हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
एक स्वच्छ विकल्प और मन का संतोष

एक स्वच्छ विकल्प और मन का संतोष

by प्रशांत बाजपेई
in फरवरी २०१६, सामाजिक
0

बड़े आंकड़ों और जटिल विश्लेषणों के स्थान पर अपने आसपास देखकर भारत की आगामी ऊर्जा जरूरतों को समझने की कोशिश करते हैं। आज एक मध्यमवर्गीय परिवार पहले की तुलना में कितने गुना अधिक ऊर्जा का उपयोग कर रहा है? आज से पच्चीस साल पहले की तुलना में दैनिक जीवन में बिजली-पेट्रोल आदि से चालित यंत्रों की संख्या कितनी बढ़ी है? रसोई से लेकर घर की बैठक तक, और घर से लेकर कार्यस्थल तक प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत कितनी बढ़ी है? परिवार में जितने सदस्य उतने वाहन। एक व्यक्ति के पास दो-दो और तीन मोबाइल सेट्। एक घर में अनेक टीवी सेट्। अब देश की उस आबादी के बारे में सोचें जो समृद्धि के इस स्तर पर नहीं है लेकिन आगामी सालों में इस जीवन स्तर को स्पर्श करने वाली है। जो सवा सौ करोड़ की आबादी का साठ -पैंसठ फीसदी हिस्सा है और अपने जीवन स्तर को ऊंचा -उठाना चाहता है। स्वाभाविकतः ये प्रत्येक मानव का अधिकार भी है। संक्षेप में, आने वाले समय में उत्पन्न होने जा रही ऊर्जा आवश्यकताएं हमारी कल्पना से बहुत ज्यादा हैं।

वैश्विक परिदृश्य में हालात और भी गंभीर हैं। फिलहाल विश्व की आबादी का बीस प्रतिशत अस्सी प्रतिशत संसाधनों का उपयोग कर रहा है। एशिया के अनेक पिछड़े हिस्से, अफ्रीकी देश आदि जो ऊर्जा दोहन के लिए कदम बढ़ा रहे हैं, आने वाले दशकों में ऊर्जा की मांग में भारी वृद्धि करने जा रहे हैं। आज तक ऊर्जा की ज्यादातर आपूर्ति जैसे परंपरागत स्रोतों से होती आई है और आज भी अधिकांशतः जिन साधनों से हो रही है, उसकी धरती ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। चेन्नई की बाढ़ हो या केदारनाथ की जल-प्रलय, सिकुड़ते ग्लेशियर हों या फैलते रेगिस्तान, सब हमारी गंभीर खामियों की ओर इशारा कर रहे हैं। दुनिया के अनेक शहरों में सांस लेना मुश्किल हो गया है। चीन ने अपने कोयला भंडारों का अंधाधुंध प्रयोग किया, फलस्वरूप राजधानी बीजिंग में दिन ढलते तक इतना धुआं भर जाता है कि शाम को सूर्यास्त दिखाई नहीं पड़ता। शहर में स्थान-स्थान पर बड़े-बड़े परदे लगाकर सूर्यास्त का लाइव टेलीकास्ट किया जा रहा है। नदियों का पानी जहर बन चुका है। प्रदूषण के कारण सारी दुनिया में कैंसर के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। समुद्रों का तापमान बढ़ने से ऋतु चक्रों में चिंताजनक परिवर्तन आ रहे हैं।
इससे खाद्यान्न की समस्या भी पैदा होने वाली है। एक अनुमान के अनुसार धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ने से विश्व के खाद्यान्न उत्पादन में १०-१५% तक की कमी आ सकती है। ध्यान रहे कि २०५० आते-आते धरती की आबादी डेढ़ गुना हो जाने वाली है। जीव-जंतुओं की सैकड़ों प्रजातियां लुप्त हो गई हैं और आने वाले सालों में सैकड़ों अन्य विलुप्त हो जाएंगी। जैव विविधता, जो धरती की जीवनी शक्ति है, उस पर इतिहास में पहली बार भारी संकट मंडरा रहा है। दुष्परिणामों के इतने प्रकार हैं कि सामान्य व्यक्ति को उनकी भनक तक नहीं है। एक उदाहरण के लिए, दुनिया भर के समुद्रों में जाइंट स्क्विड नाम का बेहद आक्रामक मांसाहारी जीव पाया जाता है, जो मछलियां खाता है और छोटी-मोटी नावों पर हमले भी कर देता है। समुद्र का तापमान बढ़ने से इनकी संख्या बढ़ रही है। जिससे अंदेशा पैदा हो गया है कि आने वाले सालों में समुद्र इन जाइंट स्क्विड से भर जाएंगे और समुद्री मछलियों को ख़त्म कर डालेंगे। ऐसे हजारों दुष्परिणामों के बारे में पर्यावरणविद और जीव विज्ञानी चेतावनी दे रहे हैं। और न जाने कितने दुष्परिणाम अभी अज्ञात हैं। भविष्य की लड़ाई अस्तित्व की लड़ाई बन गई है।
अत्यंत समझदार दिखने वाले, रात-दिन बड़ी-बड़ी समस्याओं में सर भिड़ाए रहने वाले, बड़ी-बड़ी सेनाओं और अर्थव्यवस्थाओं का संचालन करने वाले राजनीतिज्ञ कितने अल्पज्ञ और लापरवाह हो सकते हैं इसका सबसे अच्छा उदाहरण है पर्यावरण और स्वच्छ ऊर्जा के मामले पर दशकों से चली आ रही विश्वस्तरीय बैठकें, जहां बैठकर बड़े-बड़े नेता गाल बजाते आए हैं, जहां विशाल वातानुकूलित भवनों में बैठ कर धरती के बढ़ते तापमान पर कोरी बयानबाजी की जाती है। जहां चमचमाते फर्नीचर पर दमकते सूट-पैंट में जमे राजनीतिज्ञ गंभीर मुख-मुद्रा बनाकर वक्तव्य देते हैं, लेकिन हवा में घुलते ज़हर और गंदे होते समुद्रों से बेपरवाह बने रहते हैं। बेतहाशा और उपभोग की पश्चिमी जीवनशैली, जिसे आदर्श बना कर सारी दुनिया के विकासशील और पिछड़े देशों के सामने प्रस्तुत किया गया है, उसे यदि सारी मानवता ने अपना लिया, तो इस धरती का क्या होगा?

राष्ट्रों की जीडीपी के आकलन के साथ पर्यावरण हानि की भी गणना की जाए तो सब से चमकदार देश सबसे गरीबों की श्रेणी में दिखाई पड़ेंगे। जिस डाल पर बैठे हैं उसी डाल को काटने वाले किशोर कालिदास का उदाहरण हमने पढ़ा है। आश्चर्य की बात है कि ऐसे हजारों कालिदास दुनियाभर में सबसे जरूरी जगहों पर बैठे हैं, संसदों और राष्ट्रपति/प्रधान मंत्री निवासों की शोभा बढ़ा हैं। ’डिस्पोज़ेबल’ मार्का अर्थव्यवस्था धरती को कचरे से पाट रही है। पागलपन की हद देखिए कि अमेरिका हर साल २८ अरब प्लास्टिक की बोतलें बना रहा है, पानी की पैकिंग के लिए। दुनिया में प्रति दिन ८०० लाख बैरल जीवाश्म ईंधन जलाया जा रहा है। सोचने की बात है कि हमारी ये चमक कितने दिनों की है।

इन सारी विपदाओं का उत्तर है मानव जाति को स्वच्छ एवं अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की ओर मोड़ना। बीते दशकों में इस पर तकनीकी रूप से काफी काम हुआ है। पहले चरण में वैज्ञानिकों द्वारा हाइड्रो पावर, जैविक ऊर्जा और भूगर्भ ऊष्मा के उपयोग के तरीके ढूंढे गए। फिर सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के साधनों का विकास हुआ। तीसरे चरण में समुद्र की ऊर्जा, नैनो तकनीक, बायो रिफाइनरी तकनीक, बायोमास गैसीफिकेशन इत्यादि ढूंढे गए। संसार भर के प्रतिभावान लोगों ने बिजली और हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियां, प्लास्टिक और पॉलिथीन के बेहतरीन जैविक विकल्प, पर्यावरण मित्र वास्तु कला आदि तकनीकें प्रस्तुत कीं। परंतु प्रश्न तकनीकों की उपलब्धता और उपायों की जानकारी का नहीं है, बल्कि नीयत और प्रतिबद्धता का है। जब तक अपनी महत्वाकांक्षाओं और व्यापारिक लाभों को धरती पर जीवन के अस्तित्व से ज्यादा महत्व दिया जाएगा, तब तक स्वच्छ ऊर्जा आकाश कुसुम ही बनी रहेगी।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में बेहद महत्वपूर्ण कदम उठाया है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने सौर ऊर्जा पर काफी ज़ोर दिया और उल्लेखनीय परिणाम प्राप्त किए थे। प्रधान मंत्री कार्यालय में पहुंचने के बाद उन्होंने इसे अपनी प्राथमिकताओं की सूची में ऊपर रखा। साल २०१५ के अंत में उन्हें बड़ी सफलता मिली जब सौर ऊर्जा के विकास के लिए वे १२१ देशों को एक छत के नीचे लाने में सफल रहे। वे विश्व मंचों पर लगातार इस विषय पर बोलते आए थे। जब नई दिल्ली में भारत-अफ्रीका मंच शिखर वार्ता का आयोजन हुआ तब भी उन्होंने इस विषय को विस्तार से सबके सामने रखा। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद आगे आए और मोदी तथा ओलांद ने सम्बंधित देशों को संयुक्त रूप से लिख कर निमंत्रण पत्र भेजा। इस निमंत्रण पत्र में दोनों नेताओं ने लिखा था कि यह गठबंधन सौर ऊर्जा के सतत विकास, प्रत्येक मानव की ऊर्जा तक पहुंच तथा ऊर्जा सुरक्षा के लिए काम करेगा। संगठन अस्तित्व में आ गया। उद्घाटन समारोह में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बॉन की मून भी उपस्थित थे। संस्था का केंद्र दिल्ली होगा। अब आवश्यकता है इसे पूरी शक्ति के साथ बढ़ाने की। बिजली और हाइड्रोजन चलित बेहतरीन वाहनों विकल्प के बारे में भी सोचा जाना चाहिए।

अब, बात उन प्रयासों की, जो प्रत्येक नागरिक अपने स्तर पर कर सकता है। कुछ छोटे-छोटे प्रयास जो इस धरती को बचा सकते हैं जैसे, पॉलिथीन का बहिष्कार। प्लास्टिक का कम से कम उपयोग। वस्तुओं के पुनर्चक्रण की सतत कोशिश। छोटी दूरियां नापने के लिए, डीजल-पेट्रोल जलाने के स्थान पर अपने शरीर की कैलोरी जलाने की आदत। अपना झोला, अपनी पानी की बोतल, बिजली की बचत। सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग्। क्या हम सबके घरों में सौर चूल्हे दिनचर्या का हिस्सा नहीं बन सकते! अब तो सोलर पैनल आ गए हैं। सवा लाख रुपए के खर्च में एक परिवार के लिए तीस वर्षों तक (वारंटी के साथ) घर की छत पर अपनी ज़रूरत लायक बिजली का उत्पादन एक बेहतरीन विकल्प है। सब खर्चे, बैटरी का रखरखाव आदि निकाल कर औसत मासिक खर्च पांच सौ रूपये के आसपास बैठता है। तीस सालों में आप लाखों की बचत कर लेंगे और आपके घर में कभी बिजली गोल नहीं होगी सो अलग। मन में संतोष भी होगा कि हम अपनी धरती के लिए कुछ कर रहे हैं।

प्रशांत बाजपेई

Next Post
आखिर कहां जाता है परमाणु बिजली घरों का कचरा?

आखिर कहां जाता है परमाणु बिजली घरों का कचरा?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0