां या गर्भवती थीं, जबकि राष्ट्रीय औसत 6.8 प्रतिशत था।

इसका परिणाम मातृ मृत्यु दर (Mother Mortality Rate) और शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) में असम का प्रदर्शन चिंताजनक रहा है। पिछले साल 22 सितंबर को जारी 2020 की एस.आर.एस रिपोर्ट के अनुसार, असम का मातृ मृत्यु दर प्रति 1 लाख जीवित जन्मों पर 195 मौतों का है जो देश में सबसे अधिक है। राष्ट्रीय औसत प्रति 1 लाख जीवित जन्मों पर 97 मौतें हैं। राज्य का शिशु मृत्यु दर 28 के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले प्रति 1 हजार जीवित जन्मों पर 36 मौतें हैं।

मुख्यमंत्री सरमा कांग्रेस शासन में 2006 से 2015 तक, और बीजेपी शासन में 2016 से 2021 तक सबसे लंबे समय तक सेवारत स्वास्थ्य मंत्रियों में से एक रहे हैं, और उनकी लोकप्रियता असम में स्वास्थ्य सेवा में सुधार में उनके योगदान के कारण है। फिर भी, वह राज्य में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को पर्याप्त रूप से नीचे नहीं ला सके। सरमा कहते हैं, “जब तक लोग अपनी मानसिकता और दृष्टिकोण नहीं बदलते हैं, तब तक कोई भी स्वास्थ्य ढांचा मदद नहीं कर सकता है।”

एक और वजह है कि सरमा सरकार बाल विवाह पर अंकुश लगाना चाहती है। NFHS-5 ने खुलासा किया कि असम की कुल प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट – TFR) “प्रति महिला पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या” 1.9 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 2 से कम है।
लेकिन मुस्लिम महिलाओं के बीच टी.एफ.आर 2.4 है, जो देश में सबसे ज्यादा है, हालांकि राज्य में मुसलमानों के बीच टी.एफ.आर 2005-06 में 3.6 के उच्चतम स्तर से काफी कम हो गया है।

असम के लोगों में बांग्लादेश से अवैध आगमन और मुसलमानों के बीच उच्च प्रजनन दर के कारण राज्य में जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) के संभावित परिवर्तन के बारे में भारी चिंता रही है। 1971 और 1991 के बीच, असम में मुस्लिम 77.42 प्रतिशत की दर से बढ़े, जबकि हिंदू 41.89 प्रतिशत की दर से बढ़े। इस अवधि के दौरान मुस्लिम विकास दर राष्ट्रीय औसत 55.04 प्रतिशत से अधिक थी, वहीं, हिंदू विकास दर राष्ट्रीय औसत 48.38 प्रतिशत से कम है।

जनसांख्यिकीय परिवर्तन के डर को दो निकटवर्ती जिलों “धुबरी और कोकराझार” में जनसंख्या वृद्धि दर से समझाया जा सकता है। धुबरी में, जहां लगभग 80 प्रतिशत निवासी मुस्लिम हैं, 2001 और 2011 के बीच दश वर्ष की विकास दर 24 प्रतिशत थी, जब की पड़ोसी कोकराझार में, जहां ज्यादातर बोडो जनजाति बहुल है, यह 5 प्रतिशत है।

एनएफएचएस-5 ने दिखाया कि मुस्लिम बहुल धुबरी में 20 से 24 साल के बीच की सभी महिलाओं में से 50.8 फीसदी की शादी 18 साल की होने से पहले ही हो गई थी। दक्षिण सलमारा, एक अन्य मुस्लिम बहुल जिला में 44.7 फीसदी के साथ बाल विवाह की दूसरी सबसे बड़ी संख्या दर्ज की गई। इसकी तुलना दीमा हसाओ के आदिवासी बहुल जिले से करें, जहां यह संख्या महज 16.5 फीसदी है। जब NFHS-5 सर्वेक्षण किया जा रहा था, तब 15 से 19 वर्ष की आयु की 22.4 प्रतिशत विवाहित महिलाएँ पहले से ही माँ या गर्भवती थीं, जो राज्य में सबसे अधिक थी।

सरकार का दावा है कि कार्रवाई न्यूट्रल और पंथनिरपेक्ष रही है, और किसी विशेष समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया है। दरअसल, बिश्वनाथ जिले में, जहां सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां हुई हैं, वहां 80 फीसदी से ज्यादा आबादी हिंदू है. बोरपेटा, एक अन्य मुस्लिम बहुल जिला, धुबरी के बाद दूसरी सबसे अधिक गिरफ्तारियाँ हुई हैं।

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