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भारत-अमेरिका सम्बंध और साझी चुनौतियां

भारत-अमेरिका सम्बंध और साझी चुनौतियां

by हिंदी विवेक
in अगस्त-२०२३, देश-विदेश, राजनीति, विशेष
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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा उपलब्धियों से भरी रही है। भारत-अमेरिका के बीच हुए समझौते देश को तकनीक, उद्योग, आर्थिक, सामरिक, रक्षा, आदि क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने में सहायक सिध्द होंगे। भारत-अमेरिका सम्बंध, चीन की विस्तारवादी नीति को नियंत्रित करने के साथ ही विश्व के शक्ति संतुलन में अहम भूमिका निभाएगा।

यूक्रेन युद्ध के कारण रूस के साथ चीन की निकटता से उभर कर आई भू-राजनीतिक परिस्थितियां अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व को चुनौती दे रही है। अमेरिका को अपनी एक ध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को कायम रखने तथा चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत का साथ जरूरी है। चीन की बढ़ती सैन्य व आर्थिक शक्ति के साथ आक्रामक विस्तारवादी गतिविधियां भारत सहित एशियाई देशों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। यदि भारत अमेरिका के साथ आता है तो चीन की चुनौती का सामना करने में अमेरिका सक्षम हो जाएगा। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी की तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा भारत व अमेरिका दोनों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तथा द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊंचाई को प्रदर्शित करता है। राष्ट्रपति बाइडन द्वारा दिए गए राजकीय भोज और अमेरिकी संसद को दूसरी बार संबोधन करने के अवसर ने इस दौरे को ऐतिहासिक बना दिया। अभी तक ऐसा मौका केवल अमेरिका के बेहद निकट सहयोगी मित्र राष्ट्र को ही मिला है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका-रूस के वर्चस्व की लड़ाई चीन के लिए अनुकूल साबित हुई। अमेरिका से संबंधों का लाभ उठाकर चीन आज विश्व की दूसरी बड़ी महाशक्ति बन गया। अब वह अमेरिका को चुनौती दे रहा है तथा भारत को चारों ओर से घेरकर अपने विस्तारवाद को गति देने में लगा हुआ है। साथ ही यह तय है कि चीन द्वारा प्रस्तुत की गई चुनौतियां केवल सीमाओं तक सीमित न होकर क्षेत्र में व्यापक स्तर पर मौजूद है।

चीन को रोकने के लिए भारत को एक आर्थिक शक्ति बन कर उभरना पड़ेगा और सैन्य क्षमता को मजबूत करना इसका एक बड़ा हिस्सा है, जो एशिया व हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को स्थापित करने में महत्वपूर्ण साबित होगा। उसके लिए अमेरिका और यूरोप से निवेश व तकनीकी की आवश्यकता है। इसलिए भारत की आधुनिक रक्षा जरूरतों की पूर्ति के लिए रूस पर निर्भरता उचित नहीं है। ऐसे में अमेरिका के साथ रक्षा साझेदारी बिल्कुल सही समय पर आगे बढ़ रही है। इससे भारत की सैन्य शक्ति में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही दोनों देशों के बीच सामरिक गठजोड़ भी मजबूत होगा। भारत-अमेरिका संबंध विश्व को प्रभावित करने वाला है, जो दोनों देशों की सुरक्षा व समृद्धि के लिए आवश्यक है।

प्रधानमंत्री का यह दौरा भारत के लिए रक्षा, तकनीक और निवेश के स्तर पर बहुत सकारात्मक रहा है। इसमें अत्याधुनिक ड्रोन्स की खरीद का एक महत्वपूर्ण समझौता भी हुआ, जिससे सेना की निगरानी एवं मारक क्षमताओं में बढ़ोत्तरी होगी। रक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिए मूल रूप से जो रूस पर निर्भर रही है, इससे भारत की सामरिक आपूर्ति शृंखला का विविधीकरण होना भारत के हित में होगा।

कैनेडी सेंटर में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए भाषण के दौरान अमेरिकी थिंकटैंक, उद्योगपति, बड़ी कंपनियों के सीईओ व राजनेता सहित लगभग 1100 प्रभावशाली लोग मौजूद थे, जहां से पूंजी निवेश के लिए कई कंपनियां भारत में निवेश करने और अन्य अपने निवेश को बढ़ाने के लिए तत्पर हुई। अमेरिकी कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी भारत में एक नई सेमीकंडक्टर असेंबली एवं परीक्षण सुविधा के निर्माण के लिए अगले पांच वर्षों में लगभग 2.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी, जिससे 20 हजार नौकरियां भी पैदा होगी

भारत के हलके लड़ाकू विमानों के लिए भारत में ॠए कऋ414 इंजनों के लाइसेंस अंतर्गत निर्माण के लिए अमेरिका के जनरल इलेक्ट्रिक एरोस्पेस और भारत के क-ङ के बीच संपन्न समझौता हाल की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रगति है। इस समझौते से तकनीक हस्तांतरण के अस्वीकरण का अंत हो गया। इसमें आगे 60 हजार भारतीय इंजीनियरों के प्रशिक्षण के साथ-साथ एक सहयोगी इंजीनियरिंग केंद्र स्थापित करने के लिए 4 वर्षों में 400 मिलियन डॉलर का निवेश करने की योजना भी शामिल है। एप्पल पहले से भारत में आइफोन का निर्माण कर रही है, तथा फर्स्ट सोलर तमिलनाडु में निवेश कर चुकी है। गूगल इंडिया डिजिटलाइजेशन फंड में 10 बिलियन डॉलर का निवेश करेगी तथा एमेजोन के 26 अरब डालर के निवेश से बड़े स्तर पर रोजगार सृजन होना है। बोइंग 100 मिलियन डॉलर निवेश करेगा।स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी भारत अमेरिका एक बड़े सहयोगी गठजोड़ की ओर बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही अमेरिका प्रवास को लेकर भारतीयों को आने वाली समस्याओं का हल निकल गया, जिसमें अमेरिका में कार्यरत भारतीय पेशेवरों को अपना एच1बी वीजा नवीनीकरण के लिए अमेरिका से बाहर जाने की जरुरत नहीं होगी। इसके साथ ही वीजा प्रक्रिया को अधिक सुगम बनाने के लिए अमेरिका बेंगलुरु एवं अहमदाबाद में नए काउंसलेट स्थापित करने जा रहा है। भारत भी इस वर्ष सिएटल के अतिरिक्त दो अन्य अमेरिकी शहरों में काउंसलेट स्थापित करने की योजना में है।

भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा पर भारत तकनीकी हस्तांतरण, रक्षा खरीदारी, अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, उपग्रह परीक्षण, अंतरिक्ष में विज्ञान व तकनीकी में हिस्सेदारी के साथ दूसरे तकनीक के क्षेत्रों जैसे क्वांटम, सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स में भी सह-भागीदारी भविष्य में भारत को आत्मनिर्भर होने में मदद करने वाली है। आने वाले समय में अमेरिका से भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी बढ़ोत्तरी होने की संभावना है।

तकनीकी स्तर पर भारत और अमेरिका रक्षा, अंतरिक्ष और ऊर्जा जैसे कई क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग, विकास और उत्पादन के एक साथ अवसर तलाशने की दिशा में आगे बढ़े हैं। भारत द्वारा अंतरिक्ष अन्वेषण से जुड़े आर्टेमिस अनुबंध पर सहमति बनी और नासा के साथ साझेदारी भी हुई है। अमेरिकी कंपनी भारत में सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम स्थापित करने के लिए भी तैयार हुई है। खनिज सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले समूह में भारत की सदस्यता पर अमेरिका ने अपना समर्थन जताया है। साथ ही एडवांस कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ और क्वांटम इन्फोर्मेशन साइंस को लेकर भारत और अमेरिका ने संयुक्त रूप से काम करने के लिए एक ढांचा भी स्थापित किया है।

भारत-अमेरिका, चीन व रूस के बीच उभरता हुआ शक्ति संतुलन भी है। इसलिए पश्चिमी देशों की चीन से फैक्ट्रियों को दूर ले जाने की योजना के साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र की निगरानी इन सभी में अमेरिका को निश्चित रूप से भारत के समर्थन की आवश्यकता है। इसके साथ ही भारत का स्वच्छ ऊर्जा शक्ति में आत्मनिर्भर बनना चीन के ऊर्जा सप्लाई चैन से बेहतर विकल्प है। नई तकनीकी को डिजाइन व विकसित करने के लिए साथ मिलकर काम करने से लोगों के जीवन में बदलाव आएगा। चीन पर दुनिया की निर्भरता को कम करने के लिए महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए भारत एक विकल्प के तौर पर मौजूद है, जहां बड़ी संख्या में लोग तकनीकी के हस्तांतरण को अपनाने के लिए प्रशिक्षित है, इसलिए 21वीं सदी में भारत-अमेरिका के संबंध विस्तारवाद से अलग विश्व को दिशा देने में एक महत्वपूर्ण कारक साबित होने वाले है। निवेश, रक्षा, तकनीकी, रोजगार, और आतंकवाद जैसे मुद्दो पर हुए समझौते 21वीं सदी के लिए ऐतिहासिक क्षण है।

  डॉ. नवीन कुमार मिश्र

 

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