आधुनिकता एवं पौराणिक मूल्यों की संवाहक

आधुनिक होते शहर अपनी जड़ों से कट जाते हैं लेकिन नवी मुंबई शहर ने अपनी पुरातन संस्कृति को बचाए रखा है। इसे बचाए रखने में आम लोगों एवं प्रशासन, दोनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बह्मगिरि के मंदिर हों या सभी गांवों के गांवदेवी मंदिर, सभी अपनी अनुपम छटा के साथ स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं।

केंद्र की मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को गम्भीरता से लेते हुए 21वीं सदी का शहर नवी मुंबई महाराष्ट्र में लगातार इस मामले में नम्बर वन की पोजिशन पर कायम है। समूचे देश में सतत तीसरे स्थान पर रहने वाली 164 वर्ग किलोमीटर के व्यापक क्षेत्र में बसी यह महानगरी कई महत्वपूर्ण खूबियों के नाते अन्य दूसरे शहरों से आधुनिकता के साथ साथ पौराणिक मान्यताओं के संवहन में काफी आगे है।

आज से कोई 40 साल पूर्व मुम्बई की जमीन पर जनसंख्या के तेजी से बढ़ते दबाव से उबारने के लिए समुद्र की खाड़ी के पार के व्यापक भूभाग पर सुनियोजित शहर बसाने का उपक्रम सिडको ने शुरू किया। शानदार वसाहत के लिए जमीन को नोड में वर्गीकृत किया गया। हरे-भरे पेड़ों को चौड़ी साफ सड़कों के किनारे तैयार किया गया। शानदार इमारतों के अलावा बेहतरीन उद्यान, नालों औए पुराने तालाबों को आधुनिकता की शक्ल देते हुए समृद्ध किया गया। भव्य रेल्वे स्टेशन जग जाहिर हैं। इन सब के अलावा शहर रचनाकारों ने धार्मिक भावनाओं का खासा खयाल रखा। इसके तहत प्रकृति की सौगात पहाड़ियों को भी करीने से सजाया।

नेरुल स्थित ब्रह्मगिरि पहाड़ी इसका सबसे नायाब उदाहरण है। मुम्बई से ट्रेन के रास्ते आते हुए नेरुल रेलवे स्टेशन से दाहिने तरफ के निकास द्वारों से बाहर निकल कर पांच मिनट की ही पदयात्रा से ब्रह्मगिरि पहाड़ी की तराई पर पहुंचा जा सकता है। हालांकि ऊपर पहुंचने के लिए प्रतीक्षारत ऑटोरिक्शा वालों की लम्बी कतार उपलब्ध रहती है। निजी वाहन भी प्रयोग में लाये ही जाते हैं। हरे भरे पेड़ पौधों से सघन भरे चढ़ाई के उपवन एक अलग तरह की शांति और सम्मोहन से लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

ऊपर पहुंचते ही सबसे पहले भगवान बालाजी मंदिर के दर्शन होते हैं। दक्षिण भारत की शिल्प कला निर्माण पर आधारित मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मंदिर के भीतर भगवान बालाजी की प्रतिमा विराजमान है। विद्या गणपति के अलावा अन्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। वर्ष 2000 के आसपास निर्मित इस दिव्य मंदिर में मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा के लिए दक्षिण भारत के कई संस्कृत के उद्भट विद्वानों की मौजूदगी रही थी। बगल में ही स्वामीनारायण मंदिर और माता अमृतानंदमयी आश्रम भी लोगों की आस्था का केंद्र हैं। इंटरनेशनल सेंटर फॉर श्रीनारायण गुरु जैसी परोपकारी संस्थाओं के परोपकारी क्रियाकलापों की मुक्त कंठ से तारीफ की जानी चाहिए।

ब्रह्मगिरि पहाड़ी के अलावा सिडको ने वाशी सेक्टर 9 की एक पूरी सड़क को ही अध्यात्म से जोड़ दिया है। बस डेपो के ठीक बगल में आलीशान गुरुद्वारा सिख धर्मावलम्बियों की आस्था का केंद्र है। इससे बिल्कुल ही सटकर आर्यसमाज मंदिर, झूलेलाल मंदिर, शिवविष्णु मंदिर और योगा सेंटर भी है। वाशी के अतिरिक्त कोपरखैरने ऐरोली, दीघा, जुई नगर, नेरुल और बेलापुर मेें देवालयों और तालाबों को सजाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। शैक्षणिक क्षेत्र में यहां डीपीएस, डीएवी, रिलायंस, एपीजे, बाल भारती, पोद्दार जैसी संस्थाओं ने दशकों पूर्व ही अपना विस्तार करना शुरू कर दिया था। फादर रोड्रिक्स, रामराव आदिक और एसआइएस जैसे नामचीन इंजीनियरिंग कॉलेजों के अलावा डी वाई पाटिल कॉलेज भी है जिसमें, कानून, मैनेजमेंट, मेडिकल से लेकर कई तरह के कोर्स पढ़ाये जाते हैं। इसी कॉलेज में शानदार स्टेडियम भी है। विश्व रैंकिंग में भव्यता के मामले में यह स्टेडियम विश्व मेें 7वीं पोजिशन पर है। कैंपस में ही गजानन महाराज का दिव्य आश्रम भी है, जहां प्रतिवर्ष धार्मिक आयोजन होता है।

महानगर में फ्रोटिस हीरानंदानी, रिलायंस, एमजीएम, और अपोलो जैसे नामचीन अस्पतालों के साथ मिरेडिएट, तुंगा जैसे होटल भी हैं। अकेले योगी ग्रुप्स के भी कई होटल इनॉर्बिट, रघुलीला मॉल भी हैं।

गांवदेवी तो देश के हर गांव में होती हैं लेकिन नवी मुंबई के सभी गांवदेवी मंदिर बेहतरीन तरीके से पक्के बनाये गए हैं। जिनमेें जुहू गांवदेवी मंदिर सड़क के बीचोबीच जबरदस्त तरीके से निर्मित है। सही मायने में आधुनिकता के साथ पौराणिक मूल्यों की संवाहक है नवी मुंबई।

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