भूमि पुत्रों का जमीन बचाओ आंदोलन

देश के प्रमुख किसान आंदोलनों में वर्तमान नवी मुंबई के भूमि पुत्रों का आंदोलन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस आंदोलन में कई किसान शहीद हो गए। लेकिन उनके नेता दि. बा. पाटिल झुके नहीं। उन्होंने किसानों को उनका हक दिलाने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया।

सन 90 के दशक की एक महत्वपूर्ण घटना, अर्थात नवी मुंबई का जमीन बचाओ आंदोलन! सिडको द्वारा रहने के लिए मकान बनाने हेतु जमीन अधिग्रहण किया जाना था और उसके लिए 15000 प्रति एकड़ भाव निश्चित किया गया। जमीन का यह भाव बहुत ही कम तथा निर्वासितों को नई जगह बसाने के फायदे भी बहुत कम होने के कारण वहां के किसानों ने शासन तथा सिडको के विरोध में जनमत तैयार किया। जमीन के लिए 40000 प्रति एकड़ भाव मिलना चाहिए एवं 12.5% विकसित जमीन वापस मिलनी चाहिए, सिड़को के प्रकल्प में नौकरी- रोजगार मिले, गावों का विकास हो, इत्यादि मांगें शासन के सामने रखी गई। इसलिए किसानों के नेता दि.बा. पाटिल के नेतृत्व में चारों ओर आंदोलन शुरू हुए। नवी मुंबई के किसानों के नेता भाऊ सखाराम पाटिल ने जमीन के बदले किसानों को हिस्सा देने का प्रस्ताव शासन के सामने रखा; परंतु उनका यह प्रस्ताव शासन के साथ-साथ किसानों को भी पसंद नहीं आया। इसी समय खारी-कलवा- बेलापुर किसान संगठन के एडवोकेट पी.सी पाटिल, मोरेश्वर पाटिल इत्यादि लोगों ने किसानों के पुनर्वास के प्रश्न का सतत पीछा किया। किसानों के नेता दि. बा. पाटिल ने सम्पूर्ण ठाणे, पनवेल उरण, तहसीलों के 95 गांवों में एक बड़ा संघर्ष निर्माण किया। इसमें बड़े, छोटे, आबाल वृद्ध भी शामिल हुए। यहां की महिलाओं ने भी इसमें बड़ी संख्या में भाग लिया। फिर भी सरकार ने जमीन अधिग्रहण का काम सख्ती से जारी रखा। 17 जनवरी 1984 को जब सख्ती से जमीन अधिग्रहण करने हेतु शासकीय अधिकारी आए तब शासकीय कर्मचारियों तथा किसानों में संघर्ष हुआ। इसका अंत मारामारी एवं पुलिस गोलीबारी में हुआ। क्रोधित किसानों पर पुलिस द्वारा गोली चलाई गई। इसमें यहां के केशव महादेव पाटिल, नामदेव शंकर घरत, रघुनाथ अर्जुन ठाकुर, कमलाकर तांडेल तथा महादेव हीरा पाटिल नाम के 5 किसान शहीद हो गए। किसानों के इस आंदोलन की गूंज देशभर में फैली। इस आंदोलन के कारण यहां के किसानों को 27000 प्रति एकड़ का भाव मिला तथा आगे चलकर प्रति हेक्टेयर 12% विकसित जमीन देने का भी एक ऐतिहासिक निर्णय हुआ। नवी मुंबई के किसानों को भी इसका लाभ मिला। इसके बाद किसानों का पक्ष लेने वाले दि.बा. पाटिल ‘ग्रेट हीरो’ के रूप में उभर कर सामने आए। वे किसानों के गले का हार बन गए। सब जगह उनके पुतले खड़े किए गए एवं कई घरों में आराध्य देवता के रूप में उनकी पूजा होने लगी। दि.बा. पाटिल पांच बार विधायक बने, दो बार सांसद बने, विधानसभा में विरोधी दल के नेता भी रहे। पनवेल के नगर अध्यक्ष बने, परंतु उनके मन में थोड़ा भी स्वार्थ नहीं था। किसानों और दीन दुखियों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्होंने अपना जीवन होम कर दिया। अनेक लड़ाइयों में लाठियों की मार और बंदूक की गोलियां भी झेली।  जेल की सजा पाई। परंतु खुद के लिए वे छोटा मकान भी नहीं बना सके। इसलिए नवी मुंबई के प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय विमानतल को (हवाई अड्डे) दि.बा. पाटिल अंतरराष्ट्रीय विमानतल नाम देकर यहां का भूमि पुत्र (किसान) उनके ऋण से कुछ अंशों में ही क्यों ना हो आज उऋण होने की सोच रहा है।

 

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