हम दो, हमारे दो की नीति बहुत जरूरी

चीन को पीछे छोड़कर हम जनसंख्या के मामले में शीर्ष स्थान पर पहुँच गए हैं। जिसको लेकर हम और हमारी व्यवस्था इतरा सकती है, लेकिन जिस देश में भीख मांगते हुए बच्चे और भोजन के लिए तड़पते लोग सड़कों पर दिखाई दें। फिर यह जश्न से अधिक चिंता वाली बात है। संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में देश की आबादी भले 142.86 करोड़ हो गई है, लेकिन इस कदर जनसंख्या बढ़ना एक दोधारी तलवार से कम नहीं है। बढ़ती जनसंख्या अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती तो है ही, साथ ही हर हाथ को काम और सुविधाएं कैसे मिलेगी? यह भी एक वाजिब सवाल है।  
आज देश की एक बड़ी आबादी के सामने भूख बहुत बड़ी समस्या है और वो दो जून की रोटी के लिए सरकारी स्कीमों पर आश्रित है। मानव जीवन की सबसे बड़ी जरुरतों में भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा शामिल है। कहीं न कहीं भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन जीने की स्वतंत्रता का अधिकार जो अनुच्छेद-21 के अंतर्गत आता है। वह भी तभी सुरक्षित रह सकता है। जब उक्त मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। ऐसे में अब वक्त इस दिशा में संकेत कर रहा है कि हम जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में आगे बढ़े, क्योंकि हम विश्व के संपूर्ण भू-भाग का मात्र 2.4 प्रतिशत हिस्सा साझा करते हैं और ऐसे ही जनसंख्या बढ़ती रही। तो यह कई चुनौतियों को जन्म देने वाली बात होगी। अत्याधिक जनसंख्या न केवल मानव जीवन को प्रभावित करती है, बल्कि इससे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है।
येल यूनिवर्सिटी द्वारा जारी इनवायरमेंटल परफॉर्मेंस रिपोर्ट 2022 कहती है कि भारत पर्यावरण के मामले में 180 देशों की सूची में आखिरी पायदान पर है। वहीं एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक देश की 40 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के पास सुरक्षित जल की सुविधा उपलब्ध नहीं है। पांच वर्ष से कम उम्र के एक तिहाई से अधिक बच्चे देश के भीतर कुपोषित हैं, जबकि 15 से 49 वर्ष की आयु की लभगभग आधी महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। ऐसे में लगातार बढ़ रही आबादी देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और पर्यावरण के लिहाज से माथे पर सिकन डालने वाली है।
देश के सामने एक बड़ी चुनौती “हर हाथ को काम” उपलब्ध कराना है। देश में लगभग एक तिहाई युवा वर्तमान समय में बेरोजगार हैं। इन युवाओं के पास न बेहतर शिक्षा है और न ही कौशल। वहीं एक रिपोर्ट की मानें तो देश में महज 05 प्रतिशत कामगार ऐसे हैं, जो आधिकारिक तौर पर स्किल्ड हैं। ऐसे में ये वक्त है, इंफ्रास्टक्चर में सुधार का, न कि बढ़ती जनसंख्या पर जश्न मनाने का। जनसंख्या सिर्फ नंबर गेम बनकर रह जाए और देश के संसाधनों पर बोझ साबित हो। तो यह हरगिज बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। ऐसे में अब जनसंख्या नियंत्रण के साथ सुविधाओं के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की जरुरत है। यूनाईटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड की रिपोर्ट के मुताबिक देश की 68 फीसदी आबादी 15 से 64 वर्ष के बीच की है। ये बात हमारे लिए सुखद है, लेकिन इस 68 फीसदी आबादी का देशहित में व्यापक इस्तेमाल कैसे हो? यह सुनिश्चित किया जाना भी बेहद आवश्यक है।
बढ़ती जनसंख्या सिर्फ स्वास्थ्य और पर्यावरणीय लिहाज से चिंताजनक स्थिति पैदा नहीं करती है। इसके सामाजिक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं।  ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 107 देशों में बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल से काफी पीछे 94वें स्थान पर है। इसके अलावा, द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड, 2020 की रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा दिए गए अनुमान बताते हैं कि भारत में लगभग 14 फीसदी आबादी कुपोषित है। अब स्वाभाविक सी बात है, कि अगर किसी व्यक्ति को खाने के लिए दाने नहीं होंगे। फिर समाज पर इसका नकारात्मक असर अवश्य देखने को मिलेगा। भारत में बढ़ती वैमनस्यता, चोरी-डकैती की घटनाओं और आपसी विवाद को इसी के तहत देखा जा सकता है।
आज विश्व का हर पाँचवाँ व्यक्ति भारत में रहता है और देश की प्रजनन दर अगर परिवर्तित नहीं होती है, तो एक आंकड़े के अनुसार देश की आबादी 2100 आते-आते 2.5 बिलियन हो जाएगी। ये संख्या हमें और हमारी रहनुमाई व्यवस्था को डराने वाली है। परिवार नियोजन की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। वरना देश जनसंख्या विस्फोट की दिशा में बढ़ जाएगा। यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक तरफ विकसित देश जनसंख्या पर नियंत्रण पाकर उच्च जीवन स्तर अपने नागरिकों को मुहैया करा रहे हैं। दूसरी तरफ हमारा देश है। जहां पर दो बच्चे की नीति (टू-चाइल्ड पॉलिसी) का मसौदा 35 बार संसद के समक्ष रखा जा चुका है, लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई कठोर कदम नहीं उठाया गया है। देश के भीतर जब भी जनसंख्या नियंत्रण की बात आती भी है, तो उसे महिलाओं की नसबंदी से जोड़कर देखा जाता है।
गौरतलब हो कि महिलाओं की नसबंदी के अपने खतरे हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017-18 के बीच, भारत में 93.1 प्रतिशत नसबंदी महिलाओं पर की गई थी। ऐसे में परिवार नियोजन के उपायों को अपनाने के लिए सिर्फ महिलाओं पर दबाव नहीं डाला जा सकता है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों को आगे आने की जरुरत है। महिला-पुरुषों की निर्धारित शादी की उम्र को आगे बढ़ाकर भी कुछ हद तक इस दिशा में कदम बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा आधी आबादी को पूर्णरूप से शिक्षित करना भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
– महेश तिवारी

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