बीते कुछ वर्षों से ‘मोदी को सत्ता से हटाना है’— नारा विपक्षी दलों के लबों पर है। चाहे स्वतंत्र भारत में 55 वर्षों तक शासन कर चुकी कांग्रेस हो, इससे टूटकर बनी तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकंपा) हो या फिर समाजवादी पार्टी (सपा), जनता दल यूनाइटेड (जदयू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक) इत्यादि— यह सभी कैसे भी सत्तारुढ़ दल भाजपा को पराजित करना चाहते है। परंतु इसके बाद वे क्या करेंगे? मोदी सरकार की किन नीतियों को पलटेंगे, उसके लिए उनकी क्या वैकल्पिक योजना होगी और यह सब किस वैचारिक अधिष्ठान के अनुरूप होगा— इसका खुलासा अभी तक नहीं हुआ है। यक्ष प्रश्न है कि मोदी सरकार को बीते 9 वर्षों में ऐसा क्या करना चाहिए था, जो उन्होंने अबतक नहीं किया? या फिर मोदी सरकार ने ऐसा क्या कर दिया है, जिसे ‘पूर्वस्थिति में लौटाना’ विपक्षी दलों के लिए अत्यंत आवश्यक हो गया है?
यह अकाट्य सत्य है कि मई 2014 के बाद देश आर्थिक, सामरिक, कूटनीतिक और सामाजिक मोर्चों पर वांछनीय परिवर्तन के साथ सांस्कृतिक पुनरुद्धार को अनुभव कर रहा है। यदि मोदी सरकार की उपलब्धियों की बात करें, तो उसका दावा है कि उसने ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ (पीएम-जेडीवाई) के अंतर्गत अबतक 48 करोड़ से अधिक लोगों के निशुल्क बैंक खाते खोले है, जिसमें उसने बिना किसी मजहबी-जातीय भेदभाव के विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से लाभार्थियों के खाते में एक लाख 87 हजार करोड़ रुपये से अधिक हस्तांतरित किए है। इसी प्रकार प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत, 21 फरवरी 2023 तक मोदी सरकार ने देश के 9 करोड़ पात्रों को मुफ्त एलपीजी गैस कनेक्शन दिया है। भारत प्रधानमंत्री जनारोग्य योजना के अंतर्गत, साढ़े 22 करोड़ से अधिक मुफ्त पांच लाख रुपये के वार्षिक बीमा संबंधित आयुष्मान कार्ड जारी कर चुकी है, जिसमें इस वर्ष 2 फरवरी तक 51,749 करोड़ रुपये से साढ़े चार करोड़ पात्र अस्पताल में उपचार लाभ ले चुके चुके है। पीएम-किसान सम्मान निधि योजना से औसतन 10 करोड़ किसानों को 6000 रुपये वार्षिक दे रही है। वैश्विक महामारी कोरोना कालखंड में मोदी सरकार निशुल्क टीकाकरण के साथ पिछले ढाई वर्षों से देश के 80 करोड़ों लोगों को मुफ्त अनाज दे रही है। इस प्रकार की एक लंबी सूची है।
यह आंकड़े कोई छलावा नहीं, अपितु कई विश्वसनीय वैश्विक संस्थाओं ने इन जनकल्याणकारी योजनाओं के धरातली क्रियान्वयन के आधार पर भारत में गरीबी घटने का खुलासा किया है। विश्व बैंक की नीतिगत अनुसंधान कार्यसमिति के अनुसार, भारत में वर्ष 2011 से 2019 के बीच अत्यंत गरीबी दर में 12.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। वर्ष 2011 में अत्यंत गरीबी 22.5 प्रतिशत थी, जो साल 2019 में 10.2 प्रतिशत हो गई। नगरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यंत गरीबी तेजी से घटी है।
विगत नौ वर्षों में जम्मू-कश्मीर और पंजाब में कुछ अपवादों को छोड़कर शेष भारत में कहीं भी कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ है। इससे लगभग डेढ़ दशक पहले भारत, पाकिस्तान प्रायोजित 2001 के संसद आतंकी हमले और 2008 के भीषण 26/11 सहित 13 बड़े जिहादी हमलों का साक्षी बन चुका था। अगस्त 2019 में धारा 370-35ए के संवैधानिक क्षरण के बाद सीमापार से घुसपैठ और आतंकवादी घटनाओं में भी व्यापक कमी आई है। नक्सली घटनाओं में भी 77 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। पाकिस्तान-चीन से सटी सीमा पर किसी भी दुस्साहस का उसी की भाषा में उचित प्रतिकार किया जा रहा है।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आधार पर आज भारत दुनिया की 5वीं, तो क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) के संदर्भ में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी आर्थिक नीतियों के कारण भारत का निर्यात तुलनात्मक रूप से बढ़ा है। देश किस प्रकार प्रगति कर रहा है, यह राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार से स्पष्ट होता है। वर्ष 2014 तक देश में राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 91,287 किलोमीटर थी, जिसे मोदी सरकार ने नवंबर 2022 तक 1,44,634 किलोमीटर कर दिया— अर्थात् 53,347 किलोमीटर की वृद्धि।
प्रतिष्ठित ‘शंघाई सहयोग संगठन’ के साथ भारत, वैश्विक जीडीपी में 85 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले शक्तिशाली आर्थिक समूह ‘जी-20’ की अध्यक्षता कर रहा है। भारतीय विदेश नीति में कितना बदलाव आया है, यह इस बात से स्पष्ट है कि अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश में भारत ने ऐतिहासिक विमान सौदे से 10 लाख रोजगार का सृजन किया है। स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इसकी पुष्टि कर चुके है। वैश्विक प्रतिबंधों के बीच भारत अपनी मुखर विदेश नीति के बल पर रूस से अपनी आवश्यकता के अनुरूप ईंधन का आयात कर रहा है, तो फ्रांस-ब्रिटेन सहित रूस-विरोधी यूरोपीय शक्तियों से अपने संबंध कमजोर नहीं होने दे रहा है।
इस पृष्ठभूमि में क्या विपक्षी दल, सत्ता में आने पर इन परिवर्तनों को पुरानी स्थिति में लौटाने का साहस कर सकते है? कांग्रेस अपने बिना किसी भी विरोधी गठबंधन को विफल, सत्ता का प्रमुख दावेदार, तो कुछ विपक्षी दलों को ‘दोगला’ मानती है। क्या ऐसे में शेष विरोधी दल, कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करेंगे? गत 18 फरवरी को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वामपंथियों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में विपक्षी एकता पर बल देते हुए नीतीश ने कहा था, “मैं चाहता हूं कि आप लोग (कांग्रेस) जल्द फैसला लें। यदि मेरा सुझाव लेते हैं और एक साथ लड़ते हैं, तो बीजेपी 100 सीटों से नीचे चले जाएगी।” तब उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी कहा, “कांग्रेस को चाहिए कि क्षेत्रीय दल को ड्राइविंग सीट पर बिठाए।”
यह दोनों उपरोक्त वक्तव्य इसलिए भी रोचक है, क्योंकि नीतीश-तेजस्वी भी उस विपक्षी समूह (ममता, अखिलेश, मायावती सहित) का हिस्सा थे, जिसने कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समापन समारोह में आमंत्रण भेजे जाने के बाद भी दूरी बनाई थी। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति घृणा, परिवारवाद, मजहबी-जातिगत आधारित विभाजनकारी राजनीति और भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई— इन विरोधी दलों को आपस में जोड़े हुए है। क्या केवल नकारात्मकता के बल पर भाजपा को पराजित करना संभव है?
– बलबीर पुंज