शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जिसमें पंजाबियों ने प्रथम स्तर का योगदान न दिया हो। उद्योग क्षेत्र में भी देश एवं विश्व के कोने-कोने में इस समाज ने अपनी एक अलग और सम्मानजनक पहचान बनाई है।
प्राचीन काल से ही पंजाब भारत की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सिल्क रूट भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख राजमार्ग था। महाजनपदों के समय यह इलाका गांधार और कम्बोज के रूप में प्रसिद्ध था। बाबर से लेकर औरंगजेब तक मुगल शासकों के समानांतर गुरु नानकदेव से गुरु गोविंद सिंह तक सिख गुरुओं ने भारतीय समाज को सशक्त नेतृत्व प्रदान किया। कठिन समय में सिख गुरुओं ने न केवल धर्म और अध्यात्म का सही मार्ग दिखाया अपितु भारतीय समाज की सुरक्षा और समाजकल्याण का गम्भीर दायित्व भी वहन किया। उन्होंने जनता को मुगल शासकों को कर देने से रोका। भाग्य के भरोसे सब कुछ छोड़ने के बजाय उन्होंने शारीरिक और मानसिक रूप से सुदृढ़ता का उपदेश दिया। ‘नाम जपो, किरत करो और बांट कर खाओ’ के सिद्धांत को लागू किया। स्वयं उन सिद्धांतों पर चल कर एक जीवंत मिसाल कायम की और देखते ही देखते समाज में उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी और जनता की अर्थव्यवस्था में सुधार आने लगा।
समाज में जाति-पांति के बंधनों को तोड़ कर गुरुओं ने कामगार वर्ग को सम्मान और नई उर्जा प्रदान की। किसी भी समाज की आधारशिला उसका कामगार वर्ग ही होता है, जिसके बलबूते पर शासक अपने साम्राज्य का विस्तार करता है। गुरु नानकदेव ने देश-देशाटन की यात्राओं से भारतीय जनता में फैली अकर्मण्यता, डर, असुरक्षा, भ्रम-वहम, बाह्य आडम्बरों और पाखंडों को दूर करने का पुरजोर प्रयत्न किया। सदियों की गुलामी से जनता में आशा और विश्वास की नई लहर दौड़ गई। गुरु नानकदेव ऐसे संत-महापुरुष थे जिन्होंने राजनीति में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करते हुए तत्कालीन राजाओं और बाबर तक को उनकी करतूतों का आईना दिखाया। वे स्वयं व्यापारी परिवार से थे।
उन्होंने अपने रोजमर्रा के किसी कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ा। समय आने पर किसानी की, मोदीखाने में नौकरी की। संगत और पंगत की अवधारणा के कारण लोगों में सामूहिक संगठन की भावना जागी। आने वाले समय में बाकी सिख गुरुओं ने नए नगर बसाये, व्यापार को प्रोत्साहन दिया। पांचवे गुरु गुरु अर्जुनदेव की लोकप्रियता के कारण नए-नए मुसलमान बने हिंदू वापिस अपने धर्म में आने लगे। सिख गुरुओं ने नए नगर बसाये, व्यापार और वाणिज्य को प्रसारित करने में मदद की। कुएं और बाउलियां खुदवाईं, कृषि और सिंचाई के साधनों का विकास किया। गुरु नानक जी ने करतारपुर, गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल, गुरु रामदास जी ने अमृतसर, गुरु अर्जुनदेव ने तरनतारन, छह-रहटा साहिब, गोबिंदपुर, करतारपुर, गुरु तेगबहादुर जी ने आनंदपुर, गुरु गोविंद सिंह ने पांवटा नामक नगर बसाये। गुरु नानक जी, गुरु तेगबहादुर जी तथा गुरु गोविंद सिंह ने देश-विदेश की अनेक यात्रायें की तथा स्वस्थ आर्थिक गतिविधियों को प्रसारित किया। गुरुओं ने विदेशों से व्यापार विशेष रूप से घोड़ों, मेवों, रेशम तथा अन्य माल के लिए विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित किया। गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल नगर में तालाब खुदवाए, गुरु रामदास जी ने अमृतसर और संतोखसर सरोवर बनवाये, गुरु अर्जुनदेवजी ने अमृतसर नगर में ड्योढ़ी साहिब और गुरु के बाग का निर्माण किया। गुरु हरगोबिन्द जी ने कौलसर, बिबेकसर, और गुरुसर सरोवरों का निर्माण किया, गुरु तेगबहादुर जी ने मालवा में सुखाग्रस्त क्षेत्रों में अनेक कुएं और बावड़ियां बनवाई, गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में बहुत से कुएं और बावड़ियां बनवाई। सिख गुरुओं ने आर्थिक प्रगति के लिए गोलक, मन्नत, दान और दसवंध प्रणाली विकसित की। यह एक नए प्रकार की बैंकिंग व्यवस्था थी। सभी गुरु मोची, बढ़ई, कुम्हार तथा अन्य शिल्पियों के योगदान को बहुत महत्व देते थे। बंदासिंह ने आर्थिक क्षेत्र में जमींदारी उन्मूलन के लिए कार्य किया। अप्रत्यक्ष रूप से किसानों में आत्मसम्मान की भावना पैदा करके उन्हें स्वयं परिस्थितियों से लड़ना सिखाया। बंदासिंह ने कृषि सुधारों का बीड़ा उठाया तथा अपने विजित क्षेत्रों में किसानों को भूमि के मालिकाना अधिकार दिए।
19 वीं शताब्दी में सिख समुदाय का मूल केंद्र पंजाब रहा है। शहरीकरण के बढ़ते चरण में इस समय व्यापार की खूब उन्नति हुई। उस समय कई तरह के उत्पादन होते थे, खास तौर पर अमृतसर व लाहौर मुख्य केंद्र थे। छोटे शहरो में छोटे स्तर पर उत्पादन होता था जोकि स्थानीय कच्चे माल पर आधारित होता था। जैसे जलालपुर और फतेहगढ़ में शालें बनाई जाती थी। अच्छी किस्म की भेड़ोें से ऊन प्राप्त होती थी। इस तरह भेरा में पत्थर के उद्योग और धातु के उद्योग थे। पिंडी घेब में कपड़ा, साबुन और जूते बनते थे। होशियारपुर में लकड़ी और ताम्बे का सामान बनता था। सियालकोट में कागज, कपड़ा, मिट्टी के बर्तन, कढ़ाई का काम होता था। गुजरावालां में लुंगी, खेस, शालें, स्कार्फ, फुलकारी; बटाला में कपड़ा, चमड़े का समान, लकड़ी की नक्काशी और कढ़ाई की जाती थी। सियालकोट जैसे शहरों को मिडलिंग टाउन कहते हैं जो अपनी किसी खास चीज के लिए जाने जाते थे। अमृतसर कई तरह के कपड़े बनाने का केंद्र था। जैसे सूती, रेशमी, ऊनी कपड़े, शालें और दरियां, हाथी दांत, संगमरमर का समान, तांबा, लकड़ी पर नक्काशी, हथियार, बारूद, चांदी की तारें, गोटा किनारी, इत्र मशहूर थे। मुल्तान में बनाए जाने वाले कपड़े के नाम पर शुजाखानी, तैमूरशाही, पलंगपोश, छींट, गुलबदन, दरियाई, शालरंगी का बोलबाला था। बटाला सिख शासन में एक मुख्य व्यापारिक केंद्र बना। इसी तरह रावलपिंडी, गुजरांवाला, श्री हरगोबिंदपुर जैसे परगने शहर विकसित हुए।
हरित क्रांति काल (1947-1991) ः भारत में हरित क्रांति पहली बार 1960 के दशक के अंत में अंतरराष्ट्रीय दाता एजेंसियों और भारत सरकार द्वारा जारी विकास कार्यक्रम के हिस्से के रूप में पंजाब में शुरू की गई थी। 1965 के बाद से बीजों की उच्च उपज वाली किस्मों के उपयोग, उर्वरकों में वृद्धि और बेहतर सिंचाई सुविधाओं ने सामूहिक रूप से भारत में हरित क्रांति में योगदान दिया, जिसने फसल उत्पादकता में वृद्धि, फसल पैटर्न में सुधार और कृषि के बीच आगे और पीछे के लिंक को मजबूत करके कृषि की स्थिति में सुधार किया। 1981 तक पंजाब की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक हो गई थी। हरित क्रांति ने अपने प्रारम्भिक वर्षों के दौरान महान आर्थिक समृद्धि प्रदान की। 1970 तक, पंजाब देश के कुल खाद्यान्न का 70% उत्पादन कर रहा था, और किसानों की आय 70% से अधिक बढ़ रही थी। हरित क्रांति के बाद पंजाब की समृद्धि एक ऐसा मॉडल बन गई जिस तक पहुंचने के लिए अन्य राज्य इच्छुक थे। बठिंडा में गुरु नानक थर्मल प्लांट के पूरा होने के बाद 1974 में पंजाब अपने सभी गांवों को बिजली प्रदान करने वाला पहला भारतीय राज्य बन गया।
2018-19 में कृषि क्षेत्र द्वारा उत्पादित जीडीपी का प्रतिशत 25% था। 2018-19 में कृषि क्षेत्र की विकास दर केवल 2.3% थी, जबकि राज्य की समग्र अर्थव्यवस्था के लिए यह 6.0% होनी चाहिए थी। पंजाब की कृषि भूमि का लगभग 80% -95% जाट सिख समुदाय के स्वामित्व में है, जबकि राज्य की जनसंख्या में ये केवल 21% हैं। पंजाब की लगभग 10% आबादी गरीब राज्यों से दक्षिण-पूर्व जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासियों से बनी है, जो खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते हैं। सबसे बड़ी उगाई जाने वाली फसल गेहूं है। अन्य महत्वपूर्ण फसलें चावल, कपास, गन्ना, बाजरा, रागी, ज्वार, मक्का, जौ हैं। चारा फसलों में बाजरा और ज्वार हैं। फलों की श्रेणी में यह प्रचुर मात्रा में किन्नू का उत्पादन करता है।
उद्योग ः पंजाब के औद्योगिक परिदृश्य की एक प्रमुख विशेषता इसकी छोटी आकार की औद्योगिक इकाइयां हैं। राज्य में 586 बड़ी और मध्यम इकाइयों के अलावा लगभग 194,000 लघु उद्योग इकाइयां हैं। लुधियाना उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है। अन्य प्रमुख उद्योगों में वैज्ञानिक उपकरणों, कृषि वस्तुओं, बिजली के सामान, मशीन टूल्स, कपड़ा, सिलाई मशीन, खेल के सामान, स्टार्च, उर्वरक, साइकिल, वस्त्र, पाइन तेल और चीनी का प्रसंस्करण शामिल है। खनिज और ऊर्जा संसाधन भी काफी हद तक पंजाब की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं। पंजाब में भारत में सबसे अधिक स्टील रोलिंग मिल प्लांट हैं।
कपड़ा उद्योग ः राज्य भारत में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले कपास का लगभग 25% उत्पादन करता है। लुधियाना को भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है। बटाला को कभी एशिया का लौह पक्षी कहा जाता था क्योंकि यह सबसे अधिक मात्रा में सीआई कास्टिंग, कृषि और यांत्रिक मशीनरी का उत्पादन करता था। सीआई कास्टिंग और मैकेनिकल मशीनरी के निर्माण में बटाला अभी भी उत्तरी भारत के अग्रणी शहरों में से एक है। कपास ओटाई, बुनाई, चीनी शोधन और चावल मिलिंग इस क्षेत्र के कुछ अन्य महत्वपूर्ण उद्योग हैं।
पंजाब का कुल कपड़ा उत्पादन 105000 मिलियन रुपये होने का अनुमान है, साथ ही 32500 मिलियन रुपये विदेशों में बुना हुआ कपड़ा, शॉल, मेड-अप (बेडशीट, तकिया केस, डुवेट कवर और पर्दे) और यार्न बेचते हैं। पंजाब राज्य में कपड़ा व्यवसाय का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार 2 मिलियन लोगों पर अनुमानित है।
डेयरी उद्योग ः राज्य में दूध और अन्य डेयरी उत्पादों का प्राथमिक स्रोत भैंस है। दूध की उपलब्धता में राज्य का हरियाणा और गुजरात के बाद देश में शीर्ष स्थान है।
सेवाएं ः 2018-19 में सेवा क्षेत्र द्वारा उत्पादित जीडीपी का प्रतिशत 50% था। 2018-19 में सेवा क्षेत्र की विकास दर 7.1% थी, जबकि राज्य की समग्र अर्थव्यवस्था के लिए यह 6.0% थी। राज्य का चहल-पहल भरा पर्यटन, संगीत, व्यंजन, और फिल्म उद्योग राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं, और भारत के संगीत उद्योग में राज्य के छोटे आकार और आबादी के बावजूद पंजाब का योगदान सर्वाधिक है। पंजाब में एक बड़ा डायस्पोरा है जो ज्यादातर यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में बसा हुआ है, जिनकी संख्या लगभग 3 मिलियन है, और राज्य को अरबों अमरीकी डालर वापस भेजता है। इसकी अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
भारत के सिख बिजनेस लीडर्स ः सिखों की अल्प आबादी ने दुनिया भर में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है जिन्होंने अपनी बढ़ती आकांक्षाओं को प्राप्त करने के लिए ईमानदार और गम्भीर प्रयासों के साथ अपने कौशल का प्रदर्शन किया है। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के प्रशासनिक अधिकारी डॉ प्रभलीन सिंह ने ‘आउटलुक ग्रुप’ द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक सिख बिजनेस लीडर्स ऑफ इंडिया में भारत के महत्त्वपूर्ण सिख उद्यमियों के जीवन को हमारे सम्मुख रखा है। लेखक ने इससे पहले ‘भारत के प्रमुख सिख’, संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रमुख सिख; ‘शाइनिंग सिख यूथ ऑफ इंडिया’ आदि पुस्तकें भी लिखी हैं। इस पुस्तक में निर्भीक सिख नायकों की 51 प्रेरणादायक और प्रेरक गाथाओं को शामिल किया गया है। सिख इतिहास ऐसे व्यक्तित्वों से भरा पड़ा है जिन्होंने धैर्य और दृढ़ता के साथ कड़ी मेहनत की है और सफलता की ऊंचाइयों को छुआ है लेकिन हमेशा सिख धर्म के सिद्धांतों का सम्मान किया है। उन्होंने जरूरतमंद लोगों के कल्याण के लिए अपनी आय से ‘दसवंध’ की परम्परा का पालन किया। पंजाब का लुधियाना शहर अपार विकास का चश्मदीद गवाह है जिसे भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है। मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में बसे सिख अपना व्यापार सफलतापूर्वक चला रहे हैं। मोहन सिंह ओबेरॉय के लक्जरी होटल लक्जरी होटलों के सबसे बड़े समूह के साथ एक शानदार उदाहरण हैं। एस. संत सिंह चटवाल यूएसए में होटलों के एक समूह के मालिक हैं। राजिंदर सिंह राजू चड्ढा (वेव ग्रुप), इकबाल सिंह आनंद (एएलपी ग्रुप), रूपिंदर सिंह सचदेवा (हाईटेक ग्रुप), जसबीर सिंह डिम्पा (कॉनकॉर्ड ग्रुप), कबीर सिंह (सिग्मा ग्रुप), ओंकार सिंह (एवन साइकिल), वरिंदरपाल सिंह (कंधारी समूह), पीजे सिंह (टाइनोर ग्रुप), अमरजीत सिंह (सलूजा स्टील्स), भूपिंदर सिंह चड्ढा (आजाद ग्रुप), मंजीत सिंह (बॉन ब्रेड), अवतार सिंह भोगल (भोगल ग्रुप), गुरमीत सिंह कुलार (कुलार इंटरनेशनल), हरकीरत सिंह (वुडलैंड ग्रुप) ), नरिंदरजीत सिंह बिंद्रा उत्तराखंड, एस. जसपाल सिंह रमाडा होटल उद्योग जगत के उभरते हुए सितारे हैं।
पद्मश्री डॉ. बरजिंदर सिंह ‘हमदर्द’ (अजीत ग्रुप), पद्मश्री जगजीत सिंह ‘दर्दी’ और वरिंदर सिंह वालिया (पंजाबी जागरण) जैसे मीडिया जगत की ख्यात हस्तियों ने पंजाब का नाम रोशन किया है। एनपी सिंह (सोनी नेटवर्क), गुरप्रताप सिंह बोपाराय (महिंद्रा और महिंद्रा), हरदीप सिंह बराड़ (केआईए मोटर्स), रजनीत सिंह कोहली (ब्रिटानिया समूह), जय प्रकाश सिंह (वीर समूह), पवनजीत सिंह जैसी प्रमुख कम्पनियों के मार्गदर्शक प्रेरणा रूपल (पी एंड आर ग्रुप), अमरदीप सिंह टोनी (प्रीतम होटल्स) और तीरथ सिंह (गुलाटी ग्रुप) भी इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में ख्याति लाने वाले प्रतिष्ठित शिक्षाविदों में तरनजीत सिंह, हरनजीत सिंह (गखड यूनिवर्सिटी, कोलकाता), हरप्रीत सिंह सलूजा (सैम यूनिवर्सिटी, भोपाल), डॉ. सतनाम सिंह संधू (चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, घरुआं), डॉ. एच. एस गिल आदेश ग्रुप और करमजीत सिंह (गुरु नानक एजुकेशनल सेंटर, यमुनानगर), विशेष उल्लेख के पात्र हैं। उभरते हुए उद्यमियों में सेे असीस सिंह चड्ढा, हर्षित सिंह कोचर (वी-जॉन ग्रुप), गुरमीत सिंह (बेला मोंडे ग्रुप), गुरचरण सिंह (मास्टर्स इंफ्रा), गुरविंदर सिंह (ग्लोबल ग्रुप), सिमरप्रीत सिंह (हरटेक ग्रुप), आदि प्रमुख हैं।
निष्कर्षत : कहा जा सकता है कि पंजाब और सिख समाज का भारतीय अर्थव्यवस्था में विशेष योगदान है। सिख गुरुओं ने जो जीवन जीने के गुरुमंत्र सिखाए, उसे अपनाते हुए सिख समाज ने पूर्ण आत्मविश्वास और कठोर परिश्रम तथा सबके साथ बांटकर खाने के गुणों का निरंतर विकास किया है। समय-समय पर सिख समाज ने अनेक बाधाओं का सामना किया और हर बार और भी अधिक निखार कर सामने आए। आज सिख अखिल भारतीय स्तर पर ही नहीं विदेशों में भी अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। सिख समाज आज भी उन्नति के विशेष शिखर छू रहा है। अपनी मेहनत, लगन और गुरुओं के बताए मार्ग पर चलते हुए भारतीय सिख समाज की विशिष्ट पहचान कायम है।
शोभा कौर