इंदौर के विकास की नींव में इंदौर की पत्रकारिता

भारतीय पत्रकारिता के विकास में इंदौर का योगदान अविस्मरणीय है। पत्रकारिता के हर दौर में इंदौरी जन दिल्ली समेत विभिन्न शहरों में शीर्ष स्थानों पर अवश्य रहे हैं। आज इंदौर भारत का सबसे स्वच्छ शहर है। इसके पीछे पत्रकारों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।

जब धरती के गहन, गम्भीर और रत्नगर्भा होने के प्रमाण को सत्यापित किया जाएगा और उसमें जब भी मालवा अथवा इंदौर का उल्लेख आएगा, निश्चित तौर पर यह शहर अपने सौंदर्य और ज्ञान के तेज से स्वयं को साबित करेगा। हिन्दी या अन्य भाषाओं में इंदौर के पत्रकार और साहित्यकारों का एक अलग ही स्थान है। जिस शहर को मध्यप्रांत की पत्रकारिता का केंद्र या नर्सरी ही कहा जाता हो, उस शहर का बाशिंदा होना भी अपने आप में गर्वित होने का कारक है।

देश में स्वच्छता में छठी बार प्रथम पायदान पर रहना जिस तरह से गौरवान्वित करने का कारण है, उसी भांति यहां के पत्रकारों को भी अपने पूर्वजों या समकालीन पत्रकारों के कारण गौरव की अनुभूति होती है। नईदुनिया जैसे अखबार ने इस शहर को समाचारों की निष्पक्षता और भाषा की शुद्धता का पाठ पढ़ाया तो यहां से प्रकाशित ‘वीणा’ साहित्यिक पत्रकारिता के अपने शताब्दी वर्ष की ओर बढ़कर एक कीर्तिमान रच रही है। यहां वेब पत्रकारिता के प्रथम पोर्टल ‘वेबदुनिया’ ने देश को एक दिशा दी है और साथ ही नवाचार का संदेश भी। फिल्म, खेल और साहित्य पत्रकारिता का क्षेत्र भी इंदौर से रोशन रहा है। इंदौर का भारतीय पत्रकारिता में योगदान शहर को ताउम्र अमर कर गया है। जब-जब भारतीय पत्रकारिता की बात होगी या इतिहास लिखा जाएगा, तब-तब बिना इंदौर के विवरण के वह अधूरा ही माना जाएगा।

हिंदी पत्रकारिता की राजधानी कहा जाने वाला इंदौर अपनी हर क्षेत्र की यात्रा का साक्षी है। इस शहर में पत्रकारिता अपने पेशेवरपन से ज्यादा अपनेपन से संचालित रही है। शहर की समस्याओं को सत्ता के केंद्र से लेकर निकाय की मेज तक पहुंचाने का माद्दा रखने वाले पत्रकारों की तपस्थली के रूप में इंदौर प्रसिद्ध है। राहुल बारपुते, प्रभाष जोशी, राजेंद्र माथुर, माणिकचंद वाजपेयी मामाजी, नरेश मेहता, शरद जोशी, डॉ. प्रभाकर माचवे, अजित प्रसाद जैन, दिनेश अवस्थी से लेकर अभय छजलानी, जवाहरलाल राठौर, विमल झांझरी, डॉ. वेदप्रताप वैदिक, कृष्णकुमार अष्ठाना, श्रवण गर्ग, ओम नागपाल, कमल दीक्षित, महेश जोशी, जयकृष्ण गौड़, गोकुल शर्मा, गोपीकृष्ण गुप्ता, प्रकाश पुरोहित, प्रताप चांद, शशींद्र जलधारी, प्रकाश हिंदुस्तानी, रमण रावल, कल्पेश याग्निक, रणवीर सक्सेना, शाहिद मिर्जा, यशवंत व्यास, महेंद्र बापना जैसे मूर्धन्य पत्रकारों व सम्पादकों के तप-बल से सिंचित यह उर्वरा भूमि अपने यश से सम्पूर्ण भारत के मानचित्र में दैदीप्यमान है। फिल्म पत्रकारिता में श्रीराम ताम्रकर, जयप्रकाश चौकसे और बृजभूषण चतुर्वेदी जैसे दिग्गजों ने अन्य क्षेत्रों में भी पत्रकारिता के हस्ताक्षरों ने अपना लोहा मनवाया है।

इंदौर की पत्रकारिता नर्सरी से निकले कई पत्रकारों ने देश की राजधानी दिल्ली और देश के अन्य शहरों में जाकर अपनी कलम के दम से बहुत नाम कमाया। प्रिंट मीडिया के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और वेब जर्नलिज्म में भी जनसरोकार की इंदौरी परम्परा को पत्रकारिता में आगे बढ़ाया। इनमें वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता, पंकज शर्मा, जयदीप कर्णिक, राजेश बादल, सुमित अवस्थी, सईद अंसारी, आकांक्षा पारे और नई पीढ़ी के कई पत्रकार शामिल हैं। देश की राजधानी दिल्ली में जब भी पत्रकारिता की जहां चर्चा होती है तो उसमें इंदौर का जिक्र जरूर किया जाता है और खासतौर पर जनसरोकार से जुड़ी पत्रकारिता के लिए। बड़ी बात यह है कि इंदौर से निकले जिन अग्रज पत्रकारों ने पत्रकारिता में सरोकार के मिशन को शुरू किया था, उसे युवा पत्रकारों ने बखूबी आगे बढ़ाया है।

इंदौर के पत्रकारों की मिसाल इसलिए भी देशभर में दी जाती रही है क्योंकि यहां के पत्रकारों ने जनता के पक्षकार की तरह ही नहीं काम किया अपितु राष्ट्रीय विपत्तियों के समय भी हमेशा अपने अस्तित्व का परिचय दिया। नवम्बर 1977 में आंध्र प्रदेश में आए समुद्री तूफान के बाद प्रेस क्लब के माध्यम से तूफान पीड़ितों के लिए पत्रकारों ने शहर में जुलूस निकाला और हाथ में डिब्बा लेकर धनसंग्रह किया, उस दौरान लगभग 3682 रुपए की राशि संग्रहित हुई, जिसे तत्कालीन संभागायुक्त राजकुमार खन्ना के माध्यम से मुख्य मंत्री कोष में भेजा गया, और इसके अलावा अनाज और कपड़े भी एकत्रित किए गए। इसी तरह 1962 के चीनी आक्रमण के दौरान प्रेस क्लब से जुड़े पत्रकारों ने 1000 रुपए व 100 ग्राम सोना जुटाकर तात्कालीन कलेक्टर को सौंपा। 1965 के युद्ध के दौरान अधिकृत सूचनाओं का केंद्र भी इंदौर बना। इंदौर विश्वविद्यालय ने पत्रकारिता पाठ्यक्रम भी आरम्भ किया। साथ ही, इंदौर वह शहर है जिसके सम्पादक ने आपातकाल के दौरान सम्पादकीय पन्ना काला छोड़कर मुखरता से विरोध दर्ज करवाया।

शहर की आधारभूत संरचना के उन्नयन की बात करें तो चाहे लालबाग का नवनिर्माण होे या शहर के यातायात व्यवस्था की दुरुस्तीकरण, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की मांग ही क्यों न हो, यह सब इंदौर की पत्रकारिता के नाम दर्ज खिताब की तरह ही है क्योंकि इन मुद्दों के लिए शहर के पत्रकारों ने लम्बी लड़ाई लड़ी है। जब-जब इंदौर शहर किसी गम्भीर समस्या में आया, तब-तब उस समय के अखबारों के माध्यम से शहर के दर्द को जिम्मेदारों तक पहुंचाने का कार्य किया गया। आप अखबार या मीडिया माध्यम के तत्कालीन लेख अथवा न्यूज लिंक उठा कर देख सकते हैं कि किस तरह यहां के पत्रकार अपनी कलम से जनता के पक्ष को रखते हैं। वर्तमान में भी जब मेट्रो की संकल्पना का खाका तैयार होने लगा तब पत्रकारों ने ही इस मुद्दे की गम्भीरता को दर्शाया। कहां स्टेशन बनाने चाहिए और कहां नहीं, जैसे सटीक सर्वे और जनमानस की सुविधाओं सम्बंधित समाचारों से यहां के पत्रकारों ने अफसरशाही को मार्गदर्शित किया है। इंदौर की पत्रकारिता की परम्परा रही है कि यह शहर जीवंत होने के साथ-साथ जागरूक है। वहीं, सजगता इंदौर की नई पीढ़ी के पत्रकारों को संस्कार के रूप में मिलती है। उसी पाट परम्परा का निर्वहन इस शहर में आज भी जारी है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान शहर के पत्रकार जनता के उपचार, राशन इत्यादि के लिए कार्य करते रहे। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण इंदौर शहर की पत्रकारिता को अनूठा और अपने आप में मिसाल बनाते हैं। इंदौर के विकास के ताने-बाने को बुनने से लेकर विकासशील इंदौर रूपी महल के निर्माण पर नजर डालेंगे तो कुछ नींव की ईंट पत्रकारों और पत्रकारिता की भी नजर आएगी।

पत्रकारों की जागरूक संस्था इंदौर प्रेस क्लब भी लगातार व्याख्यान, संवाद, बातचीत इत्यादि के माध्यम से जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों के बीच जनता की बात पहुंचाता है। यही कारण है कि इंदौर में संवाद जीवित है। पत्रकार समाचारों के प्रकाशन के साथ-साथ शहर के हितों के प्रति भी सदैव सजग रहते हैं। इसीलिए इंदौर स्वच्छता के इतर पत्रकारिता में भी नम्बर एक है।

– डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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