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मूल्य आधारित शिक्षा है सुख की अनुभूति का आधार

मूल्य आधारित शिक्षा है सुख की अनुभूति का आधार

by हिंदी विवेक
in विशेष, शिक्षा, सामाजिक
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हमारी प्राचीन गौरवशाली भारतीय संस्कृति समस्त विश्व के सुख, समृद्धि एवं शान्ति की कामना करती है। भारतीय चिन्तन में व्यष्टि से समष्टि तक का विचार किया गया है। भारतीय पर्व इस बात का प्रतीक हैं। यहां पर प्राय: प्रतिदिन कोई न कोई लोकपर्व, व्रत, पूजा एवं अनुष्ठान का दिवस होता है, जो इस बात का प्रतीक है कि भारतीय अपने जीवन में कितने प्रसन्न रहते हैं। हमारे धर्म ग्रन्थों में भी सुख पर अनेक श्लोक एवं मंत्र हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
अर्थात सभी सुखी रहें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुख का भागी न बनना पड़े।
किन्तु आज भारतीय प्रसन्नता के मामले बहुत पिछड़ गए हैं। अब भारतीय पूर्व की भांति प्रसन्न नहीं रहते। वे दुखी रहने लगे हैं। एक सर्वे में यह बात सामने आई है।

उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस पर जारी वार्षिक प्रसन्नता रिपोर्ट के अनुसार 137 देशों की सूची में भारत 125वें स्थान पर है। वर्ष 2022 में भारत इस सूची में 144वें स्थान पर था तथा वर्ष 2021 में 139वें स्थान पर था। प्रसन्नता के संबंध में पड़ोसी देशों की स्थिति भारत से अच्छी है। पाकिस्तान 108वें स्थान पर है, जबकि म्यांमार 72वें, नेपाल 78वें, बांग्लादेश 102वें और चीन 64वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड विश्व का सर्वाधिक प्रसन्नता वाला देश है। विगत छह वर्षों से वह अपने इस स्थान पर बना हुआ है। डेनमार्क द्वितीय और आइसलैंड तृतीय स्थान पर है। इस सूची में इजराइल चौथे स्थान पर है, जबकि नीदरलैंड्स पांचवें, स्वीडन छठे, नार्वे सातवें, स्विटजरलैंड आठवें, लक्जमबर्ग नौवें और न्यूजीलैंड दसवें स्थान पर है। सबसे कम प्रसन्न देशों की सूची में लेबनान, जिम्बॉब्वे, द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो आदि देश सम्मिलित हैं। इस सूची में अफगानिस्तान अंतिम स्थान पर है। उसे 137वां स्थान प्राप्त हुआ है।

उल्लेखनीय है कि विगत एक वर्ष से रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध चल रहा है। फिर भी इन देशों की स्थिति भारत से अच्छी है। इस सूची में रूस 70वें स्थान पर है, जबकि यूक्रेन को 92वें स्थान पर है। यह रिपोर्ट यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क द्वारा जारी की गई है। यह रिपोर्ट 150 से अधिक देशों के लोगों पर किए गए ग्लोबल सर्वे डाटा के आधार पर बनाई जाती है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस
प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने जुलाई 2011 में प्रसन्नता के संबंध में एक प्रस्ताव अपनाया था। इसके पश्चात संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने 12 जुलाई 2012 को प्रस्ताव के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस संबंध में अप्रैल 2012 में भूटान की राजसी सरकार ने विश्वभर के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई थी। इसमें इस बात पर चर्चा की गई कि लोगों की प्रसन्नता और कल्याण को भी आर्थिक दृष्टिकोण की तरह देखने की आवश्यकता है। बैठक में इसके लिए एक आयोग नियुक्त करने की भी अनुशंसा की गई। भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले ने इस अनुशंसा को स्वीकार किया। उनका कहना था कि सभी देशों की सरकारों को लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ उनकी प्रसन्नता और कल्याण को भी अधिक से अधिक महत्त्व देना चाहिए।
उन्होंने बैठक में प्रस्ताव रखा कि संयुक्त राष्ट्र भी इस आयोग का सह-स्वामित्व करे और यह आयोग यूएन महासचिव के सहयोग से इस दिशा में कार्य करे।

विश्वभर के प्रसन्नता वाले नगरों में उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर सम्मिलित है। यहां के लोग प्रसन्न रहने वाले तथा मित्र बनाने वाले हैं। यह नगर समस्त भारत के लिए प्रेरणा बन गया है। इससे यह बात सामने आती है कि मित्रों के साथ रहने से व्यक्ति प्रसन्न रहता है। मित्र दुख- सुख के साथी होते हैं। मित्रों से बात करने पर मन हल्का हो जाता है। मित्र निराशा के समय आशा की किरण दिखाते हैं। मित्र प्रोत्साहित करते हैं। मित्रों के साथ व्यक्ति अपने जीवन का बहुत अच्छा समय व्यतीत करता है। मित्रों के साथ रहने से प्रसन्नता प्राप्त होती है।

प्रसन्नता क्या है?
प्रसन्नता एक अनुभूति है। यह मानव मस्तिष्क में पाई जाने वाली भावनाओं में सबसे सकारात्मक अनुभूति है। इस अनुभूति के उत्पन्न होने के अनेक कारण हैं। इनमें अपनी किसी इच्छा की पूर्ति होने पर होने वाली संतुष्टि की अनुभूति सर्वोपरी है।

प्राय: जीवन बहुत विशाल होता है। जीवन से सदैव सुख प्राप्त नहीं होता। मनुष्य को अनेक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है। यह अतिशय नहीं है कि जीवन में सुख कम और दुख अधिक होता है। इसके अनेक कारण है। मनुष्य जीवन में सदैव सुख की कामना करता है। वह समृद्धि प्राप्त करना चाहता है। वह अपार धनराशि संचय करना चाहता है, अर्थात वह जीवन में सबकुछ प्राप्त करना चाहता है, परन्तु सदैव ऐसा नहीं होता। उसकी कुछ इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं तथा कुछ इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं। उसकी जो इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं, वह उसके बारे में विचार नहीं करता, अपितु उससे अधिक की कामना करने लगता है। ऐसी परिस्थितियों में वह दुख का भागीदार बन जाता है। इसके अतिरिक्त उसकी जो इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं वह उनके बारे में भी चिंता करता रहता है। इस चिंता के कारण वह मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाता है। यह मानसिक तनाव उसे अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त कर देता है। इस प्रकार के मानसिक तनाव से ग्रस्त व्यक्ति आत्महत्या करके अपना जीवन भी समाप्त कर लेता है। उल्लेखनीय है कि आत्महत्या की सभी घटनाओं के पीछे मानसिक तनाव ही कारण होता है। यह स्थिति दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है। वयस्क ही नहीं, अपितु बालक भी आत्मह्त्या जैसा जघन्य अपराध कर रहे हैं। ऐसी अनेक घटनाएं सामने आती रहती हैं।

तनाव के कारण
मानसिक तनाव के क्या कारण हैं? इस पर चिंतन मनन किया जाना चाहिए। बाल्यकाल जीवन का सबसे उत्तम समय होता है। यह तनाव मुक्त होता है। बच्चों पर किसी भी प्रकार का कोई दायित्व नहीं होता। उन्हें केवल शिक्षा प्राप्त करनी होती है तथा अपना शेष समय खेलकूद में व्यतीत करना होता है। फिर आज के बच्चे तनाव ग्रस्त क्यों हैं? इसके अनेक कारण हो सकते हैं।
प्राय: देखने में आता है कि माता-पिता बच्चों पर अधिक से अधिक अंक लाने का दबाव बनाते हैं। सभी बच्चे पढ़ाई में श्रेष्ठ नहीं हो सकते। बच्चे प्रातःकाल में अपने विद्यालय जाते हैं। वहां से आने के पश्चात ट्यूशन के लिए जाते हैं। वहां से आने पर विद्यालय एवं ट्यूशन का कार्य करते हैं। ऐसे में बच्चों के पास अपने स्वयं के लिए समय ही नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त बच्चों को जबरन अन्य गतिविधियों में डालना एवं उन पर श्रेष्ठ प्रदर्शन का दबाव डालना भी उन्हें मानसिक तनाव से ग्रस्त कर देता है।

माता-पिता के लिए अत्यावश्यक है कि वे अपने बच्चों की मनोस्थिति को समझें तथा उनकी पसंद एवं नापसंद का ध्यान रखें। वे बच्चों को विपरीत परिस्थितियों में भी सुख से रहने की शिक्षा दें। वे बच्चों को बताएं कि सुख और दुख दोनों ही जीवन के अभिन्न अंग हैं। हमें दुखों से घबराना नहीं चाहिए, अपितु ऐसे समय में संयम और धैर्य बनाए रखना चाहिए। यदि हम दुखों को चुनौती मानेंगे तथा स्वयं को योद्धा मानकर उसका सामना करेंगे, तो अवश्य ही हम विजय प्राप्त कर सकेंगे तथा विजेता सिद्ध होंगे। बच्चों को धार्मिक कथाएं सुनानी चाहिए कि किस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्टों का सामना किया। इसी प्रकार भगवान राम का उदाहरण भी है कि किस प्रकार उन्होंने अपने पिता का वचन पूर्ण करने के लिए चौदह वर्षों का वनवास सहर्ष स्वीकार किया, किस प्रकार उन्होंने रावण का संहार किया। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कथा भी प्रेरणा देने वाली है कि किस प्रकार राजा हरिश्चंद्र ने अनेक कष्टों का सामना किया, परन्तु सत्य को नहीं त्यागा। इसी प्रकार पंचतंत्र की कहानियां बच्चों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं तथा प्रेरक प्रसंग एवं महापुरुषों की जीवनी का ज्ञान बच्चों को करानी चाहिए।

आज के वातावरण में बच्चे टीवी या मोबाईल में ही अधिक लगे रहते हैं। ऐसे में बच्चों को टीवी पर ऐसे कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित करें, जो उनके लिए उपयोगी हैं। दूरदर्शन के अनेक चैनलों पर शिक्षा से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, विद्यार्थियों के लिए बनाए गए हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे मोबाईल पर भी केवल शिक्षा संबंधी चीजें ही देखें। कोरोना काल से मोबाइल भी बच्चों की शिक्षा का एक अंग बन चुका है। माता-पिता को चाहिए कि वे इस पर पूर्ण दृष्टि बनाए रखें कि उनके बच्चे मोबाईल में क्या देख रहे हैं, क्योंकि बहुत से ऐसे खेल सामने आ रहे हैं, जो बच्चों को मानसिक तनाव से ग्रस्त कर रहे हैं। इस खेलों के कारण बच्चों द्वारा आत्महत्या करने के अनेक मामले में भी सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं, यूट्यूब पर अनेक ऐसी चीजें हैं, जो बच्चों के मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालती हैं। उदाहरण के लिए हंसी-मजाक के अनेक वीडियो ऐसे हैं, जिनमें अशिष्टता के साथ-साथ अश्लीलता भी है।

मानव को बाल्यकाल से ही जीवन मूल्यों की शिक्षा देना हमारी भारतीय परम्परा का अंग रहा है। यह हमारी सांस्कृतिक विशिष्टता है। विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा दी जाए, जो उन्हें अक्षर ज्ञान के साथ-साथ जीवन मूल्यों को समझने में भी सहायक सिद्ध हो। बच्चे जीवन में प्रसन्न रहना सीखें। बच्चा विद्यालय में कम समय व्यतीत करता है, परन्तु अधिक समय अपने घर में ही परिवारजनों के साथ रहता है। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि माता- पिता स्वयं भी प्रसन्न रहें तथा अपने बच्चों को प्रसन्न रहना सिखाएं।

– डॉ. सौरभ मालवीय

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Tags: value based education

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