स्लीपर सेल पर बढ़ता हुआ शिकंजा  

पिछले साल सितंबर में पीएफआई पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने‌ के बाद से ही सरकारी एजेंसियां लगातार उसके स्लीपर सेल की धड़ पकड़ कर रही हैं। भारत देश में पहले से ही स्लीपर सेल एक्टिव रहा है। बहुत सारी आतंकवादी गतिविधियों में हमेशा शामिल रहने वाले स्लीपर सेल की वजह से ही आतंकवादी यहां पर भी अपने मंसूबों को अंजाम देते रहे हैं। अब तक देश में जितनी भी आतंकवादी गतिविधियां हुईं उसके पीछे कहीं न कहीं स्लीपर सेल का  हाथ रहा है। 
इस पर हमेशा से मुंबई की बॉलीवुड फिल्मों में भी दिखाया गया है। बहुत सारी फिल्में ऐसी बनी है जिनमें स्लीपर सेल की एक्टिविटीज को दिखाया गया है। खास कर अक्षय कुमार कुछ साल पहले आई हुई फिल्म जिसका नाम हॉलीडे था जो केवल स्लीपर सेल पर ही बनाई गई थी। उस मूवी को दर्शकों ने बहुत पसंद भी किया जिसमें आखिरी में जाकर स्लीपर सेल के सरगना को हीरो मार देता है। परंतु वास्तविकता इसके उलट है। इसकी बुनावट काफी उलझी हुई और कई स्तरों की है। यदि एक जोन में स्लीपर सेल की एक्टिविटीज खत्म हो जाती हैं तो दूसरी जोन में कोई अलग सरगना  इस काम को अंजाम देने में जुट जाता है।  हकीकत में मुंबई शहर हो या  देश का कोई दूसरा हिस्सा, स्लीपर सेल अपने तरीके से काम  करते रहते हैं और एक लंबे अर्से तक किसी एक काम के पीछे पड़े रहने के बाद बड़ी सफाई से उस काम विशेष को अंजाम देकर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में लौट जाते हैं। इनसे देश का कोई हिस्सा अछूता नहीं है।
मुंबई, दिल्ली, नेपाल का बॉर्डर इलाका या छत्तीसगढ़ और यूपी जैसे राज्य, इनका मकड़जाल हर जगह है। यहां तक कि अपेक्षाकृत शांत माने जाने वाले दक्षिण भारत में भी। व्यापक फैलाव की वजह से इसमें नए-नए लड़कों को शामिल करने की कोशिश की जाती है। बीच में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा मुंबई के मालवणी,  मुंब्रा, नालासोपारा जैसी जगहों से कई लड़कों को उठाया गया था जो कि पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर थे‌। लोगों को लगता था कि कॉल सेंटर में काम करते हैं लेकिन वे कहीं ना कहीं स्लीपर सेल के रूप में काम किया करते थे। उनका खुलासा होने के बाद में पता चला कि उनको पाकिस्तान में ट्रेनिंग देने के बाद यहां रखा गया था। भारत देश में एक समुदाय ऐसा भी है जो कि भारत  विरोध के कार्यों में संलिप्त रहता है। हमें बार-बार इसका प्रमाण भी मिलता रहा है।
मुंबई पुलिस हो या एनआईए हो या उसके साथ और भी जितनी हमारे देश के एजेंसियां हैं,  वे सभीसभी स्लीपर सेल को खत्म करने में हमेशा लगी रहती हैं। ऑपरेशन ढाका के अंतर्गत बिहार के एक मदरसे में आतंकी स्लीपर सेल मिले थे। वहीं दूसरी तरफ गजवा ए हिंद पर भी कई बार एनआईए ने चार्जशीट करके  कार्रवाई की है, यह सही है कि भारत के अंदर स्लीपर सेल की एक्टिविटीज बहुत जगहों पर है  लेकिन एनआईए, आइबी और क्षेत्रीय पुलिस तथा एजेंसियां बड़े पैमाने पर  स्लीपर सेल को खत्म करने में जुटी हुई हैं। आम लोगों को ज्यादा जानकारी तभी मिल पाती हैं जब मीडिया के समकक्ष उनसे जुड़ी जानकारियां सामने आती हैं। कभी नहीं भी आती हैं लेकिन लगातार इनकी कोशिशें चल रही कि स्लीपर सेल को इस तरीके से खत्म किया जाए वे भारत  में दोबारा एक्टिव ना हो पाएं।
जो पढ़कर नए लड़के यहां पर बाहर निकलते हैं, खास कर एक समुदाय के बच्चे, उन्हें अच्छे खासे पैसे का लालच  और जिहाद के नाम पर  ट्रेनिंग देकर स्लीपर सेल बनाया जाता है। यह प्रक्रिया हमें समय-समय पर मीडिया और फिल्मों के द्वारा पता चलती रहती है लेकिन स्लीपर सेल किस लेवल से अपना काम करता है, कहां-कहां वह एक्टिव रहता है, किस एजेंसी में घुसकर और कैसे दूसरे देशों को यहां की  सीक्रेट्स भेजने का काम करता है, इसे पता लगाना काफी कठिन होता है। अगर लम्बे समय तक उनकी गतिविधियां नहीं होती  हैं तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वे समाप्त हो चुके हैं। यह एक सतत् प्रक्रिया है, जो अनवरत जारी रहेगी। देश की एजेंसियां उन पर लगातार सिकंजा कसती जा रही हैं।
वर्तमान में पीएफआई और उसके स्लीपर सेल के के खिलाफ 3 मोर्चों पर काम चल रहा है। पहला, पीएफआई के  नेटवर्क की मैपिंग। इसकी शुरुआत कर्नाटक से हुई थी। इसके अंतर्गत देश के उन सभी इलाकों का भी एक मैप तैयार किया जा रहा है, जहां पीएफआई  और उसके स्लीपर सेल से जुड़ा एक भी व्यक्ति रहता है। दूसरा पीएफआई की फंडिंग के सोर्सेज का पता लगाना। एजेंसियां  उससे जुड़े सारे डॉक्युमेंट कलेक्ट कर रही हैं। तीसरा, पीएफआई का नाम जिन-जिन दंगों या फिर घटनाओं में आया, उन सभी मामलों को जॉइंट टीम रीविजिट करेगी। यानी हम निकट भविष्य में आशा कर सकते हैं कि देश पीएफआई और उसके स्लीपर सेल के मकड़जाल से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा और देश की एजेंसियां ऐसे अन्य किसी संगठन को उभरने से पहले ही कुचलने कु दिशा में कार्य कर पाएंगी।
– आनंद मिश्रा 

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