रोगों के बदलते मापदंड

खानपान और रहन सहन की अनियमितताओं के कारण आज विश्वभर में जीवन शैली से जुड़े रोगों ने अधिक से अधिक लोगों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। लोगों को इन बीमारियों से बचाने और उनके स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

दुनिया भर में 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1948 में विश्व के अनेक देशों ने एकजुट होकर स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, विश्व को सुरक्षित रखने तथा जरूरतमंद लोगों की सेवा करने के उद्देश्य से विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की थी जिससे विश्व के सभी कोनों में प्रत्येक व्यक्ति के उत्तम स्वास्थ्य और उनके कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके। उत्तम स्वास्थ्य मानव का मूल अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य से सम्बंधित सभी सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए जिसकी उन्हें जब और जहां आवश्यकता हो, वह भी बिना किसी आर्थिक भार के। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व की लगभग 30% आबादी आज भी आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है। दुनिया के लगभग 2 अरब लोग अपनी क्षमता के विपरीत स्वास्थ्य पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ से दबे हुए हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा के अंतर्गत उत्तम आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने, आर्थिक मदद पहुंचाने, लोगों की गरीबी दूर करने, परिवार और समुदाय के कल्याण को बढ़ावा देने, महामारी जैसी स्वास्थ्य आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करने जैसी गतिविधियां हम सभी के लिए स्वास्थ्य की दिशा में आगे बढ़ने में मददगार साबित होंगी। इसके लिए हमें जनसाधारण और समुदाय के ऐसे लोगों की जरूरत है जिन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हों, ताकि वे अपने साथ-साथ परिवार के लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल कर सकें। इनके अलावा हमें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने वाले प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रति प्रतिबद्ध नीति निर्माताओं की भी जरूरत है।

जीवन शैली से जुड़े रोग

आधुनिक दौर में हमारे खान-पान और रहन-सहन में बहुत बड़ा बदलाव आ गया है। जीवन शैली से जुड़े रोग मुख्य रूप से लोगों की रोजमर्रा की आदतों से जुड़े होते हैं। दैनिक आदतें उपयुक्त नहीं होने की स्थिति में व्यक्ति का जीवन दिन-ब-दिन निष्क्रिय हो जाता है, जिसके कारण तरह-तरह के क्रॉनिक गैरसंचारी रोग पैदा हो जाते हैं, जो जानलेवा भी साबित हो सकते हैं। ऐसे ही रोगों को जीवन शैली से जुड़े रोगों यानी लाइफस्टाइल डिसीजेज की श्रेणी में रखा गया है। जीवन शैली से जुड़े रोगों में मुख्य रूप से हृदय रोग, हाइपरटेंशन यानी अतिरक्तदाब, मोटापा यानी ओबेसिटी, टाइप 2 मधुमेह, दौरा पड़ना (स्ट्रोक), क्रॉनिक अवरोधी फेफड़ा रोग यानी सीओपीडी, अस्थमा, ऑस्टियोपोरोसिस यानी अस्थिभंगुरता, जैसी स्वास्थ्य समस्याएं शामिल हैं।

चयापचय से जुड़े कारक

हमारे शरीर में चयापचय यानी मेटाबॉलिज्म में आए बदलावों के कारण भी क्रॉनिक गैरसंचारी रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इन स्थितियों में रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर के बढ़ने, शरीर का भार बढ़ने यानी मोटापा, हाइपरग्लाइसीमिया यानी रक्त में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक बढ़ने और हाइपरलिपिडिमिया यानी रक्त में वसा का स्तर बहुत अधिक होने जैसी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो जाती हैं। दुनिया में लगभग 19% मौतों के पीछे अतिरक्तदाब यानी हाई ब्लड प्रेशर का हाथ होता है। उसके बाद ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने, शरीर भार बढ़ने और मोटापा जैसे कारक मौतों के लिए जिम्मेदार होते हैं।

सम्भव है जीवन शैली से जुड़े रोगों से बचना

जीवन शैली से जुड़े रोगों से बचने के लिए उसके लिए जिम्मेदार कारकों को समझना और उनको दूर करना जरूरी है। व्यक्ति और समाज पर इन गैरसंचारी रोगों से पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए स्वास्थ्य, परिवहन, शिक्षा, कृषि, नियोजन (प्लानिंग) तथा अन्य सभी क्षेत्रों में एक व्यापक प्रयास अपनाने की जरूरत है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रयास

वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के मार्ग में इन गैरसंचारी रोगों पर काबू पाना एक प्रमुख चुनौती है। जीवन शैली से जुड़े इन रोगों पर काबू पाना और उनके इलाज की व्यवस्था करते हुए वर्ष 2030 तक इससे होने वाली असामयिक मौतों को एक तिहाई घटाना देशों और राज्य सरकारों की प्रतिबद्धता है। विश्व स्तर पर इन रोगों का मुकाबला करने के प्रयासों को समन्वित करने और उनको बढ़ावा देने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक प्रमुख भूमिका है। विश्व स्वास्थ्य एसेंबली ने गैरसंचारी रोगों के निवारण और नियंत्रण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक कार्य योजना 2013-2020 को बढ़ाकर वर्ष 2030 तक निर्धारित किया है ताकि इन रोगों पर काबू पाने के प्रयासों में तीव्रता लाई जा सके।

जीवन शैली से जुड़े रोगों को रोकने के उपाय

हमारी रोजमर्रा की आदतों में बदलाव लाकर कार्डियोवैस्कुलर, हाइपरटेंशन, मधुमेह, मोटापा, श्वसनी रोग और कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है और उन पर काबू पाया जा सकता है। जिनमें कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं:

संतुलित आहार का सेवन : प्रत्येक व्यक्ति को अधिक मात्रा में ताजे फलों, हरी सब्जियों तथा फाइबर और कैल्शियम बहुल खाद्य पदार्थों का सेवन करना आवश्यक होता है। इनके अलावा जंक फूड की जगह पौष्टिक आहार का सेवन, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना, तली हुई खाद्य वस्तुओं का सेवन कम करना, कई साबुत अनाजों का मिश्रित सेवन करना, एक बार में अधिक मात्रा में भोजन करने की बजाय नियमित अंतराल पर कम मात्रा में भोजन ग्रहण करना जैसी आदतें जीवन शैली से जुड़े लोगों को कम करने में सहायक होती हैं।

शारीरिक क्रियाशीलता और आहार सेवन के बीच संतुलन

एक वयस्क व्यक्ति को सप्ताह में 5 दिन कम से कम 30 मिनट रोज किसी न किसी रूप में शारीरिक श्रम करना चाहिए। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय रखने और उसे सुचारु रूप से कार्य करने में सहायक होता है। सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए पैदल चलना एक उत्तम व्यायाम है। यह कैलोरी का उपयोग करते हुए शारीरिक क्षमता को भी बढ़ाता है। प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट घरेलू कार्यों में हाथ बंटाने, आहार ग्रहण करने के बाद थोड़ी दूर तक पैदल चलने, ऊंची बिल्डिंग्स में लिफ्ट के बजाय सीढ़ी का प्रयोग करने जैसी आदतें इन रोगों से बचाने में सहायक होती हैं।

शरीर भार पर निगरानी रखें : व्यक्तियों को अपने शरीर भार पर निगरानी रखनी चाहिए। शरीर भार बढ़ने से कार्डियोवैस्कुलर रोग के कारण मौत का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे व्यक्तियों में मधुमेह, नींद नहीं आने और कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का भी खतरा हो सकता है।

अल्कोहल, निकोटीन और अन्य मादक द्रव्यों के व्यसन से बचें

हृदय रोग से होने वाली लगभग एक तिहाई मौतें अल्कोहल और निकोटीन के सेवन से होती हैं जिनसे बचना व्यक्ति के हाथ में होता है। ये दोनों पदार्थ रक्त वाहिकाओं को क्षतिग्रस्त कर, खून का थक्का बनने और एथिरोस्क्लेरोसिस (धमनियों का कठोर होना) के खतरे को दोगुनी कर देते हैं।

नमक, वसा और चीनी के अधिक प्रयोग से बचें : अधिक मात्रा में नमक, चीनी और तेल का सेवन करने से ब्लड प्रेशर, हृदय रोग (कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ने के कारण) और मधुमेह जैसी स्थितियां विकसित हो सकती हैं। इसलिए, आहार में इन तीनों पदार्थों की मात्रा को घटाकर इन समस्याओं से बचा जा सकता है।

नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच कराएं : नियमित स्वास्थ्य जांच कराने से व्यक्ति अपने स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति पर नजर रख सकता है। इससे, किसी भी रोग की शुरुआती अवस्था में पता चलने और समय से इलाज कराने पर स्वास्थ्य जटिलता और मौत से बचा जा सकता है।

मधुमेह और ब्लड प्रेशर के पैरामीटर्स पर नए सुझाव

ब्लड में प्रोटीन की मात्रा ज्ञात कर ब्लड शुगर के स्तरों पर निगरानी रखने में सहायता मिलती है। रक्त प्रवाह में मौजूद हीमोग्लोबिन शर्करा अथवा ग्लूकोज के साथ बंधन बनाता है। दि अमेरिकन कॉलेज ऑफ फिजिशियंस की सिफारिशों में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन HbA1C अथवा A1C के स्तर की निगरानी से मधुमेह ग्रस्त व्यक्ति के ब्लड शुगर के औसत स्तरों को ज्ञात किया जाता है। बरसों से दि अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन की सिफारिश के अनुसार मधुमेह ग्रस्त व्यक्ति का हीमोग्लोबिन HbA1C स्तर 7% से कम होना चाहिए। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल एंडोक्राइनोलॉजिस्ट की सिफारिश के अनुसार तो A1C का स्तर 6.5% से नीचे होना चाहिए। परंतु अमेरिकन कॉलेज ऑफ फिजिशियंस की ताजा रिपोर्ट के अनुसार टाइप 2 मधुमेह ग्रस्त व्यक्ति में A1C का अधिकतम स्तर 7 और 8 % के बाद होने पर ही मधुमेह से संबंध जटिलताएं पैदा होती हैं। जबकि पूर्व सिफारिश के अनुसार मधुमेह ग्रस्त व्यक्ति में A1C का स्तर 7% से अधिक बढ़ने पर रेटिनोपैथी (आंख की रेटिना में विकृति) और न्युरोपैथी (तंत्रिका विकृति) जैसी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर A1C का स्तर 5% से नीचे होने पर व्यक्ति को स्वस्थ माना जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि रक्त में शर्करा का स्तर 70 से 130 mg/dL (मिलीग्राम प्रति डेसी लीटर) से ऊपर नहीं जाता। रक्त में अ1उ का स्तर 5.7 % होने पर मधुमेह पूर्व स्थिति और 6.5 % अथवा अधिक होने पर मधुमेह से पीड़ित होने का संकेत मिलता है। जबकि A1C का स्तर 7 से 8% के बीच होने का तात्पर्य ब्लड शुगर लेवल 150 से 200 mg/dL है, नए मानकों के अनुसार इस स्तर के व्यक्ति को स्वस्थ माना जाता है। हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार व्यक्ति की दैनिक गतिविधियां ग्लूकोज स्तर के नियंत्रण से अत्यधिक प्रभावित होती हैं। अतः, ये सिफारिशें विशेषतया 80 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों अथवा डायबिटीज के कारण उत्पन्न क्रॉनिक समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों में A1C के स्तरों पर नहीं बल्कि हाई ब्लड शुगर के लक्षणों को कम करने को वरीयता दी जानी चाहिए। इन स्तरों के आधार पर डायबिटीज ग्रस्त व्यक्तियों को स्वयं निर्णय न लेकर मधुमेह विशेषज्ञ की सलाह में ही उपचार कराना चाहिए।

ब्लड प्रेशर के पैरामीटर

हाई ब्लड प्रेशर को हृदय रोग और स्ट्रोक के कारण होने वाली मौत का धूम्रपान के बाद दूसरा सबसे बड़ा कारण माना जाता है। हृदय रोग और स्ट्रोक के बढ़ते खतरों में हाई ब्लड प्रेशर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आमतौर पर हाई ब्लड प्रेशर के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते इसलिए इसे साइलेंट किलर के नाम से भी जाना जाता है। जर्नल ऑफ दि अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी और अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन जर्नल हाइपरटेंशन में प्रकाशित गाइडलाइंस के अनुसार 130 से 139/80 से 89 mm Hg ब्लड प्रेशर को अब खतरे के रूप में देखा जाता है। जबकि पहले 120 से 139 mm Hg (सिस्टोलिक)  80 से 89 mm Hg (डायस्टोलिक) ब्लड प्रेशर को प्री हाइपरटेंशन की श्रेणी में रखा जाता रहा है। अब इन्हें बढ़ा हुआ बीपी (120 से 129 और 80 से कम) अथवा स्टेज 1 हाइपरटेंशन (130-139 अथवा 80 से 89) की श्रेणी में रखा गया है। जबकि पहले 140/90 mm Hg को स्टेज 1 हाइपरटेंशन में रखा गया था। अब नई गाइडलाइंस के अनुसार इसे स्टेज 2 हाइपरटेंशन में रखा गया है। हालांकि, हाइपरटेंशन के इलाज का निर्णय स्वयं नहीं लेकर चिकित्सा विशेषज्ञ की सलाह में ही दवाइयों का सेवन किया जाना चाहिए।

– सारणी : ब्लड प्रेशर की नई गाइडलाइंस –

ब्लड प्रेशर की श्रेणी       सिस्टोलिक mm Hg (उपरी संख्या) डायस्टोलिक mm Hg (निचली संख्या)
सामान्य 120 से कम और 80 से कम
बढ़ा हुआ 120 – 129 और 80 से कम
हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) स्टेज 1 130 – 139 अथवा 80 से 89
हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) स्टेज 2  140 अथवा अधिक अथवा 90 अथवा अधिक
हाइपरटेंसिव क्रायसिस (तुरंत अपने चिकित्सक से मिले) 180 से अधिक और/अथवा 120 से अधिक

 

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए , कोई व्यक्ति अपनी दैनिक गतिविधियों में परिवर्तन लाकर, संतुलित आहार का सेवन कर, शारीरिक सक्रियता को बढाकर स्वयं को जीवनशैली से जुड़े कई रोगों से बचा सकता है।

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