हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
मराठा साम्राज्य विस्तारक सेनापति बाजीराव पेशवा

मराठा साम्राज्य विस्तारक सेनापति बाजीराव पेशवा

by रमेश शर्मा
in विशेष, व्यक्तित्व, संस्कृति
0
पिछले डेढ़ हजार वर्षों में पूरे संसार का स्वरूप बदल गया है । 132 देश एक राह पर, 57 देश दूसरी राह पर और अन्य देश भी अपनी अलग-अलग राहों पर हैं। इन सभी देशों उनकी मौलिक संस्कृति के कोई चिन्ह शेष नहीं किंतु हजार आक्रमणों के बाद यदि भारत में उसका स्वरूप है जो उसके पीछे बाजीराव पेशवा जैसी महान विभूतियों का बलिदान है । जिससे आज भारत का स्वत्व प्रतिष्ठित हो रहा है । ऐसे महान योद्धा का आज 28 अप्रैल को निर्वाण दिवस है । उनका पूरा जीवन युद्ध में बीता । वे अपने सैन्य अभियान के अंतर्गत मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में थे । यहीं स्वास्थ्य बिगड़ा और उनका निधन हो गया ।
तब उनकी आयु मात्र उन्नीस वर्ष के थे, बीसवाँ वर्ष आरंभ किया ही था । कि उनके पिता पेशवा बाळाजी विश्वनाथ का निधन हो गया और मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शाहू महाराज ने पेशवाई का दायित्व इन्हें सौप दिया । उन्होंने 1720 में पेशवाई संभाली और बीस वर्ष का पूरा कार्यकाल केवल युद्ध में बीता । उन्होंने अपने जीवन में कुल 43 युद्ध कियै । और सभी में विजयी रहे । यदि उनके मार्ग में हुईं छोटी बड़ी झड़पों के युद्धों को भी जोड़ा जाये तो यह संख्या 54 तक होती है । उन्होंने प्रत्येक युद्ध जीता । वे किसी युद्ध में नहीं हारे ।
श्रीमंत बाजीराव पेशवा का जन्म 18 अगस्त 1700 में हुआ था । उनके पिता बाळाजी विश्वनाथ भी पेशवा थे । माता राधा बाई भी कुशल ग्रहणी और युद्ध कला में निपुण थीं। इस प्रकार वीरता और कौशल के संस्कार उन्हे जन्म से मिले थे । बाजीराव बचपन से गंभीर धैर्यवान और साहसी थे । उन्होंने बाल वय में ही घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाना सीख ली थी । वे मात्र बारह वर्ष की आयु से ही अपने पिता के साथ युद्ध में जाने लगे थे । सैनिकों का कौशल देखना और घायलों की सेवा करना उनके स्वभाव में था । वे पिता के साथ दरबार भी जाते थे । इससे दरबार की गरिमा और राजनीति में निपुण हो गये थे । अभी उन्होंने अपनी आयु के उन्नीस वर्ष ही पूरे किये और बीसवां वर्ष आरंभ ही हुआ था कि पिता का निधन हो गया ।
छत्रपति शाहू महाराज ने किशोर वय से बाजीराव की प्रतिभा देखी थी अतएव उन्होंने बाजीराव को इसी आयु में पेशवा कि दायित्व सौंप दिया । उन्होंने एक प्रकार से अल्प आयु में इतना महत्वपूर्ण दायित्व संभाला था । किंतु अपनी असाधारण क्षमता और योग्यता से हिन्दू पद पादशाही की साख पूरे भारत में प्रतिष्ठित की । अपनी दूरदर्शिता, अद्भुत रण कौशल, सटीक निर्णय और अदम्य साहस से मराठा साम्राज्य का भारत भर में विस्तार किया । वे छत्रपती शिवाजी महाराज की भांति ही कुशल रणनीतिकार और योद्धा थे । वे घोड़े पर बैठे-बैठे और चलती हुई सेना के बीच भी रणनीति बना लेते थे । घोड़ा भले थके पर वे नहीं थकते थे । घोड़ा यदि थकता था तो वे घोड़ा बदल लेते थे । भागते हुये घोड़े पर बैठे उनके भाले की फेंक इतनी तीब्र होती थी कि शत्रु अपने घोड़े सहित घायल होकर धरती पर गिर पड़ता था ।
श्रीमंत बाजीराव ने जब पेशवा दायित्व संभाला तब दक्षिण भारत में तीन प्रकार की चुनौतियाँ थीं । मुगलों के साथ-साथ अंग्रेजों व पुर्तगालियों के अत्याचारों का भी बोलबाला था । भारतीय जनों और भारतीय गरिमा के प्रतीक देवस्थान तोड़े जा रहे थे । भय और लालच से पंथ परिवर्तन की तो मानो स्पर्धा चल रही थी । महिला और बच्चों के शोषण की नयी नयी घटनाएं घट रही थीं । ऐसे विपरीत वातावरण में श्रीमंत बाजीराव ने पहले दक्षिण भारत में भारतीय जनों को ढाढ़स दिया फिर उत्तर की ओर रुख किया । उनकी विजय वाहिनी ने ऐसा वातावरण बनाया जिससे पूरे भारत में भारतीय भूमि पुत्रों का आत्मविश्वास जागा । बाद के वर्षो में यदि ग्वालियर, इंदौर बड़ौदा आदि में मराठा राज्य स्थापित हुए और दिल्ली की मुगल सल्तनत को सीमित किया जा सकता तो इसकी नींव श्रीमंत बाजीराव पेशवा ने रखी थी । उन में शिवाजी महाराज जैसी ही वीरता व पराक्रम और चरित्र था।
उनके प्रमुख अभियानों में मुबारिज खाँ को पराजित कर मालवा और कर्नाटक में प्रभुत्व स्थापित किया । पालखेड़ के युद्ध में निजाम को पराजित कर उससे राजस्व और सरदेशमुखी वसूली । फिर मालवा और बुन्देलखण्ड में मुगल सेना नायकों पर विजय प्राप्त की । फिर मुहम्मद खाँ बंगश को परास्त किया । दभोई में त्रिंबकराव के आंतरिक विरोध का दमन किया । सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों और अंग्रेजो को भी बुरी तरह पराजित किया । 1737 में उन्होंने दिल्ली अभियान किया । उनका मुकाबला करने एक लाख की फौज लेकर वह सआदत अली खान सामने आया । मुगलों ने पीछे से निजाम हैदराबाद को बुलाया । उनकी रणनीति थी कि सामने से सआदत खान एक लाख की सेना से और पीछे से निजाम हमला बोले । पर बाजीराव पेशवा उनकी चाल समझ गये । उन्होने सआदत को युद्ध में उलझाया और चकमा देकर दिल्ली पहुँच गए जबकि चिमाजी अप्पा ने अपनी दस हजार की फौज से निजाम को मालवा में रोक लिया ।
बाजीराव अभी दिल्ली में लाल किले के सामने पहुंचे ही थे मुगलों में दहशत फैल गई। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह जो छुप गया और खजाना बाजीराव पेशवा के सुपुर्द कर दिया । पेशवा के दिल्ली जाने की खबर सआदत खान को लगी वह दिल्ली की ओर लौटने लगा । बाजीराव रास्ता बदलकर पुणे की ओर लौट पड़े। तब बादशाह मोहम्मद शाह ने साआदत अली खान को संदेश भेजा कि वह निजाम हैदराबाद के साथ मिलकर बाजीराव को रास्ते में ही घेर ले । इन दोनों ने नबाब भोपाल की मदद लेकर भोपाल के पास सिरोंज से दोराहे के बीच मोर्चाबंदी कर ली । बाजीराव इसी मार्ग से लौट रहे थे । इन तीनों सेनाओं से मराठा सेना का आमना सामना हुआ । सेना कम होने के बाद बाजीराव जीते । युद्ध का खर्चा वसूल किया । यह संधि दोराहे संधि के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है । इसमें मराठों को पूरे मालवा में राजस्व वसूलने का अधिकार मिला । इससे मराठों का प्रभाव सम्पूर्ण भारत में स्थापित हो गया ।
1739 में उन्होंने नासीरजंग को हराया । अमेरिकी इतिहासकार बर्नार्ड माण्टगोमरी ने बाजीराव पेशवा भारत के इतिहास का सबसे महानतम सेनापति बताया है और पालखेड युद्ध में जिस तरीके से उन्होंने निजाम को पराजित किया वह केवल बाजीराव ही कर सकते थे । श्रीमंत बाजीराव और उनके भाई चिमाजी अप्पा ने बेसिन के लोगों को पुर्तगालियों के अत्याचार से भी बचाया । उन्होंने सेना में ऐसे युवा सरदारों की टोली तैयार की जिन्होंने आगे चलकर भारत की धरती पर नया इतिहास बनाया । इनमें मल्हारराव होळकर, राणोजीराव शिंदे शामिल थे जिन्होंने आगे चलकर इंदौर और ग्वालियर में हिन्दवी साम्राज्य की शाखा स्थापित की। अपने इसी विजय अभियान के अंतर्गत वे महाराष्ट्र वापस लौट रहे थे कि मार्ग में उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और वे मध्यप्रदेश के खरगोन में कुछ विश्राम को रुके और वहीं 28 अप्रैल 1740 में उन्होंने दुनियाँ से बिदा ले ली । नर्मदा किनारे वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया । उस स्थान पर समाधि बनी है । वहाँ आज भी प्रतिदिन सैकड़ों लोग अपने प्रिय पेशवा को श्रद्धांजलि अर्पित करने जाते हैं । बाजीराव जी भगवान शिव के उपासक थे । बाद में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने वहाँ शिवलिंग की स्थापना की । जो आज भी है । उन्होंने दो विवाह किये थे । पहली पत्नी काशीबाई और दूसरी पत्नी देवी मस्तानी थीं । उनके बाद उनके पुत्र बाळाजी बाजीराव ने आगे चलकर पेशवा का दायित्व संभाला । और अपने पिता के अधूरे काम को बढ़ाया।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: maratha empirepeshwa bajiraopeshwa of maratha empire

रमेश शर्मा

Next Post
सृष्टि के आदि पत्रकार – देवर्षि नारद 

सृष्टि के आदि पत्रकार - देवर्षि नारद 

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0