निरर्थक मृगतृष्णा में न पड़ें

जिन सिद्धियों के लिए लोग लालायित रहते हैं और अपनी व्यक्तिगत इच्छा और अभिलाषा के लिए उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं । उसके संबंध में आइए सार्वजनिक हित की दृष्टि से, बड़े दृष्टिकोण से विचार करें कि यदि सिद्धियाँ सर्वसुलभ हो जाँय तो संसार में सुविधा की वृद्धि होगी या असुविधा की ?

मान लीजिए कि अपने जीवन की अवधि लोगों को मालूम हो जाय, यह पता लग जाय कि हमारी मृत्यु कब ? किस दिन? किस प्रकार होगी ? तो उस मनुष्य का जीवन बड़ा विचित्र हो जाएगा। अमुक दिन मरूँगा, इससे पहले नहीं मर सकता, यह निश्चित हो जाने पर वह बड़ी से बड़ी दुर्घटना करने के लिये, किसी से लड़ने मरने के लिए तैयार हो जाएगा । मृत्यु के डर से लोग आगा-पीछा सोचते हैं और संघर्ष में पड़ने से बचते रहते हैं, पर जो मरने से निधड़क हो गया हो उसे बड़े से बड़ा उत्पात करने में कुछ भय न होगा।

दूसरी बात यह भी है कि जिसे मालूम है कि मेरी मृत्यु के समय में केवल इतना समय रहा है, वह सांसारिक काम धंधों से उदास होकर बैठ जाएगा। मृत्यु के शोक में बहुत पहले से डूब जाएगा। अपने दीर्घ जीवन की आशा से लोग धन-वैभव एकत्रित करते हैं । वह उसके मरने पर विधवा तथा बच्चों के काम आती है । जिसे मालूम है कि मुझे सिर्फ आठ महीने जीना है वह संपत्ति संचय न करेगा, जो होगी उसे भी खर्च कर देगा। इस प्रकार एक नहीं हजारों प्रकार की कठिनाइयाँ बढ़ जाएंगी ।

मान लीजिए कि व्यापार की तेजी मंदी का लोगों को पता चल जाय तो व्यापार का कारोबार ही ठप्प हो जाएगा । जब लोगों को यह मालूम हो जाए कि अब तेजी आने वाली है तो पहले से ही लोग चीजों को रोक लेंगे और लोगों को वह वस्तु मिलना कठिन हो जाएगी । इसी प्रकार यह मालूम हो जाए कि यह चीज मंदी होने वाली है तो उसे बेचना तो सब चाहेंगे, लेना कोई नहीं । सब लोगों को तेजी मंदी का पता चलने लगे तब तो व्यापार नाम की कोई वस्तु ही न रह जाएगी ।

परमात्मा अपनी दुनिया को उलट-पुलट करना नहीं चाहता । इसलिए उसने तेजी-मंदी का सच्चा ज्ञान किसी ज्योतिषी, सटोरिये या सिद्ध को नहीं दिया है।

इस प्रकार जितनी भी सिद्धियाँ हैं वे यद्यपि आकर्षक दीखती हैं, पर अंततः मनुष्य जाति के लिए घोर हानिकारक ही सिद्ध होंगी । इसलिये परमात्मा ने उन्हें सर्व साधारण के लिये सुलभ नहीं किया है । जिन्हें वे सिद्धियाँ मिलती हैं वे वही लोग होते हैं जो पूर्ण परमात्म तत्त्व को प्राप्त कर लेते हैं और विश्व व्यवस्था में गड़बड़ करने के लिए उनका प्रयोग नहीं करते । इसलिये सिद्धियों के फेर में न पड़कर हमें स्वाभाविक सत्य, प्रेम, न्यायमय जीवन बिताना चाहिये । यही जीवन की सबसे बड़ी सफलता और परम सिद्धि है ।

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