हिंदू मैतेई को चाहिए संवैधानिक सुरक्षा

हिंदू मैतेई समुदाय, जो कि वहां पर हमेशा से रहता आया है, म्यांमार से आए ईसाई कुकी समुदाय की वजह से अपने सरकारी हक खोता जा रहा है। मैतेई समुदाय एसटी आरक्षण की मांग कर रहा है। इसलिए दोनों सम्प्रदायों के बीच तनाव कायम है।

मणिपुर में भले ही मैतेई बहुसंख्यक हैं। लेकिन जिस तरह से म्यांमार से आने वाले कुकी समुदाय के लोगों की संख्या बढ़ रही है, उससे मैतेई जनजाति को अपने अल्पसंख्यक होने का खतरा दिखने लगा है। यह वजह है कि मैतेई अपने के लिए एसटी का दर्जा मांग रहे हैं। राज्य में कुल आबादी में से अभी मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है। फिलहाल वे बहुसंख्यक हैं। भले ही उनके पास मणिपुर के कुल भू-भाग का 40 प्रतिशत ही हिस्सा है। पहाड़ी इलाके का प्रतिशत 60 प्रतिशत है। कम क्षेत्रफल होने के बावजूद मणिपुर के मैदानी इलाके में 40 विधानसभा क्षेत्र हैं, जबकि पहाड़ी इलाके में पास मात्र 20 विधायक क्षेत्र हैं। यानी मणिपुर की राजनीति और सत्ता में अभी भी मैतेई जनजाति का वर्चस्व है। लेकिन उन्हें भविष्य की चिंता है।

मणिपुर में विभिन्न नगा जनजातियों की आबादी 24 फीसदी और कुकी समुदाय की आबादी 16 फीसदी है। लेकिन म्यांमार की राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक पिछड़ापन के कारण कुकी समुदाय के लोगों का मणिपुर की सीमा में पलायन जारी है। कुकी जनजाति को बोलचाल में चिन कुकी मिजो भी कहा जाता है। मणिपुर का चुराचांदपुर जिला उनका गढ़ है। इसके साथ ही वे अन्य पहाड़ी जिलों में भी हैं। 1901 में मणिपुर में कुकी जनजाति का प्रतिशत 1% था। जबकि 1991 की जनगणना के अनुसार आबादी बढ़कर 14.5% हो गई।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मणिपुर में नगा और मैतेई शुरू से ही थे। मणिपुर के ऐतिहासिक अभिलेखों में कुकी जनजाति का उल्लेख नहीं दिखता है। अंग्रेजों के शासनकाल में आने के बाद नगा जनजाति के प्रभाव को सीमित करने के लिए पहाड़ी इलाके में कुकी जनजाति को बसाया जाने लगा। यही वजह है कि नगा बहुल जिले में कुकी जनजाति की बस्तियां आज भी हैं। इस प्रक्रिया में पहाड़ी इलाके में मिश्रित आबादी बस गई। आजादी के पहले म्यांमार के साथ युद्ध के दौरान मैतेई सैनिक भी पहाड़ी इलाके में बस गए।

मैतेई वैष्णव हैं। उन पर चैतन्य महाप्रभु का प्रभाव है। जबकि कुकी में ज्यादातर ईसाई हैं। आजादी के पहले मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा प्राप्त था। गत 16 मई को ऑल मणिपुर बार एसोसिएशन (एएमबीए) द्वारा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपे गए एक ज्ञापन में कहा गया है कि 1950 में भारतीय संविधान लागू होने से पहले तक मैतेई जनजाति को मणिपुर की वन जनजातियों में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इसी आधार पर कई मैतेई संगठन एसटी का दर्जा देने की मांग करते आ रहे हैं। उसी आधार पर मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को एसटी का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया आरम्भ करने का निर्देश दिया था, जिस के बाद हिंसा भड़की और भयावह रूप ले चुकी है। मैतेई के साथ यह दिक्कत यह है कि आजादी के बाद भी हिल्स इलाके के भूमि कानून में बदलाव नहीं किया गया। मणिपुर के मैदानी इलाके में कोई आकर भूमि खरीद सकता है, लेकिन मणिपुर के पहाड़ी जिले में मणिपुर के अन्य इलाके के नागरिक भी भूमि नहीं खरीद सकते हैं। मैतेई आबादी बढ़ रही है, लेकिन वे पहाड़ी जिले में जाकर बस नहीं सकते हैं। मैतेई संगठनों का आरोप है कि एसटी का दर्जा लेकर कुकी समुदाय के लोग सरकारी नौकरियों में भरते जा रहे हैं, लेकिन उन लोगों को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल रहा है। जिस तरह से कुकी आबादी बढ़ रही है, उससे उनके लिए अवसर कम होते जाएंगे।

कुकी की बढ़ती आबादी से नगा समुदाय के लोग भी खुश नहीं हैं। यही वजह से इस हिंसा में नगा समुदाय शामिल नहीं हुआ है। इसके पहले तक ग्रेटर नगालैंड के सवाल पर मैतेई और कुकी समुदायों के बीच तनाव रहता था। लेकिन कुकी जनजाति के बढ़ते प्रभाव से नगा खुश नहीं है। पहले कई बार नगा और कुकी समुदायों की वर्चस्व के सवाल पर हिंसा भड़क चुकी है।

सुरक्षाबलों की मौजूदगी और केंद्र सरकार की तत्परता से भले ही मणिपुर में स्थिति सामान्य दिख रही है लेकिन अंदरूनी स्तर पर तनाव बरकरार है। लेकिन उग्रवादी संगठन हिंसा की ताक में लगे रहते हैं। इसलिए सुरक्षाबलों की अभी भी इंफाल घाटी और म्यांमार से सटे पहाड़ी जिले की चौकसी और पेट्रोलिंग जारी है।

दिक्कत यह है कि कुकी समुदाय को मौजूदा राज्य सरकार पर भरोसा नहीं है। भाजपा में काम करने वाले लोगों सहित कई कुकी विधायकों ने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को कुकी विरोधी बताते हुए नेतृत्व परिवर्तन की मांग की है। मणिपुर के चुराचंदपुर जिले के सैकोट से भाजपा विधायक पाओलियनलाल हाओकिप ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री कुकी विरोधी हैं। पत्रकार प्रदीप पंजीबन जैसे कई मैतेई लोगों का मानना है कि कुकी समुदाय के साथ भेदभाव करने की वजह से तनाव पसरा है और अब कुकी अपनी रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। यही वजह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के तीन दिवसीय प्रवास का भी कोई प्रभाव नहीं दिख रहा है।

फिलहाल मामले को शांत करने के लिए सुरक्षाबलों की चौकसी बढ़ाने के साथ मणिपुर सरकार को मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील करनी चाहिए। हालांकि एक भाजपा विधायक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। इसके साथ केंद्र सरकार को म्यांमार से होने वाले अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए ठोस इंतजाम करना होगा। इस दिशा में सुरक्षाबलों की चौकसी सीमावर्ती इलाके में बढ़ानी होगी। अब सेना और असम राइफल्स रिमोट एयरक्राफ्ट और एरियल सर्वे भी कर रही है। संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले कूकी उग्रवादी समूह को उनके शिविर में रहने को बाध्य करना होगा। उनके हथियारों को जब्त करना होगा। इसके साथ ही अफीम की खेती को बंद करने के लिए व्यवस्था करनी होगी। अफीम की खेती में सभी समुदायों के लोग शामिल हैं। सभी के खिलाफ समान रूप से कार्रवाई करनी होगी। सीमावर्ती इलाके में वनक्षेत्रों में अतिक्रमण को रोककर अवैध घुसपैठ को रोकना होगा।

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