विश्व में भारतीय विदेश-नीति की धमक

मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भारतीय विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन आया है, उसी का सुखद परिणाम है कि आज पूरा विश्व भारत की विदेश नीति और उसकी प्रभावी कार्यप्रणाली का लोहा मान रहा हैं। विदेश मंत्रालय पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण के साथ राष्ट्रीय हितों को संरक्षित करने में प्रमुख भूमिका निभा रहा हैं।

भारतीय विदेश मंत्रालय के कड़े रुख के कारण विदेशों में भारत-विरोधी दुष्प्रचार पर रोक लगी है। यह बात विदेशी-मीडिया में भी नजर आने लगी है। सड़कों पर होने वाले भारत-विरोधी प्रदर्शनों पर भी नकेल लगी है। पिछले कुछ समय से खालिस्तान समर्थकों ने जिस प्रकार से कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में भारत-विरोधी गतिविधियां चला रखी हैं, उसके उत्तर में भारत के विदेश मंत्रालय ने अब कड़ा रुख अपनाया है।

हाल में भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने चेतावनी दी है कि अगर कोई देश खालिस्तानियों को जगह देगा तो उसका असर सीधा हमारे रिश्तों पर पड़ेगा।

बढ़ता विश्वास

खालिस्तानियों से जुड़े घटनाक्रम को प्रतीक रूप में देखें और इसके आधार पर देश की विदेश-नीति पर नजर डालें, तो पाते हैं कि भारत का रसूख दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। पिछले महीने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका और मिस्र और इस महीने फ्रांस के दौरे से भारत की ओर विशेषज्ञों का ध्यान गया है। खासतौर से प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ और ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ जैसे समाचार पत्रों ने भारत के महत्व को रेखांकित किया। जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की अध्यक्षता और इस वर्ष इन दोनों के शिखर सम्मेलन भारत में होने से देश का सम्मान बढ़ा है।

मोदी सरकार के पहले 9 वर्ष में सबसे ज्यादा गतिविधियां विदेश नीति के मोर्चे पर हुई हैं और आने वाले समय में भी होंगी।

ठोस जमीन

भारत की विदेश नीति के सिलसिले में पिछले 9 वर्ष की घटनाओं पर गौर करें तो पाएंगे कि अब हम व्यावहारिकता के धरातल पर और ठोस जमीन पर उतर रहे हैं। सामान्यतः विदेश नीति के दो पहलुओं पर हम ध्यान देते हैं। पहला, सामरिक मसलों के लिहाज से और दूसरा कारोबारी रिश्तों की जमीन पर। सामरिक मसले ज्यादा मुखर होते हैं और उनका शोर सुनाई देता है। कारोबारी रिश्तों का दूरगामी असर होता है, पर उन्हें देखने-समझने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत होती है। कारोबारी रिश्तों के साथ ही तकनीकी-वैज्ञानिक सहयोग चलता है और इन सबको साथ लेकर चलते सांस्कृतिक सम्बंध बनते हैं।

नया सूर्योदय

जून में अमेरिका की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने वहां की संसद के संयुक्त अधिवेशन में कहा, भारत-अमेरिका सहयोग का यह नया सूर्योदय है, भारत बढ़ेगा, तो दुनिया बढ़ेगी। यह एक नजरिया और विश्वास है, जिसके अनेक अर्थ हैं। भारत में आया बदलाव तमाम विकासशील देशों में बदलाव का वाहक भी बनेगा। भारत एक नई वैश्विक-शक्ति हैं, जिसे अमेरिका समेत सभी देश अब स्वीकार कर रहे हैं।

एक जमाने तक अमेरिकी विदेश नीति में एशिया-प्रशांत क्षेत्र का जिक्र हुआ करता था, जो अब हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में तब्दील हो गया है। इस क्षेत्र में भारत अब अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक क्वाड या चतुष्कोण का हिस्सा बन गया है। साथ ही साथ यह रेखांकित करने की जरूरत है कि अमेरिका के साथ बेहतर रिश्तों के बावजूद भारतीय विदेश नीति अमेरिका की पिछलग्गू नहीं है और परिस्थितियों को देखें तो वह पिछलग्गू बनकर रह भी नहीं सकती।

भारत का आर्थिक रूपांतरण उसकी बदलती वैश्विक भूमिका की ओर इशारा कर रहा है। यह संधिकाल है, जिसमें तमाम बातें परिभाषित हो रही हैं। पिछले 75 वर्ष में भारत के रिश्ते दुनिया के सभी देशों के साथ संतुलनकारी रहे हैं। एक ओर भारत ने अपने पूर्व के देशों के साथ रिश्तों को बेहतर बनाया है वहीं पश्चिम में अफगानिस्तान, ईरान, सउदी अरब, इसरायल और अमीरात में अपनी भूमिका को पुनर्परिभाषित करना शुरू किया है।

पश्चिम एशिया

चीन, अमेरिका और जापान के बाद सउदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है। भारत सबसे अधिक खनिज तेल सऊदी अरब से आयात करता है। भारत उभरती अर्थव्यवस्था है, जिसके साथ वे बेहतर रिश्ते बनाना चाहते हैं। भारत के इस्लामिक देशों से रिश्ते खराब करने की कोशिश पाकिस्तान करता है, बावजूद इसके इस्लामिक देशों के बीच भारतीय राजनय की अच्छी पैठ है। हाल में सऊदी अरब, यूएई और बहरीन के साथ भारत के रिश्तों में सुधार हुआ है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को सउदी अरब, यूएई और मिस्र के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है।

चीन से मुकाबला

नब्बे के दशक में चीन महाशक्ति के रूप में उभर रहा था। आज वह उभर कर महाशक्ति बन चुका है। दक्षिण पूर्व एशियाई देश भारत और चीन दोनों से जुड़े हैं और यह जुड़ाव हजारों वर्ष पुराना है। चीन के बरक्स अब भारत भी बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है। हमारे आसियान देशों के साथ रिश्ते लगातार सुधर रहे हैं। कारोबार के अलावा आसियान के साथ हमारे सामरिक और राजनीतिक रिश्ते भी महत्वपूर्ण हैं।

भारत-रूस रिश्तों की गर्मजोशी भले ही वैसी नहीं रही, पर आज भी वह हमारा महत्वपूर्ण सहयोगी देश है। रक्षा-तकनीक से जुड़े कार्यक्रमों में रूसी भागीदारी अब भी हैं, हालांकि हाल के वर्षों में अमेरिका, इजरायल और फ्रांस ने उच्च स्तरीय तकनीक में भारत के साथ सहयोग करना शुरू किया है। प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान तेजस विमान के लिए जनरल इलेक्ट्रिक के इंजन और भारत में सेमी कंडक्टर उद्योग की स्थापना से जुड़े समझौते हुए हैं। जो समझौते हुए हैं, वे केवल सामरिक-संबंधों को आगे बढ़ाने वाले ही नहीं हैं, बल्कि अंतरिक्ष-अनुसंधान, क्वांटम कंप्यूटिंग, टेलीकम्युनिकेशंस, सेमी-कंडक्टर और एडवांस्ड आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नए दरवाजे खोलने जा रहे हैं। कुशल भारतीय कामगारों के लिए वीजा नियमों में ढील दी जा रही है। विदेश-नीति राष्ट्रीय हितों की संरक्षक होती है। उसमें देश-काल के हिसाब से परिवर्तन भी होता है, जो इस समय देखने को मिल रहा है।

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