जब नवी मुंबई शहर पूरी तरह से गांव था तब अप्पासाहेब मुकादम ने वहां पर संघ की अलख जगाई। वर्तमान में वहां पर हर नोड में संघ की शाखाएं एवं अन्य प्रकल्प कर्तव्यपथ पर अग्रसर हैं।
नवी मुंबई अस्तित्व में आने के पूर्व इस भाग की समाज नीति तथा राजनीति पंचायतों के माध्यम से संचालित होती थी। परंतु शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी आवश्यकताओं के लिए बरसात के मौसम में कीचड़ में से रास्ता पार करना पड़ता था। दूरी भी बहुत होती थी। पैदल जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
ऐसी परिस्थिति में इसे क्षेत्र के विद्यार्थियों को शिक्षा का लाभ हो इस उद्देश्य से त्रिविक्रम जोशी नाम के शिक्षक ने संकल्प किया। पास पड़ोस के सभी गांवों में घूम कर उन्होंने विद्यार्थियों को एकत्रित किया और तुर्भे गांव में शाला प्रारम्भ की। विद्यार्थियों को एकत्रित करने हेतु वे बरसात में भी साइकिल से प्रवास करते थे। धीरे-धीरे विद्यार्थियों की संख्या भी बढ़ रही थी। एक विद्यार्थी प्रिय शिक्षक के रूप में वे प्रसिद्ध थे।
शाला प्रारम्भ होने के पूर्व इस क्षेत्र में संघ का प्रवेश नहीं हुआ था। कुछ लोग किसी कार्यवश कभी न कभी संघ के सम्पर्क में आए थे। संघ रचना के अनुसार यह भाग ठाणे जिले की एक तहसील थी। स्वयंसेवकों की सीमित संख्या के कारण इस तहसील में संघ कार्यक्रम भी सीमित होते थे। ठाणे के कुछ कार्यकर्ता नवी मुंबई के कुछ पुराने कार्यकर्ताओं से सम्पर्क में थे।
इस तहसील के संघ कार्य की वृद्धि हेतु ठाणे जिले के एक जेष्ठ कार्यकर्ता अप्पा मुकादम ध्यान दें, ऐसा तत्कालीन प्रांत संघचालक बाबाराव भिडे का मानस था। अधिकारियों की सूचना या इच्छा इसी को आज्ञा मानकर काम करने की पद्धति संघ में होने के कारण अप्पासाहेब मुकादम ने इस ग्रामीण क्षेत्र में काम प्रारम्भ किया। संघ कार्य का अनुभव, आंतरिक इच्छा और काम करने की जिद होने के कारण इस तहसील में संघ का काम तेजी से बढ़ने लगा।
अत्यंत असुविधाजनक सार्वजनिक यातायात व्यवस्था, प्रवास के लिए निजी वाहनों का अभाव होने के कारण सम्पर्क में बहुत असुविधा होती थी। फिर भी सभी अड़चनों पर मात कर अप्पासाहेब का काम जारी ही था। करीब 11 वर्षों की प्रदीर्घ कालावधि के बाद नवी मुंबई परिसर में 10 शाखाएं शुरू हुई। अप्पा साहब मुकादम थाने से नवी मुंबई आते थे।
उस समय में उनका परिचय जोशी सर से हुआ। अप्पासाहेब के मन में जोशी सर, उनकी शाला एवं शाला के विद्यार्थियों को लेकर एक अलग ही विचार चक्र शुरू हुआ। जोशी सर की शाला यानी सामंत विद्यालय तुर्भे में थी। इसी भाग में अप्पा मुकादम ने शाखा प्रारम्भ की। जोशी सर की शाला में पढ़ने वाले विद्यार्थी शाखा में आएंगे, जोशी सर का ध्यान इन विद्यार्थियों पर रहेगा, शायद ऐसा भी अप्पा साहब को लगता होगा। जोशी सर के साथ उनका वैसा संवाद भी हुआ। परंतु तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए और समय की कमी के कारण उन्होंने अपनी असमर्थता व्यक्त की। अप्पा मुकादम भी निराश नहीं हुए और उन्होंने अपने प्रयत्न जारी रखे। वे जोशी सर से नियमित रूप से मिलते रहे। इसके परिणामस्वरूप शाला के कुछ विद्यार्थी नियमित रूप से शाखा में आएंगे एवं जोशी सर विद्यालय से ही उन पर निगरानी रख सकेंगे, ऐसा सुझाव भी अप्पा साहब ने जोशी सर को दिया। जोशी सर ने भी उसे मान्य कर लिया। इस प्रकार से दोनों का मनोमिलन हुआ। अप्पा जोशी संघ कार्य में कब जुड़ गए यह उनके स्वयं के भी ध्यान में नहीं आया। इस परिसर के जेष्ठ शिक्षक के रूप में जोशी सर का अनेक गांवों में अच्छा सम्पर्क था। इन सभी गांवों में संघ की शाखाएं प्रारम्भ हुई। इन सब के परिणामस्वरूप सन 1981 में नवी मुंबई में संघ का पहला शिविर सम्पन्न हुआ।
नवी मुंबई का विस्तार हो रहा था। नए-नए औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण हो रहा था। अनेक छोटे-बड़े उद्योग नवी मुंबई में स्थलांतरित हो रहे थे, साथ ही साथ नये उद्योग भी स्थापित हो रहे थे। इन सब के परिणामस्वरूप संघ परिवार से सम्बंधित उद्योग भारती का काम नवी मुंबई में शुरू हुआ।
मजदूर क्षेत्र एवं अग्निशमन क्षेत्र में भारतीय मजदूर संघ का काम शुरू हुआ। एक तरफ गांव-गांव में दैनंदिन शाखाओं का जाल फैल रहा था तो दूसरी ओर संघ से सम्बंधित अन्य संस्थाएं तेजी से अपना काम बढ़ा रही थी। विशेष उल्लेख के रूप में विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी का नाम लिया जा सकता है।
मूलतः धार्मिक आस्था वाले यहां के समाज में विश्व हिंदू परिषद का कार्य बढ़ने में देर नहीं लगी। राम जन्मभूमि आंदोलन के कारण विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रमों को प्रोत्साहन मिलता गया। उसके काम की व्याप्ति बढ़ती ही गई। विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से नवी मुंबई की अनेक बस्तियों में विभिन्न प्रकार के अनेक सेवा कार्य चल रहे हैं। इसमें विद्यार्थियों के लिए क्लासेस, आर्थिक रूप से कमजोर समाज के लिए उपचार केंद्र, महिलाओं के लिए मार्गदर्शन केंद्र जैसे विविध उपक्रम आज अस्तित्व में हैं।
संघ कार्य का हो रहा विस्तार एवं होने वाला विस्तार इन सब बातों का विचार कर नवी मुंबई जिले की रचना की गई है। संघ रचना में 11 तहसीलें एवं नगर रचना में संघ का दैनंदिन कार्य शुरू है। संघ की अंतर्गत रचना में साधारणतया 10000 लोगों की एक बस्ती, 10 बस्तियों का एक नगर और 10 से 12 नगरों का एक जिला होता है। स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार इसमें कुछ बदल भी किया जा सकता है। इस सम्पूर्ण रचना का मूल उद्देश्य कार्य विस्तार और काम की निरंतरता इस ओर दुर्लक्ष ना हो, यह होता है। आज इस व्यवस्था के माध्यम से करीब 100 केंद्रों पर (शाखा और साप्ताहिक मिलन) संघ कार्य नवी मुंबई में चल रहा है।
संक्षेप में ही कहना हो तो 1964 के आसपास अप्पा मुकादम तथा जोशी सर द्वारा रोपित संघ बीज का रूपांतर पहले छोटे पौधे, फिर झाड़ और अब वटवृक्ष के रूप में हो गया है। संघ कार्य के इस विस्तार में नोसिल में काम करने वाले (दिन-रात पाली में) ठाणे जिले की धुरा सम्भालने वाले श्रीकांत देशपांडे, प्रदीप पराड़कर, प्रसिद्ध बिल्डर हावरे बंधु, दादा तोरस्कर, एकनाथ मगडवार, मारुति भोइर, नाथा सरगर, जोशी सर के सुपुत्र डॉक्टर नंदकिशोर जोशी, लक्ष्मण मुकादम, वर्तमान प्रांत कार्यवाह विट्ठल जी कांबले, दादा मतलापुरकर इत्यादि कार्यकर्ताओं की सहभागिता थी। इन और ऐसे ही कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम के कारण राम जन्मभूमि आंदोलन को समाज के सभी स्तरों पर सक्रिय सहयोग मिला।
– मोहन ढवलिकर