असम होगा बाल विवाह मुक्त

असम के मुख्य मंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी सरकार वहां पर बाल विवाह के विरुद्ध सख्त कदम उठाएगी। नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भी उनकी मंशा का खुलकर समर्थन किया है। आवश्यकता है कि इसे आंदोलन का रूप देकर पूरे देश में लागू किया जाए।

असम सरकार की बाल विवाह के खिलाफ सख्ती जारी रहेगी। चाहे जितनी आलोचना हो, लेकिन असम सरकार का बाल विवाह के खिलाफ जारी अभियान रुकने वाला नहीं है। असम के मुख्य मंत्री डॉ हिमंत विश्वा सरमा ने गत 20 मार्च को असम विधानसभा के बजट अधिवेशन में अपने सरकार की मंशा स्पष्ट कर दी है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार वर्ष 2026 तक राज्य को बाल विवाह मुक्त कर देगी। इसके लिए राज्य बजट में 200 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है।

थाने के सामने ‘अवैध दुल्हे’ के परिजनों की हाहाकार, अपने नवजात बच्चे के साथ रोती-कलपती बालिका बधुएं, आत्महत्या का प्रयास, दुल्हे का पलायन आदि के बावजूद असम में बाल विवाह के खिलाफ गत 3 फरवरी से असम पुलिस का महाअभियान जारी है। जब अभियान आरम्भ हुआ था तो सभी जिलों के थाना परिसरों में सिर्फ महिलाओं की प्रदर्शन व चीख-पुकार व आंसू दिखाई दे रहे थे। कोई बच्चों को गोद में लेकर रो रहा था तो कोई थाने के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहा था। विडम्बना यह है कि कानूनन अपराध पर कार्रवाई करने से मानवीय समस्या पैदा हो गई है। इसके जवाब में मुख्य मंत्री का कहना है कि पीड़ित महिलाओं की राज्य सरकार हर सम्भव मदद करेगी। इसके लिए सामाजिक जागरूकता अभियान तथा हेल्प लाइन नम्बर जारी किया जा रहा है। पीड़ित महिलाओं को सरकार की योजनाओं का लाभ दिया जाएगा, ताकि वे अपने मैके में रह सकें। उनकी निःशुल्क पढ़ाई और स्कालरशिप की व्यवस्था की जा रही है।  लेकिन हर कीमत पर बाल विवाह को रोका जाएगा। संविधान के नियमों का पालन किया जा जाएगा।

यह सच्चाई भी सामने है कि नाबालिग लड़की से शादी करना सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि यह एक लड़की के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है और उसके स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए एक आधिकारिक सर्वेक्षण से परेशान करने वाले डेटा के सामने आने के बाद बाल विवाह के खिलाफ अभियान का निर्णय लिया गया है। असम में 20 से 24 वर्ष की उम्र की 31 प्रतिशत से ज्यादा ऐसी महिलाएं हैं जिनकी शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले ही कर दी गई। वहीं, इस मामले में राष्ट्रीय औसत तकरीबन 23 प्रतिशत है। असम में 11.7 फीसदी लड़कियां कम उम्र में गर्भवती हो रही हैं। यह आंकड़े बड़ी संख्या में होने वाले बाल विवाह का जीते-जागते गवाह हैं। राज्य के सीमावर्ती जिले धुबड़ी में आंकड़ा और भी भयावह है, जहां 50 फीसदी शादियां कम उम्र में हो रही हैं। ऐसे में लड़कियां कम उम्र में मां बनने को मजबूर हैं। इसलिए कार्रवाई जरूरी है। हद तो यह है कि लड़कियों की स्वास्थ्य की अनेदखी करते हुए कुछ धार्मिक नेता कम उम्र में शादी करने तथा ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह देते हैं।

इससे लड़कियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की ओर से 2022 में जारी आंकड़ों के अनुसार असम, देश में सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर वाला राज्य है, जबकि शिशु मृत्यु दर के मामले में यह तीसरे नम्बर पर है।

यहां पर एक देशव्यापी आंदोलन का जिक्र करना लाजिमी है। इस आंदोलन का नाम था ‘बाल विवाह मुक्त भारत’। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने इस आंदोलन की शुरुआत 16 अक्टूबर, 2022 को की थी। देशभर के करीब 500 जिलों में 70,000 से ज्यादा महिलाओं ने बाल  विवाह के विरोध में मशाल जुलूस निकाला था। महिलाओं की इतनी बड़ी हिस्सेदारी इस बात का सुबूत है कि बाल विवाह के दुष्परिणामों से देश चिंतित है। आंदोलन से देशभर में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दो करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े थे। जो लोग यह मानते हैं कि देश में बाल विवाह कोई समस्या नहीं है और बहुत ही छोटे स्तर पर या कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में ही बाल विवाह होता है, उनके लिए ‘बाल विवाह मुक्त भारत’  आंदोलन को जानना जरूरी है। यही वजह है कि नॉबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भीअसम सरकार के इस अभियान का समर्थन किया है।

असम सरकार के फैसले को सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाए और बाल विवाह की बुराई को खत्म करने के लिए सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चला जाए। सरकार किसी विशेष राजनीतिक दल की हो सकती है लेकिन बेटियां तो हमारी हैं। यदि बेटियों का बाल विवाह नहीं होगा तो वे भी उच्च शिक्षा हासिल कर सकती हैं, रोजगार हासिल कर सकती हैं, रोजगार दे सकती हैं।

असम सरकार का यह अभियान नाबालिग लड़कियों को बचाने के लिए किया गया है। भले ही राजनीतिक दल इसे अपने राजनीतिक लाभ-नुकसान के  नजरिए से देख रहे हैं। निश्चिात रूप से पुराने मामले में कुछ व्यवहारिक पहल की जरूरत है। इसके लिए प्रशासन को कुछ दिशा-निर्देश दिए जाने की जरूरत है। जिनके हित के लिए यह कार्रवाई हो रही है, उन्हें कोई परेशानी न हो । यह एक सामाजिक समस्या है। इसलिए कानूनी कार्रवाई के साथ मानवीय व्यवहार भी जरूरी है।

राज्य सरकार ने फैसला किया कि 14 साल से कम उम्र की लड़की से शादी करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पॉक्सो कानून के अनुसार बाल विवाह अवैध है और यहां तक कि पति भी 14 साल से कम उम्र की ब्याह कर लाई गई पत्नी के साथ यौन सम्बंध नहीं बना सकता है।  14-18 साल के बच्चों की शादी करने वालों पर पॉक्सो के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जाएगी। कैबिनेट की बैठक ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम की धारा 16 के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत के सचिव को बाल विवाह निषेध अधिकारी के रूप में नियुक्त करने का भी फैसला लिया है। यदि गांव में कोई बाल विवाह होता है तो ग्राम पंचायत सचिव को इसकी शिकायत नजदीकी पुलिस थाने में दर्ज करानी होगी। इस बारे में जिला उपायुक्त एवं पुलिस अधीक्षकों को पहले ही निर्देश दे दिया गया है। सबसे अधिक मामले धुबड़ी (50.8 फीसदी) से दर्ज हुए हैं। दक्षिण सालमारा मानकाचर-44.7 फीसदी, दरंग-42 फीसदी, नगांव-42 फीसदी, ग्वालपाड़ा-41 फीसदी, बंगाईगांव-41 फीसदी, बरपेटा-40 फीसदी, मोरीगांव-39  फीसदी और डिमा हासाओ से 15 फीसदी मामले दर्ज हुए हैं।

मुख्य मंत्री डा हिमंत विश्वु शर्मा का मानना है कि वे किसी धर्म के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन अल्पसंख्यक नेता इस बारे में कुप्रचार कर रहे हैं, जो खुद कम बच्चे पैदा करते हैं और अपने समुदाय के गरीब और अनपढ़ लोगों से ज्यादा बच्चा पैदा करने का आह्वान करते हैं, ताकि उनका वोट बैंक बढ़ सके। यदि बाल विवाह पर रोक लगानी है तो  बाल विवाह को प्रोत्साहित करने वाले माता-पिता और उन्हें कराने वाले पुजारी/काजी आदि के खिलाफ भी कार्रवाई करनी होगी। इसके खिलाफ सामाजिक और धार्मिक संगठनों की भी जिम्मेदारी बनती है।

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