निरर्थक मृगतृष्णा में न पड़ें

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जिन सिद्धियों के लिए लोग लालायित रहते हैं और अपनी व्यक्तिगत इच्छा और अभिलाषा के लिए उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं । उसके संबंध में आइए सार्वजनिक हित की दृष्टि से, बड़े दृष्टिकोण से विचार करें कि यदि सिद्धियाँ सर्वसुलभ हो जाँय तो संसार में सुविधा की वृद्धि…

नाम साधना क्या है…?

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पत्थर पर यदि बहुत पानी एकदम से डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा। फिर पानी बह जाएगा और पत्थर सूख जाएगा। किन्तु वह पानी यदि बूंद-बूंद पत्थर पर एक ही जगह पर गिरता रहेगा, तो पत्थर में छेद होगा और कुछ दिनों बाद पत्थर टूट भी जाएगा। इसी प्रकार…

‘परिश्रम’ एक विलक्षण सद्गुण

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कई बार कुछ लोगों में जन्मजात प्रतिभाएँ भी पाई जाती हैं । उनमें शारीरिक एवं मानसिक प्रतिभा दूसरों की तुलना में अधिक होती है । इसके आधार पर वे जल्दी और अधिक सरलता से सफलता प्राप्त कर लेते हैं । यह ईश्वर का पक्षपात या भाग्य का खेल नहीं, उनके…

मनुष्य का शरीर एक ‘कल्पवृक्ष’ है

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मनुष्य का शरीर एक 'कल्पवृक्ष' है, इसकी छाया में बैठा हुआ मन उत्तम वरदान पा सकता है, मनोकामनाएँ पूरी कर सकता है पर स्वर्ग के और पृथ्वी के कल्पवृक्षों में थोड़ा सा अंतर यह है कि स्वर्ग के कल्पवृक्ष इच्छा करते ही, बिना श्रम के ही मनोकामनाएँ पूरी कर देते…

दूसरों पर दोषारोपण करने से पहले स्वयं को जाँचें

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  बहुधा हम सब यह अभियोग करते रहते हैं कि संसार बहुत खराब हो गया है। जिसे देखो वह वैसे ही कार्य करने में लगा हुआ है, जो संसार की दु:ख-वृद्धि करते हैं, पर क्या कभी हम यह भी सोच पाते हैं कि संसार में दु:ख और कष्ट बढाने में…

“वासना” को नियंत्रित कीजिये

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"वासना" में कामुकता मुख्य है । इसमें बरती गई ज्यादती जिंदगी की जड़ों पर कुल्हाड़े से किए जाने वाले वार की तरह घातक सिद्ध होती है । "वासना" की ललक में मनुष्य इससे जुड़ी सारी मान - मर्यादा को भूल जाते हैं । जीवनी शक्ति के इस खजाने का नाश…

व्यापक बुराइयों की चर्चा नहीं समाधान पर कार्य करें

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व्यापक बुराइयों की अधिक चर्चा करने से कुछ लाभ नहीं नहीं । वस्तुस्थिति को हम सब जानते ही हैं । इस चर्चा से चित्त में क्षोभ और संताप ही उत्पन्न होता है । यों भले मनुष्यों का भी अभाव नहीं है वे प्रत्येक क्षेत्र में, बदनाम क्षेत्रों में भी मौजूद…

सत्कर्म करने के लिए उच्च स्तर की मनोभूमि चाहिए

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"सत्कर्म" अनायास नहीं बन पड़ते । उनके पीछे एक प्रबल दार्शनिक पृष्ठभूमि का होना आवश्यक है । सस्ती नामवरी लूटने के लिए या किसी आवेश में आकर कभी-कभी घटिया स्तर के लोग भी बड़े काम कर बैठते हैं, पर उनमें स्थिरता नहीं होती । यश कामना की पूर्ति भी हर…

लोकमानस में श्रेष्ठता वाणी से नहीं आचरण से आती है

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लोकमानस में "सद्ज्ञान" की प्रतिष्ठापना करने का कार्य हमें अपने व्यक्तिगत जीवन में सुधार एवं परिवर्तन करके ही संपन्न करना होगा । प्रवचन और लेख इस कार्य में सहायक तो हो सकते हैं, पर केवल उन्हीं के आधार पर अभीष्ट उद्देश्य की प्राप्ति संभव नहीं । दूसरों पर वास्तविक प्रभाव…

भगवान हमें हर पल देख रहे है

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हमारे घर के पास एक डेरी वाला है. वह डेरी वाला एसा है कि आधा किलो घी में अगर घी 502 ग्राम तुल गया तो 2 ग्राम घी निकाल लेता था। एक बार मैं आधा किलो घी लेने गया. उसने मुझे 90 रूपय ज्यादा दे दिये । मैंने कुछ देर…

अपने को जानें, भव बंधनों से छूटें

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संसार में जानने को बहुत कुछ है, पर सबसे महत्वपूर्ण जानकारी अपने आप के संबंध की है। उसे जान लेने पर बाकी जानकारियाँ प्राप्त कर लेना सरल हो जाता है । ज्ञान का आरंभ आत्मज्ञान से होता है । "जो अपने को नहीं जानता वह दूसरों को क्या जानेगा ?…

अंतरात्मा की पुकार अनसुनी न करें

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मनुष्य में जहाँ तक शारीरिक - मानसिक स्तर की अनेक विशेषताएँ हैं, वहीं उसकी वरिष्ठता इस आधार पर भी है कि उसमें "अंतरात्मा" कहा जाने वाला एक विशेष तत्व पाया जाता है। उसमें "उत्कृष्टता" का समर्थन और "निकृष्टता का विरोध करने की ऐसी क्षमता है जो अन्य किसी प्राणी में…

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