यदि चीनी एजेंडा आगे बढ़ाने वाले धनपशु का पैसा न्यूजक्लिक तक आ रहा तो उसकी जांच होनी ही चाहिए। न्यूजक्लिक के पक्ष में खड़े लोगों के मनोगत एवं उनकी मानसिक भूमिका हमेशा संदेह के घेरे में रही है। इसलिए इस वेबसाइट के पास आए पैसे और उनका वितरण आरबीआई के मानकानुसार हैं या नहीं, यह जानना अत्यावश्यक है।
देश के 750 लोगों ने न्यूजक्लिक के पक्ष में बयान जारी कर कहा है कि उसका उत्पीड़न हो रहा है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। उनके अनुसार न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में न्यूजक्लिक के विरुद्ध किसी कानून का उल्लंघन करने की बात नहीं कही गई है। इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, इतिहासकार रोमिला थापर, जोया हसन, जयती घोष, हर्ष मंदर, अरुणा राय, एन राम, कॉलिन गोंजाल्विस, प्रशांत भूषण, आनंद पटवर्धन आदि शामिल हैं। न्यूजक्लिक के पक्ष में इनके खड़े होने से किसी को आश्चर्य नहीं होगा। जब-जब किसी संदिग्ध संस्थान पर कोई कानून सम्मत कार्रवाई हुई है ऐसे लोगों का समूह उसके पक्ष में खड़ा होकर इसी भाषा का इस्तेमाल करता रहा है।
एक लोकतांत्रिक खुले समाज एवं व्यवस्था में सरकार के समर्थक विरोधी, मध्यमार्गी, निष्पक्ष, सापेक्ष सभी प्रकार की अभिव्यक्ति के मंचों के लिए जगह होनी चाहिए। इसलिए न्यूजक्लिक सरकार का समर्थन करता है, विरोध करता है यह मायने रखता है केवल इस रूप में कि इसे लेकर उसकी प्रतिबद्धता क्या है? अगर वह संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राजनीतिक पार्टी के रूप में भाजपा और नरेंद्र मोदी सहित भाजपा सरकारों के विरोध को अपना एजेंडा बनाता है तो यह उसका अधिकार है। पर उसका वैचारिक विरोध होगा और होना भी चाहिए। अगर वह एजेंडा चलाता है तो उसके विरुद्ध भी मान्य कानूनी तरीकों में एजेंडा चल सकता है। इसे उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता। आप विरुद्ध अभियान चलाएं तो अच्छा और दूसरा आपके विरुद्ध खड़ा हो तो गलत यह नहीं हो सकता। किंतु इसके आधार पर भारत सरकार की या किसी प्रदेश सरकार की एजेंसियां उसके विरुद्ध कार्रवाई करें यह स्वीकार नहीं हो सकता। क्या न्यूजक्लिक के विरुद्ध कार्रवाई वाकई उसके राजनीतिक एवं वैचारिक एजेंडे के कारण है?
न्यूयॉर्क टाइम्स की छानबीन न्यूजक्लिक पर न होकर इसके फाइनेंसर नेविले राय सिंघम, अमेरिका सहित विश्व भर में फैले मीडिया एवं गैर सरकारी संगठनों आदि के माध्यम से फैला उनका विस्तृत जाल तथा चीन के साथ उनके सम्बंध हैं। इन्हीं की चर्चा करते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत में न्यूजक्लिक का उल्लेख किया है। न्यूयॉर्क टाइम्स छानबीन की रिपोर्ट से साफ है कि नेविले राय सिंघम चीनी एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए कई हजार करोड़ की फंडिंग कर रहे हैं और उसमें न्यूजक्लिक भी शामिल है तो फिर इसे पाक साफ कैसे कहा जा सकता है?
न्यूजक्लिक के मामले के दो पहलू है- वित्त पोषण के साथ चीनी एजेंडे का जुड़ाव और दूसरा इसमें भारतीय कानूनों का उल्लंघन। सिंघम से न्यूजक्लिक स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड को साल 2018 से करीब 38 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। इसको जस्टिस एंड एजुकेशन फंड इंक, यूएस; जीएसपीएएन एलएलसी, यूएस; ट्राईकॉन्टिनेंटल लिमिटेड इंक, यूएसए के अलावा सेंट्रो पॉपुलर डेमिडास, ब्राजील से भी फंड मिला। सारी सिंघम से जुड़ी हुई कम्पनियां हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि अमेरिकी अरबपति सिंघम की विश्व भर में चीन का बचाव करने और उसका प्रोपेगेंडा आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका है और उनके पास भरपूर धन है।
69 वर्षीय सिंघम शिकागो में सॉफ्टवेयर कंसलटेंसी कम्पनी थॉटवर्क्स चलाते हैं और शंघाई में बैठते हैं। वहां उनका नेटवर्क यूट्यूब पर एक शो आयोजित करता है। इसके लिए शंघाई का प्रोपोगंडा विभाग भी पैसा देता है। दो अन्य समूह दुनिया में चीन के पक्ष का प्रचार करने के लिए चीनी यूनिवर्सिटी के साथ काम कर रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की छानबीन के अनुसार सिंघम के साथ मैसाचुसेट्स में एक थिंकटैंक, मैनहैटन की संस्था, दक्षिण अफ्रीका में एक राजनीतिक दल, भारत और ब्राजील में न्यूज संगठन सहित कई समूह जुड़े हैं।
सिंघम ने बयान दिया कि वह चीन सरकार के निर्देश पर काम नहीं करते। हालांकि उनके समूह और विदेशियों को चीन की जानकारी देने वाली एक कम्पनी का कार्यालय एक ही जगह है। सच यह है कि सिंघम के समूह चीन के पक्ष में अभियान के लिए यूट्यूब वीडियो बनाते हैं, राजनीति को वह प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, ये समूह अमेरिकी कांग्रेस में सहायकों से मिलते हैं, अफ्रीका में राजनेताओं को प्रशिक्षण देते हैं, दक्षिण अफ्रीका के चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करते हैं और लंदन जैसे विरोध प्रदर्शन आयोजित करते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स का मूल लक्ष्य भारत था ही नहीं। न्यूयॉर्क टाइम्स मूलतः अमेरिकियों को बता रहा है कि हमारे यहां किस तरह से चीनी एजेंडा चलाने वाला एक व्यक्ति अलग-अलग समूहों और सेल कम्पनियों के माध्यम से काम कर रहा है।
अमेरिका में सिंघम से जुड़ा कोई समूह विदेशी एजेंट रजिस्ट्रेशन कानून के तहत निबंधित नहीं है। अमेरिका में दूसरे देशों की ओर से जनमत को प्रभावित करने के अभियान चलाने वाले समूहों का निबंधन आवश्यक है। जिन चार गैर-लाभकारी संगठनों की बदौलत सिंघम का अभियान चलता है उनके पते इलीनॉय, विस्कंसिन और न्यूयॉर्क में यूपीएस स्टोर मेल बॉक्स के रूप में दर्ज है।
न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है कि यूपीएस स्टोर गैर-लाभकारी समूह के रूप में यहां दर्ज है। समूह से करोड़ों डॉलर दुनिया भर में भेजे गए हैं। कोई न कोई बहाना बनाकर इसने दक्षिण अफ्रीका के स्कूलों को लाखों डॉलर भेजे हैं। इसी में आगे वह कुछ राजनीतिक दलों एवं मीडिया संस्थानों को पैसा मिलने के बारे में लिखता है। उदाहरण के लिए ब्राजील में ब्राजील डिफेक्टो अखबार चलाने वाले समूहों को भी सिंघम से धन मिला है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने स्पष्ट लिखा है कि नई दिल्ली में कॉरपोरेट्स फाइलिंग से पता लगा है कि सिंघम के नेटवर्क न्यूज साइट न्यूजक्लिक को फाइनेंस किया है। ये समूह तालमेल से काम करते हैं। उन्होंने एक-दूसरे के कंटेंट सोशल मीडिया पर सैकड़ों बार पोस्ट किए हैं। यह है न्यूयॉर्क टाइम्स की छानबीन।
ईडी या प्रवर्तन निदेशालय की छानबीन से मोटा-मोटी जो जानकारी सामने आई उसके अनुसार न्यूज पोर्टल को आए धन में से 52 लाख कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बप्पादित्या सिन्हा को दिए गए। बप्पादित्या सिन्हा कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के ट्विटर हैंडल भी सम्भालते हैं। धन का एक हिस्सा गौतम नवलखा के पास गया। निश्चित रूप से ये भुगतान उनके लेख या रिपोर्ट आदि के लिए ही गया होगा। विचार या एजेंडा फैलाने वालों को इसी तरह भुगतान किया जाता है जिनमें कानूनी रूप से कोई खांच न रहे। यह देखना प्रवर्तन निदेशालय का काम है कि जो धन आए उनमें कानून और भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों का पालन हुआ या नहीं?