रामनवमी पर हिंसा भयभीत करने वाली

देश के अलग-अलग इलाकों से रामनवमी उत्सव से जुड़ी हिंसा किसी भारतीय को भयभीत करने के लिए पर्याप्त है।  हिंसा रामनवमी उत्सव के पहले, शोभायात्रा के दौरान और रामनवमी के अगले दिन यानी जुम्मे के नमाज के बाद हुई और कई स्थानों पर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक थमी नहीं है।  लगातार पिछले 3 वर्षों से रामनवमी पर हिंसा की घटनाएं हुई है।  यह प्रवृत्ति की तरह स्थापित हो रही है तो विचार करना होगा कि आखिर इसके पीछे कौन शक्तियां है? महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर ( पुराना नाम औरंगाबाद ),जलगांव , पश्चिम बंगाल के हावड़ा और इस्लामपुर, गुजरात के वडोदरा तथा बिहार के सासाराम और नालंदा से हिंसा की गिरफ्त में आए हैं। बिहार और बंगाल की हिंसा तो सबसे डरावनी है।

जिस छत्रपति संभाजीनगर के किराडपुरा के प्रसिद्ध राम मंदिर के पास से हिंसा की पहली खबर आई वहां आग की लपटें ऐसे लग रही थी जैसे कोई बड़ी आगजनी हो। ऐसा ही दृश्य हमे अन्यत्र भी देखने को मिला है। ऐसी धार्मिक यात्राओं की सुरक्षा व्यवस्था स्थानीय पुलिस प्रशासन हर संभव बेहतर करने की कोशिश करती है। यही नहीं उत्सव के पहले और बाद में उत्पाद उपद्रव या हिंसा के खतरो का आकलन करते हुए भी सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है । वैसे भी धार्मिक शोभा यात्राएं पुलिस प्रशासन की पूर्व अनुमति एवं मार्ग निर्धारण किए बगैर नहीं निकाली जा सकती। अगर कोई निकालता है तो वह अवैध माना जाएगा एवं पुलिस प्रशासन को उनके विरुद्ध कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है। अगर तय मार्ग पर और सुरक्षा व्यवस्था के बीच हमले हुए हैं तो इसे क्या कहा जाएगा?

छत्रपति संभाजीनगर के किराडपुरा के प्रसिद्ध राम मंदिर के बारे में सूचना है कि वहां रात में राम किर्तन हो रहा था जिसे लेकर दूसरे समुदाय के कुछ युवकों ने आपत्ति प्रकट की और वहां उपस्थित दूसरों के साथ उनकी झड़प होने लगी। यह झड़प कैसी हुई इसकी विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। किंतु सैकड़ों की संख्या में अगर लोग पत्थर बोतल यहां तक कि बमों से हमले करने लगे तो इसे तात्कालिक झड़प से उत्पन्न गुस्सा नहीं कहा जा सकता। पुलिसकर्मियों पर भी पथराव हुए एवं पेट्रोल बम फेंके गए। अनेक पुलिसवाले घायल हो गए। जिस तरह यहां पुलिस की गाड़ियों से लेकर अन्य वाहनों, दुकानें आदि आग के हवाले हुए, क्षतिग्रस्त किये गये और जितनी संख्या में सड़कों पर पत्थर, बोतलें आदि देखीं गईं उनका अर्थ बिल्कुल साफ है । यानी कुछ लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से हमले के लिए पत्थर आदि इकट्ठे किए थे, लोगों को भी तैयार किया था, संभव है इसीलिए कुछ लोगों ने आरंभ में झंझट किया और फिर उसके बहाने पूरी योजना को अंजाम दे दिया।

किराडपुरा में पहुंची पुलिस के सामने समस्याएं पैदा हुई क्योंकि उन पर पथराव होने लगे, पेट्रोल बम फेंके गए। बल प्रयोग करने के बावजूद 13 से ज्यादा पुलिस के वाहन आग के हवाले कर दिए गए। महाराष्ट्र के जलगांव में तो बाद में भी हिंसा की घटनाएं हुई । हावड़ा में तस्वीर सबसे भयावह रही। पुलिस प्रशासन से बातचीत के आधार पर अलग-अलग रामनवमी शोभायात्रा निकालने की बजाए 42 संगठनों ने एक साथ शोभा यात्रा निकाला। इसका मार्ग अवनी मॉल के पास के नरसिंह भगवान मंदिर से प्रारंभ होकर हावड़ा मैदान तक तय था। यात्रा शाम को लगभग 5 बजे प्रारंभ हुई थी और शांतिपूर्ण चलती रही। जब हावड़ा मैदान से नजदीक के संध्या बाजार विस्तार में पहुंची तो अचानक भवनों की छतों तथा आसपास की गलियों से ईंट, पत्थर, पेट्रोल व स्प्रिट भरी बोतलों से हमले हुए, बम भी चलाये गये।  स्वाभाविक ही अचानक आक्रमण से शोभायात्रा में सम्मिलित लोग इधर-उधर भागने लगे।

उसके बाद भी हिंसा व आगजनी जारी रही । भीड़ में घुसकर उपद्रवी तत्वों ने वाहन दुकान सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना शुरू किया। वीडियो फुटेजों में काफी कुछ दिखाई दे रहा है। हावड़ा के शिबपुर में भी ऐसे ही पत्थरबाजी हुई और बहनों और दुकानों में आग लगाया गया ।  शिबपुर के वीडियो  में कुछ लोग छत से पत्थर फेंकते दिख रहे हैं।  बंगाल में हिंसा का तीसरा मामला इस्लामपुर शहर के डालखोला (उत्तर दिनाजपुर जिले) में सामने आया। यह मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां तो पुलिस अधीक्षक भी घायलों में शामिल है। गुजरात के वडोदरा में फतेहपुरा से गुजरते रामनवमी की शोभायात्रा पर भी अचानक पथराव शुरू हो गया। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित किया लेकिन उसे भी पत्थरबाजी झेलनी पड़ी। वहां के वीडियो में मस्जिद के ऊपर से पत्थर चलते साफ दिख रहा है। सासाराम और नालंदा में ना केवल शोभायात्रा ऊपर हमले हुए बल्कि उसके बाद भी लगातार हिंसा जारी है। वहां गोलियां चली बम चले और अनेक लोग घायल हुए जिनमें कुछ गंभीर भी हैं ।

एक भारतीय होने के नाते हम सबकी चाहत होगी की ऐसी घटनाएं न हों, धार्मिक  सद्भाव का वातावरण रहे । इन घटनाओं को देखने के बाद हमारा आपका निष्पक्ष निष्कर्ष क्या होगा? ये कौन है जिन्हें रामनवमी, हनुमान जयंती, नव वर्ष या ऐसी शोभायात्रा या उत्सव सहन नहीं होते? हमारे देश की पुरानी समस्या है कि जब भी इस तरह की घटनायें होती हैं एक वर्ग भाजपा, संघ और उनसे जुड़े संगठनों को निशाने पर लेता है। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस पर फोकस करने से ज्यादा पूरा मामला राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में परिणित हो गया है। सत्य कभी जटिल नहीं होता है। यह खतरनाक स्थिति है । सच्चाई कभी जटिल नहीं होती  । हम अपने व्यवहार से उसे जटिल बना देते हैं। इन घटनाओं का कटु सत्य यही है कि रामनवमी के जुलूस पर हमले हुए हैं। अचानक हुए हमलों की प्रकृति दूसरी होती है। अचानक भी हुए तो इतनी संख्या में ईट, पत्थर, बोतल, पेट्रोल बम , स्प्रिट से भरी बोतलें तथा बम, पिस्तौल आदि कहां से आ गए? स्पष्ट है कि रामनवमी का ध्यान रखते हुए या किसी अन्य उद्देश्य की दृष्टि से हमले या संघर्ष के लिए ये सारी सामग्रियां एकत्रित की गई थी। लोगों को भी इसके लिए तैयार किया गया था। पिछले वर्ष भी रामनवमी, हनुमान जयंती एवं नववर्ष की शोभायात्राओं पर हुए हमलों की छानबीन से यही बातें सामने आई कि तैयारी पहले से की गई थी। कुछ लोगों ने बैठकें कर समुदाय को भड़काया था।

बजाब्ता हमले के लिए  छतों पर यहां तक की मस्जिदों में भी एकत्रित किए गए थे। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता ऐसे जुलूस के साथ भी कुछ उपद्रवी असामाजिक तत्व होते हैं। अभी तक की सूचनाओं में ऐसा नहीं लगता कि शोभा यात्राओं में लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से हमले किए या हमला करने के लिए उकसाया। ऐसा हुआ होता तो निश्चित रूप से उसके वीडियो फुटेज हमारे सामने होते। आजकल शोभा यात्राओं के दौरान पुलिस प्रशासन भी अपनी वीडियोग्राफी कराती है, जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे भी होते हैं और इन सबसे परे मीडिया के कैमरे भी साथ रहते हैं। इसलिए अगर जुलूस की ओर से हिंसा की शुरुआत हुई है तो निश्चित रूप से वीडियो में दिखने चाहिए। अभी तक  आए किसी वीडियो में ऐसा नहीं दिखा कि जुलूस के लोगों ने हमले को आमंत्रित किया। दुर्भाग्य देखिए कि ज्यादा हिंसा की शिकार प बंगाल की मुख्यमंत्री ने रामनवमी शोभा यात्रा के पहले और हिंसा के बाद ऐसे बयान दिए मानो जुलूस निकालने वाले ही हिंसा चाहते थे।

रामनवमी के पहले ममता बनर्जी का बयान था कि मुस्लिम इलाकों में रामनवमी का जुलूस गया और वहां हंगामा हुआ तो कानूनी-कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा, ‘मैं रामनवमी जुलूस नहीं रोकूंगी लेकिन याद रखना, हम भी मार्च करेंगे, आप भी। रमजान का महीना भी चल रहा है। अगर तुम किसी मुस्लिम इलाके में जाकर हमला करते हो तो याद रखना, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।’ जरा सोचिए यह बयान किस मानसिकता का प्रतीक है? क्या दूसरी ओर के उपद्रवी तत्वों का हौसला इससे नहीं बढा होगा? क्या उन्हें नहीं लगा होगा कि हमने हमला कर दिया तब भी सरकार उनके ही विरुद्ध कार्रवाई करेगी? ऐसा लग रहा है जैसे रामनवमी शोभायात्रा निकालने वाला हिंदू समाज दंगाई और हिंसक हो। हिंसा के बाद भी उनका तेवर यही है। शोभायात्रा निकालने वाले को ही हिंसा के लिए दोषी ठहरा रहीं हैं। इसमें पुलिस प्रशासन भी निष्पक्षता से छानबीन नहीं कर पाएगी।

होना तो यही चाहिए कि मुख्यमंत्री के नाते ममता बनर्जी हमलावरों के विरुद्ध आक्रामक होती। बिहार में भी सत्तारूढ़ घटक के प्रवक्ता का बयान है कि बिहार को गोधरा यानी गुजरात नहीं बनने देंगे पूर्णविराम इसके तात्पर्य क्या है? दोषी किसी भी धर्म या संप्रदाय क्यों सरकार को निष्पक्ष होकर व्यवहार करना चाहिए । रामनवमी जैसे हिंदू समाज के लिए महत्वपूर्ण त्योहार पर हमले हों, लोग निशाना बनें, पुलिस तक के वाहन जला दिए जाएं , पुलिसवाले और आम लोग घायल हो, आम लोगों की संपत्तियां जलें और ऐसा करने वाले को पीड़ित घोषित कर दिया जाए ऐसी स्थिति के विरुद्ध क्षोभ और आक्रोश पैदा होना स्वभाविक है। देश में सभी समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध रहे इसके लिए सजग सक्रिय रहना हम सबका दायित्व है।

किंतु यह एकपक्षीय नहीं हो सकता। ऐसा लगता है जैसे देश विरोधी तत्व भारत में हिंदू मुस्लिम हिंसा की स्थिति पैदा कर  अस्थिरता व अशांति का माहौल बनाना चाहते हैं। यह कौन है इसके बारे में पिछले हमले के दौरान भी जानकारियां आई लेकिन राज्य सरकारों को जिस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए थी संभवत नहीं की गई। हिंसा पूरी तरह रुके, शांति स्थापित हो इसकी कोशिश सरकार समाज सबको करनी होगी। यह यूं ही नहीं होगा। पता करना होगा कि क्या देशभर की हिंसा के पीछे कोई संबंध है ? कोई केंद्रित सूत्र भी है? आखिर सभी हिंसा की प्रकृति एक ही है । इन पहलुओं की छानबीन और सच्चाई तक पहुंचे बिना ऐसी हिंसक प्रवृत्तियों को खत्म करना संभव नहीं होगा।

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