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क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?

क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?

by हिंदी विवेक
in विशेष
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डॉ. कुमार विश्वास , आप सब इनसे तो परिचित ही होंगे? सो,आजकल ये अपने मानसिक तनाव की बड़ी भारी खीझ से जूझ रहे हैं। हालांकि कविताओं के मंचों पर जिनमे देशी- विदेशी सारे मुशायरे शामिल होते थे। और होते हैं। उन सबमें इन्होंने बहुत बवाल काटा। आप मानें या न मानें , मंचों के संचालन और मार्केटिंग में ये सशक्त उपस्थिति दर्ज़ करवाते हैं। राजनैतिक स्वार्थपूर्ति के लिए अन्ना आन्दोलन से लेकर आम आदमी पार्टी हर जगह रहे।‌ और आगे चलकर बड़ी ही बेइज्जती पूर्वक अरविन्द केजरीवाल ने इन्हें आप से बाहर का रास्ता दिखला दिया। उसके बाद से ये राजनीति में छाने के लिए अर्धविक्षिप्त से नज़र आने लगे। इन्होंने बैकडोर से भाजपा में इण्ट्री के बहुत प्रयास किए भी । और समय समय पर ऐसी पुरजोर कोशिश करते ही रहते हैं।

लेकिन इनके स्वभाव से भलीभांति परिचित होने के कारण भाजपा ने इन्हें कोई तवज्जो ही नहीं दी।फिर कभी समाजवादी पार्टी – मुलायम अखिलेश गुणगान में ये कसीदे पढ़ते नज़र आए। लेकिन अखिलेश ने भी न राज्यसभा भेजा और न कोई तवज्जो दी। स्वयं को जनकवि – युगकवि के रूप में बाजार में प्रस्तुत करने में अव्वल ही रहते हैं। जबकि आशिकों की भीड़ की तालियों के अलावा इनका कोई रचनात्मक अवदान ऐसा देखने को नहीं मिला है, जिसने जनमानस के जीवन में कोई परिवर्तन लाया हो। बल्कि कुमार विश्वास सत्ता की कुर्सी के लिए जद्दोजहद करते हुए अक्सर नजरआते हैं। लेकिन तमाम राजनैतिक शिगूफों के बावजूद इनके हिस्से ‘ भाग न पहुंचे लब्धे शून्य’ ही आता है।

बहरहाल,श्रीरामचरितमानस व प्रभु का नाम लेकर बाजार में उतर गए‌ । श्री राम स्तुति का यह प्रयास इनका सराहनीय है। लेकिन इनका स्वार्थ व अहंकार भी इनके सिर चढ़कर बोलने लगा। और फिर क्या था – विद्वता के अहंकार में ये स्वयं को ईश्वर समझने लगे।महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ स्वराज संस्थान संचालनालय उज्जैन ने – इन्हें ‘अपने – अपने राम’ और ‘शंकर के राम : राम के शंकर’ के लिए आमंत्रित किया। फिर महाशय ने श्रीराम कथा के पावन मंच से ‘विषवमन’ करना चालू कर दिया। अपनी वाचालता में महाशय इतने उन्मत्त हुए कि – अपनी खीझ और मानसिक विक्षिप्तता का परिचय देते हुए इन्होंने – संघ व स्वयंसेवकों को अनपढ़ बताने लगे। इनका अति आत्मविश्वास इतने उफान पर था कि – जैसे इन्होंने ही समूचे ज्ञान व विद्वता की ठेकेदारी ले ली है। और डॉ. कुमार विश्वास जो प्रमाण पत्र बाँटेंगे वही माना जाएगा। लेकिन शर्म में डूबकर मर जाने वाली बात ये भी है कि – जब कुमार विश्वास उस पवित्र मंच से विष वमन कर रहे थे। तब वहाँ कार्यक्रम के नीति नियंता माने जाने वाले — म.प्र. की शिवराज सरकार के मंत्री डॉ. मोहन यादव, सांसद अनिल फिरोजिया व विधायक पारस जैन, महापौर मुकेश टटवाल सहित तमाम मूर्धन्य विद्वान/ विदुुषी समझे जाने वाले गणमान्य जन तालियां पीट रहे थे।

सम्भव है सबको अपनी अपनी मार्केटिंग चमकानी है। अन्यथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शरणस्थली में जाकर अभयदान माँगने वाले ये तमाम नेतागण/ आयोजक – संयोजक ; उसी वक्त – डॉ.कुमार विश्वास की अमर्यादित – अवांछनीय टिप्पणी का प्रतिकार करते नज़र आते । लेकिन किसी में इतना साहस नहीं रहा। अक्सर सत्ता में बैठकर अपने को महान समझने की गफलत पालने वालों को वैचारिक निष्ठा और प्रतिबद्धता याद नहीं रहती है। अन्यथा स्थित कुछ और ही होती। यदि वैचारिक निष्ठा को धता बताने वालों को देखना हो तो – भाजपा शासित राज्यों के हुक्मरानों की ‘कथनी – करनी’ को देखा जा सकता है। मध्यप्रदेश में ही भारत भवन से लेकर कला- संस्कृति, शोध पीठों, विश्वविद्यालयों से समय – समय पर ऐसे उदाहरण देखने को मिलते रहते हैं। जहाँ ये भाजपाई और उनके मन्त्री संतरी – इनके मुंह पर ही तमाचा मारते रहते हैं। और ये तमाम नेतागण ताली पीटते रह जाते हैं। कुमार विश्वास का प्रकरण कोई नया नहीं है। अभी, आगे भी न जाने ऐसे कितने वाकिये होते रहेंगे ‌‌। और भाजपा सरकार का सरकारी तन्त्र बेहिसाब रुपिया बहाकर – अपने विचार परिवार को बुरा- भला कहलवाते रहेंगे।

बहरहाल, अब आते हैं डॉ. कुमार विश्वास के स्वार्थीपन पर। इनका रूख अक्सर सत्ता से स्वार्थ साधने की धारा में ही रहता है‌ ।ऊपर से ये अपने ‘निस्पक्ष’ होने का स्वांग रचते रहते हैं। लेकिन राजनैतिक स्वार्थपूर्ति करने में कभी भी पीछे नहीं हटते हैं। सो, कभी स्व. मुलायम सिंह के जन्मदिन पर कसीदे पढ़ते हुए अपनी राजनैतिक सम्भावना तलाने का प्रयास करते नज़र आते हैं‌ । लेकिन यहां भी मामला सिफर नजर आता है‌‌ । इनके लाख जतन करने के बावजूद भी समाजवादी पार्टी से इन्हें राज्य सभा की टिकट नहीं मिल पाई । और ऊपर से उत्तर प्रदेश में इनके चहेते अखिलेश भी पानी – पानी हो गए। बहरहाल, सत्ता किसी की भी हो – स्वार्थ पूर्ति कुमार विश्वास की ही होनी चाहिए। राजस्थान की कांग्रेस सरकार में डॉ. कुमार विश्वास की पत्नी राजस्थान लोकसेवा आयोग की सदस्य भी बनाई गईं हैं। अतएव इनकी निष्ठाओं और निष्पक्षताओं का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। डॉ. कुमार विश्वास को बधाई दीजिए कि – उन्होंने अपने नैरेटिव को आपके मंच से – आपके रुपये ऐंठते हुए खेल दिया। और आप ताली पीटते रहे। सम्भव है आगे भी द काश्मीर फाईल्स के डायलॉग की भाँति – ‘सरकार भले उनकी है- सिस्टम तो हमारा है।’ कहते हुए ऐसे अनेकानेक प्रकरण सामने आते रहें। और आप दर्शक दीर्घा में आयोजक- संयोजक की भूमिका में ताली बजाते हुए – अपमानित होते रहें।

– कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

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