इंदौर शहर का भविष्यदर्शी दस्तावेज

केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना में यह प्रदेश में और स्वच्छ सिटी स्पर्धा में पूरे देश में अव्वल रहा है। यह नगर न्यायप्रिय शासक देवी अहिल्याबाई होलकर के गौरव से उद्दीप्त है जिन्होंने देश में कई जगह कुएं-बावड़ियां बनवाईं, पवित्र नदियों पर घाट बनवाए। ऐसी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत वाला यह शहर जल प्रबंधन की दिशा में भी अग्रसर है।

सतत और सातत्यपूर्ण (सस्टेनेबल) विकास के लिए जरूरी भौतिक संरचनाओं में जल प्रबंधन की सुविचारित और समन्वित भविष्यदर्शी रणनीति का अहम स्थान है। इंदौर के मामले में यह कुछ ज्यादा अहमियत रखता है। यह मालवा के पठार पर बसा है जिसे ‘पग-पग रोटी, डग-डग नीर’ यानी अनाज-धान्य और पानी की प्रचुरतावाला क्षेत्र माना जाता रहा है। लेकिन यहां पर्यावरण विनाश, भूजल दोहन के अतिरेक और पुनर्भरण की दयनीय दशा के कारण भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है।

यहां जलप्रदाय का मुख्य स्रोत नर्मदा है। किंतु 70 किलोमीटर दूर जलूद से लाया जा रहा पानी काफी महंगा है। वर्ष 2014 में इसका खर्च करीब 180 करोड़ रु. और उपभोक्ताओं से वसूली अत्यल्प मात्र 50 करोड़ रु. थी। बाकी का बोझ राज्य सरकार उठाती है। ऐसी परियोजना जो आत्मनिर्भर नहीं हो, भविष्य के लिए आशंकाएं पैदा करती है। हालांकि नर्मदा में पानी अभी काफी है, फिर भी ध्यान में रखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। एक, क्षिप्रा, गम्भीर, कालीसिंध, पार्वती, चम्बल आदि को नर्मदा से जोड़ने और मालवा के गांवों को पाइप से जल प्रदाय की योजनाएं निर्माणाधीन या विचाराधीन हैं, जिससे नर्मदा में पानी की मात्रा घट सकती है।

दूसरे, नर्मदा जल न्यायाधिकरण के फैसले के अनुसार 2024 में भागीदार राज्यों- मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र द्वारा उपयोग किए गए पानी को देखते हुए फिर से जल आबंटन होना है। उसमें मध्य प्रदेश का हिस्सा घट गया तो क्या होगा? इसलिए बहु-विध, बहु-आयामी कई उपायों की दरकार है। ‘जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहे’ (बिजनेस एज यूजुअल) की मानसिकता से निजात पाकर रणनीतिक बदलाव लाना होगा। ऐसी भविष्यदर्शी दृष्टि और कार्य योजना अपनानी होगी जिसमें पूर्व निर्धारित परियोजना- कार्यों के साथ नवाचारी, समन्वित और समयानुबंधित वैकल्पिक उपायों का भी समावेश हो… ताकि विकास निर्बाध जारी रहे।

वर्तमान जल आपूर्ति – अभी इंदौर में जल प्रदाय के लिए स्थापित संयंत्र-क्षमता इस प्रकार है -नर्मदा योजना के पहले, दूसरे फेज और तीसरे फेज का प्रथम चरण- 540, यशवंत सागर- 45 और बिलावली- 9 (कुल 594) मिलियन लीटर यानी एम.एल.डी. प्रतिदिन। इसमें से वास्तविक उपयोग केवल 397 एम.एल.डी. प्रदाय का ही है। फिर उसमें खरगोन, महू, मंडलेश्वर आदि की कुछ बस्तियों की भी हिस्सेदारी है। वह और बीस प्र.श. वितरण हानि घटाने के बाद इंदौर को सिर्फ 258.4 एम.एल.डी. पानी मिल रहा है। इसके अतिरिक्त हैंड पम्प और नलकूपों से भी 60 एम.एल.डी. पानी उपलब्ध है।

जरूरत (मांग) – दशकीय वृद्धि दर 48.8 के आधार पर 2025 में इंदौर की जनसंख्या 39.5 लाख हो सकती है जो कि स्मार्ट सिटी घोषित होने, नए प्रोजेक्ट जैसे टीसीएस, इनफोसिस आदि आने तथा निगम सीमा बढ़ने से और बढ़ेगी। यह 40 लाख से कुछ अधिक सम्भावित है। वैसे, शैक्षणिक और व्यावसायिक केंद्र होने से यहां रोज आने-जानेवालों की संख्या (फ्लोटिंग आबादी) भी बहुत ब़ढ़ी है।  अतः मांग निम्न अनुसार होगी –

जनसंख्या (लाख)

घरेलू मांग का मानदंड (एलपीसीडी) कुल घरेलू मांग (एमएलडी)  वाणिज्यिक + औद्यो. (एमएलडी) व्याव.हानि + रिसाव (एमएलडी) कुल मांग (एमएलडी)
1 2 3=(1 x 2) 4 5= (3का20%) 6= (4+5+6)
40* 150** 600 65+ 120  785

 

अनुमानित/आकलित जनसंख्या। शहरी विकास मंत्रालय का मानदंड । +अनुमानित मांग।

एलपीसीडी= लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन। एमएलडी= मिलियन लीटर प्रतिदिन।

नर्मदा से खरगोन, महू, मंडलेश्वर आदि को, जहां अभी 60 एम.एल.डी. पानी दिया जा रहा है, उनकी बढ़ी हुई मांग के अनुरूप करीब 80 एम.एल.डी. पानी देना होगा। यह इंदौर शहर की मांग के अतिरिक्त होगा।

आगामी वर्षों में नर्मदा फेज 3 का द्वितीय चरण पूरा होने पर स्थापित क्षमता 360एम.एल.डी. से बढ़कर 958 एम.एल.डी.हो जाएगी। यदि इसका पूरा उपयोग हो तो 2025 के लिए उपरोक्त आकलित मांग की पूर्ति सम्भव है। किंतु पिछले अनुभव हैं कि स्थापित क्षमता और वास्तविक उपयोग में अंतर रहता आया है।

भविष्य की रणनीति – जल प्रदाय की एशियन डेवलपमेंट बैंक समर्थित वर्तमान व्यवस्था केंद्रीकृत है जिसमें पूरी जवाबदारी शासन और नगर निगम की है। इसमें बदलाव कर इसे विकेंद्रित करना होगा जिससे इसमें नागरिकों की भागीदारी बढ़े, स्थानीयता बोध जगे और जल स्रोतों-सम्पत्तियों का समन्वित उपयोग हो। इसका उद्देश्य यह है कि नल-जल प्रदाय पूरे शहरी क्षेत्र में हो। पानी बर्बाद होने से बचाया जाए। लोगों को शहरी विकास मंत्रालय की अनुशंसानुसार 150एलपीसीडी की दर से मान्य गुणवत्तावाला पानी मिले। जल कर वसूली शत-प्रतिशत हो और नर्मदा योजना आत्म-निर्भर बने। अतः निम्न कार्य किए जाएं

(क) जल स्रोत एवं अधोसंरचना-विकासात्मक  

 तालाब योजनाएं

इंदौर के आसपास नर्मदा एवं चम्बल कछार में पर्याप्त सतही जल उपलब्ध है जो संग्रहण की व्यवस्था नहीं होने से वर्षा ऋतु में बह जाता है। धरनावदा, भैंसलाय, पलारी और डोंगरगांव तालाब यशवंत सागर के फीडर तालाब के रूप में काम आ सकते हैं। वहां संचित जल उद्वहन (लिफ्ट) या बहाव द्वारा यशवंतसागर में स्थानांतरित कर उसकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है। उसका पूर्ण जलस्तर (ऍफआरएल) 522.65 से बढ़ाकर 525 मीटर करने से 153 लाख घनमीटर अतिरिक्त जल संग्रहीत हो सकता है।

इसी प्रकार, बिलावली तालाब के लिए, जो कुछ वर्षों से पूरा नहीं भर पाता, तिंछा, तिल्लोरखुर्द, मकोय, धोसीखेडी और कम्पेल तालाब का निर्माण फीडर तालाब के रूप में हो सकता है। इससे बिलावली जल शुद्धीकरण संयंत्र उपयोग जल प्रदाय के लिए किया जा सकेगा।

यशवंतसागर और बिलावली तालाब के उपरोक्त 9 फीडर तालाबों के अलावा छः और स्थानों पर भी तालाब बनाए जा सकते हैं और उनसे भी इंदौर और महू को सीधे पानी दिया जा सकता है। ये हैं- सियादा, बेगम खेडी, पातालपानी, नखेरी, कुमठी और भेजकराडीया।

नर्मदा की सहायक कारम नदी पर धार जिले के गुजरी गांव के पास तालाब बनाया जा सकता है। इसकी जलग्रहण क्षमता 60मिलियन घन मीटर (30एमजीडी) है। यह जगह इंदौर से70 कि.मी. दूर है।

 नदी जल योजनाएं 

नर्मदा फेज 3 की द्वितीय चरण परियोजना स्वीकृत है। वह शीघ्र पूरी की जाए। उससे अंतरिम तौर कुछ मात्रा में पानी इंदौर को देना शुरू किया जाए ।

माही नदी वृहद परियोजना इंदौर से 120 कि.मी. दूर है। इसमें पेयजल और औद्योगिक जरूरतों के लिए 51 मिलियन घन मीटर पानी का प्रावधान है। इसमें से 75 प्र.श. अर्थात करीब 38 मिलियन घन मीटर (20एमजीडी) पानी 100 मीटर तक उद्वहन कर और 75 कि.मी. सामान्य ढलान से बहाव या पाइप लाइन द्वारा यशवंतसागर में संग्रहीत किया जा सकेगा।

इंदौर के पास चोरल नदी से भी पानी स्थानांतरित कर यशवंतसागर में संग्रहीत किया जा सकता है।

भू-जल उपयोग

शहर में करीब 200 पुराने कुंएं और बावड़ियां हैं। उनका स्थिति विवरण तैयार कर जीर्णोद्धार किया जाए, साफ सफाई कर उन्हें संरक्षित किया जाए ताकि गम्भीर जल संकट में उनसे पानी लिया जा सके।

फिलहाल करीब 1000 हैंडपम्पों और 5000 नलकूपों से भी पानी(60एमएलडी) लिया और वितरित किया जा रहा है। किंतु निजी नलकूपों की संख्या इससे कई गुना ज्यादा होने का अनुमान है जिससे भूजल स्तर नीचे जा रहा है। अवैध नल कूपों की खोज कर उन्हें बंद कराया जाए।

भू-जल संवर्धन

करीब दस वर्ष पहले इंदौर नगर निगम ने वर्षा जल संग्रहण (आर.डब्लू.एच.) की एक योजना लागू की थी जिसमें मकानों व बहुमंजिला भवनों में आर.डब्लू.एच. अनिवार्य करने और प्रोत्साहन देने के अलावा निजी मकानों और बहुमंजिला भवनों; स्कूल, कालेज, शासकीय-अर्धशासकीय भवनों/ काम्प्लेक्सों, पुराने कुवें-बावड़ियों तथा खुली उद्यानभूमियों पर काम के लक्ष्य भी थे। इसकी समीक्षा और उचित सुधार कर इसे पुनः लागू किया जाए। इस हेतु जन प्रतिनिधियों, सामाजिक संस्थाओं और औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधियों के टास्क फोर्स का पुनर्गठन कर उसे अधिक अधिकार सम्पन्न बनाया जाए।

केंद्रीय भू-जल बोर्ड द्वारा गम्भीर और क्षिप्रा नदी थाले के लिए बनाई गयी कृत्रिम भूजल पुनर्भरण विस्तृत योजना तत्काल लागू की जाए ताकि इंदौर के कछार में भूजल उपलब्धता बढ़ सके। भूजल सर्वेक्षण द्वारा शहरी क्षेत्र के कनफाइंड एक्विफर और उनके पुनर्भरण इलाके खोजे जाएं। उन्हें सीमेंटीकृत/ पक्का नहीं किया जाए।

 वितरण प्रणाली

ओवरहेड स्टोरेज टैंकों की क्षमता में 450 लाख लीटर की वृद्धि शीघ्र की जाए। अभी यह 1992 लाख लीटर है। इसे बढ़ाकर कुल क्षमता 2442 लाख लीटर की जाए। अभी वितरण पाइप लाइन नेटवर्क की कुल लम्बाई 2079 कि.मी. है, जो शहर के सिर्फ 130 से 150 वर्ग कि.मी.क्षेत्र में है। निगम सीमा में 2014 में शामिल 29 गांव तो इसके बाहर हैं ही, पुरानी निगम सीमा के कई इलाकों में भी पाइप लाइन नहीं है। वहां अन्य स्रोतों जैसे हैंडपम्प और टैंकरों से जल प्रदाय होता है, जो महंगा है और जिसमें काफी पानी बर्बाद जाता है। अतः 2294 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन शीघ्र डाली जाए।

(ख) संधारणात्मक

महंगे नर्मदा जल की बर्बादी रोकने के उपाय बहुत जरूरी हैं। सम्पूर्ण जल वितरण प्रणाली का मानचित्र बनाया जाए। महत्वपूर्ण स्थानों पर पाइप लाइन में दबाव की मानीटरिंग हो। खराब वाल्व और जर्जर पाइप लाइनें बदली जाएं। जल प्रदाय और सीवरेज की लाइनें दूर दूर हों। रिसाव खोज अध्ययन हों। जी.आई.एस. की मदद से प्राथमिकता तय की जाए। एक नियंत्रण कक्ष स्थापित हो, जो आधुनिकतम स्वचालित सूचना तंत्र से जुड़ा हो। पर्याप्त संख्या में सक्रिय अनुरक्षण /संधारण दल गठित हों।

(ग) प्रशासनिक

सभी घरेलू जल संयोजनों पर मीटर लगाए जाएं ताकि नागरिक वास्तविक उपयोग के आधार पर जल कर चुकाएं और पानी के दुरुपयोग को हतोत्साहित किया जा सके।

शहर ओवरहेड टैंक के आधार पर जल वितरण जोन (डिस्ट्रिक्ट मीटर जोन) में बंटा होगा। इसके उचित स्थानों पर, जैसे डिस्ट्रिक्ट मीटर जोन के इनलेट पर बल्क मीटर लगे होंगे। बड़े उपभोक्ताओं के परिसर में भी इनलेट के पहले ऐसे ही बल्क मीटर लगे होंगे।

बल्क मीटर लग जाने के बाद अनअकाउंटेड फार वाटर एवं नान रेवेन्यू वाटर की मानिटरिंग की जा सकेगी। इससे जल लेखा का कार्य सम्पन्न हो सकेगा।

जल-कर की वसूली के लिए उपयुक्त व्यवस्था की जाए

उपयोग किए हुए पानी को उपचारित कर पुनः उपयोग के लिए नीति तय की जाए और अधोसंरचना स्थापित की जाए। उपचारित पानी का उपयोग सिंचाई, उद्योग वाहनों की धुलाई आदि के लिए किया जा सकता है। भले ही कितने भी जल स्रोतों का दोहन कर साफ पानी (फ्रेश वाटर ) प्राप्त करने की व्यवस्था कर ली जाए 2024 के बाद पुनर्चक्रीकृत (री-साइकल्ड) पानी पर निर्भरता काफी बढ़ेगी। तब जल वितरण की दो पाइप लाइनें होंगी, जिनमें से एक में शुद्ध पेय जल और दूसरे में उपचारित/पुनर्चक्रीकृत जल प्रवाहित होगा। पूरे शहर में यह स्थिति चरण-दर-चरण लागू होगी। इससे पहले इसे चुनिंदा मोहल्लों/ रहवासी बस्तियों / वार्ड में ‘पायलट प्रोजेक्ट’ के रूप में लागू करना चाहिए ताकि भविष्य की परिस्थितियों से नागरिकों के अनुकूलन की प्रक्रिया शुरू हो सके।

(घ) जल साक्षरता / जागरूकता मूलक कार्य

जल सुरक्षा के लिए जन सामान्य को जल साक्षर/जागरूक बनाना सर्वाधिक जरूरी है। यह समयावधि के बंधन से परे सार्वकालिक कार्य है। इसकी कार्य योजना अभी से शुरू की जाकर दीर्घकाल तक जारी रखना होगी। इसके मुद्दे घरेलू उपयोग में पानी की बचत, पीने के लिए साफ पानी का उपयोग, छत से वर्षा जल संग्रहण के प्रति रुचि और सम्पूर्ण जानकारी देना, रसोई घर और स्नानघर के पानी का उपयोग वाहनों की धुलाई और किचन गार्डन में करना और नर्मदा से प्राप्त जल का वास्तविक आर्थिक मूल्य समझाना तथा लोगों को जल शुल्क भुगतान के लिए प्रेरित करना आदि हो सकते हैं। इसे एक व्यवस्थित अभियान का स्वरूप दिया जाए। इंदौर में जिस तरह स्वच्छता के लिए अभियान चल रहा है, जिससे यह शहर नम्बर वन हो गया है, वैसा ही अभियान जल साक्षरता-जागरूकता के लिए भी होना चाहिए। इसे स्वछता जागरूकता कार्यक्रम को साथ जोड़ा भी जा सकता है। इसमें स्वैच्छिक गैर सरकारी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को सहभागी बनाया जाए। महाराष्ट्र सरकार ने पुणे स्थित प्रशासन अकादमी (‘यशदा’) में एक विशेष जल साक्षरता टास्क फोर्स (प्रकोष्ठ) बनाकर इसे तरजीह दी है। उसके अनुभव लेकर इंदौर में भी जल साक्षरता/ जागरूकता चलाया जा सकता है।

जल ही जीवन है। मनुष्य, कोई भी जीव या प्राकृतिक प्रणाली हो, पानी सबके अस्तित्व और विकास के लिए जरूरी है। इसकी पर्याप्त उपलब्धता ही कृषि, औद्योगिक या पर्यावरणीय सभी तरह की विकासीय गतिविधियों की कुंजी है। आबादी वृद्धि और बहु-आयामी विकास से पानी की मांग तेजी से बढ़ रही है जबकि उपलब्धता सीमित है। विकास के सपने साकार हों, इसके लिए महत्वपूर्ण है; वैकल्पिक स्रोतों का संरक्षण और संवर्धन तथा नवाचारी उपायों के साथ समन्वित आपूर्ति-प्रबंधन। क्योंकि, जैसा कहा गया है;

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। 

पानी बिना न ऊबरे, मोती मानुस चून॥

– रवीन्द्र शुक्ला 

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