उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड में कमाल करेगी भाजपा!

2024 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भाजपा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सभी सीटों पर शत-प्रतिशत जीत सुनिश्चित करने हेतु अपनी ओर से पूर्व तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों सहित स्थानीय प्रभावी नेताओं को दायित्व देकर नियुक्त कर दिया गया है। यदि फीडबैक के आधार पर पार्टी में अपेक्षित सुधार एवं परिवर्तन किया गया तो निश्चित ही भाजपा अपने लक्ष्य तक पहुंच सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे के बूते भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कमाल करने की तैयारी में है, तो उत्तराखंड में भी अजेय बने रह कर शत प्रतिशत जीत की हैट्रिक लगाना चाहती है। इस कवायद में सांगठनिक और रणनीतिक व्यूह रचना तो अपनी जगह है, लेकिन अनेक वर्तमान सांसद भी पार्टी टिकट से हाथ धो सकते हैं। दूसरी ओर भाजपा को घेरने के लिए विपक्षी दल गोलबंदी करने का प्लान भी बना रहे हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 62 पर जीत दर्ज की थी। भाजपा की सहयोगी अपना दल को 2 सीटों पर जीत मिली थी। बसपा के खाते में 10 और समाजवादी पार्टी को 5 सीटें मिली थीं। हालांकि 2022 में हुए उपचुनाव में भाजपा 2 और सीट जीतने में सफल रही। भाजपा ने समाजवादी पार्टी के गढ़ आजमगढ़ और रामपुर में जीत हासिल की। भाजपा ने 2014 में 71 (+2) सीटें जीती थीं। अब 2024 में भाजपा अस्सी की अस्सी सीटों पर नजर गड़ाए हुए है। उत्तराखंड की सभी 5 सीटें तो 2014 से ही भाजपा की झोली में हैं, जिन्हें एक बार फिर जीतने का कमाल भी भाजपा करना चाहती है।

उप्र की सभी 80 सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के लिए पश्चिम उत्तर प्रदेश को साधना भाजपा के लिए अत्यंत आवश्यक है। जाट बाहुल्यवाले क्षेत्रों में रालोद एक बड़ी ताकत है, जिसका गठबंधन पिछले चुनाव में सपा के साथ रहा है। परंतु रालोद अगला चुनाव सपा के साथ ही लड़ेगा, इस पर संशय है क्योंकि दोनों दलों के रिश्ते कुछ समय पहले उप्र में हुए निकाय चुनाव के बाद से सामान्य नहीं हैं। यही नहीं, रालोद राज्य स्तरीय दर्जा पाने की कवायद में पश्चिमी उप्र की 12 लोकसभा सीटों कैराना, मुजफ्फर नगर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, फतेहपुर सीकरी, मथुरा और बागपत सीटों पर दावा ठोक रहा है। जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में रालोद को मात्र 3 सीटों पर चुनाव लड़ने को मिला था, हालांकि वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। ऐसे में चर्चा यह भी है कि भाजपा से भी रालोद की बात अंदर खाने चल रही हैं।

बोले तो, भाजपा ने 2022 में ही जाट नेता और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र चौधरी को उप्र भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष बना कर इरादे जाहिर कर दिए थे। अब प्रदेश प्रभारी और जिलाध्यक्षों को बदलने की भी तैयारी है। वर्तमान में उप्र के प्रभारी राधामोहन सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। बिहार से सांसद हैं। बिहार में विधानसभा चुनावों को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व उनके विकल्प की भी तलाश कर रहा है। माना जा रहा है कि जिलाध्यक्षों के साथ मोर्चा में भी बदलाव होगा। कई मोर्चों को भी नया अध्यक्ष मिलेगा।

उप्र में भाजपा और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी भासपा के गठबंधन की चर्चा भी है। भाजपा पहले से ही अनुप्रिया पटेल के अपना दल और संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ गठबंधन में है। यही नहीं, भाजपा ने उप्र और उत्तराखंड, दोनों राज्यों की सभी 85 लोकसभा सीटों को 3 से 5 लोकसभा सीटों के समूह में बांट दिया है। हर समूह की जिम्मेदारी वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों को दी गई है। इन नेताओं में उप्र-उत्तराखंड के अतिरिक्त बाहर के भी नेता शामिल हैं।

मंत्रियों और नेताओं की तीन श्रेणियां बनाईं गई है, जिन्हें ए, बी और सी श्रेणी में बांट दिया गया है। ए श्रेणी में राष्ट्रीय नेताओं को रखा गया है, जिनमें केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शामिल हैं। बी श्रेणी में वरिष्ठ नेता और दूसरे राज्यों के सांसद हैं। जबकि सीश्रेणी में स्थानीय नेताओं को रखा गया है। पार्टी रणनीतिकारों ने जमीन पर काम करने और पार्टी के कार्यक्रम आयोजित करने की जिम्मेदारी ग्रुप सी में शामिल नेताओं को दी है। ग्रुप बी में शामिल नेता कार्यक्रमों की निगरानी कर ग्रुप ए के नेताओं को जमीनी फीडबैक देंगे। ग्रुप एस भी सांगठनिक कार्यक्रमों, जनसभाओं, स्थानीय लोगों की समस्याओं, सत्ता विरोधी लहर को पहचानने और उसे ठीक करने के उपाय सुझाएगा।

उप्र में जिन प्रमुख नेताओं को ग्रुप ए में रखा गया है, उनमें केंद्रीय मंत्री आर. के. सिंह, अश्विनी वैष्णव, नरेंद्र सिंह तोमर, मीनाक्षी लेखी, अन्नपूर्णा देवी, एसपी सिंह बघेल, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राधा मोहन सिंह और राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन शामिल हैं।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव बिजनौर, सहारनपुर, नगीन लोकसभा सीटों के लिए ग्रुप ए में हैं। उनके साथ ग्रुप बी में दक्षिण दिल्ली से भाजपा सांसद रमेश बिधुड़ी और ग्रुप सी में उप्र भाजपा के प्रदेश मंत्री विजय शिवहरे होंगे। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बांसगाव, देवरिया, बलिया, आजमगढ़ और सलेमपुर के पांच लोकसभा सीटों के समूह के ग्रुप ए में रखा गया है। उनके साथ भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दकी ग्रुप बी और कुशीनगर के पूर्व जिला अध्यक्ष जय प्रकाश शाही ग्रुप सी में हैं।

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर रायबरेली, अंबेडकर नगर, श्रीवस्ती और लाल गंज के लिए ग्रुप ए में हैं। उनके साथ भाजपा के महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा गुप्ता ग्रुप बी में और पूर्व मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा ग्रुप सी में रखे गए हैं। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास डुमरियागंज, गोरखपुर, कुशीनगर और महाराज गंज सीटों के लिए ग्रुप ए, राज्य सभा सांसद कृष्ण लाल पंवार ग्रुप बी और गोरखपुर के उपाध्यक्ष देवेंद्र यादव ग्रुप सी में रखे गए हैं।

इसी तरह, गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नितिन पटेल ग्रुप ए में पांच लोक सभा सीटों कैराना, मुजफ्फर नगर के साथ ही उत्तराखंड के टिहरीगढ़वाल, हरिद्वार को देखेंगे। उनके साथ राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर ग्रुप बी में और बुलंदशहर जिले के पूर्व अध्यक्ष डी के शर्मा ग्रुप सी में होंगे।

इस सारी कवायद से मिला फीडबैक ही सासंदों के टिकट भी तय करेगा। भाजपा के महा-जनसंपर्क अभियान में कुछ क्षेत्रों में पार्टी को उत्साहजनक दृश्य देखने नहीं मिला। पार्टी किसी भी स्थिति में वैसे उम्मीदवार को चुनावी मैदान में नहीं उतारना चाहती है, जिन पर लोगों का अविश्वास बढ़ा है, या फिर जो पार्टी कार्यकर्ताओं की नजर में चढ़ गए हैं।

उधर, लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लगी सपा अब जिलेवार बैठक कर रही है। इसका भी मुख्य उद्देश्य यही फीडबैक लेना है कि संबंधित सीटों पर किस नेता का चयन किया जाए। पार्टी नेतृत्व स्थानीय स्तर पर उस नेता के पक्ष में अधिकतम संभव सहमति बनाने का प्रयास भी कर रहा जो उनके लिए जिताऊ हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक मैनपुरी, कन्नौज, आजमगढ़ और फिरोजाबाद सीट मुलायम परिवार के बीच ही रहेंगे।

बसपा सुप्रीमो मायावती लोकसभा चुनाव को लेकर लगातार संगठनात्मक बैठकों के माध्यम से कार्यकर्ताओ में जोश भर रही हैं। वह नए सिरे से प्रभारियों के मिले फीडबैक पर अमल कर रही हैं। फीडबैक पर ही वह मैदान में निकलकर समीकरण ठीक करने की योजना पर काम कर रही हैं।

उत्तराखंड में भाजपा के सामने हैट्रिक बनाकर इतिहास रचने की चुनौती है, तो इसी दृष्टि से पार्टी व्यूहरचना कर रही है। राज्य में नगर निकाय, त्रिस्तरीय पंचायतों व सहकारिता के चुनाव हों या फिर विधानसभा की रिक्त सीटों पर हुए उपचुनाव, सभी में भाजपा ने परचम लहराया। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने फिर से दो-तिहाई बहुमत हासिल कर राज्य में हर पांच वर्ष में सत्ताधारी दल बदलने के मिथक को तोड़ा। माना जा रहा है कि यहां प्रत्याशियों में बदलाव करने की भाजपा के लिए कोई मजबूरी नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस की चिंता उत्तराखंड में लगातार हार से उबरने की तो है ही पार्टी में व्याप्त असंतोष अलग सिरदर्द बना हुआ है।

 

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