श्रीराम के दिव्य रूप और कृत्रिम चित्रों में अंतर

भगवान् श्री रामचन्द्र जी का एआई (AI) निर्मित चित्र न तो वाल्मीकि रामायण न ही रामचरितमानस के अनुकूल दिखाई देता है। AI को इन दोनों ग्रन्थों पर ट्रेन करके यह चित्र बनाया गया, यह दावा भी गलत है। हमारे चित्रकार शास्त्रों के गहन अध्ययन के बाद श्रीभगवान् के अलौकिक दिव्य चित्र बनाते रहे हैं।

प्राची दिशा से चन्द्रमा की भांति उदित होने वाले परात्पर श्रीराम के ध्यान में ऋषि कहते हैं :-

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।
वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥

जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजीके मुख कमलसे मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम, विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी भगवान् श्रीरामका ध्यान करता हूँ।

भगवान् का स्वरूप तो श्रीरामरक्षास्तोत्र में बड़ी सुंदरता से प्रकट हुआ है। वहाँ भगवान् को नीलोत्पल श्याम – नील कमल के समान श्याम, जटामुकुटमण्डित, तरुण, रूपसम्पन्न, सुकुमार, महाबली, कमल के समान विशाल नेत्रों वाले पुण्डरीक, दूर्वादल के समान श्याम वर्ण वाले, फिर पुनः श्याम, यहाँ भगवान को 4 बार श्यामवर्ण का कहा है

1. मेघ के समान श्याम
2. नील कमल के समान श्याम
3. दूर्वादल के समान श्याम
4. श्याम

एक जगह भगवान् को मरकत पन्ना के समान भी श्याम कहा है। अब भगवान की इन सब श्यामलताओं को मिलाया जाए तो कैसा श्याम बने? जो बादलों जैसा भी हो, नीलकमल के समान नीलापन भी हो, हरापन भी हो, उसमें दिव्यता भी हो, भगवान् के रसिक भक्त चित्रकार भागवतों ने ऐसे रूप का भी हमें प्रत्यक्ष कराया है। अपने निर्मल अग्रय्य मन में भगवान् के ध्यान को धारण करने वाले और हृदय में भक्ति व हाथों में अर्चा भाव लिए महाभागवत चित्रकारों के बनाए दिव्य चित्रों से कृत्रिम अर्थात् स्पंदनशून्यता व भक्तिराहित्य से उत्पन्न चित्र समता नहीं कर सकते हैं।

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