विस्तारवादी चीन जमीन की तरह समुद्र में भी अपने पांव पसार रहा है। किसी दूसरे के जलक्षेत्र पर अपना कब्जा करना वैसे तो अनुचित है, परंतु चीन अपने कर्जदार देशों के भू-नभ-जल को भी अपना अधिकार क्षेत्र मानता है और पाकिस्तान में रास्ते बनाने के बाद वह श्रीलंका के बंदरगाह के निकट अपनी एक हाईटेक सिटी तैयार कर रहा है।
कर्ज में फंसा श्रीलंका अपना हंबनटोटा बंदरगाह पहले ही चीन को सौंप चुका है, अब लगता है कि वह किसी दिन कोलंबो बंदरगाह भी चीन को सौंपेगा। हालांकि दावा यह किया जा रहा है कि वह चीन की मदद से दक्षिण एशिया की सबसे हाई-टेक सिटी का विकास कर रहा है। चीन की खतरनाक योजनाएं अक्सर खूबसूरत लिफाफों में लिपटी हुई आती हैं और कर्ज़दार देश एक बार फंस जाते हैं, तो फंसते चले जाते हैं।
बड़ी संख्या में श्रीलंका के विशेषज्ञ इसे चीन की चाल नहीं मानते, बल्कि कहते हैं कि चीन ने अवसर को पहचाना है। वे इसकी तुलना दुबई और हांगकांग से कर रहे हैं, पर उन्हें याद नहीं है कि हंबनटोटा को लेकर भी उनके सपने करीब ऐसे ही थे। पर जब वह तैयार हुआ, तब मुश्किल से एक दिन में एक पोत उस पोर्ट पर आ रहा था। श्रीलंका के लिए उसका खर्चा निकालना मुश्किल हो गया और अंततः उसे 99 साल के लिए चीन को देना पड़ा। चीन को भी उससे कोई आर्थिक लाभ तो होगा नहीं। ज़ाहिर है उसने सामरिक-दृष्टि से इस बंदरगाह को हथियाया है।
चीनी मायाजाल
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम बॉर्डर रोड इनीशिएटिव के तहत बन रही यह परियोजना 2040 तक जाकर पूरी होगी और इस पर चीन 1.4 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है। यह परियोजना महिंद्रा राजपक्षे के दिमाग में काफी पहले से थी, पर वे इसके लिए धन नहीं जुटा पा रहे थे। सितंबर 2014 में शी चिनफिंग ने अपनी श्रीलंका यात्रा के इसके निर्माण का उद्घाटन किया था। उस समय महिंदा राजपक्षे देश के राष्ट्रपति थे। उसी दौरान शी जिनपिंग ने पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारे की भूमिका भी तैयार की थी।
कोलंबो के सबसे महत्वपूर्ण इलाके में बंदरगाह से सटी एक नई कॉलोनी चीन बसा रहा है। पोर्ट सिटी के लिए समुद्र से रेत निकाल कर तट का विस्तार किया गया है। विशेष आर्थिक ज़ोन के रूप में बनाए जा रही इस पोर्ट सिटी में व्यापार के लिए दफ्तर के अलावा आवास और मनोरंजन की तमाम सुविधाएं होंगी। 269 हेक्टेयर में बन रहे इस पोर्ट सिटी में 116 हेक्टेयर ज़मीन इसे बनाने वाली चीनी कंपनी को 99 साल के लिए लीज पर दी जा चुकी है। यह इलाका अब चीनी कंपनी के शत-प्रतिशत स्वामित्व में और उसके कब्जे में है। उसके लोग तय करते हैं कि वहां कौन जाएगा और कौन नहीं जाएगा। बिना इजाज़त के वहां श्रीलंका के पुलिस वाले भी नहीं जा सकते हैं। पिछले साल इस इलाके में समुद्र के किनारे घूमने के लिए एक ‘वॉकिंग-पाथ’ बनाया गया है, जिस पर नागरिकों को सुबह 9 से शाम 6 बजे तक निशुल्क घूमने की इजाज़त है। श्रीलंका के भीतर हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट सिटी दो इलाकों को अगले 99 साल के लिए चीनी-उपनिवेश माना जा सकता है।
भारत की चिंता
श्रीलंका का इससे जो भी फायदा-नुकसान हो, वह अपनी जगह है, पर इससे भारत के लिए व्यापारिक और सामरिक दोनों तरह से चुनौतियां बढ़ेंगी। यह चिंता की बात इसलिए भी है, क्योंकि हमारे आसपास के देशों में चीन अपना मायाजाल फैलाता जा रहा है। चीन ने बांग्लादेश में चटगांव, श्रीलंका में हंबनटोटा और पाकिस्तान में ग्वादर तक अपना मायाजाल फैला लिया है। इस तरह भारत के तीनों तरफ समुद्र में उसने सुविधाएं प्राप्त कर ली हैं। पिछले साल इन्हीं दिनों चीन नौसेना का स्पेस-ट्रैकिंग पोत युआंगवांग-5 भारत के विरोध के बावजूद श्रीलंका में आया था।
अब खबरें हैं कि चीन की नौसेना की निगरानी करने वाला एक और युद्धपोत अगस्त के दूसरे हफ्ते में कोलंबो बंदरगाह पहुंचा है। श्रीलंका की नौसेना ने बताया है कि चीन की सेना ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ का नौसैनिक युद्धपोत हाइ यांग 24 हाओ 10 अगस्त 2023 को कोलंबो बंदरगाह पहुंचा। कोलंबो पहुंचे 129 मीटर लंबे जहाज पर 138 लोगों का दल सवार था। इस पोत में सर्विलांस सिस्टम लगे हुए हैं। श्रीलंका के अखबार ‘डेली मिरर’ के अनुसार, ‘चीनी अधिकारियों ने इसके लिए पहले ही अनुमति मांगी थी, लेकिन भारत के विरोध के कारण श्रीलंका ने अनुमति देने में देरी की।’ पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था।
क्वाड को चुनौती
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का चतुष्कोणीय सुरक्षा समूह अर्थात ‘क्वाड’ इस इलाके की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। चीनी परियोजना क्वाड को एक तरह से चुनौती है।
कोलंबो पोर्ट सिटी भारत के कन्याकुमारी स्थित सबसे दक्षिणी बिंदु से केवल 290 किमी की दूरी पर बन रहा है। श्रीलंका के दक्षिणी हिस्से में मौजूद हंबनटोटा में चीन की मौजूदगी से भारत पहले ही चिंतित है। यहां से चीन भारत की सुरक्षा पर नज़रें रखते हुए ख़ुफ़िया जानकारियां जुटा सकता है। भविष्य में चीनी युद्धपोतों और पनडुब्बियों को पड़ाव डालने की मंज़ूरी भी दे सकता है।
संप्रभुता की चिंता
पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए श्रीलंका की संसद ने पिछले साल एक आयोग के गठन की मंजूरी दी थी। इस कमीशन को इस पोर्ट से जुड़े तमाम नियम तय करने का अधिकार है। इस आयोग के प्रावधानों के कारण श्रीलंका के विपक्ष ने अब देश की संप्रभुता को लेकर चिंता प्रकट करनी शुरू कर दी है।
इस परियोजना के लिए समुद्र के तल में जाकर खुदाई करके चट्टानें निकाली जा रही हैं। इस वजह से पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं भी व्यक्त की गई हैं। 2015-16 के दौरान कुछ समय के लिए काम रुका भी था। उस समय देश में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे की सरकार थी। चीनी सरकार ने दबाव डलवाकर काम शुरू करा दिया। उसके बाद गोटाबाया राजपक्षे देश के राष्ट्रपति बने, जिन्होंने इस परियोजना को पूरा समर्थन दिया। उनकी सरकार भी चली गई, पर परियोजना चलती रही। मछुआरों ने भी इस परियोजना का विरोध किया है। समुद्र से रेत निकलने के कारण मछलियों की तादाद कम हो गई है।
चीनी विस्तार
विरोधी दलों और ग़ैर-सरकारी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस क़ानून में कुछ संशोधन करने की सिफ़ारिश की। श्रीलंका की सरकार ने इन संशोधनों को स्वीकार कर लिया। मई 2021 में संसद ने इस विधेयक को पास कर दिया। इसमें कोई शक़ नहीं कि भारत और श्रीलंका के रिश्ते ठोस बुनियाद पर हैं, पर यह भी सच है कि श्रीलंका के साथ चीन का आर्थिक जुड़ाव गहरा होता जा रहा है। चीनी कर्जों की शर्तें पारदर्शी नहीं होती। कर्ज लेने वाले उत्साह में अपने सामर्थ्य से ज्यादा ले लेते हैं और जब चुकाने में चूक होती है, तब चीनी शर्तें दिखाई पड़ती हैं। श्रीलंका हाल में ही अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की सहायता से विदेशी मुद्रा के संकट से बाहर निकला है।