राष्ट्र-धर्म रक्षक गुरु गोविंद सिंह

आज राष्ट्र के सामने कई प्रकार के संकट हैं। राष्ट्रीय विचारों का अभाव और स्व-प्रकाश की विस्मृति हो गई है। आज अलगाववादी विचार, क्षेत्रवाद, धर्म के नाम पर आतंकवाद जैसी विघटनकारी मानसिकता के कारण संकुचित और विध्वंसक शक्तियां खड़ी हो गई हैं। उन्हें देश हित से कोई लेना-देना नहीं। अपने संकुचित स्वार्थ को बढ़ावा देते हुए राष्ट्र हित की बलि चढ़ाने के लिए भी यह विघटनकारी शक्तियां तैयार हैं। यह एक बहुत बड़ा संकट है। छोटी-छोटी बातों को लेकर मांग उठती है। कोई द्रविड़स्तान की तो कोई खालिस्तान की मांग उठाता है। कहीं ‘ग्रेटर नगालैंड’ बनाकर, अपने आपको अलग करने की मांग हो रही है। ये सारी शक्तियां अपने राष्ट्र की एकात्म की संकल्पना का विरोध करनेवाली हैं। अपने राष्ट्र-भाव को सामर्थ्यवान करना है तो इन विदेशी पैसों और शक्तियों द्वारा पोषित भारत से द्वेष करने वाली शक्तियों के स्वार्थ को समझना आवश्यक है। इसका इलाज यही है कि ‘हम सब एक हैं’, इस भाव का जागरण। हम सबकी राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक संवेदना एक है। अपने ऐतिहासिक-सांस्कृतिक सत्य को समाज के सामने रखकर उसी के आधार पर इसको पुष्ट करने की वर्तमान में नितांत आवश्यकता है।

इस्लाम धर्म के विस्तारवादी, दमनकारी और आक्रामकता के विरोध में राष्ट्र जागरण हेतु भारत भूमि के संतों, महामहिमों, राजा-महाराजाओं ने बलिदान एवं समर्पण किया है। यह बलिदान उन्होंने स्व धर्म, स्व राष्ट्र, स्व समाज रक्षा के लिए किया है। फिर चाहे शिवाजी महाराज हों या राणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह हों या अन्य क्रांतिकारी। वर्तमान में इन सारे महापुरुषों का स्मरण समाज के सम्मुख बार-बार करना आवश्यक है। जिस सिद्धांत के लिए उन्होंने बलिदान दिया है, ऐसे बलिदान एवं समर्पण की प्रेरणा समाज मन में जाग्रत करने की आवश्यकता है। राष्ट्र-समाज जागरण के ये प्रयास निरंतर चलते रहने चाहिए।

देश के भ्रमित इतिहासकार अत्याचारी मुगल शासन को स्वर्णकाल बतलाते हैं। न जाने क्यों हजारों महावीरों के त्याग और बलिदान के संदर्भ में उन्होंने अपनी आंखें बंद रखी हैं। गुरु गोविंद सिंह ने अत्याचारी मुगलों के सामने सर झुकाने वाले सामान्य लोगों को शेर बनाया। आज धर्म पालन की आजादी के साथ सांस ले रहा कोई भी भारतीय गुरु गोविंद सिंह का ऋण कभी नहीं चुका सकता। राष्ट्र गुरु गोविंद सिंह और सिखों के समर्पण एवं बलिदान को कभी भुला नहीं सकता, गुरु गोविंद सिंह ने सोई हुई कौम में आत्मविश्वास का संचार किया, उन्हें लड़ने की शक्ति प्रदान की।

गुरु गोविंद सिंह केवल सिख समुदाय के ही आदरणीय नहीं हैं, वे उन मानव मूल्यों के प्रतीक हैं, जिनकी आज देश और विश्व को बड़ी आवश्यकता है। उनका जीवन केवल बलिदान, त्याग, निस्पृहता और निडरता की कहानी ही नहीं बल्कि एक प्रकाश स्तम्भ है। हिंदूओं की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए आपके पिता गुरु तेग बहादुर जी का आत्म बलिदान और आपके चारों पुत्रों की धर्म और सिद्धांतों के लिए बलिदान की गाथा अद्भुत है। वे एक कुशल योद्धा तो थे ही, साथ ही संघर्षमय जीवन में साहित्यिक गतिविधियां भी चलाते रहते थे। उनकी दृष्टि ऐसी थी कि सब कष्टों के बावजूद करुणा और मानवता के गुण उनके व्यक्तित्व एवं व्यवहार में सदैव प्रदर्शित होते रहे। ऐसे महामानव के प्रति पूरा देश श्रद्धापूर्वक नतमस्तक है।

समाज में अलगाववाद निर्माण करने का प्रयास करने वालों ने इतिहास के इन पन्नों को पलटना शायद कभी जरूरी नहीं समझा होगा। यदि जरूरी समझा होता तो फिर हमारे झंडे-डंडे अलग नहीं होते। धर्म के आधार पर भेदभाव की विषबेल उगाने का, आपस में विद्वेषभाव निर्माण करने का प्रयास नहीं होता।

स्वामी विवेकानंद जी ने प्रत्येक युवा से ‘गोविंद’ बनने का आह्वान करते हुए कहा था, “अगर हम अपने देश का भला चाहते हैं तो हमारे हर परिवार में गुरु का एक सिख अवश्य होना चाहिए, जो देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हर क्षण तैयार रहे।” गुरु गोविंद सिंह जैसे महान व्यक्तित्व के आचरण को ग्रहण करना ही उनकी सच्ची पूजा है। यह संदेश हम सब भारतीयों को स्वामी विवेकानंद ने दिया था, जो वर्तमान में भी बहुत प्रासंगिक है। इस बात को ध्यान में रखकर हिंदी विवेक मासिक पत्रिका ने राष्ट्र-धर्म रक्षक गुरु गोविंद सिंह विशेषांक प्रकाशित करने का प्रयास किया है।

जिस जन समूह की भावनाएं एक होती हैं, वह एक राष्ट्र कहलाता है। इसी बात को लेकर विशेष कर देश के युवाओं तक भारत का गरिमामय इतिहास, संस्कृति पहुंचाने का प्रयास हिंदी विवेक मासिक पत्रिका कर रही है। इन सारे प्रयासों में जाग्रत भारत के निर्माण में गिलहरी के भाव से योगदान देने की हिंदी विवेक मासिक पत्रिका की भूमिका है। हिंदी विवेक मासिक पत्रिका का यह प्रयास पाठकों को राष्ट्र जागरण में अपनी भूमिका निश्चित करने में अवश्य योगदान देगा। विशेषांक की रचना के संदर्भ में हमारे सुधी पाठकों की प्रतिक्रियाएं भविष्य के कार्य हेतु हमारा उत्साह बढ़ाने वाली होंगी। आपकी प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

 

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