क्या चंद्रचूड़ भी जॉर्ज सोरोस के साथ खड़े हो गए हैं?

चंद्रचूड़ के एक कदम ने ऐसा ही कुछ संकेत दे दिया – सबसे पहली बात जो मैं पहले भी कह चुका हूँ कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर अडानी के खिलाफ याचिकाएं सुनकर CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने भारी गलती की है क्यूंकि इस तरह वह हिंडनबर्ग द्वारा हमारे शेयर बाजार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अस्थिर करने की साजिश को सही मान रहे हैं जबकि विगत में शेयर बाजार में बड़ी बड़ी गिरावटें देखी गई हैं मगर अदालत ने कभी बाजार में ऐसे टांग नहीं घुसाई और घुसाई तो उससे केवल चोरों को संरक्षण मिला.

इसके आगे की Chronology देखिये और समझिये –

13 फरवरी को जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पार्डीवाला की पीठ की निगरानी समिति के गठन के सुझाव पर सरकार ने कहा था कि उसे ऐसी समिति से कोई आपत्ति नहीं है और वह समिति के लिए विशेषज्ञों के नाम, समिति के काम और सेवा शर्तों बारे में अपना नोट सुप्रीम कोर्ट को देगी जिस पर अदालत ने कोई एतराज नहीं जताया था.

फिर 16 फरवरी को दुनियाभर के देशों की सरकारों को अस्थिर करने वाला अमेरिकी “गुंडा” जॉर्ज सोरोस म्यूनिख (जर्मनी) में नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगलते हुए कहता है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर अडानी के लिए मोदी को Investors और अपनी पार्लियामेंट को जवाब देना होगा और 2024 में भारत में फिर से लोकतंत्र स्थापित होगा और ऐसा करके उसने विपक्ष की भाषा बोल कर अपने समेत सभी विपक्षी दलों को भी नंगा कर दिया.

इसके अगले दिन की सुनवाई में जो विशेषज्ञों की समिति के लिए सरकार से नाम चंद्रचूड़ की बेंच ने मांगे थे, उन्हें उनकी बेंच ने मानने से मना कर दिया और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर अडानी के शेयरों की गिरावट पर खुद ही समिति बनाने की घोषणा कर दी और कहा कि सरकार के सुझाए गए नामों को मानने से पारदर्शिता नहीं होगी क्योंकि कोर्ट इसे दूसरे पक्ष को साझा नहीं कर पायेगा – दूसरा पक्ष इसे सरकार की ही समिति समझेगा चाहे सरकार के सारे नाम न भी लिए जाएं.

अदालत का यह निर्णय कोई समझदारी से लिया गया निर्णय नहीं है, इससे यह संदेश जाता है कि क्योंकि सोरोस ने मोदी को घेरने के लिए एक दिन पहले विषवमन किया तो उसके गुप्त निर्देशों पर चलते हुए अदालत ने भी मोदी सरकार की समिति ख़ारिज कर अपनी समिति बना कर मोदी को घेरने की कोशिश की है.

अदालत को, सरकार के बंद लिफाफे में सुझाए गए नामों को, दूसरे पक्ष से साझा करने से कौन रोकता है और यदि आप कहें कि सरकार के सुझाए नामों को स्वीकार करने के बाद भी यह अदालत द्वारा गठित समिति ही होगी, तब भी यदि दूसरा पक्ष नहीं मानता तो आप किस हैसियत से सुनवाई कर रहे हैं.

अपनी समिति गठित करके क्या सुप्रीम कोर्ट यह गारंटी दे सकता है कि निवेशकों को भविष्य में अब कभी कोई नुकसान नहीं होगा – यह गंभीर चिंता का विषय है कि वर्तमान निगरानी तंत्र की मजबूती के बारे में SEBI और सरकार के बार बार कहने के बावजूद भी आप अपनी समिति बना कर हिंडनबर्ग जैसी ब्लैक लिस्टेड कंपनी की रिपोर्ट को सही मान कर अपने देश की कंपनी को बर्बाद करने के षड़यंत्र को हवा दे रहे हैं.

इससे हमारी SEBI जैसी संस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है जिससे विदेशी निवेश बाधित हो सकता है – क्या इसके लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदारी लेगा?

क्या अदालत भी सोरोस के साथ खड़ी हो गई मोदी को 2024 में हराने के लिए, कल की सुनवाई से ऐसा ही संदेश गया है और यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है.

– सुभाष चन्द्र

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