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पूर्वांचल राज्य की स्थापना का औचित्य

पूर्वांचल राज्य की स्थापना का औचित्य

by डॉ. श्रीकांत तिवारी
in जनवरी २०१६, सामाजिक
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                        संभावना पर ही विकास का पहिया चलता है।

                        राज्य की स्थापना से पलायन भी खत्म होगा।

देश के स्वतंत्र होने के पूर्व से ही उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र व बिहार के पश्चिमी सात जिलों के साथ नाइंसाफी होती रही है। वैसे तो यह इलाका पूरी तरह से कृषि के मामले में आत्मनिर्भर रहा है तथा उसी तरह स्वाभिमानी भी रहा है जिसके चलते देश के तत्कालीन प्रशासक की तानाशाही को इस क्षेत्र के लोगों ने कभी स्वीकार नहीं किया जिसका नतीजा रहा कि हमेशा इस क्षेत्र में सरकार और यहां के लोगों में संघर्ष होता रहा जिसके कारण इस क्षेत्र में विकास को स्थान नहीं मिला।

उत्तर प्रदेश के २१ जिले व बिहार का पश्चिमी भाग जिसके अंतर्गत ६ जिले जो उ.प्र. से सटे हुए हैं, वहां किसी भी प्रकार का कल कारखाना नहीं लगा जिससे इनके पिछड़ने का जो क्रम लगा वही वर्तमान में भी जारी है। प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र व बिहार के इस इलाके की भाषा भोजपुरी का सम्मिश्रण है इसलिये यहां से पूर्वांचल प्रदेश (भोजपुर प्रदेश) की अलग मांग उठने लगी जो आज भी बदस्तूर जारी है। नेपाल की तराई के गोण्ड़ा, बलरामपुर, बस्ती, बहराइच, संत कबीर नगर, फैजाबाद, गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरीया, आजमगढ, जीनपुर, मऊ, बलिया, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, कौशाम्बी, प्रतापगढ, सुल्तानपुर, भदोही (ज्ञानपुर) वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर सभेत २१ जिले व बिहार के सासाराम, शेहताश, छपरा, सीवान व गोपाल गंज समेत सात जिलों को मिलाकर पूर्वांचल प्रदेश (भोजपुर प्रदेश) की स्थापना की मांग उठने लगी जो अभी भी जारी है। ब्रिटिश काल से ही यहां पर किसी प्रकार का रोजगार नहीं रहा जिसके कारण यहां के लोगों का पलायन स्वतंत्रता के पूर्व बंगाल व असम की ओर होता रहा किन्तु पिछले चार-पांच दशक से बंगाल में रोजगार की संभावनाएं क्षीण होने के कारण इस इलाके के लोगों का रुख  आधुनिक मुंबई व देश की राजधानी दिल्ली की ओर होने लगा।

पूर्वांचल के करोंड़ो लोगों का पलायन महाराष्ट्र व गुजरात में हो गया और उस क्षेत्र का गजब का विकास भी हुआ। पूर्वांचल में किसी भी प्रकार की प्रतिभा की कमी नहीं है इसके कारण क्षेत्रीय लोगों ने पूर्वांचल राज्य की स्थापना की  मांग उठानी शुरू की। यदि मामूली क्षेत्रफल व एक दो सांसद व कुछ विद्यालयों के इलाके को अलग राज्य का दर्जा मिल सकता है तो सात करोड़ की आबादी व लगभग तीन दर्जन सांसद व सैंकड़ों विद्यालय वाले इलाके को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिल सकता? उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जिले पूर्वांचल के मुकाबले काफी विकसित हैं। बस शिक्षा के क्षेत्र में ही वाराणसी के काशी हिन्दू विश्व विद्यालय और इलाहबाद के कैम्ब्रिज इलाहबाद विश्व विद्यालय ने क्षेत्रीय लोगों के बीच शिक्षा का ऐसा अलख जगाया कि यहां के पढ़े विद्यार्थी हर क्षेत्र में छाये हुए हैं। आज यही कारण है कि प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षाविद, डॉक्टर, इंजीनियर, राजनेताओं की एक लम्बी फेहरिस्त इस क्षेत्र में है। यही नहीं देश का ऐसा कोई भी कोना नहीं है जहां पर यहां के लोगों का बोलबाला न हो। इस क्षेत्र में लोगों का अहिंसक होना, लड़ाकू न होना ही यहां के पिछडेपन व अलग राज्य के नहीं होने का प्रमुख कारण रहा है अन्यथा स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद से ही महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, वृहद बंगाल से कटकर असम, बंगाल, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय और पूर्वोत्तर में आधा दर्जन राज्यों ने विकास की डगर थाम ली जहां कहीं एक तो कहीं कुछ ही ज्यादा सांसद हैं। पूर्वांचल और ने देश को प्रथम प्रधान मंत्री के साथ ही वर्तमान प्रधान मंत्री भी दिया है किन्तु विकास तथा उद्योग के मामले में यह उड़ीसा जैसे पिछडे इलाके से भी पिछड़ा है।

एक समय था जबकि देश का चीनी उत्पादन पूर्वांचल पर ही टिका था। मात्र एक जिले देवरिया में चौदह चीनी मिलें थीं, इससे सटे गोरखपुर, बस्ती, बहराइच, गोण्डा आदि मेंचीनी मिलों की भरभार थी। कारण क्षेत्र में गन्ने का भरपूर उत्पादन होता था। तराई क्षेत्र में तो एक बार गन्ना बोया तो तीन-तीन साल तक फसल देता रहा है। क्षेत्र में भरपूर कच्चा माल व श्रम होने के कारण इन पर आधारित बिस्कुट, टाफी, लेमन ज्युस आदि किसी प्रकार का उद्योग धंधा नहीं लगा जबकि ऐसे ऐसे क्षेत्र में इनके कल कारखाने लगे जहां कच्चा माल व सस्ता श्रम तक उपलब्ध नहीं है। पूर्वांचल में ही स्थित गाजीपुर में ब्रिटिश काल में ही स्थापित अफिम कारखाना है किन्तु यहां एक भी दवा आदि का कारखाना नहीं है। जबकि यहां उत्पादित माल को दूसरे स्थान पर ले जाकर उससे अन्य कई प्रकार की चीजें उत्पादित की जा रही हैं। इस क्षेत्र में रेल लाइनें एकहरी होने के कारण लोगों को आने जाने व सामानों को इधर उधर पहुंचाने में काफी विलम्ब होता है। पूर्वांचल में वाराणसी से भटनी एक ऐसा इलाका है जहां रेल लाइन  का दोहरीकरण न होने के कारण एक्सप्रेस ट्रेनों को १६० किलोमिटर का क्षेत्र मापने में जहां एक घण्टे से डेढ घंटा लगना चाहिए वहीं पांच से ६ घंटा लग जाते हैं। यदि कल कारखाना नहीं भी हो तो भी व्यापारी व अन्य लोग दिन में जब कई बार आयेंगे जायेंगे तो विकास होगा ही। कुछ दशक में उत्तर प्रदेश को काटकर उत्तराखंड़, बिहार को काटकर झारखंड व एक वर्ष पूर्व आंध्र प्रदेश को काटकर तेलंगना बना है। वह सिर्फ इसलिए कि बहुत बड़ा क्षेत्र होने के कारण यह इलाके विकास के मामले में काफी पीछे छूटते चले गए हैं। वैसे देखा भी गया है कि जब से नए राज्य बने वहां भी विकास की गति ने अच्छी रफ्तार पकड़ी। महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड़, झारखंड़ इसके प्रबल उदाहरण हैं। अब समय आ गया है जब वाराणसी को केन्द्र मानकर पूर्वांचल राज्य (भोजपुर प्रदेश) की स्थापना होनी ही चाहिए ताकि क्षेत्रीय लोगों को न्याय मिल सके। जब पूर्वांचल के लोग देश ही नहीं विदेश में भी अपनी योग्यता का डंका बजा सकते हैं तब अपने पूर्वांचल राज्य की स्थापना कर विजय पताका क्यों नहीं फहरा सकते? कहा जाता है कि जब तक बच्चा रोता नहीं है तब तक मां भी बच्चे को सोता समझकर दूध नहीं पिलाती। उसी तरह सरकार भी केवल आंदोलन की भाषा ही समझती है। समय रहते क्षेत्रीय लोगों की मनोकामना की इज्जत करते हुए पूर्वांचल राज्य की स्थापना हो जाना समय की मांग है। पूर्वांचल में हर प्रकार के विकास की पूरी संभावना है जो एक विकसित राज्य में होनी चाहिए। क्षेत्र में राज्य बनाने को लेकर पूंजी नहीं बस एक संकल्प की आवश्यकता है।

 

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