अंधेर नगरी चौपट राजा

पालघर जिला उन सभी नागरिक समस्याओं से त्रस्त है, जिनसे देश का कोई आम पिछड़ा और विकासशील जिला ग्रसित होता है। इनके समाधान के लिए किए जाने वाले प्रशासनिक प्रयास ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ साबित हो रहे हैं।

महाराष्ट्र में मुंबई के करीब बसा पालघर जिला अपने बनने के साल से ही यह हमेशा गलत कारणों से पूरे भारत में चर्चा का केंद्र रहा है। यह वही जिला है जहां प्रधानमंत्री के सपनों की परियोजना बुलेट ट्रेन का सबसे पहले और अब तक दमदार विरोध प्रदर्शन होता आया है। साम्प्रदायिक तनाव की वजह से भी इस जिले का चर्चा-ए-आम है। लुके-छुपे बांग्लादेशियों और अफ्रीकी देशों के नागरिकों की धड़-पकड़ के लिए भी यह बदनाम है। पूरे भारत में चर्चित हिंदू साधू हत्याकांड जिसने देश की राजनीति को हिला कर रख दिया था, को कौन नहीं जानता, वह भी इसी पालघर में अंजाम दिया गया था। राजनीति की बात करूं तो वसई-विरार महानगर में हितेंद्र ठाकुर के नेतृत्व में स्थानीय बहुजन विकास आघाड़ी पिछले 30 सालों से सत्ता पर काबिज है, तो पालघर के बाकी के इलाकों में शिवसेना एकक्षत्र शासन कर रही है। विकासशील और नव निर्मित जिला होने की वजह से पालघर जिले में समस्याएं भी खूब हैं। आइए, आज हम इस पर चर्चा करते हैं।

यातायात और जाम की समस्या- दिन प्रतिदिन विकास की राह में दौड़ रहे जिले में जाम की समस्या आम है। शहरों के जाम को नियंत्रित और नियमित करने के लिए 2-3 साल पहले से प्रशासन ने सिग्नल व्यवस्था का इंतजाम किया है। लेकिन आम पालघर वासी यातायात नियमों का पालन करने लगे तो फिर वह पालघर जिले का निवासी कैसा? इस वजह से भी जाम की समस्या आए दिन सिरदर्द बन जाती है। ट्रैफिक तोड़ना तो लोग अपनी शान समझते हैं और इसमें युवा सबसे आगे हैं। इस वजह से कभी कोई दुर्घटना हो जाए तो गाली खाने की जिम्मेदारी प्रशासन की होती है।

डॉ. पीयूष सिंह, समाजिक कार्यकर्ता

वसई विरार में नशे का व्यापार बढ़ता जा रहा है। उससे कहीं ना कहीं हमारी युवा पीढ़ी दूषित होती जा रही है। वसई विरार में नशे का बहुत बड़ा व्यापार किया जाता है। वसई विरार के जितने भी स्कूल और बाजार हैं, उनके आसपास नशे के पदार्थ बेचे जाते हैं। नशे की जद में सबसे ज्यादा नवयुवक पाए जाते हैं, जो देश का भविष्य कहलाते हैं।

जल ही जीवन है – गर्मियों में पानी की किल्लत यहां आम बात है। ऐसे में झुग्गी झोपड़ियों, बिल्डिंगों और सोसाइटियों से साथ-साथ सड़कों पर भी पानी के टैंकरों की दादागिरी सामान्य बात है। पानी पहुंचाने की भागम-भाग में कई दफा इन टैंकरों से लोग कुचले जाते हैं, दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। मजे की बात यह है कि न इन टैंकरों के पास कोई जरूरी कागजात होते है, ना ड्राइवरों को ही कागजात की फिक्र होती है। ऐसे में अगर कोई दुर्घटना घट भी गई तो पुलिसिया कार्यवाही के नाम पर कागजी खानापूर्ति ही बस रह जाती है। कई दफा कोई कार्रवाई ही नहीं होती और अगर कोई कार्रवाई हो भी गई तो टैंकर माफिया धमकी और गुंडागर्दी पर उतर आते हैं।

फेरीवाले- यह एक समस्या है जो दिखती तो है लेकिन आम जनमानस मजबूरी में नजरअंदाज कर जाता है, लेकिन प्रशासन के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। पालघर जिले के प्रमुख शहरों के मुख्य रेलवे-स्टेशन और सड़कों के आसपास अवैध फेरीवालों ने कब्जा जमा रखा है। इन मुख्य इलाकों में फेरीवाले लगभग 60% इलाका जबरदस्ती कब्जा किये बैठे हैं। राहगीरों और वाहनों को चलने में तकलीफ होती है। इस वजह से यातायात व्यवस्था पंगु हो जाती है। बेमतलब का कचरा और गंदगी पसरी रहती है। शोरगुल बना रहता है। पालघर, वसई, विरार, नालासोपारा, बोईसर में इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर रखा है। ऊपर से खोमचे, ठेले वाले इस मुसीबत में कोढ़ में खाज का ही काम करते हैं।

जल जमाव – बारिश का मौसम इस जिले के आम नागरिकों के लिए एक अलग ही मुसीबत लेकर आता है। थोड़ी भी बारिश हो तो इलाकों और मुख्य सड़कों पर जल-जमाव हो जाता है। अधिकांश जनसंख्या नौकरी पेशा होने की वजह से अपने काम पर नहीं जा पाती, बारिश का फायदा उठाकर ऑटो रिक्शे वाले मनमाने दाम वसूलने लगते हैं। जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। जगह-जगह जल भराव डेंगू, मलेरिया और टायफाइड जैसी जानलेवा बीमारियों को निमंत्रण देती है।

निलेश देलरूखकर, बिल्डर (पालघर)

पालघर में जैसे-जैसे विकास हो रहा है। दिनों दिन यातायात की समस्या उभर रही है। नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं का बुरा हाल है। परिवहन और पीने के पानी की समस्या तो आम जनमानस में भय पैदा करती है। लोकल ट्रेन शुरू तो हो गई है लेकिन उचित फ्रिक्वेंसी का अभाव मुसीबत को पूरी तरह हल नहीं कर पाया है।

आवारा जानवर- आवारा कुत्तों की वजह से आये दिन दुर्घटनाएं घटती रहती हैं। पालघर जिले के हर गांव, कस्बे और शहर में आवारा कुत्तों की तादाद बहुत बढ़ गई है। रात के समय इनका आतंक और भी बढ़ जाता है। मोटरसाइकिल से चलना दुश्वार हो जाता है। प्रशासन ने इनकी नसबंदी का कार्यक्रम काफी दिनों से रोका हुआ है। ऊपर से नागरिकों का यह अंधविश्वास कि कुत्ते को रोटी खिलाने से दुश्मन दूर रहते हैं, ने कुत्तों की आबादी और प्रशासन तथा नागरिकों की परेशानी बढ़ा दी है। दूसरी तरफ पालतू गाय-भैसों ने भी मुसीबत बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है। ये सब बेतरतीब हो सड़क पर आ जाते हैं और दुर्घटना का कारण बनते हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव– दूर के ढोल सुहाने नजर आते हैं। बिल्कुल ऐसे ही पालघर जिले में स्वास्थ्य सेवाएं भी वेंटिलेटर पर लेटी हुई हैं। हर चुनाव में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का वादा किया जाता है लेकिन चुनाव खत्म होते फिर वही ढाक के तीन पात! पिछले दस सालों में वसई विरार में 200 बेड से ज्यादा के दो बड़े अस्पतालों का भूमिपूजन हो चुका है लेकिन जब आप उस भूमि पर जाते हैं तो पाते हैं कि अभी वहां एक ईंट भी नहीं पड़ी है। वसई-विरार में बेहतर स्वास्थ्य सेवा का ख्वाब देखते एक गरीब और मध्य वर्गीय परिवार से जब कोई शख्स अधिक बीमार पड़ता है तो उसके परिवार वाले उसका इलाज करवाने की बजाय उसके कफन-दफन के इंतजाम में लग जाते हैं, क्योंकि निजी अस्पतालों का इलाज यहां बहुत महंगा पड़ता है। ऐसे में एक गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय नागरिक को जीने से ज्यादा मरने की मजबूरी में रूचि हो जाती है। उसे मरना ज्यादा सस्ता लगने लगता है।

एक सकारात्मक और सार्थक पहल जरूर हुई है कि पालघर शहर में सिडको ने एक बड़ा अस्पताल बनाने का बीड़ा उठाया है और अब अंजाम नजर भी आ रहा है लेकिन वसई-विरार का आम नागरिक आज भी एक अदद अच्छे और आधुनिक अस्पताल के इंतजार में शहर की चौखट पर बैठ उसकी बाट जोह रहा है, ताकि बीमारी की हालत में उसे बेसमय बेमौत न मरना पड़े।

                                                  ठाकुर राज में मुसीबतों की गाज 

विगत 2 दशकों से वसई-विरार क्षेत्र में ठाकुर राज कायम है लेकिन जनता की मूलभूत सुविधाओं को लेकर उनमें कोई दिलचस्पी दिखाई नहीं देती। यही कारण है कि इस क्षेत्र का जिस तरह से सुनियोजित विकास होना अपेक्षित था वह नहीं हो पाया। विकास तो छोड़िये नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं दे पाए। हां, लेकिन स्वयं का विकास करने में ये पीछे नहीं रहे। वसई-विरार में एकछत्र राज करने वाले हितेंद्र ठाकुर यहां की राजनीति में बहुत लोकप्रिय हैं और लोकनेता के रूप में प्रसिद्ध भी। राजनीति में इनका कोई सानी नहीं है किंतु नागरिक सुविधाएं प्रदान करने के मामले में फिसड्डी साबित हुए हैं। इनकी पार्टी का नाम तो बहुजन विकास आघाडी है परंतु विकास का कोई रोडमैप नहीं है। आइए इनके राज में विकसित हुए भ्रष्टाचारी माफियाराज- गुंडाराज, जंगलराज के विकास पर एक नजर डालते हैं।

हरित वसई का विनाश, कोंक्रिट के जंगल का विकास

मुंबई की भागदौड़ भरी जिंदगी से तंग आकर बड़ी संख्या में मुंबईकरों ने यहां का रुख किया लेकिन उन्हें क्या पता था कि यहां के पर्यावरण को स्वार्थी भ्रष्टाचारी राजनीतिज्ञों की नजर लग जाएगी।

देखते ही देखते हरियाली का सफाया होने लगा और उसकी जगह अवैध रूप से बिल्डिंगें बनने लगीं। आज भी फर्जी सीसी और बिना ओसी के धड़ल्ले से बिल्डिंगों का निर्माण कार्य तेज गति से चल रहा है। 4 मंजिल की मंजूरी लेकर 7 मंजिला इमारत बनाना यहां पर आम बात है। जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे यहां के जंगलों का सफाया कर वन विभाग की जमीन पर लोगों को बसाया जा रहा है। पहाड़ों को काटकर पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ा जा रहा है। जिसके परिणामस्वरूप भूकम्प एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कहर कभी भी अपना प्रकोप दिखा सकता है।

टैंकर माफियाओं और नेताओं की सांठगाठ

मनपा द्वारा नागरिकों को पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं कराया जाता है लेकिन बिल्डिंग निर्माण के लिए पानी की आपूर्ति बखूबी की जाती है। लोग बिसलेरी और टैंकर के पानी से अपना काम चला रहे हैं। पानी की किल्लत होने से टैंकर माफियाओं का यहां बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है। जितनी अधिक पानी की कमी, उतने ही महंगे दामों में पानी का भाव बढ़ता जाता है। गर्मियों में तो टैंकर मफिया मनमाने भाव में पानी की कालाबाजारी करते हैं और मालामाल हो जाते हैं। कहा जाता है कि इस काली कमाई का कुछ हिस्सा कमीशन के रूप में सत्ताधारी नेताओं के जेब में जाता है इसलिए टैंकर माफियाओं को इनका संरक्षण मिलता है। इसके अलावा मनपा के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से लगाए जाने वाले अवैध नल कनेक्शन भी जल संकट की समस्या में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं।

जनता की तकलीफों से दूर, राजनेता ठाकुर… 

स्वयंघोषित लोकप्रिय, जननेता, कार्यसम्राट की उपाधि लेने मात्र से कोई सच में जनता का हितैषी नहीं बन जाता। उसके लिए प्रामाणिकता के साथ जनता की उम्मीदों एवं अपेक्षाओं पर खरा उतरना पड़ता है। बड़ी-बड़ी उपाधियां धारण करने वाले नेताओं ने आज तक मुंबई के के.एम. और नायर जैसे सरकारी हॉस्पिटलों का निर्माण वसई-विरार में क्यों नहीं करवाया? क्यों यहां की गरीब जनता को मरने के लिए रामभरोसे छोड़ दिया गया है? 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले वसई-विरार शहर मनपा क्षेत्र में एक भी मल्टी स्पेशियलिटी सरकारी अस्पताल का न होना यहां के सत्ताधारियों के विकास की कहानी बताने के लिए पर्याप्त है। कहने के लिए तो बड़े लोकप्रिय नेता बने फिरते हैं लेकिन जनता को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दिलवा पाए। शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पानी, सड़क, यातायात जैसी बुनियादी सुविधायें जनता को सुलभ रूप से उपलब्ध न कराना, सत्ताधारी पार्टियों के नेताओं की मंशा पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

सुनियोजित विकास करना ही नहीं चाहते

एक ओर मुंबई से सटे नवी मुंबई के सुनियोजित विकास की लोग खुले दिल से तारीफ करते हैं तो वहीं दूसरी ओर वसई-विरार के अस्तव्यस्त इंफ्रास्ट्रक्चर को देखकर तो ऐसा लगता है कि यहां के सत्ताधारी विकास करना ही नहीं चाहते। मुंबई के निकट होने एवं बढ़ती जनसंख्या के संतुलन को बनाए रखने के लिए भविष्य में वसई-विरार शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन यहां के भ्रष्ट सत्ताधारी नेता एवं शासन-प्रशासन के चलते वसई-विरार शहर मनपा यह सुनहरा मौका गंवाती प्रतीत होती है।

सरकार को हजारों करोड़ के राजस्व का घाटा

वसई-विरार एक मात्र ऐसा शहर है जहां अनेक प्रकार के माफियाओं की भरमार है और उनका साम्राज्य क्षेत्र में दूर-दूर तक फैला हुआ है। मिट्टी माफिया, पत्थर माफिया, रेती माफिया, भू माफिया, टैंकर माफिया, राशन माफिया आदि का माफिया राज, ठाकुर राज में पूर्णत: विकसित हो चुका है। ये सभी माफिया अपने राजनीतिक आका के संरक्षण में गैरकानूनी तरीके से सरकार को बिना राजस्व दिए अवैध गोरखधंधा कर रहे हैं। यदि महाराष्ट्र सरकार इस ओर गम्भीरता से ध्यान देकर उचित कार्रवाई करे तो हजारों करोड़ के राजस्व की प्राप्ति आसानी से हो सकती है। भ्रष्टाचार को लेकर केंद्र सरकार की जीरो टोलरेंस की नीति बताई जाती है परंतु वसई-विरार में बाहुबली ठाकुर राज के सामने आकर यह नीति अपना दम तोड़ देती है।

सरकारी यातायात सेवा पालघर जिले के किसी भी शहर में सरकारी बसों का कुप्रबंधन आम चर्चा का विषय है। वसई-विरार महानगर को छोड़ दें तो किसी भी नगरपालिका ने नागरिकों के लिए खुद की यातायात व्यवस्था नहीं कर रखी है। जो है सो राज्य सरकार की यातायात व्यवस्था पर ही निर्भर है। वसई-विरार में बस सेवा लीज पर चल रही है। बहुत बुरे हाल में चल रही है, नियमित भी नहीं रहती है। दिखावे के तौर पर ही सही पुरानी और जर्जर बसों ने इस व्यवस्था को सम्भाल रखा है। आए दिन यात्रियों को ढोते समय बीच रास्ते में ही बिगड़ जाती है। यात्रियों के लिए सुविधा से अधिक मुसीबत बनी हुई है। अधिक किराया वसूलकर इसका फायदा ऑटो रिक्शा वाले उठाते हैं।

सरकार हर साल लोकल ट्रेनों की संख्या बढ़ा देती है लेकिन कम कीमत में उपलब्ध मकान निम्न और मध्यम वर्ग को आकर्षित करते हैं तो सुविधाओ के साथ जनसंख्या भी बेतहाशा बढ़ जाती है जो सुविधाओं को कमतर कर देती है। काम से जाते और लौटते समय तो लोकल स्टेशन पर पैर रखने की भी जगह नहीं होती है। प्लेटफार्म पर भीड़ में झाकते सिर्फ इंसानी सिर ही दिखाई देते हैं। लेकिन कहते है ना कि, ना मामा से, काणा मामा भला। इस जिले का बस यही हाल है।

सौंदर्यीकरण – पूरे पालघर जिले की बात तो नहीं कर सकते लेकिन वसई-विरार में चौराहों का सौंदर्यीकरण बड़ा अच्छा हुआ है। चौराहों की जगमगाती रौशनी और फौवारे, रात में इनकी खूबसूरती देखते ही बनती है मगर यह सौंदर्यीकरण वसई-विरार तक ही सीमित है। पालघर का बाकी का इलाका इस से वंचित है। यह अलग बात है कि वसई-विरार के सौंदर्यीकरण की पहल कलेक्टर साहब की अगुवाई में हुआ है लेकिन इस काम का श्रेय लूटने के लिए राजनीतिक दलों में घमासान जारी है।

अपराध की नगरी- पालघर जिले में आये दिन मार कुटव्वल होती रहती है। खासकर वसई-विरार में तो यह अब आम है। ऐसा माना जाता है कि महाराष्ट्र में नागपुर के बाद नालासोपारा में सबसे ज्यादा अपराध होते है। हत्या, चोरी-चकारी, लूटपाट और बलात्कार की घटनाएं आम हैं। बेतरतीब फैली घनी बस्तियां असमाजिक तत्वों के लिए पनाहगाह होती हैं। चोरी छुपे अफ्रीकी देशों और बांग्लादेश से आए नागरिक भी अपराध में लिप्त पाये जाते हैं। उस वजह से इस इलाके को पुलिस कमिश्नर के अधीनस्थ कर दिया गया है। नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित और शासन व्यवस्था कायम करने के लिए पुलिस स्टेशन और पुलिस चौकियों की संख्या में इजाफा किया गया है।

अभी पालघर जिला नया-नया बना है। ऐसे में समस्याएं तो हर जगह बिन बुलाए मेहमान की तरह हाजिर हैं लेकिन सकारात्मक होने की वजह से मुझे विश्वास है, इस इलाके में विकास की गति जैसे-जैसे तेज होगी, समय के साथ- साथ समस्याओं का उचित तरीके से निवारण भी जरूर होगा। लोगों की जागरूकता और शहर का आधुनिकीकरण समस्याओं का समाधान देर सवेरे खोज ही लेगी।

              एड. रेनू सिंह 

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