निर्णायक मोड़ पर ज्ञानवापी का सच

न्यायालय के आदेश के बाद ज्ञानवापी का वास्तविक सत्य राष्ट्र के सामने आने की सम्भावना काफी बढ़ गई है। ब्रिटिश फोटोग्राफर द्वारा खींची एवं अमेरिकी अभिलेखागार में रखी तस्वीरें  तथा स्कंदपुराण भी ज्ञानवापी के अति प्राचीन होने के साक्ष्य प्रस्तुत कर रहे हैं। इसलिए इसका फैसला हिंदुओं के पक्ष में आने की सम्भावना प्रबल है।

ज्ञानवापी परिसर का विवाद करीब साढ़े तीन सौ बरस बाद एक निर्णायक मोड़ पर है। उधर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि ज्ञानवापी को मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा ही। ये प्रस्ताव मुस्लिम समाज की ओर से आना चाहिए कि साहब ऐतिहासिक गलती हुई है। उसके लिए हम चाहते हैं कि समाधान हो। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने जिसे दृष्टि दी है वो देखे ना। त्रिशूल मस्जिद के अंदर क्या कर रहा है? हमने तो नहीं रखे न! ज्योतिर्लिंग हैं, देव प्रतिमाएं हैं। पूरी दीवारें चिल्ला-चिल्ला के क्या कह रही हैं।

अयोध्या की तर्ज पर विवादित परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण से सच सामने आने वाला है कि मस्जिद के अंदर मंदिर के अवशेष हैं या नहीं। एएसआई ने वजूखाने के सील किये गए क्षेत्र को छोड़कर संपूर्ण परिसर का सर्वे किया। दक्षिणी दीवार, पश्चिमी दीवार, व्यास जी के तहखाने, शिखर पर स्थित तीनों गुंबदों, छत, फर्श, दीवार, दीवारों पर उकेरी गई कलाकृतियों का नमूना इकट्ठा किया। समझा जाता है कि न्यायालय के आदेश के अनुरूप एएसआई ने संरचना में पाए गए सभी कलाकृतियों की सूची तैयार करके उनकी आयु और प्रकृति का पता लगाने के लिए भूमि पर खड़ी संरचना को नुकसान पहुंचाए बिना कार्बन डेटिंग भी की है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण में डिफरेंशियल जीपीएस (डीजीपीएस) मैपिंग, इमेजिंग, फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी शामिल है। परिसर में मिले साक्ष्यों को 2 सितंबर को एएसआई की टीम सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपेगी।

2021 में वाराणसी की एक फास्ट ट्रैक अदालत ने एएसआई को वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी परिसर का व्यापक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या मस्जिद बनाने के लिए वहां एक हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था, जो आज बगल में खड़ा है। यह आदेश 8 अप्रैल, 2021 को विजय शंकर रस्तोगी की याचिका पर आया। उन्होंने तर्क दिया था कि ज्ञानवापी मस्जिद 1664 में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा मंदिर को ध्वस्त करने के बाद एक प्राचीन शिव मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई थी। हालांकि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय पीठ ने 9 सितंबर, 2021 को वाराणसी सिविल कोर्ट के आदेश पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि मामला पहले से ही उसके समक्ष विचाराधीन है, इसलिए निचली अदालत को इस तरह का आदेश पारित करने से बचना चाहिए था।

लेकिन इस बीच, उसी साल अगस्त में पांच हिंदू महिलाओं, राखी सिंह, सीता साहू, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और रेखा पाठक ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई कि उन्हें श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने की अनुमति दी जाए। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि उन्हें मस्जिद भवन के अंदर मौजूद अन्य सभी दृश्य और अदृश्य देवताओं की दैनिक पूजा करने की अनुमति दी जाए।

इस याचिका पर आदेश पारित करते हुए वाराणसी के सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने 26 अप्रैल 2022 को अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा की निगरानी में मस्जिद परिसर में सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी का आदेश दिया। सर्वेक्षण की कवायद के बीच लीक हुई रिपोर्टों से उजागर हुआ कि विवादित परिसर में एक शिवलिंग पाया गया है, जिसके बारे में मस्जिद प्रशासन का दावा है कि यह एक फव्वारा था जिसे मुस्लिमों द्वारा ‘वज़ुखाना’ के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।

पुराण और तस्वीरों में ज्ञानवापी का सच

स्कंद पुराण के काशी खंड में वर्णन है कि ज्ञानवापी काशी का मूल केंद्र है। इस पुराण के काशी खंड के 34वें अध्याय में 36, 37, 38 एवं 39वां श्लोक ज्ञानवापी के माहात्म्य पर है। 36वें श्लोक में स्पष्ट लिखा है कि विश्वेश्वर के दक्षिण में ज्ञानवापी स्थित है। पुराणों में महादेव शिव को अष्टमूर्ति कहा गया है। यह ज्ञान प्रदा ज्ञानवापी उन्हीं की जलमयी मूर्ति हैं। इसी अध्याय के 70वें श्लोक में कहा गया है- इति ज्ञानं ममोद्भूतं ज्ञानवापीक्षणात्क्षणात्। अर्थात ज्ञानवापी के दर्शन मात्र से क्षण भर में मुझ में ऐसा ज्ञान संचार हो गया। ज्ञानवापी का अर्थ ही है ज्ञान का कूप। वापी और ज्ञान संस्कृतनिष्ठ शब्द हैं।

अमेरिका के लॉस एंजेलिस स्थित गेट्टी म्यूजियम के फोटोग्राफ विभाग में ज्ञानवापी मंदिर की तस्वीरें प्रदर्शित हैं। म्यूजियम में लगे चित्र में परिचय लिखा गया है, ‘ज्ञानवापी आर वेल ऑफ नॉलेज’ अर्थात् ज्ञानवापी ज्ञान का कुआं। इन तस्वीरों को ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुआल बार्न ने 1868 में खींचा था, जब वे बनारस की यात्रा पर आए थे। ज्ञानवापी का सच उजागर करती इन तस्वीरों में तीन अलंकृत नक्काशीदार स्तंभ अग्रभूमि में एक मेहराब के नीचे और एक नक्काशीदार मूर्ति के सामने खड़े हैं। एक अन्य तस्वीर में अलंकृत रूप से सजाई गई मूर्ति दो स्तंभों के बीच दिख रही है और मूर्ति के ठीक उपर घंटी लटकी हुई दिखाई दे रही है। तस्वीर में स्पष्ट दिखता है कि दीवार पर बजरंगबली की नक्काशी की गई है। घंटियां और हिंदू धर्म के अन्य प्रतीक चिन्ह भी तस्वीर में देखे जा सकते हैं। इन तस्वीरों में बनारस के घाट, आलमगिरी मस्जिद सहित अनेक मंदिर और ज्ञानवापी के भीतर तथा बाहर बैठे नंदी की अनेक तस्वीरें शामिल हैं।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल मई में आगे के अध्ययन तक इस क्षेत्र को सील कर दिया था। पांच महिलाओं द्वारा दायर श्रृंगार गौरी में पूजा की याचिका अभी भी वाराणसी अदालत में लंबित है। पिछले साल अगस्त में, राखी सिंह को छोड़कर उन्हीं महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के एएसआई सर्वेक्षण की मांग करते हुए फिर से वाराणसी सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 21 जुलाई, 2023 को वाराणसी कोर्ट ने एएसआई सर्वेक्षण का आदेश दिया जो 22 जुलाई, 2023 को शुरू हुआ, लेकिन मुस्लिम पक्ष को किसी भी सर्वेक्षण पर फिर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश मिल गया और आदेश पर 3 अगस्त तक रोक लगा दी गई। हालांकि, कोर्ट ने 3 अगस्त, 2023 को सील किये गए क्षेत्र को छोड़ कर सर्वेक्षण के लिए मंजूरी दे दी और उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ स्वयं इस पीठ का हिस्सा थे, जिसमें न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी थे।

हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का कहना है कि देश की जनता को ज्ञानवापी से जुड़े इन सवालों के जवाब मिलने जरूरी हैं। ज्ञानवापी में मिली शिवलिंगनुमा आकृति कितनी प्राचीन है? शिवलिंग स्वयंभू है या कहीं और से लाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई थी? क्या विवादित परिसर में कमल, डमरू, त्रिशूल जैसे निशान हैं? क्या मस्जिद की दीवार पर देवी-देवताओं की कलाकृति हैं? विवादित स्थल की वास्तविकता क्या है? विवादित स्थल के नीचे जमीन में क्या सच दबा हुआ है? मंदिर को ध्वस्त कर उसके ऊपर तीन कथित गुंबद कब बनाए गए? तीनों कथित गुंबद कितने पुराने हैं?

उधर, मस्जिद कमेटी को एक पक्षकार राखी सिंह और उनके वकील जितेंद्र सिंह बिसेन की तरफ से न्यायालय के बाहर बातचीत का प्रस्ताव भेजा गया है। इस पर मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि वो अपनी बैठक में इस मुद्दे को रखेगा। जबकि, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने मीडिया से कहा कि यह मामला कोर्ट में चल रहा है। इसलिए कोई एक पक्षकार समझौते की बात नहीं कर सकता। जैन ने यह भी कहा, हमारी लड़ाई सिर्फ ज्ञानवापी तक नहीं है, हमारी लड़ाई हर उस धार्मिक संरचना को लेकर है, जो पहले मंदिर था और जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई।

वाराणसी पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। ऐसे में एएसआई सर्वे का महत्व काफी बढ़ जाता है। बाबरी विवादित ढांचा मामले में जिस तरह एएसआई सर्वे रिपोर्ट ने एक बड़ी भूमिका निभाई, वही इतिहास स्वयं को दोहराने वाला प्रतीत होता है क्योंकि सच विधिवत सामने आने को बेताब है।

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