एक तरफ विश्वभर में नए शहरों के निर्माण के लिए वनक्षेत्र काटा जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ नवी मुंबई शहर के बेलापुर में ग्रीन वैली पार्क के तौर पर मानवनिर्मित वन का निर्माण किया गया है। इसमें क्षेत्र के आम लोगों की सहभागिता सर्वाधिक है।
प्रकृति की गोद किसे आकर्षित नहीं करती! गुलमोहर की झुकी डालें जब खुश होकर धरती पर सिंदूरी पुष्पों की चादर बिछा देती हैं तो किसका मन इस खूबसूरती को निहारने का नहीं करता! रंग -बिरंगे सुंदर पक्षियों का कलरव जिस जंगल के कोने कोने में व्याप्त हो, किसका मन उस जंगल में खो जाने का नहीं होगा। चारों तरफ वृक्ष, वृक्षों से लिपटी लताएं, कहीं समतल,कहीं पहाड़ी ढलान, कहीं मिट्टी, तो कहीं चट्टान! वन्यजीवन का अनोखा नजारा है- ग्रीन वैली पार्क, जो सीबीडी बेलापुर (नवी मुंबई) के सैक्टर-9 में स्थित है। शहर के बिलकुल नजदीक किंतु शहरी कोलाहल से दूर यह स्थल प्रकृति और प्रगति का अनूठा संगम है। स्थानीय नागरिक यहां सैर करने आते हैं वहीं दूर दराज के लोग प्रकृति का रूप निहारने आते हैं। ग्रीष्म, शरद, वर्षा सभी ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों की चित्रकारी यहां देखते ही बनती है। वर्षा ऋतु अपने हर बनाव शृंगार के साथ मनमोहक नजारों के साथ यहां उपस्थित रहती है।
वास्तव में यह मानव निर्मित जंगल है जिसका निर्माण नवी मुंबई को विकसित करने के दौरान शहरी और औद्यौगिक विकास महामंडल (सिडको) महाराष्ट्र शासन ने पर्यावरण संवर्धन के उपक्रम में 1974 में किया था। फॉरेस्ट लैंड की जमीन में 250 हेक्टर में फैला यह लगभग पहाड़ी क्षेत्र शाहबाज गांव के अंतर्गत आता था जिसे सिडको ने बड़ी संख्या में वृक्षारोपण करके विकसित किया। शुरुआत में इस क्षेत्र में गड्ढे खोदे गए और विभिन्न किस्मों के बड़े वृक्षों के लिए पौधे रोपित किए गए। 1976-77 में इस पूरे इलाके के चप्पे-चप्पे में बीजारोपण के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल भी किया गया। उर्वरा पहाड़ी मिट्टी की ताकत ने इस पहाड़ी क्षेत्र को जंगल में तब्दील होने के लिए मदद की। यहां पेड़- पौधों को अधिक संख्या में विकसित करने के लिए शाहबाज नर्सरी भी स्थापित की गयी जिसमें सभी किस्मों के पौधों को विकसित किया जाता रहा। यह नर्सरी पानी के अभाव के कारण बंद कर देनी पड़ी।
कालांतर में वृक्षों की अवैध कटाई को रोकने तथा इस क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए सिडकोे द्वारा गार्ड्स की व्यवस्था की गयी है। बेलापुर के स्थानीय निवासियों ने इस क्षेत्र के संरक्षण और संवर्धन के लिए ग्रीन वैली पार्क एसोसिएशन की स्थापना की है जिसके सहयोग से पेड़-पौधों को पानी देने के लिए टंकी का निर्माण, बैठने के लिए सीमेंट के बेंच आदि बनाए गए हैं। स्थानीय निवासियों का इस क्षेत्र के सौंदर्य को बढ़ाने में भी बड़ा योगदान है। उन्होंने चम्पा, मोगरा, जूही, चमेली, अनंतमूळ, रातरानी, टगर, मधुमालती, बोगन्वेलिया, जैसे सुंदर फूलों के पौधों के साथ-साथ नीम, पीपल, बरगद जैसे बड़े वृक्षों के पौधे, पक्षियों के खाद्य के लिए जंगली जलेबी, शहतूत, सेमल, आंवला, इमली जैसे पेड़ लगाकर प्रकृति संवर्धन, संरक्षण एवं सौंदर्यीकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इन पेड़-पौधों की देखभाल स्थानीय निवासी करते हैं। करौंदा, रानमेवा भी यहां पक्षियों के लिए उपलब्ध हैं। पुनर्वसु संस्था ने ग्रीन वैली पार्क में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसने वृक्षारोपण के साथ साथ, पक्षियों की फोटोग्राफी के लिए जंगल परिसर में बर्ड वाचिंग पॉइंट बनाया है, जहां कृत्रिम तालाब में पक्षी पानी पीने आते हैं। यह जंगल पक्षियों की अनेक सुंदर प्रजातियों का निवास स्थल है। इन सुंदर पक्षियों की विभिन्न किस्में देखने और उनकी फोटोग्राफी करने दूर-दूर से पक्षी प्रेमी यहां आते हैं।
शहर के समीप प्राकृतिक सुंदरता का ऐसा नजारा शायद ही कहीं मिल सके जहां ट्रेकिंग ट्रेक, हाईकिंग के लिए पहाड़ी, बरसाती झरनों का सौंदर्य, पानी की छोटी -बड़ी धाराएं, छोटे तालाब, प्राणवायु लुटाते वृक्ष, पक्षियों का कलरव, तितलियों की रंगीनियां, भवरों का गुंजन, लघु जीव जंतु, मानों प्रकृति अपने विविध रूप में यहां आकर्षक अदा के साथ सैलानियों को सम्मोहित करती रहती है। ऑक्सीजन वालेट के रूप में यह क्षेत्र पर्यावरण की अनूठी सम्पदा है। हालांकि विगत कुछ वर्षों से विकास कार्यों के कारण ग्रीन वैली पार्क की वन सम्पदा को बहुत नुकसान पहुंचा है। फिर भी आशा है कि पर्यावरण प्रेमी, स्थानीय निवासी, सिडकोे इसकी सुरक्षा के लिए पूर्ववत सहयोग करते रहेंगे और इसके संवर्धन के लिए अपना योगदान देते रहेंगे।
मीनू मदान